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Diwali 2021: 2000 साल पुरानी है उज्जैन की मां गजलक्ष्मी की प्रतिमा, दिवाली पर 2100 लीटर दूध से होता है अभिषेक

महाकाल की नगरी उज्जैन में मां गजलक्ष्मी का अनूठा मंदिर है. राजा विक्रमादित्य के समय के इस प्राचीन मंदिर में माता गजलक्ष्मी की दो हजार साल पुरानी स्फटिक की प्रतिमा है. ऐरावत हाथी पर सवार पद्मासन मुद्रा में बैठी माता गजलक्ष्मी मान सम्मान वैभव दिलाने वाली होती है. मंदिर में काले पत्थर से बनी भगवान विष्णु के दशावतार वाली अद्भूत प्रतिमा भी मौजूद है.

Diwali 2021 statue of Ujjain Gajalakshmi is 2000 years old
Diwali 2021 2000 साल पुरानी है उज्जैन की मां गजलक्ष्मी की प्रतिमा
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Published : Oct 31, 2021, 12:23 PM IST

उज्जैन। महाकाल की नगरी में गजलक्ष्मी का अनूठा मंदिर है. गजलक्ष्मी का मंदिर नगर के मध्य सराफा बाजार नई पेठ में स्थित है. मान्यता है कि देशभर में प्रसिद्ध ऐरावत हाथी पर सवार पद्मासन मुद्रा में बैठी लक्ष्मी माता की अद्भुत प्रतिमा यहां स्थापित है. ये प्रतिमा राजा विक्रमादित्य के ज़माने के समय की मानी जाती है. स्फटिक की बनी गजलक्ष्मी की प्रतिमा पूर्व मुखी है. साथ ही यहां विष्णु के दशावतार की काले पाषाण पर निर्मित अद्भुत प्रतिमा भी स्थापित है. दीपावली वाले दिन लक्ष्मी माता का 2100 लीटर दूध से अभिषेक किया जाएगा. लेकिन ख़ास बात ये कि दूध प्रतिमा पर चढ़ने के बाद एक जगह इक्ट्ठा कर लिया जाता है और श्रद्धालुओं में बांट दिया जायेगा. दीपावली की शाम यहां 56 भोग का प्रसाद भी माता को चढ़ाया जाएगा.

Diwali 2021 2000 साल पुरानी है उज्जैन की मां गजलक्ष्मी की प्रतिमा

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2000 साल पुरानी प्रतिमा

गजलक्ष्मी मंदिर करीब 2000 साल पुराना है. मंदिर के पुजारी राजेश गुरु ने बताया कि गजलक्ष्मी माता राजा विक्रमदित्य की राजलक्ष्मी भी कहलायी हैं. यहां हाथी पर सवार लक्ष्मी माता की मूर्ति है. राजा विक्रमदित्य के जमाने की ये ऐसी दुर्लभ प्रतिमा है, जो पूरे भारत वर्ष में कही नहीं मिलेगी. ऐरावत हाथी पर सवार माता पद्मासन मुद्रा में बैठी हैं. हाथी पर सवार माता लक्ष्मी मान सम्मान वैभव दिलाने वाली होती है. पुजारी ने बताया कि शुभ लक्ष्मी में रूप में गज लक्ष्मी को पूजा जाता है. धनतेरस से पड़वा तक चार दिन तक दीपावली त्योहार गजलक्ष्मी मंदिर में मनाया जाएगा.

2100 लीटर दूध से अभिषेक
दीपावली पर माता गजलक्ष्मी की विशेष पूजा होती है. दिवाली वाले दिन 2100 लीटर दूध से माता का अभिषेक किया जाता है. साथ ही खीर का भोग चढ़ाया जाता है. दीपावली पर यहां भक्तों की भीड़ रहती है. वहीं दिवाली के दूसरे दिन पड़वा पर गजलक्ष्मी मंदिर में साल भर दान के रूप में आने वाले बिंदी-सिंदूर को सौभाग्यवती महिलाओं को माता के सौभाग्य स्वरूप वितरित किया जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि माता के दर्शन मात्र से सारे संकट दूर हो जाते हैं. घर में वैभव औऱ सुख-संपत्ति आती है.

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

मां गजलक्ष्मी से जुड़ी एक पौराणिक धार्मिक कथा प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि जब पांडव जुएं में अपना सारा राजपाट हार गए थे और जंगल-जंगल भटक रहे थे, तब हाथी अष्टमी पूजने के लिए माता कुंती परेशान हो रही थीं. वहीं कौरव धन-संपदा और राजपाट से संपन्न थे, घमंड से चूर कौरवों ने मिट्टी का विशाल हाथी बनाकर लोगों से उनकी पूजा करने को कहा. जब पांडवों ने मां कुंती को परेशान होते हुए देखा तो इंद्र से प्रार्थना की. फिर अर्जुन ने बाण द्वारा एक संदेश इंद्र को भेजा, तो इंद्र ने ऐरावत हाथी को ही धरती पर उतार दिया, जिस पर स्वयं मां लक्ष्मी विराजमान थीं. जिससे प्रसन्न होकर माता कुंती ने इनकी पूजा की. इधर, देवराज इंद्र ने नगर में भारी बारिश शुरू कर दी, जिससे कौरवों द्वारा बनाया गया मिट्टी का विशाल हाथी बारिश में बह गया और उनकी पूजा अधूरी रह गई. भक्तों की मान्यता है कि पांडवों को उनका खोया राज्य मां गजलक्ष्मी की कृपा से ही वापस मिला था.

उज्जैन। महाकाल की नगरी में गजलक्ष्मी का अनूठा मंदिर है. गजलक्ष्मी का मंदिर नगर के मध्य सराफा बाजार नई पेठ में स्थित है. मान्यता है कि देशभर में प्रसिद्ध ऐरावत हाथी पर सवार पद्मासन मुद्रा में बैठी लक्ष्मी माता की अद्भुत प्रतिमा यहां स्थापित है. ये प्रतिमा राजा विक्रमादित्य के ज़माने के समय की मानी जाती है. स्फटिक की बनी गजलक्ष्मी की प्रतिमा पूर्व मुखी है. साथ ही यहां विष्णु के दशावतार की काले पाषाण पर निर्मित अद्भुत प्रतिमा भी स्थापित है. दीपावली वाले दिन लक्ष्मी माता का 2100 लीटर दूध से अभिषेक किया जाएगा. लेकिन ख़ास बात ये कि दूध प्रतिमा पर चढ़ने के बाद एक जगह इक्ट्ठा कर लिया जाता है और श्रद्धालुओं में बांट दिया जायेगा. दीपावली की शाम यहां 56 भोग का प्रसाद भी माता को चढ़ाया जाएगा.

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2000 साल पुरानी प्रतिमा

गजलक्ष्मी मंदिर करीब 2000 साल पुराना है. मंदिर के पुजारी राजेश गुरु ने बताया कि गजलक्ष्मी माता राजा विक्रमदित्य की राजलक्ष्मी भी कहलायी हैं. यहां हाथी पर सवार लक्ष्मी माता की मूर्ति है. राजा विक्रमदित्य के जमाने की ये ऐसी दुर्लभ प्रतिमा है, जो पूरे भारत वर्ष में कही नहीं मिलेगी. ऐरावत हाथी पर सवार माता पद्मासन मुद्रा में बैठी हैं. हाथी पर सवार माता लक्ष्मी मान सम्मान वैभव दिलाने वाली होती है. पुजारी ने बताया कि शुभ लक्ष्मी में रूप में गज लक्ष्मी को पूजा जाता है. धनतेरस से पड़वा तक चार दिन तक दीपावली त्योहार गजलक्ष्मी मंदिर में मनाया जाएगा.

2100 लीटर दूध से अभिषेक
दीपावली पर माता गजलक्ष्मी की विशेष पूजा होती है. दिवाली वाले दिन 2100 लीटर दूध से माता का अभिषेक किया जाता है. साथ ही खीर का भोग चढ़ाया जाता है. दीपावली पर यहां भक्तों की भीड़ रहती है. वहीं दिवाली के दूसरे दिन पड़वा पर गजलक्ष्मी मंदिर में साल भर दान के रूप में आने वाले बिंदी-सिंदूर को सौभाग्यवती महिलाओं को माता के सौभाग्य स्वरूप वितरित किया जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि माता के दर्शन मात्र से सारे संकट दूर हो जाते हैं. घर में वैभव औऱ सुख-संपत्ति आती है.

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

मां गजलक्ष्मी से जुड़ी एक पौराणिक धार्मिक कथा प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि जब पांडव जुएं में अपना सारा राजपाट हार गए थे और जंगल-जंगल भटक रहे थे, तब हाथी अष्टमी पूजने के लिए माता कुंती परेशान हो रही थीं. वहीं कौरव धन-संपदा और राजपाट से संपन्न थे, घमंड से चूर कौरवों ने मिट्टी का विशाल हाथी बनाकर लोगों से उनकी पूजा करने को कहा. जब पांडवों ने मां कुंती को परेशान होते हुए देखा तो इंद्र से प्रार्थना की. फिर अर्जुन ने बाण द्वारा एक संदेश इंद्र को भेजा, तो इंद्र ने ऐरावत हाथी को ही धरती पर उतार दिया, जिस पर स्वयं मां लक्ष्मी विराजमान थीं. जिससे प्रसन्न होकर माता कुंती ने इनकी पूजा की. इधर, देवराज इंद्र ने नगर में भारी बारिश शुरू कर दी, जिससे कौरवों द्वारा बनाया गया मिट्टी का विशाल हाथी बारिश में बह गया और उनकी पूजा अधूरी रह गई. भक्तों की मान्यता है कि पांडवों को उनका खोया राज्य मां गजलक्ष्मी की कृपा से ही वापस मिला था.

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