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इस गांव में जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं ग्रामीण, प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान

टीकमगढ़ जिले की लिधोर तहसली के मनगुवां गांव में लोग फ्लोराइट युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. जिससे वे गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. बावजूद इसके प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है.

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'जहरीला' जल
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Published : Jul 21, 2020, 9:33 PM IST

टीकमगढ़। बिन पानी जीवन की कल्पना करना पाना भी मुश्किल है. लेकिन ये उतना ही सच है कि धीरे-धीरे पूरी मानव जाति भारी जलसंकट की तरफ बढ़ रही है. आधुनिकतावाद के इस युग में प्राकृतिक जलस्रोत दूषित हो गए हैं. जिससे बाद अब लोगों के नसीब में शुद्ध पानी भी नहीं रहा. ऐसी ही कहानी है टीकमगढ़ जिले की निधोरा तहसील के मनगुवां गांव की. यहां के ग्राउंड वाटर में भारी मात्रा में फ्लोराइड है. लेकिन ग्रामीण यही पानी पीने को मजबूर हैं. जिससे वे तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.

'जहरीला' जल

तीन हजार की आबादी जहरीला पानी पीने का मजबूर

मनगुवां गांव की आबादी करीब 3 हजार है. गांव में करीब 16 हैंडपंप लगे हुए हैं. जिनमें से आधे से ज्यादा में पानी कम है और जिनमें पानी है उनमें फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है. प्रशासन ने गांव वालों की समस्या को देखते हुए हैंडपंप पर सिर्फ एक चेतावनी चस्पा कर दी है. ग्रामीणों का कहना है कि आस-पास कहीं कोई पानी का स्त्रोत नहीं है. लिहाजा वे मजबूरी में ये पानी पीते हैं. प्रशासन से कई बार गुहार लगाने पर कोई सुनवाई नहीं हुई है.

डॉक्टर अजित जैन ने बताया कि पानी में 1 मिली ग्राम प्रति लीटर तक फ्लोराइड की मात्रा शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होती है, लेकिन इससे ज्यादा होने पर ये कई तरह की बीमारियों का कारण बन जाती है. जिससे वे तमाम तरह की बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं.

फ्लोराइड युक्त पानी पीने से होने वाली बीमारियांः

दंत फ्लोरोसिस

पेयजल में फ्लोराइड की सीमा 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो तो इससे दांत और मानव स्वास्थ्य पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ता है. लेकिन 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर की सीमा पार होने पर दंत फ्लोरोसिस से प्रभावित हो जाता है. इस बीमारी में दांतों में धब्बे और गड्ढे पड़ जाना आम बात है. बच्चे इसकी गिरफ्त में तुरन्त ही आ जाते हैं. दन्त फ्लोरोसिस होने पर दांतों की प्राकृतिक चमक नष्ट हो जाती है.

हड्डी का फ्लोरोसिस

हड्डी फ्लोरोसिस इंसानी शरीर में हड्डियों पर असर करता है. शुरू में पैर की हड्डी चौकोर और चपटी हो जाती है और बाद में बच्चा लाचार होकर रह जाता है. पुरुष और महिलाएं भी 35 से 40 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बुढ़ापे का अनुभव करने लगते हैं. उनकी कमर झुकने लगती है और शरीर की ताकत कम होने लगती है. अगर फ्लोराइड की पानी में घुलनशीलता 10 से 40 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो जाये तो इंसान हड्डी फ्लोरोसिस से ग्रसित हो जाता है.

गांव की इस समस्या को जब ईटीवी भारत की टीम ने प्रशासन तक पहुंचाया तो कार्यपालन यंत्री जितेंद्र मिश्रा ने रटा रटाया जवाब सुना दिया और जल्द ही गांव की समस्या दूर करने के लिए पानी की वैकल्पिक व्यवस्था करने की बात कही. देश का संविधान शुद्ध पानी उपलब्ध कराने की गारंटी देता है, सरकारें राइट वाटर की बात करतीं हैं, लेकिन इस गांव के लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं.

टीकमगढ़। बिन पानी जीवन की कल्पना करना पाना भी मुश्किल है. लेकिन ये उतना ही सच है कि धीरे-धीरे पूरी मानव जाति भारी जलसंकट की तरफ बढ़ रही है. आधुनिकतावाद के इस युग में प्राकृतिक जलस्रोत दूषित हो गए हैं. जिससे बाद अब लोगों के नसीब में शुद्ध पानी भी नहीं रहा. ऐसी ही कहानी है टीकमगढ़ जिले की निधोरा तहसील के मनगुवां गांव की. यहां के ग्राउंड वाटर में भारी मात्रा में फ्लोराइड है. लेकिन ग्रामीण यही पानी पीने को मजबूर हैं. जिससे वे तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.

'जहरीला' जल

तीन हजार की आबादी जहरीला पानी पीने का मजबूर

मनगुवां गांव की आबादी करीब 3 हजार है. गांव में करीब 16 हैंडपंप लगे हुए हैं. जिनमें से आधे से ज्यादा में पानी कम है और जिनमें पानी है उनमें फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है. प्रशासन ने गांव वालों की समस्या को देखते हुए हैंडपंप पर सिर्फ एक चेतावनी चस्पा कर दी है. ग्रामीणों का कहना है कि आस-पास कहीं कोई पानी का स्त्रोत नहीं है. लिहाजा वे मजबूरी में ये पानी पीते हैं. प्रशासन से कई बार गुहार लगाने पर कोई सुनवाई नहीं हुई है.

डॉक्टर अजित जैन ने बताया कि पानी में 1 मिली ग्राम प्रति लीटर तक फ्लोराइड की मात्रा शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होती है, लेकिन इससे ज्यादा होने पर ये कई तरह की बीमारियों का कारण बन जाती है. जिससे वे तमाम तरह की बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं.

फ्लोराइड युक्त पानी पीने से होने वाली बीमारियांः

दंत फ्लोरोसिस

पेयजल में फ्लोराइड की सीमा 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो तो इससे दांत और मानव स्वास्थ्य पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ता है. लेकिन 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर की सीमा पार होने पर दंत फ्लोरोसिस से प्रभावित हो जाता है. इस बीमारी में दांतों में धब्बे और गड्ढे पड़ जाना आम बात है. बच्चे इसकी गिरफ्त में तुरन्त ही आ जाते हैं. दन्त फ्लोरोसिस होने पर दांतों की प्राकृतिक चमक नष्ट हो जाती है.

हड्डी का फ्लोरोसिस

हड्डी फ्लोरोसिस इंसानी शरीर में हड्डियों पर असर करता है. शुरू में पैर की हड्डी चौकोर और चपटी हो जाती है और बाद में बच्चा लाचार होकर रह जाता है. पुरुष और महिलाएं भी 35 से 40 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बुढ़ापे का अनुभव करने लगते हैं. उनकी कमर झुकने लगती है और शरीर की ताकत कम होने लगती है. अगर फ्लोराइड की पानी में घुलनशीलता 10 से 40 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो जाये तो इंसान हड्डी फ्लोरोसिस से ग्रसित हो जाता है.

गांव की इस समस्या को जब ईटीवी भारत की टीम ने प्रशासन तक पहुंचाया तो कार्यपालन यंत्री जितेंद्र मिश्रा ने रटा रटाया जवाब सुना दिया और जल्द ही गांव की समस्या दूर करने के लिए पानी की वैकल्पिक व्यवस्था करने की बात कही. देश का संविधान शुद्ध पानी उपलब्ध कराने की गारंटी देता है, सरकारें राइट वाटर की बात करतीं हैं, लेकिन इस गांव के लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं.

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