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Year Ender 2020:कोरोना ने बदली जिंदगी, कितनों को मिला साथ कितने हुए अनाथ

साल 2020 पूरी दुनिया के लिए उथल-पुथल भरा साल रहा है. मार्च 2020 आते आते जानलेवा कोरोना वायरस ने तक पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था. जिसके बाद महीनों तक लॉकडाउन लगा रहा. जिसने जिंदगी के मायने पूरी तरह से बदल दिए. एक तरफ महामारी का खतरा तो दूसरी जिंदगी बचाने की जंग. ये साल हर किसी को हमेशा याद रहेगा.

Goodbye 2020
अलविदा 2020
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Published : Dec 30, 2020, 12:52 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 6:09 AM IST

शहडोल। साल 2020 जाने को है, लेकिन इस साल ने हमारी जिंदगी के मायने पूरी तरह से बदल दिए थे. 2020 कोरोना काल के लिए याद किया जाएगा. एक तरफ महामारी का खतरा तो दूसरी लॉकडाउन ने कई नये पाठ पढ़ाए. लॉकडाउन में घर लौटने के लिए कोई लोगों ने पैदल ही मीलों का सफर भूखे प्यासे तय किया, तो कोई साइकिल का सहारा लेकर हजारों किलोमीटर का सफर तय किया. इस दौरान कई अपनों का साथ भी छूटा गया. दूसरी ओर मदद के लिए कई हाथ भी उठे और मानवता की सेवा की एक नई मिशाल पेश की गई.

अलविदा 2020

जब पैदल ही मीलों का सफर तय करने मजबूर हुए लोग

कोरोना काल में ऐसे ऐसे मंजर देखने को मिले जो लोगों के जेहन में आज भी कौंधती हैं. कोरोना काल में वह वक्त भी आया था. जब अचानक देश में लॉकडाउन लग और कुछ महीने के इंतजार के बाद श्रमिक पैदल ही घर जाने के लिए विवश हो उठे. भूखा प्यासा पैरों में छाले होने के बाद भी कोई लोगों ने पैदल ही मीलों का सफर तय कर रहा था. जेब में पैसे नहीं थे, खाने को कुछ नहीं था लेकिन घर वापस लौटना था. शहडोल जिले में भी यह मंजर देखने को मिला. कोई पैदल ही अपना परिवार लेकर चल पड़ा, तो साईकिल तो कोई ट्रक और दूसरी गाड़ियों का सहारा लेकर अपने घर के लिए सफर करने निकल पड़ा.


जिले में 36 हजार मजदूर वापस घर लौटे

कोरोना काल के चलते जिले के ऐसे हजारों श्रमिकों को घर लौटना पड़ा जो बाहर के दूसरे प्रदेशों में जाकर अपना भरण-पोषण और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे. लॉकडाउन के दौरान जिले में लगभग 36,000 श्रमिक वापस घर लौटे. शासन ने स्थानीय स्तर पर जीविकोपार्जन के लिए मनरेगा के द्वार खोल दिए. सर्वे के बाद 10,213 श्रमिकों को काम की जरूरत पड़ी इनमें से 9,475 से अधिक लोगों को काम दिया गया जबकि 3,675 से अधिक ऐसे भी लोग रहे, जिन्हें काम की जरूरत नहीं पड़ी.

मदद के लिये दिल खोलकर लोग आगे आये

इस दौरान जिले वासियों का एक और अलग रूप देखने को मिला बेबसी और लाचारी की वजह से पैदल ही अपने घर की ओर वापस लौटने वाले भूखे प्यासे लोगों की मदद के लिए जिले लोग आगे आए. जहां देखें वहां खाने-पीने के स्टाल लगे रहे, जिससे जो मदद हो रही थी वही मदद कर रहा था. इस दौरान मदद के लिए जिले में होड़ लगी थी उन मार्गों और चौराहों पर दिन-रात स्टॉल लगाकर भोजन पानी की व्यवस्था की जा रही थी जहां से होकर मुसाफिरों का आना जाना था. बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन में जहां विशेष रूप से व्यवस्था की गई थी. उन लोगों की भी मदद की गई, सांझी रसोई ने लॉकडाउन के दिनों में हजारों लोगों को खाना खिलाया अलग अलग संस्थाओं और लोगों ने जिला प्रशासन को राशि प्रदान की. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने तो अपनी यादों को ताजा करते हुए बताया कि रात में 2:30 बजे भी अगर लोग उनके घर खाने के लिए पहुंचे हैं तो लोग उन्हें बिना खाना खाए नहीं जाने दिए हैं.

जब पटरी पर काल बनकर दौड़ी ट्रेन

इस दौरान वह दर्द का मंजर भी देखना पड़ा जब पलभर में ट्रेन आई और कई परिवारों का सहारा छिन लिया. मई महीने की 8- 9 तारीख की वह काली रात के लिए भी यह साल याद किया जाएगा. जब शहडोल संभाग के 16 श्रमिकों की ट्रेन की टक्कर में मौत हो गई. यह हादसा औरंगाबाद महाराष्ट्र के पास हुआ था, इसमें शहडोल और उमरिया जिले के 16 लोगों की मौत हुई. सभी लोग रेल पटरियों से होकर पैदल अपने घर आ रहे थे. थकान की वजह से पटरियों पर ही सो गए, लेकिन ट्रेन ने उन्हें चपेट में ले लिया 9 मई को स्पेशल ट्रेन के माध्यम से उनकी बॉडी जिले में लाई गई, तो सभी के दिल दहल गए प्रशासन ने अपनी ओर से सभी प्रकार की मदद की. लेकिन इन परिवारों ने काम के लिए कभी बाहर ना जाने का भी संकल्प लिया. 8 मई को तड़के हुए ट्रेन हादसे में जिले के 11 और संभाग के 5 युवकों की दर्दनाक मौत हो गई थी.

जोखिम के बाद भी डटा रहा स्वास्थ्य विभाग

कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य विभाग का भी एक अलग ही रूप देखने को मिला. स्वास्थ्य विभाग सबसे बड़ा मददगार के रूप में सामने आया. जब जोखिम की वजह से लोग अपने घरों पर थे तो डॉक्टरों ने जान जोखिम में डालकर न केवल पॉजिटिव मरीजों की दिन-रात सेवा की, बल्कि सैंपल जांच के दौरान कोरोना वारियर्स की भूमिका भी बखूबी निभाई. डॉक्टर ने ऐसे समय में अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया जब लोग पॉजिटिव लोगों के पास जाने से डरते थे. जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों का यह कार्य लोगों को हमेशा याद रहेगा. मैदानी स्वास्थ अमला भी लगातार एक्टिव रहा.

ग्रामीणों ने कर दी थी गांव में बैरिकेटिंग

कोरोना काल के दौरान गांव में भी अजब-गजब स्थिति देखने को मिली, जब अलग-अलग जगहों से लोग अपने अपने गांवों लौटने लगे तो ग्रामवासी बैरीकेटिंग करके सुरक्षित करने में जुट गए. गांव के बाहर लोगों ने बैरिकेटिंग कर दी. वहां पर गांव के लोगों की तैनाती कर दी और बाहरी लोगों की एंट्री गांव में बंद कर दी गई. साथ ही अपने गांव में भी लोगों ने कोरोना वायरस से अपने लोगों को बचाने के लिए जन जागरूकता अभियान भी छेड़ दिया. इस तरह की चीजें भी ग्रामीण अंचलों में कोरोना काल के दौरान देखने को मिली.

शहडोल। साल 2020 जाने को है, लेकिन इस साल ने हमारी जिंदगी के मायने पूरी तरह से बदल दिए थे. 2020 कोरोना काल के लिए याद किया जाएगा. एक तरफ महामारी का खतरा तो दूसरी लॉकडाउन ने कई नये पाठ पढ़ाए. लॉकडाउन में घर लौटने के लिए कोई लोगों ने पैदल ही मीलों का सफर भूखे प्यासे तय किया, तो कोई साइकिल का सहारा लेकर हजारों किलोमीटर का सफर तय किया. इस दौरान कई अपनों का साथ भी छूटा गया. दूसरी ओर मदद के लिए कई हाथ भी उठे और मानवता की सेवा की एक नई मिशाल पेश की गई.

अलविदा 2020

जब पैदल ही मीलों का सफर तय करने मजबूर हुए लोग

कोरोना काल में ऐसे ऐसे मंजर देखने को मिले जो लोगों के जेहन में आज भी कौंधती हैं. कोरोना काल में वह वक्त भी आया था. जब अचानक देश में लॉकडाउन लग और कुछ महीने के इंतजार के बाद श्रमिक पैदल ही घर जाने के लिए विवश हो उठे. भूखा प्यासा पैरों में छाले होने के बाद भी कोई लोगों ने पैदल ही मीलों का सफर तय कर रहा था. जेब में पैसे नहीं थे, खाने को कुछ नहीं था लेकिन घर वापस लौटना था. शहडोल जिले में भी यह मंजर देखने को मिला. कोई पैदल ही अपना परिवार लेकर चल पड़ा, तो साईकिल तो कोई ट्रक और दूसरी गाड़ियों का सहारा लेकर अपने घर के लिए सफर करने निकल पड़ा.


जिले में 36 हजार मजदूर वापस घर लौटे

कोरोना काल के चलते जिले के ऐसे हजारों श्रमिकों को घर लौटना पड़ा जो बाहर के दूसरे प्रदेशों में जाकर अपना भरण-पोषण और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे. लॉकडाउन के दौरान जिले में लगभग 36,000 श्रमिक वापस घर लौटे. शासन ने स्थानीय स्तर पर जीविकोपार्जन के लिए मनरेगा के द्वार खोल दिए. सर्वे के बाद 10,213 श्रमिकों को काम की जरूरत पड़ी इनमें से 9,475 से अधिक लोगों को काम दिया गया जबकि 3,675 से अधिक ऐसे भी लोग रहे, जिन्हें काम की जरूरत नहीं पड़ी.

मदद के लिये दिल खोलकर लोग आगे आये

इस दौरान जिले वासियों का एक और अलग रूप देखने को मिला बेबसी और लाचारी की वजह से पैदल ही अपने घर की ओर वापस लौटने वाले भूखे प्यासे लोगों की मदद के लिए जिले लोग आगे आए. जहां देखें वहां खाने-पीने के स्टाल लगे रहे, जिससे जो मदद हो रही थी वही मदद कर रहा था. इस दौरान मदद के लिए जिले में होड़ लगी थी उन मार्गों और चौराहों पर दिन-रात स्टॉल लगाकर भोजन पानी की व्यवस्था की जा रही थी जहां से होकर मुसाफिरों का आना जाना था. बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन में जहां विशेष रूप से व्यवस्था की गई थी. उन लोगों की भी मदद की गई, सांझी रसोई ने लॉकडाउन के दिनों में हजारों लोगों को खाना खिलाया अलग अलग संस्थाओं और लोगों ने जिला प्रशासन को राशि प्रदान की. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने तो अपनी यादों को ताजा करते हुए बताया कि रात में 2:30 बजे भी अगर लोग उनके घर खाने के लिए पहुंचे हैं तो लोग उन्हें बिना खाना खाए नहीं जाने दिए हैं.

जब पटरी पर काल बनकर दौड़ी ट्रेन

इस दौरान वह दर्द का मंजर भी देखना पड़ा जब पलभर में ट्रेन आई और कई परिवारों का सहारा छिन लिया. मई महीने की 8- 9 तारीख की वह काली रात के लिए भी यह साल याद किया जाएगा. जब शहडोल संभाग के 16 श्रमिकों की ट्रेन की टक्कर में मौत हो गई. यह हादसा औरंगाबाद महाराष्ट्र के पास हुआ था, इसमें शहडोल और उमरिया जिले के 16 लोगों की मौत हुई. सभी लोग रेल पटरियों से होकर पैदल अपने घर आ रहे थे. थकान की वजह से पटरियों पर ही सो गए, लेकिन ट्रेन ने उन्हें चपेट में ले लिया 9 मई को स्पेशल ट्रेन के माध्यम से उनकी बॉडी जिले में लाई गई, तो सभी के दिल दहल गए प्रशासन ने अपनी ओर से सभी प्रकार की मदद की. लेकिन इन परिवारों ने काम के लिए कभी बाहर ना जाने का भी संकल्प लिया. 8 मई को तड़के हुए ट्रेन हादसे में जिले के 11 और संभाग के 5 युवकों की दर्दनाक मौत हो गई थी.

जोखिम के बाद भी डटा रहा स्वास्थ्य विभाग

कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य विभाग का भी एक अलग ही रूप देखने को मिला. स्वास्थ्य विभाग सबसे बड़ा मददगार के रूप में सामने आया. जब जोखिम की वजह से लोग अपने घरों पर थे तो डॉक्टरों ने जान जोखिम में डालकर न केवल पॉजिटिव मरीजों की दिन-रात सेवा की, बल्कि सैंपल जांच के दौरान कोरोना वारियर्स की भूमिका भी बखूबी निभाई. डॉक्टर ने ऐसे समय में अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया जब लोग पॉजिटिव लोगों के पास जाने से डरते थे. जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों का यह कार्य लोगों को हमेशा याद रहेगा. मैदानी स्वास्थ अमला भी लगातार एक्टिव रहा.

ग्रामीणों ने कर दी थी गांव में बैरिकेटिंग

कोरोना काल के दौरान गांव में भी अजब-गजब स्थिति देखने को मिली, जब अलग-अलग जगहों से लोग अपने अपने गांवों लौटने लगे तो ग्रामवासी बैरीकेटिंग करके सुरक्षित करने में जुट गए. गांव के बाहर लोगों ने बैरिकेटिंग कर दी. वहां पर गांव के लोगों की तैनाती कर दी और बाहरी लोगों की एंट्री गांव में बंद कर दी गई. साथ ही अपने गांव में भी लोगों ने कोरोना वायरस से अपने लोगों को बचाने के लिए जन जागरूकता अभियान भी छेड़ दिया. इस तरह की चीजें भी ग्रामीण अंचलों में कोरोना काल के दौरान देखने को मिली.

Last Updated : Dec 31, 2020, 6:09 AM IST
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