उज्जैन। उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के फार्मेसी संस्था में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा बड़ी मुश्किलों से शर्तों के साथ प्रधान की गई मान्यता एक बार फिर खतरे में पड़ गई है. इसका मुख्य कारण विक्रम विश्वविद्यालय के द्वारा फार्मेसी संस्था में अतिथि विद्वानों के पद पर कार्यरत शिक्षकों को विगत 2 महीने से वेतन नहीं दिया जा रहा है. जिसको लेकर शुक्रवार को अतिथि शिक्षकों ने कुलपति और कुलसचिव को ज्ञापन दिया है. वहीं कुलसचिव का कहना है कि कार्यपरिषद की बैठक में वेतन को लेकर चर्चा की जाएगी.
उज्जैन बी फार्मा 4 वर्षीय पाठ्यक्रम विक्रम विश्वविद्यालय के फार्मेसी संस्था में लगभग 17 वर्षों से संचालित है. जिसकी मान्यता के लिए प्रतिवर्ष फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया नई दिल्ली के द्वारा मान्यता हेतु निरीक्षण किया जाता है. संस्था में लगातार शिक्षकों की कमी मुख्य मुद्दा रहता है कि जिसके लिए प्रतिवर्ष पीसीआई द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय को समय-समय पर शिक्षकों को भर्ती करने, उनके वेतन व पदनाम विसंगति को दूर करने के लिए निर्देशित किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद विक्रम विश्वविद्यालय ध्यान नहीं दे रहा है और प्रतिवर्ष सेमेस्टर ब्रेक के नाम पर भी वेतन काट दिया जाता है. जबकि पीसीआई के निर्देश अनुसार शिक्षकों को वेतन काटना नियमों के विरुद्ध है. फार्म संस्था में वर्तमान में 2 स्थाई शिक्षक और 6 अतिथि शिक्षक विद्वान कार्यरत थे. जबकि नियम अनुसार लगभग 17 शिक्षक होना चाहिए फिर भी अतिथि विद्वानों से दोगुना काम लिया जाने के बाद भी उनको वेतन नहीं दिया जा रहा है.
कोरोना काल में केंद्र सरकार की ओर से स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी अपील की जा रही है कि किसी भी का वेतन ना काटा जाए. फिर भी विक्रम विश्वविद्यालय प्रशासन समस्त नियमों और निर्देशों को अवहेलना कर 2 महीने से वेतन नहीं दिया है. जिसको लेकर अतिथि शिक्षकों ने कुलपति और कुलसचिव को एक ज्ञापन दिया है और मांग नहीं माने जाने पर बड़े प्रदर्शन की बात कही है.