भोपाल/शहडोल। पहले से ही बढ़े पेट्रोल-डीजल के दामों से पहले से त्रस्त लोगों को महीने के पहले ही दिन महंगाई का एक और झटका लगा. सरकार ने कमर्शियल रसोई गैस सिलेंडर की कीमत बढ़ा दी. सरकार ने 19 किलो वाले कमर्शियल गैस सिलेंडर (commercial LPG cylinders) की कीमत दिल्ली में 105 रुपये और कोलकाता में 108 रुपये बढ़ा दी है. 5 किलो के कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर की कीमत में भी 27 रुपए की बढ़ोत्तरी की गई है. हालांकि फिलहाल यह राहत है कि घरेलू एलपीजी सिलेंडर के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं, लेकिन लोगों को अंदेशा है जल्द ही घरेलू रसोई गैस की कीमत भी बढ़ाई जाएगी.
गैस के बढ़ते दाम निकाल रहे उज्जवला का दम
तेल कंपनियों ने जनवरी में गैस की कीमत में कोई बदलाव नहीं किया था. हालांकि, इससे पहले दिसंबर में दो बार 50-50 रुपए बढ़ाए गए. जिस दिन बजट आ रहा था यानी एक फरवरी को 19 किलोग्राम वाले कमर्शियल सिलेंडर की कीमत में 191 रुपए की बढ़ोतरी हुई थी. घरेलू गैस सिलेंडर को इस बढ़ोत्तरी से दूर रखा गया, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते घरेलू गैस सिलेंडर के दामों में भी बढ़ोत्तरी लगभग तय मानी जा रही है. ऐसे में पहले से ही सामान्य और ग्रामीण अंचल के लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही केंद्र की उज्जवला योजना का पूरी तरह से दम निकल सकता है.
ग्रामीणों के लिए घाटे का सौदा बनी योजना
केंद्र ने जब (ujjwala yojana) उज्जवला योजना (increase price of lpg cylinders)की शुरुआत की तो इससे मिलने वाले लाभ ने गरीबों के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी, उन्हें भी लग रहा था कि अब आग और धुंए से उन्हें मुक्ति मिल जाएगी. वे भी गैस पर खाना बनाकर स्वस्थ जीवन जिएंगे. शुरुआत में योजना का लाभ भी खूब मिला और उन्होंने स्कीम को हाथों हाथ लिया. तब गैस सिलेंडर को रिफिल कराने के दाम कम थे. लोग सिलेंडर का इस्तेमाल भी कर रहे थे और रिफलिंग भी करा रहे थे, लेकिन बढ़ते दामों के चलते केंद्र की ये योजना उन्हें घाटे का सौदा लगने लगी है. पिछले कुछ महीने से गैस के बढ़े हुए दामों ने ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में उज्जवला का दम निकाल दिया है. यही वजह है कि ग्रामीण फिर से पुराने दौर में लौट रहे हैं और लकड़ी के लिए जंगल का रुख कर रहे हैं.
गैस के बढ़े दामों ने किया मजबूर
आदिवासी अंचलों में आपको सिर पर लकड़ी का गट्ठा लिए हुए गांव को जाते हुए लोग दिखाई दे जाएंगे. इन लोगों का एक बार फिर यही नियम बन गया है. सुबह होते ही खाना पीना खाकर लोग घरों से निकलते हैं. इस इंतजाम में की रात का खाना बनाने और चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां इकट्ठा करनी हैं. ग्रामीणों को वापस जंगल जाने और लड़की लाने को मजबूर कर दिया है रसोई गैस के बढ़े हुए दामों ने. इन लोगों के पास उज्जवला योजना के जरिए मिले गैस कनेक्शन तो हैं, लेकिन अब सिलेंडर रिफिल कराने के लिए पैसे नहीं है. जिससे लकड़ी का इंतजाम करके खाना पकाना अब उनकी मजबूरी हो गया है.
रसोई गैस के दाम निकाल रहे दम!
गैर सिलेंडर रिफिल कराने का दाम वर्तमान में लगभग 1 हजार रुपये के पास पहुंच चुके हैं. ग्रामीण इलाकों में डिलीवरी चार्ज अलग से देना होता है. तब जाकर सिलिंडर के रिफिलिंग होती है. गैस के ये बढ़े हुए दाम पिछले 3-4 महीने से इसी के आसपास बने हुए हैं. इन बढ़े हुए दामों ने ग्रामीणों की परेशानी बढ़ा दी है. पहले तो वे किसी तरह जुगाड़ करके सिलिंडर की रिफिलिंग करा लिया करते थे, लेकिन अब गैस के बढ़े हुए दामों ने उनके घर का सारा बजट बिगाड़ दिया है. ईटीवी भारत ने जब उनसे पूछा कि आपके पास तो गैस कनेक्शन हैं फिर ये सब क्यों तो उनका कहना था कि गैस कनेक्शन मिला हुआ है और एक दो बार उन्होंने रिफिलिंग भी करवाई है, लेकिन तब पैसा कम लगता था अब 1 सिलेंडर लगभग 1 हजार रुपए का पड़ता है, जबकि ₹1000 तो उन्हें टोटल मिलते हैं. ऐसे में वे गैस भरवाएं या घर चलाएं. रामकली कहती हैं कि अगर गैस के दाम कुछ कम हो जाएं तो फिर से सोचेंगी, फिलहाल तो जंगल और लकड़ी ही उनका सहारा है जिससे वह खाना बना रही हैं.
सिलेंडर खाली, लकड़ियों का ही सहारा
ग्रामीणों का कहना था कि गैस के दाम इतने ज्यादा है गैस की रिफलिंग अब नहीं करा सकते. घर में सिलिंडर खाली पड़े हैं. उनकी मजबूरी है लकड़ी से चूल्हा जलाकर खाना पकाना. शहडोल के स्थानीय आदिवासी समाज में अच्छी पैठ रखने वाले केशव कोल बताते हैं कि योजना की शुरुआत के वक्त लोग काफी खुश थे. ये काफी खुशी की बात थी लोगों को धुएं से मुक्ति मिल रही थी, लेकिन अब कुछ महीने से कोई भी सिलिंडर रिफिल नहीं करा रहा है. गैस के बढ़े हुए दामों ने लोगों का बजट बिगाड़ दिया है. केशव कोल भी मानते हैं कि अगर उज्जवला के माध्यम से गरीबों को गैस कनेक्शन दिया जाता है तो उसे रिफिल कराने के लिए भी सरकार को कुछ रियायत देने के बारे में सोचना चाहिए.
जंगलों में लकड़ी की कटाई भी बढ़ी
हम ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों से मिले तो जाना कि गैस के बढ़े दाम से सब परेशान हैं. गैस चूल्हे की रिपरिंग करने वाले एक शख्स ने मुलाकात के दौरान बताया कि वह पिछले 10 साल से यह काम कर रहा है. कुछ महीने पहले तो उन्हें अच्छा काम मिल जाता था, लेकिन अब गांव वाले गैस का उपयोग कम ही करते हैं. इसलिए रिपेयरिंग का काम भी कम ही चल रहा है. गैस के दाम अधिक होने के बाद लकड़ी पर लोगों की डिपेंडेंसी फिर से बढ़ गई है. लोग लकड़ियों की तलाश में जंगल का रुख कर रहे हैं. ग्रामीण अंचलों में सर्दी और बरसात से पहले इसका स्टॉक किया गया है. जंगल जाना और लकड़ियां लाना अब एक बार फिर से उनका रुटीन बन गया है.
मार्च महीने के पहले ही दिन लगा झटका, कमर्शियल रसोई गैस सिलेंडर के बढ़े दाम
बहुत कम लोग करा रहे रिफिलिंग
ग्रामीण अंचल में संचालित एक रसोई गैस एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक उनके यहां उज्जवला के तहत लगभग 13,000 गैस कनेक्शन दिए गए हैं, लेकिन महज 1500 से 2000 लोग ही उज्जवला के सिलेंडर रिफिल करा रहे हैं बाकी लोग रिफिल कराने नहीं आ रहे हैं. ऐसे में मतलब साफ है गैस के बढ़े हुए दाम ग्रामीणों को धुएं से मुक्ति दिलाने के बजाए इस योजना को ही धुंआ-धुआं कर रहे हैं. ऐसे में केंद्र सरकार को अपनी इस योजना की सफलता को लेकर दोबारा सोचना होगा कि जो लोग गैस कनेक्शन नहीं ले सकते थे वे इतने महंगे सिलेंडर की हर महीने रिफलिंग कैसे कराएंगे.