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तपती धूप में पैदल नाप रहे घर की दूरी, नहीं थम रहा प्रवासी मजदूरों का पैदल चलने का सिलसिला

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Published : May 24, 2020, 8:25 PM IST

श्योपुर में राजस्थान सवाई माधोपुर से एक प्रवासी मजदूर परिवार पैदल ही अपने गृह जिले के लिए निकल पड़ा. तपती धूप में छोटे-छोटे बच्चों के साथ पैदल चल रहे मजदूरों का कहना है कि काम नहीं होने से उनके पास पैसे नहीं होने कारण कोई साधन नहीं ले पाए.

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तपती धूप में पैदल नाप रहे गांव की दूरी

श्योपुर। लॉकडाउन के चलते दूसरे जिले और राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों का आना थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि शासन के द्वारा स्पेशल ट्रेनें और बसें तो चलाई जा रही हैं लेकिन कुछ मजदूरों को उनका अभी भी लाभ नहीं मिल रहा है. राजस्थान सवाई माधोपुर में मुन्नालाल आदिवासी का परिवार मजदूरी करता था, जो गर्मी में छोटे-छोटे बच्चों के साथ लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूरी का पैदल सफर के लिए निकल पड़े हैं.

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तपती धूप में पैदल नाप रहे गांव की दूरी

मामला मध्यप्रदेश और राजस्थान का बॉर्डर सामरसा चौकी का है, जहां पर राजस्थान के सवाई माधोपुर में लॉक डालने से पहले मजदूरी करने गए आदिवासी परिवार लॉकडाउन होने के कारण फंस गए थे. ऐसे में काफी इंतजार करने के बाद बसों का आवागमन आरंभ हुआ लेकिन मजदूरी भी न मिलने के कारण जो कमाया था उसे खा पीकर साफ कर दिया और आगे की कोई व्यवस्था नहीं थी. जिस वजह से पैदल ही घर के लिए निकल पड़े.

विक्रम आदिवासी का कहना है कि लॉकडाउन में आने जाने के साधन पूरी तरह से बंद हैं. लगभग 2 महीने से कोई काम नहीं है, ऐसे में खाने-पीने के लिए पैसे भी नहीं है. जिसके चलते ऐसी धूप में अपने बच्चों के साथ पैदल ही निकल पड़े, कल तक अपने गांव पहुंच ही जाएंगे.

श्योपुर। लॉकडाउन के चलते दूसरे जिले और राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों का आना थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि शासन के द्वारा स्पेशल ट्रेनें और बसें तो चलाई जा रही हैं लेकिन कुछ मजदूरों को उनका अभी भी लाभ नहीं मिल रहा है. राजस्थान सवाई माधोपुर में मुन्नालाल आदिवासी का परिवार मजदूरी करता था, जो गर्मी में छोटे-छोटे बच्चों के साथ लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूरी का पैदल सफर के लिए निकल पड़े हैं.

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तपती धूप में पैदल नाप रहे गांव की दूरी

मामला मध्यप्रदेश और राजस्थान का बॉर्डर सामरसा चौकी का है, जहां पर राजस्थान के सवाई माधोपुर में लॉक डालने से पहले मजदूरी करने गए आदिवासी परिवार लॉकडाउन होने के कारण फंस गए थे. ऐसे में काफी इंतजार करने के बाद बसों का आवागमन आरंभ हुआ लेकिन मजदूरी भी न मिलने के कारण जो कमाया था उसे खा पीकर साफ कर दिया और आगे की कोई व्यवस्था नहीं थी. जिस वजह से पैदल ही घर के लिए निकल पड़े.

विक्रम आदिवासी का कहना है कि लॉकडाउन में आने जाने के साधन पूरी तरह से बंद हैं. लगभग 2 महीने से कोई काम नहीं है, ऐसे में खाने-पीने के लिए पैसे भी नहीं है. जिसके चलते ऐसी धूप में अपने बच्चों के साथ पैदल ही निकल पड़े, कल तक अपने गांव पहुंच ही जाएंगे.

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