शिवपुरी। जिले में रहने वाले एक छात्र ने सबके सामने अपनी बुद्धिमता से कमाल कर दिखाया है. छात्र जयराज शर्मा ने वैदिक गणित से प्रेरित होकर एक पुस्तक लिखी है. जयराज ने बताया कि, यह पुस्तक केवल एक अध्याय है. उनकी उस पुस्तक का जिसे उन्होंने आरडी शर्मा से प्रेरणा लेकर लिखना शुरू किया था. वर्तमान में जयराज शर्मा वैदिक विज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों के योगदान पर अपना शोध कर रहे हैं जो भारतीय छात्रों के लिए अभी भी अज्ञात है.
वैदिक गणित से प्रभावित जयराज: छात्र जयराज शर्मा ने बताया कि हर वर्ष 22 दिसंबर को महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम के जन्मदिन पर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है. गणित और भौतिकी हमेशा से ही रुचि का विषय रहा है. यही कारण है कि जब वह छठी कक्षा में थे तब से वह हमेशा एक शोधकर्ता और एक सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक बनना चाहते थे. वह प्राचीन भारतीय विज्ञान और गणित, विशेष रूप से वैदिक गणित से भी बहुत प्रभावित थे, उन्होंने 8वीं कक्षा में वैदिक गणित का स्वाध्याय शुरू किया और फिर उन्हें आरडी शर्मा की तरह एक किताब लिखने का विचार आया, एक ऐसी किताब जिसमें उनके स्वयं के प्रश्न और समाधान हो वैदिक गणित के दृष्टकोण से यहां तक कि उन्होंने वैदिक गणित पर आधारित उस पुस्तक का एक अध्याय लिखना भी शुरू कर दिया. जिसका शीर्षक था प्लाङ्क्षइंग विथ मैथमेटिकल ऑपरेशन जो उनकी कक्षा 8वीं की गणित की किताब के एक अध्याय प्लाइिंग विथ नंबर्स से प्रेरित है. उन्होंने कक्षा 10वीं में अपनी पुस्तक के 3 अध्यायों को लिखना समाप्त किया और पूरी पुस्तक को 11वीं कक्षा में पूरा करने का निर्णय लिया लेकिन जैसा कि कहते हैं, सब कुछ योजना के अनुसार नहीं होता है.
असफलता से नहीं मानी हार: जयराज ने बताया कि 11वीं कक्षा में जीव विज्ञान चुना और वे कोटा चले गए क्योंकि वह डॉक्टर भी बनना चाहते थे, यह उनका सबसे खराब फैसला था. जीव विज्ञान में लगातार अच्छा ना कर पाने पर उन्हें काफ़ी निराशा हाथ आई मगर उनके पिताजी ने उन्हें जो पसंद है उसे जारी करने के लिए प्रोत्साहित किया और 12वीं पास करने के बाद उन्होंने अपनी कक्षा 11वीं और 12वीं को गणित विषय के साथ दोहराने का फैसला किया. मगर उन्हें किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं मिला. जिसके बाद उन्होंने जीव विज्ञान में अपने स्नातक के साथ मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए अपने आप को तैयार किया और स्वयं ही अध्ययन करने का फैसला किया, अपने पहले प्रयास में परीक्षा में असफल होने के बाद उन्होंने दूसरी बार प्रयास किया मगर रिल्ट में ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ और वे एक ही परीक्षा में दूसरी बार असफल हो गए.
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छोटी पुस्तक का दिया रूप: उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा के लिए तीसरी बार अध्ययन करना शुरू करने के साथ साथ कुछ थोड़ा बहुत गणित का अध्यन भी शुरू कर दिया. साथ ही साथ आर.डी शर्मा जैसी पुस्तक के साथ प्रकाशित होने की अभिलाषा को भुला कर उन्होंने उन 3 अध्यायों का संकलन करने का फैसला किया जो उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में लिखे थे. अब उसे उन्होंने एक छोटी पुस्तक का रूप देना शुरू किया. यह उनके स्नातक का तीसरा वर्ष था। वह मेडिकल प्रवेश के अपने तीसरे प्रयास में भी असफल रहे. मगर उन्होंने अपनी पहली पुस्तक लिख कर पूरी की और कक्षा 11वीं और 12वीं के गणित का अध्ययन भी खुद से पूरा किया.