शाजापुर। आंखों से न दिखने वाला कोरोना वायरस पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है, इस छोटे से वायरस के आगे बड़ी से बड़ी महाशक्तियां भी धराशाई हो चुकी हैं. पर इसकी मार से सबसे ज्यादा प्रभावित किसान, मजदूर और गरीब हैं. कोरोना का प्रकोप ऐसा है कि रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में गए मजदूरों को दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं हो रही है. कहते हैं भूख से बड़ा कोई जख्म नहीं होता है, यही वजह है कि रोटी के लिए मजदूर कोरोना से भी टकराने से नहीं घबरा रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कोरोना से बचे तो ये भूख मार डालेगी. इसीलिए सोशल डिस्टेंसिंग को ताक पर रख सफर कर रहे हैं, वाहनों में औसत से कहीं ज्यादा मजदूर भरे हैं या वाहनों के इंतजार में बड़ी संख्या में एकसाथ जमा हो रहे हैं.
देश में लॉकडाउन के चलते लोग घरों में कैद हैं, लेकिन हाइवे पर जिस तरह से मजदूरों से भरे वाहन दौड़ रहे हैं. सड़क पर पैदल चलते मजदूर दिख रहे हैं, कहीं खाने के लिए मजदूर लाइन लगाकर खड़े हैं. ऐसे में भला कैसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होगा. पर हकीकत ये है कि भूख ने बेहाल किया तो ये मजदूर वापस अपने घर की ओर चल पड़े. ये सभी मजदूर आगरा मुबंई नेशनल हाइवे से मध्यप्रदेश के रास्ते जा रहे हैं, जो मुंबई से आ रहे हैं.
ये तस्वीरें शाजापुर से सारंगपुर हाइवे पर 25 किलोमीटर दूर की है. इस रोड को देखकर कहीं से भी नहीं लग रहा है कि इस समय देश में लॉकडाउन चल रहा है. मजदूरों का कहना है कि रुपए खत्म हो गए, खाने को कुछ नहीं, ऐसे में हम भूख से मर जाते. कोरोना से ज्यादा उन्हें भूख का डर सता रहा है. तभी जान जोखिम में डालकर निकल पड़े हैं अपनी मंजिल की ओर. सारी बातें जानते हुए भी मजबूरी में मजदूर सोशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं कर पा रहे हैं. लिहाजा जिन ट्रकों का उपयोग माल ढोने के लिए किया जाता है, उसमें अब मजदूरों को भरकर ले जाया जा रहा है.
जिन मजदूरों के पास घर जाने के लिए किराया नहीं है, वे पैदल ही अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए तपती दोपहरी में कलेजे के टुकड़ों को हाथ में लिए निकल पड़े हैं, मध्यप्रदेश में कई जगह समाजसेवी संस्थाएं इनके लिए खाने-नाश्ते का इंतजाम कर रही हैं. भले ही सरकार ने सोशल डिस्टेसिंग का पालन कराने के लिए बिना अनुमति आवाजाही पर रोक लगाई है, लेकिन ये मजदूर भूख की आग में इस अनुमति को ही जलाकर भस्म कर चुके हैं.