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Astrology Tips: अगर आपका बच्चा बार-बार हो रहा बीमार, तो पुष्य नक्षत्र में करें ये काम, बीमारी रहेगी कोसो दूर

Benefits of Swarna Prashan for Children: भारत में आयुर्वेद की एक मजबूत चिकित्सा पद्धति रही है, और बहुत पहले ही वायरस और बैक्टीरिया जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए ऋषि मुनियों ने स्वर्ण प्राशन के तौर पर एक अचूक दवा को तैयार कर दिया था, जो 16 वर्ष तक के बच्चों को दिया जाता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार से बच्चों में बीमारियां होने के चांसेस कम हो जाते हैं. पढ़िए यह खास रिपोर्ट...

Children swarna Prashan Sanskar
स्वर्ण प्राशन बच्चों का संस्कार
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 11, 2023, 9:31 AM IST

Updated : Sep 11, 2023, 10:45 AM IST

अंकित नामदेव, आयुर्वेद डॉक्टर

शहडोल। भारत देश ऋषि मुनियों का देश रहा है, और अपने समय में ही ऋषि मुनियों ने आयुर्वेद को लेकर कई ऐसे ग्रंथ लिखे हैं जो आज भी लोगों के बहुत काम आ रहे हैं. इन्हीं आयुर्वेद ग्रंथों में 'स्वर्ण प्राशन' संस्कार का भी जिक्र है. 'स्वर्ण प्राशन' बच्चों का एक ऐसा संस्कार है जिसे पुष्य नक्षत्र में ही किया जाता है और इसे करने से बच्चों से बीमारी जहां कोसों दूर हो जाती है. इम्यूनिटी उनकी बूस्ट हो जाती है, तो वही बौद्धिक विकास से लेकर शारीरिक विकास सब कुछ शानदार हो जाता है. आखिर यह 'स्वर्ण प्राशन' है क्या, किस उम्र तक के बच्चों को देना चाहिए, इसमें होता क्या-क्या है, इसे कैसे करना चहिये, और इसके क्या फायदे हैं, बताया है आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव ने.

स्वर्ण प्राशन संस्कार है क्या? आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''स्वर्ण प्राशन का पूरा नाम स्वर्ण प्राशन संस्कार है. सनातन धर्म में जैसे जन्म से मृत्यु तक संस्कार किए जाते हैं, वैसे ही स्वर्ण प्राशन भी एक तरह का संस्कार है. इसका पहला डिस्क्रिप्शन काश्यप मुनि द्वारा काश्यप संहिता में किया गया है. काश्यप मुनि ने जो काश्यप संहिता लिखी थी, वो बाल रोग और स्त्री प्रसूति रोग के लिए सबसे आदि ग्रंथ माना जाता है, जैसे चरक संहिता है, सुश्रुत्व संहिता है, इसी तरह से काश्यप ऋषि ने जो ग्रंथ लिखी है उसका नाम काश्यप संहिता है.''

स्वर्ण को चटाने की विधि: स्वर्ण प्राशन बच्चों के पैदा होने के साथ ही स्वर्ण को चटाने की विधि है, स्वर्ण यानी गोल्ड प्राशन का मतलब होता है चटाना. पहले के समय में जब बच्चा पैदा होता था तो शुद्ध सोने का जो सीक होता था. उसको पत्थर में घिसकर ब्राह्मी स्वरस शहद आदि और आयुर्वेद औषधियों के साथ उसके घिसे हुए स्वर्ण को मिलाकर बच्चों को चटाया जाता था. जिससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास, बौद्धिक विकास और मानसिक विकास होता था. जिस तरह से कर्ण भेदन संस्कार होता है, अन्न प्रशासन संस्कार होता है, वैसे ही ये स्वर्ण प्राशन संस्कार भी आदि भारतवर्ष में प्रचलित था.

स्वर्ण प्राशन संस्कार के फायदे: स्वर्ण प्राशन संस्कार में देखा गया है कि जो बच्चे स्वर्ण प्राशन कर रहे हैं, उनमें बीमारियां होने के चांसेस कम हो जाते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो जाती है, और शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानस रोगों में भी उनको फायदा मिलता है. बच्चों की बौद्धिक क्षमता में भी विकास होता है. इस पर काफी रिसर्च हो चुके हैं, ट्रायल्स भी हो चुके हैं और इसमें फायदा भी समझ में आ रहा है. जिसके बाद अब बहुत सारी आयुर्वेद की अच्छी कंपनियों ने इसे रेडी टू यूज फॉर्म में स्वर्ण प्राशन मैन्युफैक्चर कर रही हैं.

मौसमी बीमारियों से रक्षा: प्राचीन संस्कारों में से एक स्वर्ण प्राशन सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है, जो 16 वर्ष तक के बच्चे को कराया जा सकता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार आयुर्वेद चिकित्सा की वह धरोहर है जो बच्चों में होने वाली मौसमी बीमारियों से उनकी रक्षा करता है. उनकी इम्यूनिटी को ऐसा बूस्ट कर देता है कि बच्चे बीमार नहीं होते हैं. मौसम के बदलाव का कोई असर उन पर नहीं होता है.

पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण प्राशन: आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''सनातन धर्म में और आयुर्वेद में नक्षत्र को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है, मान्यता दी गई है. पुष्य नक्षत्र का दिन जो हर महीने में एक बार पड़ता है, उसी नक्षत्र में स्वर्ण प्राशन संस्कार कराया जाता है. इसमें पुष्य नक्षत्र में सुबह के समय में बच्चों को स्नान कराने के बाद में स्वर्ण प्राशन की एक खुराक देने का विधान है. आयुर्वेद चिकित्सक अपने क्लीनिक पर या देखरेख में बच्चे को बुलाकर स्वर्ण प्राशन कराते हैं.''

स्वर्ण प्राशन के जादुई फायदे: आयुर्वेद डॉक्टर बताते हैं कि ''जो बच्चे स्वर्ण प्राशन ले रहे हैं उनमें बीमारियों की दर कम से कम हुई है. उनकी हॉस्पिटल की विजिट कम हुई है. संक्रामक बीमारियां जैसे सर्दी, खांसी, बुखार और अन्य बीमारियां भी उनमें कम हो रही हैं. उनकी एकाग्रता बढ़ रही है, जो चीज पढ़ते हैं उन्हें याद रहता है. मतलब बच्चों की स्मृति शक्ति बढ़ रही है, तो इन सारी चीजों में स्वर्ण प्राशन से बहुत लाभ होता है.''

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इस उम्र तक के बच्चों को कराएं स्वर्ण प्राशन: आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''स्वर्ण प्राशन संस्कार को लेकर आचार्य कश्यप ने जो अपने ग्रंथ में लिखा है उसमें बच्चे के जन्म से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चों को इसे दिया जा सकता है. लेकिन WHO के गाइडलाइन के मुताबिक, 6 महीने से लेकर 16 साल तक के बच्चों को स्वर्ण प्राशन संस्कार कराने का गाइडलाइन, प्रोटोकॉल तैयार किया गया है.

क्या-क्या मिलाकर बनता है? स्वर्ण प्राशन में जो रसायन दिया जाता है उसमें स्वर्ण का उल्लेख आचार्य कश्यप ने किया है. स्वर्ण दो तरीके से लिया जाता है या तो वह शुद्ध स्वर्ण हो 24 कैरेट या फिर स्वर्ण भस्म के रूप में. आयुर्वेद चिकित्सक स्वर्ण भस्म का उपयोग करते हैं. खरल में स्वर्ण भस्म के साथ में ब्राम्ही होता है, अश्वगंधा होता है, गिलोय होता है, शंखपुष्पी होती है. वच, शहद आदि जड़ी बूटियों की भावना देकर मर्दन किया जाता है. मर्दन करने के बाद में इसको संग्रहित कर लिया जाता है और फिर पुष्य नक्षत्र के दिन जिस तरह से पोलियो की ड्राप बच्चों की जीभ पर सीधे-सीधे डाली जाती है.

अंकित नामदेव, आयुर्वेद डॉक्टर

शहडोल। भारत देश ऋषि मुनियों का देश रहा है, और अपने समय में ही ऋषि मुनियों ने आयुर्वेद को लेकर कई ऐसे ग्रंथ लिखे हैं जो आज भी लोगों के बहुत काम आ रहे हैं. इन्हीं आयुर्वेद ग्रंथों में 'स्वर्ण प्राशन' संस्कार का भी जिक्र है. 'स्वर्ण प्राशन' बच्चों का एक ऐसा संस्कार है जिसे पुष्य नक्षत्र में ही किया जाता है और इसे करने से बच्चों से बीमारी जहां कोसों दूर हो जाती है. इम्यूनिटी उनकी बूस्ट हो जाती है, तो वही बौद्धिक विकास से लेकर शारीरिक विकास सब कुछ शानदार हो जाता है. आखिर यह 'स्वर्ण प्राशन' है क्या, किस उम्र तक के बच्चों को देना चाहिए, इसमें होता क्या-क्या है, इसे कैसे करना चहिये, और इसके क्या फायदे हैं, बताया है आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव ने.

स्वर्ण प्राशन संस्कार है क्या? आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''स्वर्ण प्राशन का पूरा नाम स्वर्ण प्राशन संस्कार है. सनातन धर्म में जैसे जन्म से मृत्यु तक संस्कार किए जाते हैं, वैसे ही स्वर्ण प्राशन भी एक तरह का संस्कार है. इसका पहला डिस्क्रिप्शन काश्यप मुनि द्वारा काश्यप संहिता में किया गया है. काश्यप मुनि ने जो काश्यप संहिता लिखी थी, वो बाल रोग और स्त्री प्रसूति रोग के लिए सबसे आदि ग्रंथ माना जाता है, जैसे चरक संहिता है, सुश्रुत्व संहिता है, इसी तरह से काश्यप ऋषि ने जो ग्रंथ लिखी है उसका नाम काश्यप संहिता है.''

स्वर्ण को चटाने की विधि: स्वर्ण प्राशन बच्चों के पैदा होने के साथ ही स्वर्ण को चटाने की विधि है, स्वर्ण यानी गोल्ड प्राशन का मतलब होता है चटाना. पहले के समय में जब बच्चा पैदा होता था तो शुद्ध सोने का जो सीक होता था. उसको पत्थर में घिसकर ब्राह्मी स्वरस शहद आदि और आयुर्वेद औषधियों के साथ उसके घिसे हुए स्वर्ण को मिलाकर बच्चों को चटाया जाता था. जिससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास, बौद्धिक विकास और मानसिक विकास होता था. जिस तरह से कर्ण भेदन संस्कार होता है, अन्न प्रशासन संस्कार होता है, वैसे ही ये स्वर्ण प्राशन संस्कार भी आदि भारतवर्ष में प्रचलित था.

स्वर्ण प्राशन संस्कार के फायदे: स्वर्ण प्राशन संस्कार में देखा गया है कि जो बच्चे स्वर्ण प्राशन कर रहे हैं, उनमें बीमारियां होने के चांसेस कम हो जाते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो जाती है, और शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानस रोगों में भी उनको फायदा मिलता है. बच्चों की बौद्धिक क्षमता में भी विकास होता है. इस पर काफी रिसर्च हो चुके हैं, ट्रायल्स भी हो चुके हैं और इसमें फायदा भी समझ में आ रहा है. जिसके बाद अब बहुत सारी आयुर्वेद की अच्छी कंपनियों ने इसे रेडी टू यूज फॉर्म में स्वर्ण प्राशन मैन्युफैक्चर कर रही हैं.

मौसमी बीमारियों से रक्षा: प्राचीन संस्कारों में से एक स्वर्ण प्राशन सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है, जो 16 वर्ष तक के बच्चे को कराया जा सकता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार आयुर्वेद चिकित्सा की वह धरोहर है जो बच्चों में होने वाली मौसमी बीमारियों से उनकी रक्षा करता है. उनकी इम्यूनिटी को ऐसा बूस्ट कर देता है कि बच्चे बीमार नहीं होते हैं. मौसम के बदलाव का कोई असर उन पर नहीं होता है.

पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण प्राशन: आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''सनातन धर्म में और आयुर्वेद में नक्षत्र को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है, मान्यता दी गई है. पुष्य नक्षत्र का दिन जो हर महीने में एक बार पड़ता है, उसी नक्षत्र में स्वर्ण प्राशन संस्कार कराया जाता है. इसमें पुष्य नक्षत्र में सुबह के समय में बच्चों को स्नान कराने के बाद में स्वर्ण प्राशन की एक खुराक देने का विधान है. आयुर्वेद चिकित्सक अपने क्लीनिक पर या देखरेख में बच्चे को बुलाकर स्वर्ण प्राशन कराते हैं.''

स्वर्ण प्राशन के जादुई फायदे: आयुर्वेद डॉक्टर बताते हैं कि ''जो बच्चे स्वर्ण प्राशन ले रहे हैं उनमें बीमारियों की दर कम से कम हुई है. उनकी हॉस्पिटल की विजिट कम हुई है. संक्रामक बीमारियां जैसे सर्दी, खांसी, बुखार और अन्य बीमारियां भी उनमें कम हो रही हैं. उनकी एकाग्रता बढ़ रही है, जो चीज पढ़ते हैं उन्हें याद रहता है. मतलब बच्चों की स्मृति शक्ति बढ़ रही है, तो इन सारी चीजों में स्वर्ण प्राशन से बहुत लाभ होता है.''

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इस उम्र तक के बच्चों को कराएं स्वर्ण प्राशन: आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि ''स्वर्ण प्राशन संस्कार को लेकर आचार्य कश्यप ने जो अपने ग्रंथ में लिखा है उसमें बच्चे के जन्म से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चों को इसे दिया जा सकता है. लेकिन WHO के गाइडलाइन के मुताबिक, 6 महीने से लेकर 16 साल तक के बच्चों को स्वर्ण प्राशन संस्कार कराने का गाइडलाइन, प्रोटोकॉल तैयार किया गया है.

क्या-क्या मिलाकर बनता है? स्वर्ण प्राशन में जो रसायन दिया जाता है उसमें स्वर्ण का उल्लेख आचार्य कश्यप ने किया है. स्वर्ण दो तरीके से लिया जाता है या तो वह शुद्ध स्वर्ण हो 24 कैरेट या फिर स्वर्ण भस्म के रूप में. आयुर्वेद चिकित्सक स्वर्ण भस्म का उपयोग करते हैं. खरल में स्वर्ण भस्म के साथ में ब्राम्ही होता है, अश्वगंधा होता है, गिलोय होता है, शंखपुष्पी होती है. वच, शहद आदि जड़ी बूटियों की भावना देकर मर्दन किया जाता है. मर्दन करने के बाद में इसको संग्रहित कर लिया जाता है और फिर पुष्य नक्षत्र के दिन जिस तरह से पोलियो की ड्राप बच्चों की जीभ पर सीधे-सीधे डाली जाती है.

Last Updated : Sep 11, 2023, 10:45 AM IST
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