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छोटे से पुटू की लम्बी कहानी, मार्केट में आते ही क्यों लपक लेते हैं लोग? - Expensive than Chicken Mutton

एक छोटा सा पुटू जिसकी जड़ में पैसा होता है कहें तो गलत न होगा. उनके लिए जो इसके विक्रेता हैं. मार्केट में हाथों हाथ बिकता है. छोटे से पुटू को जमीन से कुरेद कर निकालने, मार्केट में आने से लेकर चूल्हे पर पकने तक की कहानी रोचक है.

wild edible putu
पुटू की रोचक कहानी
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Published : Jul 10, 2021, 10:33 AM IST

शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जंगलों से हरा भरा जिला है, यहां पर साल के पेड़ों के जंगल बहुतायत में पाए जाते हैं, ऐसे में बरसात के सीजन में निकलने वाला पूटू जिसे लोग बड़े चाव के साथ सब्जियों के तौर पर खाते हैं स्थानीय भाषा में लोग इसे पूटू के नाम से ही जानते हैं, और बरसात शुरू होते ही बाजार में इसकी आवक बढ़ जाती है.

आलम यह रहता है कि महज कुछ ही घंटों में पूटू बेचने वाले व्यापारी अपना सारा सामान बेच कर घर चले जाते हैं. लोगों के बीच में पूटू की डिमांड बहुत ज्यादा रहती है जबकि यह काफी महंगा बिकता है फिर भी लोग इसे खरीद कर घर में सब्जियों के रूप में जरूर खाना पसंद करते हैं.

छोटा सा पुटू
इन दिनों शहडोल जिला मुख्यालय में सड़क के किनारे पूटू की दुकान लगाकर उसे बेचने वाले व्यापारी मिल जाएंगे. उन दुकानों पर आते जाते लोगों की भीड़ भी दिख जाएगी यह लोग कुछ घंटे के लिए ही वहां मिलेंगे क्योंकि इसकी डिमांड इतनी ज्यादा रहती है, कि कुछ ही घंटों में यह पूरी की पूरी बिक जाती है.

बरसात का मौसम शुरू हो चुका है और पूटू की आवक भी बाजार में शुरू हो चुकी है, जून और जुलाई के महीने में इसकी बहुत ज्यादा आवक रहती है. साल में यह कुछ समय के लिए ही मिलता है, इसलिए लोगों के बीच में इसकी डिमांड भी बहुत ज्यादा रहती है. लोग इसे बड़े चाव के साथ उत्साह के साथ सब्जियों के तौर पर खाते हैं इसे काफी पौष्टिक माना गया है.

चिकन मटन से भी महंगा बिकता है (Expensive than Chicken Mutton)
शहडोल जिला मुख्यालय में सड़क किनारे दुकान लगाकर पूटू बेच रहे सुनील जायसवाल बताते हैं कि लोगों के बीच इसकी बड़ी डिमांड रहती है, कितना भी महंगा क्यों न हो, लोग इसे खरीद कर घर ले जाते हैं. इसकी सब्जी खाते हैं सुनील जायसवाल कहते हैं यह तो चिकन मटन से भी महंगा बिकता है और स्वाद में भी काफी स्वादिष्ट होता है.

साल के जंगलों में मिलता है
पूटू के बारे में ग्रामीण भैया लाल सिंह गोंड़ बताते हैं कि यह मुख्यत साल के जंगलों में मिलता है. जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में सरई भी कहा जाता है. ग्रामीण आदिवासी समाज के लोग इसे ढूंढने के एक्सपर्ट होते हैं. उन्हें यह पहले ही पता लग जाता है कि यहां पर पूटू निकलेगा और वहां ग्रामीण पहुंच जाते हैं. उसे निकालते हैं और फिर उसे सब्जियों के तौर पर घर में ही खाते हैं.

पहली बारिश होने के बाद इसकी मात्रा बहुत ज्यादा निकलती है. और ग्रामीण आदिवासी इसे बड़े ही चाव के साथ शौकिया तौर पर निकालने के लिए जाते हैं कुछ ग्रामीण तो इसे पूटू खेलना भी कहते हैं मतलब मछली मारने की तरह इसे भी कुछ लोग टाइमपास के तौर पर लेते हैं अगर रात में बारिश हुई तो सुबह-सुबह वह मौसम का मजा लेते हुए पूटू खेलने निकल जाते हैं।.

जानिए पूटू के बारे में (What Is Putu?)
आखिर पूटू होता क्या है जिसे लोकल भाषा में यहां लोग पूटू के नाम से जानते हैं. ये माईक्रोलोजिकल फंगस है, जिसका वैज्ञानिक नाम एसट्रीअस हाइग्रोमेट्रिकस है. अंग्रेजी में इसे फॉल्स अर्थ स्टार कहते हैं, जो साल की जड़ों से उत्सर्जित केमिकल से विकसित होता है और साल की ही गिरी सूखी पत्तियों पर जीवित रहता है. मानसून आगमन पर यह जमीन की ऊपरी सतह पर उभर आता है और फिर कुरेद कर निकाला जाता है. विशेषज्ञ इसे सेलुलोज और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत मानते हैं. चूंकि यह मिट्टी से निकलता है, अतः अच्छी सफाई प्रमुख शर्त है.

story of putu
पुटू की कहानी

यह मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं एक काला होता है और एक सफेद होता है सफेद वाले की कीमत ज्यादा होती है और काले वाले की कीमत इससे थोड़ी कम होती है इसे लोकल भाषा में पूटू कहते हैं छत्तीसगढ़ झारखंड उड़ीसा अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग भाषाओं के नाम से जाना जाता है कहीं रुंगड़ा बोलते हैं तो कहीं फुटका बोलते हैं तो कहीं बोड़ा बोलते हैं जितने जगह उतने इसके स्थानीय नाम हैं।

useful putu
बड़े काम का पुटू
इस पर रिसर्च जारी है (Research)कृषि वैज्ञानिक मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि अभी इस पर रिसर्च चल रहा है और कोशिश की जा रही है कि किसानों के लिए यह आमदनी का स्रोत बने. कैसे इस पर रिसर्च जारी है. कहते हैं कि इसकी सेल्फ लाइफ अगर बढ़ जाए तो किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगा. अभी इस पर काम चल रहा है.औषधीय महत्व का है (Medicinal Importance)पूटू के बारे में कृषि वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि उसमें बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं. हालांकि अभी ये क्लिनिकली प्रूव्ड नहीं है लेकिन कहा जाता है कि एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल, एंटी कैंसर भी माना जाता है.

ये पेट रोग से लेकर चर्म रोग में भी लाभदायक माना गया है. इसे लोग काफी पसंद करते हैं और यह काफी महंगा भी बिकता है. फिर भी लोग खरीद कर इसकी सब्जी खाते हैं. कहना चाहिए तो यह परंपरागत सब्जी है. यह एकमात्र मशरूम है जो जमीन के अंदर होता है।

शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जंगलों से हरा भरा जिला है, यहां पर साल के पेड़ों के जंगल बहुतायत में पाए जाते हैं, ऐसे में बरसात के सीजन में निकलने वाला पूटू जिसे लोग बड़े चाव के साथ सब्जियों के तौर पर खाते हैं स्थानीय भाषा में लोग इसे पूटू के नाम से ही जानते हैं, और बरसात शुरू होते ही बाजार में इसकी आवक बढ़ जाती है.

आलम यह रहता है कि महज कुछ ही घंटों में पूटू बेचने वाले व्यापारी अपना सारा सामान बेच कर घर चले जाते हैं. लोगों के बीच में पूटू की डिमांड बहुत ज्यादा रहती है जबकि यह काफी महंगा बिकता है फिर भी लोग इसे खरीद कर घर में सब्जियों के रूप में जरूर खाना पसंद करते हैं.

छोटा सा पुटू
इन दिनों शहडोल जिला मुख्यालय में सड़क के किनारे पूटू की दुकान लगाकर उसे बेचने वाले व्यापारी मिल जाएंगे. उन दुकानों पर आते जाते लोगों की भीड़ भी दिख जाएगी यह लोग कुछ घंटे के लिए ही वहां मिलेंगे क्योंकि इसकी डिमांड इतनी ज्यादा रहती है, कि कुछ ही घंटों में यह पूरी की पूरी बिक जाती है.

बरसात का मौसम शुरू हो चुका है और पूटू की आवक भी बाजार में शुरू हो चुकी है, जून और जुलाई के महीने में इसकी बहुत ज्यादा आवक रहती है. साल में यह कुछ समय के लिए ही मिलता है, इसलिए लोगों के बीच में इसकी डिमांड भी बहुत ज्यादा रहती है. लोग इसे बड़े चाव के साथ उत्साह के साथ सब्जियों के तौर पर खाते हैं इसे काफी पौष्टिक माना गया है.

चिकन मटन से भी महंगा बिकता है (Expensive than Chicken Mutton)
शहडोल जिला मुख्यालय में सड़क किनारे दुकान लगाकर पूटू बेच रहे सुनील जायसवाल बताते हैं कि लोगों के बीच इसकी बड़ी डिमांड रहती है, कितना भी महंगा क्यों न हो, लोग इसे खरीद कर घर ले जाते हैं. इसकी सब्जी खाते हैं सुनील जायसवाल कहते हैं यह तो चिकन मटन से भी महंगा बिकता है और स्वाद में भी काफी स्वादिष्ट होता है.

साल के जंगलों में मिलता है
पूटू के बारे में ग्रामीण भैया लाल सिंह गोंड़ बताते हैं कि यह मुख्यत साल के जंगलों में मिलता है. जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में सरई भी कहा जाता है. ग्रामीण आदिवासी समाज के लोग इसे ढूंढने के एक्सपर्ट होते हैं. उन्हें यह पहले ही पता लग जाता है कि यहां पर पूटू निकलेगा और वहां ग्रामीण पहुंच जाते हैं. उसे निकालते हैं और फिर उसे सब्जियों के तौर पर घर में ही खाते हैं.

पहली बारिश होने के बाद इसकी मात्रा बहुत ज्यादा निकलती है. और ग्रामीण आदिवासी इसे बड़े ही चाव के साथ शौकिया तौर पर निकालने के लिए जाते हैं कुछ ग्रामीण तो इसे पूटू खेलना भी कहते हैं मतलब मछली मारने की तरह इसे भी कुछ लोग टाइमपास के तौर पर लेते हैं अगर रात में बारिश हुई तो सुबह-सुबह वह मौसम का मजा लेते हुए पूटू खेलने निकल जाते हैं।.

जानिए पूटू के बारे में (What Is Putu?)
आखिर पूटू होता क्या है जिसे लोकल भाषा में यहां लोग पूटू के नाम से जानते हैं. ये माईक्रोलोजिकल फंगस है, जिसका वैज्ञानिक नाम एसट्रीअस हाइग्रोमेट्रिकस है. अंग्रेजी में इसे फॉल्स अर्थ स्टार कहते हैं, जो साल की जड़ों से उत्सर्जित केमिकल से विकसित होता है और साल की ही गिरी सूखी पत्तियों पर जीवित रहता है. मानसून आगमन पर यह जमीन की ऊपरी सतह पर उभर आता है और फिर कुरेद कर निकाला जाता है. विशेषज्ञ इसे सेलुलोज और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत मानते हैं. चूंकि यह मिट्टी से निकलता है, अतः अच्छी सफाई प्रमुख शर्त है.

story of putu
पुटू की कहानी

यह मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं एक काला होता है और एक सफेद होता है सफेद वाले की कीमत ज्यादा होती है और काले वाले की कीमत इससे थोड़ी कम होती है इसे लोकल भाषा में पूटू कहते हैं छत्तीसगढ़ झारखंड उड़ीसा अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग भाषाओं के नाम से जाना जाता है कहीं रुंगड़ा बोलते हैं तो कहीं फुटका बोलते हैं तो कहीं बोड़ा बोलते हैं जितने जगह उतने इसके स्थानीय नाम हैं।

useful putu
बड़े काम का पुटू
इस पर रिसर्च जारी है (Research)कृषि वैज्ञानिक मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि अभी इस पर रिसर्च चल रहा है और कोशिश की जा रही है कि किसानों के लिए यह आमदनी का स्रोत बने. कैसे इस पर रिसर्च जारी है. कहते हैं कि इसकी सेल्फ लाइफ अगर बढ़ जाए तो किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगा. अभी इस पर काम चल रहा है.औषधीय महत्व का है (Medicinal Importance)पूटू के बारे में कृषि वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि उसमें बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं. हालांकि अभी ये क्लिनिकली प्रूव्ड नहीं है लेकिन कहा जाता है कि एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल, एंटी कैंसर भी माना जाता है.

ये पेट रोग से लेकर चर्म रोग में भी लाभदायक माना गया है. इसे लोग काफी पसंद करते हैं और यह काफी महंगा भी बिकता है. फिर भी लोग खरीद कर इसकी सब्जी खाते हैं. कहना चाहिए तो यह परंपरागत सब्जी है. यह एकमात्र मशरूम है जो जमीन के अंदर होता है।

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