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बड़े व्यापारियों के साथ कबाड़ी भी झेल रहे हैं आर्थिक तंगी की मार, कोरोना काल में सब लाचार - सीधी छोटे व्यापारियों पर आर्थिक संकट

जिले में लॉकडाउन की मार झेल रहे कबाड़ियों के सामने आर्थिक बदहाली बनी हुई है, हालात यह हैं कि शहर में करीब आठ ऐसे कबाड़ियों की दुकान हैं जहां कबाड़ बीनने वाले कबाड़ी अपनी दिन भर की मेहनत को इन कबाड़ियों के पास बेच देते हैं. लेकिन लॉकडाउन में इनका कारोबार पूरी तरह ठप हो गया है.

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आर्थिक तंगी की मार
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Published : Oct 16, 2020, 12:56 PM IST

सीधी। कोरोना के कारण बड़े व्यवसायियों के साथ छोटे व्यवसायी भी आर्थिक बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हुए हैं, मध्यप्रदेश के अन्य जिलों की तरह सीधी जिला भी लॉकडाउन की मार झेल रहा है. सीधी आदिवासी बाहुल्य जिला है, जहां गरीबी और लाचारी के साथ इस वैश्विक महामारी ने आम आदमी के साथ छोटे व्यवसायियों में कबाड़ का व्यापार कर जीवन बसर करने वाले कबाड़ियों की भी कमर तोड़ कर रख दी है. जिससे इनको अपने परिवार का गुजारा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

आर्थिक तंगी की मार

पूरा दिन घूमने के बाद भी कुछ नहीं लगता हाथ

जिले में लॉकडाउन की मार झेल रहे कबाड़ियों के सामने आर्थिक बदहाली बनी हुई है, हालात यह हैं कि शहर में करीब आठ ऐसे कबाड़ियों की दुकान हैं जहां कबाड़ बीनने वाले कबाड़ी अपनी दिन भर की मेहनत को इन कबाड़ियों के पास बेच देते हैं. हाथ ठेला में घर-घर जाकर कबाड़ मांगने के बाद भी इन्हें कबाड़ नहीं मिल रहा है, जिससे सारा दिन घूमने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता.

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छोटे-छोटे बच्चे बीनते हैं कबाड़

इनका कहना है कि कोरोना वायरस की वजह से लोग घर से बाहर नहीं निकलते, शहर में ऐसे काम अधिकतर छोटे छोटे बच्चे करते हैं, गरीबी और मां बाप की तरफ से ध्यान न देने की वजह से ये मासूम कॉलोनियों में कबाड़ बीनते हैं. वहीं हाथ ठेले से कबाड़ खरीदने निकले दिनेश बंसल और सुदामा बंसल का कहना है कि लॉकडाउन के पहले इतना कमा लेते थे कि परिवार का गुजारा हो जाता था, लेकिन अब धंधा बन्द होने और बीमारी के डर से कोई बाहर नहीं निकलता.

बीमारी के कारण कोई नहीं बेच रहा कबाड़

वहीं करण बंसल का कहना है कि लॉकडाउन में हम लोग बाहर दूसरे शहर में फंसे हुए थे, कुछ दिन पहले ही आए हैं, ऐसे में परिवार का पेट पालने के लिए कबाड़ घर-घर जाकर मांग रहे हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही कबाड़ बेच रहे हैं, जिससे इनके परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कबाड़ खरीदने वाले आनंद पटेल का कहना है कि कबाड़ के काम में लगे मजदूरों की मजदूरी निकलना मुश्किल हो गया है. आर्थिक तंगी के चलते सभी परेशान हैं.

प्रशासन से मदद की आस

बहरहाल सीधी में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन में कबाड़ के बीनने और घर-घर कबाड़ मांगने वाले छोटे व्यवसायी बदहाली में जिंदगी जीने को मजबूर हैं. परिवार का पेट पालने के लिए इन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल हो गया है. सीधी में ऐसे 400 के करीब लोग हैं जो कबाड़ बीनकर परिवार का गुजर बसर करते हैं, जोकि अब प्रशासन से आस लगाए बैठे हैं कि प्रशासन कुछ मदद करेगा, अब ऐसे में देखना होगा कि शासन प्रशासन इन्हें क्या मदद करता है.

सीधी। कोरोना के कारण बड़े व्यवसायियों के साथ छोटे व्यवसायी भी आर्थिक बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हुए हैं, मध्यप्रदेश के अन्य जिलों की तरह सीधी जिला भी लॉकडाउन की मार झेल रहा है. सीधी आदिवासी बाहुल्य जिला है, जहां गरीबी और लाचारी के साथ इस वैश्विक महामारी ने आम आदमी के साथ छोटे व्यवसायियों में कबाड़ का व्यापार कर जीवन बसर करने वाले कबाड़ियों की भी कमर तोड़ कर रख दी है. जिससे इनको अपने परिवार का गुजारा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

आर्थिक तंगी की मार

पूरा दिन घूमने के बाद भी कुछ नहीं लगता हाथ

जिले में लॉकडाउन की मार झेल रहे कबाड़ियों के सामने आर्थिक बदहाली बनी हुई है, हालात यह हैं कि शहर में करीब आठ ऐसे कबाड़ियों की दुकान हैं जहां कबाड़ बीनने वाले कबाड़ी अपनी दिन भर की मेहनत को इन कबाड़ियों के पास बेच देते हैं. हाथ ठेला में घर-घर जाकर कबाड़ मांगने के बाद भी इन्हें कबाड़ नहीं मिल रहा है, जिससे सारा दिन घूमने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता.

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छोटे-छोटे बच्चे बीनते हैं कबाड़

इनका कहना है कि कोरोना वायरस की वजह से लोग घर से बाहर नहीं निकलते, शहर में ऐसे काम अधिकतर छोटे छोटे बच्चे करते हैं, गरीबी और मां बाप की तरफ से ध्यान न देने की वजह से ये मासूम कॉलोनियों में कबाड़ बीनते हैं. वहीं हाथ ठेले से कबाड़ खरीदने निकले दिनेश बंसल और सुदामा बंसल का कहना है कि लॉकडाउन के पहले इतना कमा लेते थे कि परिवार का गुजारा हो जाता था, लेकिन अब धंधा बन्द होने और बीमारी के डर से कोई बाहर नहीं निकलता.

बीमारी के कारण कोई नहीं बेच रहा कबाड़

वहीं करण बंसल का कहना है कि लॉकडाउन में हम लोग बाहर दूसरे शहर में फंसे हुए थे, कुछ दिन पहले ही आए हैं, ऐसे में परिवार का पेट पालने के लिए कबाड़ घर-घर जाकर मांग रहे हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही कबाड़ बेच रहे हैं, जिससे इनके परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कबाड़ खरीदने वाले आनंद पटेल का कहना है कि कबाड़ के काम में लगे मजदूरों की मजदूरी निकलना मुश्किल हो गया है. आर्थिक तंगी के चलते सभी परेशान हैं.

प्रशासन से मदद की आस

बहरहाल सीधी में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन में कबाड़ के बीनने और घर-घर कबाड़ मांगने वाले छोटे व्यवसायी बदहाली में जिंदगी जीने को मजबूर हैं. परिवार का पेट पालने के लिए इन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल हो गया है. सीधी में ऐसे 400 के करीब लोग हैं जो कबाड़ बीनकर परिवार का गुजर बसर करते हैं, जोकि अब प्रशासन से आस लगाए बैठे हैं कि प्रशासन कुछ मदद करेगा, अब ऐसे में देखना होगा कि शासन प्रशासन इन्हें क्या मदद करता है.

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