शहडोल। 21 फरवरी को महा शिवरात्रि का पर्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार शिवरात्रि का दिन बेहद खास माना जाता है. शिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस पर्व के मौके पर ईटीवी भारत आपको मध्यप्रेदश के उन धार्मिक स्थानों से रूबरू करा रहा हैं जो सीधे तौर पर भगवान भोलेनाथ से जुडे़ हैं. इसी कड़ी में हम पहुंचे हैं शहडोल के लखवरिया.
लखबरिया की गुफाओं में मौजूद भगवान भोलेनाथ शिवलिंग अर्धनारेश्वर स्वरूप में मौजूद हैं. इस शिवलिंग की खोज के पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है. भोलेबाबा का शिवलिंग अर्धनारेश्वर स्वरूप में मौजूद है. मतलब शिवलिंग में आधे भोले बाबा जबकि आधे हिस्से में मां पार्वती हैं. भगवान शिव का ये स्वरूप अपने आप में अलौकिक है. इस शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचने पर भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं.
लोगों की जुड़ी है आस्था
लखवरिया के रहने वाले रामसेवक की मानें तो उन्होंने अपनी एक मुराद के पूरी करने के लिए अमरकंटक से इस मंदिर तक पैदल यात्रा की थी और शिवलिंग पर कांवर चढ़ाई थी. लिहाजा महाकाल बाबा ने उनकी मनोकामना पूरी कर दी.
अर्धनारेश्वर अवतार में भगवान शिव की शिवलिंग
जिला मुख्यालय से करीब 40 से 45 किलोमीटर दूर मौजूद लखवरिया धाम में मौजूद यह शिवलिंग अपनी अलग पहचान रखता है. लखवरिया की गुफा में मौजूद अर्धनारेश्वर अवतार में भगवान शिव की शिवलिंग यहां कैसे आई, कितनी पुरानी है और उसका महत्व क्या है. इन सभी सवालों का मंदिर के पुजारी ने समाधान किया है.
पुराणों में मिला मंदिर के शिवलिंग का प्रमाण
अर्धनारेश्वर अवतार में भगवान शिव की शिवलिंग अपने आप में अनूठी और अलौकिक है. मंदिर के पुजारी की मानें तो इस शिवलिंग का प्रमाण पुराणों में मिला है. शिवरात्रि और सावन में यहां काफी संख्या में भक्त कांवर चढ़ाने आते हैं. यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है.