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विंध्य में दांव पर दिग्गजों की साख, अगला 'व्हाइट टाइगर' कौन ?

मध्यप्रदेश में सभी प्रत्याशियों की किस्मत पिटारे में बंद हो चुकी है. फैसला 3 दिसंबर को आना है तब तक इंतजार करना होगा. लेकिन कई दिग्गज ऐसे हैं जिनकी साख दांव पर लगी है. उनकी रातों की नींद उड़ी हुई है कारण यह चुनाव उनका राजनैतिक कैरियर तय करेगा.विंध्य क्षेत्र का अगला 'व्हाइट टाइगर' कौन होगा.देखिए यह रिपोर्ट

MP Elections 2023
विंध्य का 'सफेद शेर' कौन?
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 17, 2023, 10:50 PM IST

शहडोल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है. कई बड़े-बड़े दिग्गजों की राजनीतिक साख दांव पर है.उनका राजनैतिक भविष्य क्या होगा यह भी इसी चुनाव में तय होगा. बात विंध्य क्षेत्र की करें तो इस बार विंध्य क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई है. तो ये कहा जाए कि एमपी में सत्ता की चाबी भी विंध्य क्षेत्र से ही होकर जाती है तो गलत नहीं होगा.

2108 में बीजेपी ने जीती 24 सीटें: एमपी के विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र का भी योगदान अहम रहता है. विंध्य में कहने को तो 30 विधानसभा सीट आती हैं लेकिन यही 30 विधानसभा सीट एमपी में सत्ता की चाबी हासिल करने में अहम रोल अदा करती है. विंध्य इलाका कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था लेकिन अब बीजेपी का गढ़ बन चुका है. साल 2018 के चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. कई इलाकों में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. माहौल कांग्रेस के पक्ष में था फिर भी विंध्य में बीजेपी ने 30 सीटों में से 24 सीट जीतने में कामयाबी हासिल कर ली. तो कांग्रेस महज 6 सीट ही जीत सकी.

अजय सिंह राहुल की साख दांव पर: साल 2018 का जब चुनाव हुआ तो भले ही कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया और अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई लेकिन विंध्य क्षेत्र से कांग्रेस को बड़ा झटका भी लगा था. कांग्रेस के बड़े नेता रहे अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल चुरहट विधानसभा सीट से अपना चुनाव हार गए थे. जबकि चुरहट सीट से अजय सिंह राहुल छह बार विधायक चुने जा चुके हैं. अजय सिंह राहुल ऐसे समय में चुनाव हारे थे जब उस दौर में उनका राजनीतिक करियर पीक पर चल रहा था और अगर वो जीत हासिल कर लेते तो कांग्रेस सरकार में उन्हें बड़ा पद मिलना लगभग तय था. इस बार भी अजय सिंह राहुल चुरहट से प्रत्याशी हैं जिन पर नजर रहेगी कि इस बार चुरहट विधानसभा क्षेत्र की जनता किसे जिताकर लाती है.

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राजेन्द्र शुक्ला पर रहेगी नजर: वर्तमान में विंध्य क्षेत्र के सबसे कद्दावर नेताओं में राजेंद्र शुक्ला का नाम गिना जाता है. अपने शांत स्वभाव के लिए पहचान रखने वाले राजेन्द्र शुक्ला कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी रहे रीवा क्षेत्र से चार बार के विधायक हैं. और हर बार मंत्री भी बनते हैं साथ ही वो अंचल का एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा भी बन चुके हैं. हालांकि विंध्य क्षेत्र में सत्ता की भागीदारी को लेकर असंतोष को रोकने के लिए उन्हें चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले मंत्री जरुर बनाया गया. इस बार उनके खिलाफ कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष ब्राम्हण चेहरा राजेंद्र शर्मा को ही चुनावी मैदान में उतारा है.

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राजेन्द्र शुक्ला

चाचा-भतीजे के बीच लड़ाई : विंध्य क्षेत्र में इस बार चाचा भतीजे के बीच भी लड़ाई देखने को मिल रही है. देवतालाब विधानसभा सीट की बात करें तो यहां से विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम चुनावी मैदान में हैं. यहां गिरीश गौतम की भी साख दांव पर लगी हुई है क्योंकि गिरीश गौतम के खिलाफ उनके सगे भतीजे और जिला पंचायत सदस्य कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. जिनका नाम पद्मेश गौतम है और यहां से इन्हें कड़ी चुनौती भी मिल रही है. इसके चलते पूरे प्रदेश की नजर इस बार देवतालाब सीट पर है.

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गिरीश गौतम

नारायण त्रिपाठी के किस्मत पर फैसला: नारायण त्रिपाठी इन दिनों विंध्य प्रदेश बनाने की पुरजोर मांग कर रहे हैं और विंध्य प्रदेश के मुद्दे पर ही उन्होंने अपनी पार्टी विंध्य जनता पार्टी बना ली है. नारायण त्रिपाठी की साख भी इस बार दांव पर लगी है. विंध्य जनता पार्टी से ही चुनावी मैदान में हैं. नारायण त्रिपाठी कभी सपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और सपा से ही विधायक भी बने. 2013 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी से टिकट हासिल करके विधायक बने फिर 2018 के चुनाव में भाजपा से विधायक चुनकर आए लेकिन इस बार उन्होंने अपनी विंध्य जनता पार्टी बना ली है और टिकट न मिलने के बाद विंध्य जनता पार्टी से ही चुनाव लड़ रहे हैं. क्या वो अपनी पार्टी से चुनाव लड़कर मैहर में जीत हासिल कर पाते हैं या फिर नहीं.

कमलेश्वर पटेल पर भी नजर: विंध्य क्षेत्र में पूर्व मंत्री इंद्रजीत कुमार पटेल के बेटे कमलेश्वर पटेल भी इन दिनों तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और पार्टी इन्हें पिछड़ा चेहरा के रूप में आगे रख रही है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी हैं ऐसे में कमलेश्वर पटेल इस बार सिंहावल सीट से प्रत्याशी हैं. उनके खिलाफ भाजपा ने अपने पूर्व विधायक विश्वामित्र पाठक को चुनावी मैदान में उतारा है. ऐसे में इस सीट पर भी सबकी नजर रहेगी. कमलेश्वर पटेल के लिए इस बार राह आसान नहीं बताई जा रही है.
दांव पर दिग्गज सांसदों की साख: सतना से भाजपा ने चार बार के सांसद गणेश सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने सिद्धार्थ कुशवाहा जो पिछड़ी जाति से आते हैं इन्हें चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा के बागी और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे रत्नाकर चतुर्वेदी बसपा से खड़े हैं. ऐसा माना जा रहा है कि रत्नाकर चतुर्वेदी इस बार सतना विधानसभा सीट पर कड़ी टक्कर दे रहे हैं, मतलब गणेश सिंह की राह इतनी आसान नहीं है उनके लिए बागी मुसीबत भी बन रहे हैं.
सीधी की राह भी है टेढ़ी-मेढ़ी: सीधी विधानसभा सीट पर इस बार दिलचस्प लड़ाई है. आलम यह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी में सभा करने आना पड़ा. सीधी से भारतीय जनता पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर सांसद रीती पाठक को मैदान में उतारा है. रीति पाठक ने भी प्रचार प्रसार के दौरान पूरा जोर लगाया है लेकिन उनके लिए सबसे मुश्किल खड़ी कर रहे हैं विधायक केदारनाथ शुक्ला जो की निर्दललीय ही चुनौती पेश कर रहे हैं.
श्रीनिवास तिवारी के पोते का करियर दांव पर: देखा जाए तो इस बार विंध्य क्षेत्र में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और व्हाइट टाइगर के नाम से मशहूर रहे श्रीनिवास तिवारी के पोते और सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी पर सबकी नजर है क्योंकि इनका राजनीतिक करियर ही दांव पर लगा है. सिद्धार्थ तिवारी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली और बीजेपी ने उन्हें त्योंथर क्षेत्र से मौका दिया है. इधर भाजपा के बागी देवेंद्र सिंह बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं. बता दें कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी कभी बीजेपी के लिए विंध्य में बड़ी चुनौती थे और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं. उनके बेटे सुंदरलाल तिवारी भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं और सांसद भी रहे और विधायक भी रहे लेकिन सिद्धार्थ तिवारी ने अब पार्टी बदल ली है. ऐसे में उनके जीत हार पर भी सबकी नजर रहेगी मतदाता उन्हें भाजपा से पसंद करते हैं या नहीं यह भी देखना दिलचस्प होगा.
आदिवासी अंचल में भी दिग्गजों की साख दांव पर: इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के आदिवासी इलाके की बात करें तो यहां पर शहडोल संभाग की आठ विधानसभा सीटों में कोतमा को छोड़ दें तो सभी सात विधानसभा सीट आदिवासी आरक्षित सीट हैं. यहां पर भी मंत्री मीना सिंह ,मंत्री बिसाहूलाल सिंह की साख दांव पर लगी हुई है. मीना सिंह जहां मानपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं तो वहीं बिसाहू लाल सिंह अनूपपुर जिले के अनूपपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं. इनकी साख भी दांव पर है और यहां भी इन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. वहीं शहडोल जिले के जैतपुर विधानसभा सीट से जयसिंह मरावी चुनावी मैदान में हैं. इन्हें भी कड़ी टक्कर मिल रही है और उनकी साख भी दांव पर लगी हुई है.
उम्र दराजों पर भी रहेगी नजर: इस बार विंध्य क्षेत्र में एक बात और दिलचस्प है जिस पर सबकी नजर रहेगी. वैसे तो भारतीय जनता पार्टी 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को चुनावी मैदान में उतरने से परहेज करती रही है लेकिन इस बार सतना के नागौद से 83 साल के नागेंद्र सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट दिया है तो वहीं गुढ़ से 81 साल के नागेंद्र सिंह को फिर प्रत्याशी बना दिया है. इन दोनों उम्र दराज नेताओं की साख भी दांव पर लगी है.

शहडोल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है. कई बड़े-बड़े दिग्गजों की राजनीतिक साख दांव पर है.उनका राजनैतिक भविष्य क्या होगा यह भी इसी चुनाव में तय होगा. बात विंध्य क्षेत्र की करें तो इस बार विंध्य क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई है. तो ये कहा जाए कि एमपी में सत्ता की चाबी भी विंध्य क्षेत्र से ही होकर जाती है तो गलत नहीं होगा.

2108 में बीजेपी ने जीती 24 सीटें: एमपी के विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र का भी योगदान अहम रहता है. विंध्य में कहने को तो 30 विधानसभा सीट आती हैं लेकिन यही 30 विधानसभा सीट एमपी में सत्ता की चाबी हासिल करने में अहम रोल अदा करती है. विंध्य इलाका कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था लेकिन अब बीजेपी का गढ़ बन चुका है. साल 2018 के चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. कई इलाकों में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. माहौल कांग्रेस के पक्ष में था फिर भी विंध्य में बीजेपी ने 30 सीटों में से 24 सीट जीतने में कामयाबी हासिल कर ली. तो कांग्रेस महज 6 सीट ही जीत सकी.

अजय सिंह राहुल की साख दांव पर: साल 2018 का जब चुनाव हुआ तो भले ही कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया और अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई लेकिन विंध्य क्षेत्र से कांग्रेस को बड़ा झटका भी लगा था. कांग्रेस के बड़े नेता रहे अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल चुरहट विधानसभा सीट से अपना चुनाव हार गए थे. जबकि चुरहट सीट से अजय सिंह राहुल छह बार विधायक चुने जा चुके हैं. अजय सिंह राहुल ऐसे समय में चुनाव हारे थे जब उस दौर में उनका राजनीतिक करियर पीक पर चल रहा था और अगर वो जीत हासिल कर लेते तो कांग्रेस सरकार में उन्हें बड़ा पद मिलना लगभग तय था. इस बार भी अजय सिंह राहुल चुरहट से प्रत्याशी हैं जिन पर नजर रहेगी कि इस बार चुरहट विधानसभा क्षेत्र की जनता किसे जिताकर लाती है.

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राजेन्द्र शुक्ला पर रहेगी नजर: वर्तमान में विंध्य क्षेत्र के सबसे कद्दावर नेताओं में राजेंद्र शुक्ला का नाम गिना जाता है. अपने शांत स्वभाव के लिए पहचान रखने वाले राजेन्द्र शुक्ला कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी रहे रीवा क्षेत्र से चार बार के विधायक हैं. और हर बार मंत्री भी बनते हैं साथ ही वो अंचल का एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा भी बन चुके हैं. हालांकि विंध्य क्षेत्र में सत्ता की भागीदारी को लेकर असंतोष को रोकने के लिए उन्हें चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले मंत्री जरुर बनाया गया. इस बार उनके खिलाफ कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष ब्राम्हण चेहरा राजेंद्र शर्मा को ही चुनावी मैदान में उतारा है.

MP Elections 2023
राजेन्द्र शुक्ला

चाचा-भतीजे के बीच लड़ाई : विंध्य क्षेत्र में इस बार चाचा भतीजे के बीच भी लड़ाई देखने को मिल रही है. देवतालाब विधानसभा सीट की बात करें तो यहां से विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम चुनावी मैदान में हैं. यहां गिरीश गौतम की भी साख दांव पर लगी हुई है क्योंकि गिरीश गौतम के खिलाफ उनके सगे भतीजे और जिला पंचायत सदस्य कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. जिनका नाम पद्मेश गौतम है और यहां से इन्हें कड़ी चुनौती भी मिल रही है. इसके चलते पूरे प्रदेश की नजर इस बार देवतालाब सीट पर है.

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गिरीश गौतम

नारायण त्रिपाठी के किस्मत पर फैसला: नारायण त्रिपाठी इन दिनों विंध्य प्रदेश बनाने की पुरजोर मांग कर रहे हैं और विंध्य प्रदेश के मुद्दे पर ही उन्होंने अपनी पार्टी विंध्य जनता पार्टी बना ली है. नारायण त्रिपाठी की साख भी इस बार दांव पर लगी है. विंध्य जनता पार्टी से ही चुनावी मैदान में हैं. नारायण त्रिपाठी कभी सपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और सपा से ही विधायक भी बने. 2013 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी से टिकट हासिल करके विधायक बने फिर 2018 के चुनाव में भाजपा से विधायक चुनकर आए लेकिन इस बार उन्होंने अपनी विंध्य जनता पार्टी बना ली है और टिकट न मिलने के बाद विंध्य जनता पार्टी से ही चुनाव लड़ रहे हैं. क्या वो अपनी पार्टी से चुनाव लड़कर मैहर में जीत हासिल कर पाते हैं या फिर नहीं.

कमलेश्वर पटेल पर भी नजर: विंध्य क्षेत्र में पूर्व मंत्री इंद्रजीत कुमार पटेल के बेटे कमलेश्वर पटेल भी इन दिनों तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और पार्टी इन्हें पिछड़ा चेहरा के रूप में आगे रख रही है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी हैं ऐसे में कमलेश्वर पटेल इस बार सिंहावल सीट से प्रत्याशी हैं. उनके खिलाफ भाजपा ने अपने पूर्व विधायक विश्वामित्र पाठक को चुनावी मैदान में उतारा है. ऐसे में इस सीट पर भी सबकी नजर रहेगी. कमलेश्वर पटेल के लिए इस बार राह आसान नहीं बताई जा रही है.
दांव पर दिग्गज सांसदों की साख: सतना से भाजपा ने चार बार के सांसद गणेश सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने सिद्धार्थ कुशवाहा जो पिछड़ी जाति से आते हैं इन्हें चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा के बागी और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे रत्नाकर चतुर्वेदी बसपा से खड़े हैं. ऐसा माना जा रहा है कि रत्नाकर चतुर्वेदी इस बार सतना विधानसभा सीट पर कड़ी टक्कर दे रहे हैं, मतलब गणेश सिंह की राह इतनी आसान नहीं है उनके लिए बागी मुसीबत भी बन रहे हैं.
सीधी की राह भी है टेढ़ी-मेढ़ी: सीधी विधानसभा सीट पर इस बार दिलचस्प लड़ाई है. आलम यह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी में सभा करने आना पड़ा. सीधी से भारतीय जनता पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर सांसद रीती पाठक को मैदान में उतारा है. रीति पाठक ने भी प्रचार प्रसार के दौरान पूरा जोर लगाया है लेकिन उनके लिए सबसे मुश्किल खड़ी कर रहे हैं विधायक केदारनाथ शुक्ला जो की निर्दललीय ही चुनौती पेश कर रहे हैं.
श्रीनिवास तिवारी के पोते का करियर दांव पर: देखा जाए तो इस बार विंध्य क्षेत्र में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और व्हाइट टाइगर के नाम से मशहूर रहे श्रीनिवास तिवारी के पोते और सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी पर सबकी नजर है क्योंकि इनका राजनीतिक करियर ही दांव पर लगा है. सिद्धार्थ तिवारी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली और बीजेपी ने उन्हें त्योंथर क्षेत्र से मौका दिया है. इधर भाजपा के बागी देवेंद्र सिंह बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं. बता दें कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी कभी बीजेपी के लिए विंध्य में बड़ी चुनौती थे और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं. उनके बेटे सुंदरलाल तिवारी भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं और सांसद भी रहे और विधायक भी रहे लेकिन सिद्धार्थ तिवारी ने अब पार्टी बदल ली है. ऐसे में उनके जीत हार पर भी सबकी नजर रहेगी मतदाता उन्हें भाजपा से पसंद करते हैं या नहीं यह भी देखना दिलचस्प होगा.
आदिवासी अंचल में भी दिग्गजों की साख दांव पर: इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के आदिवासी इलाके की बात करें तो यहां पर शहडोल संभाग की आठ विधानसभा सीटों में कोतमा को छोड़ दें तो सभी सात विधानसभा सीट आदिवासी आरक्षित सीट हैं. यहां पर भी मंत्री मीना सिंह ,मंत्री बिसाहूलाल सिंह की साख दांव पर लगी हुई है. मीना सिंह जहां मानपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं तो वहीं बिसाहू लाल सिंह अनूपपुर जिले के अनूपपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं. इनकी साख भी दांव पर है और यहां भी इन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. वहीं शहडोल जिले के जैतपुर विधानसभा सीट से जयसिंह मरावी चुनावी मैदान में हैं. इन्हें भी कड़ी टक्कर मिल रही है और उनकी साख भी दांव पर लगी हुई है.
उम्र दराजों पर भी रहेगी नजर: इस बार विंध्य क्षेत्र में एक बात और दिलचस्प है जिस पर सबकी नजर रहेगी. वैसे तो भारतीय जनता पार्टी 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को चुनावी मैदान में उतरने से परहेज करती रही है लेकिन इस बार सतना के नागौद से 83 साल के नागेंद्र सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट दिया है तो वहीं गुढ़ से 81 साल के नागेंद्र सिंह को फिर प्रत्याशी बना दिया है. इन दोनों उम्र दराज नेताओं की साख भी दांव पर लगी है.

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