शहडोल। मध्य प्रदेश का शहडोल जिला प्राकृतिक तौर काफी समृद्ध जिला है. यहां पर तरह-तरह के पेड़, पौधे, वनस्पति और जंगलों की भरमार है. जब इस आदिवासी बाहुल्य जिले में जंगलों की भरमार है तो ये बात भी तय है कि यहां पर तरह-तरह की अकूत जड़ी बूटियां भी पाई जाती हैं, जो कई असाध्य रोगों को साध्य करने में कारगर साबित होती हैं. इन्हीं में से एक है गिलोय, जिसे शहडोल जिले में लोकल भाषा में 'गुरिच' के नाम से जाना जाता है. वहीं कुछ लोग इसे इसके गुणों के कारण अमृता भी कहते हैं. औषधीय महत्व का गिलोय इस अंचल में पहले से ही प्रचलन में है और छोटी-मोटी बीमारियों के लिए पहले से ही लोग इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं. तभी तो यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर घरों में 30 से 35 साल पुराने गिलोय का पेड़ आपको आसानी से मिल जाएंगे. इतना ही नहीं यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में जो गिलोय के पेड़ लगाए गए हैं उनकी एक खासियत भी है कि ये नीम के पेड़ के साथ मिलेंगे, क्योंकि लोगों का मानना है कि नीम के साथ वाला गिलोय ज्यादा गुणकारी होता है.
यहां काफी प्रचलन में है 'गिलोय'
गिलोय जिसे शहडोल के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकल भाषा में 'गुरिच' के नाम से जाना जाता है और ग्रामीण क्षेत्रों में इसके औषधीय महत्व के बारे में पहले से ही लोग जानते हैं या यूं कहें कि लोगों के बीच प्रचलन में है 'गुरिच' का नाम लेते ही बड़ी प्रसन्नता के साथ आपको यहां के लोग उसकी क्वालिटी बताने लग जाएंगे. जब हम उनके घर गिलोय के पौधे की तलाश में पहुंचे तो ग्रामीण शंभूनाथ गुप्ता ने बड़ी ही प्रसन्नता के साथ अपने बाड़ी में लेकर हमें 35 साल पुराना गिलोय दिखाया और उसकी क्वालिटी बताने लगे, साथ ही उसका इतिहास बताने लगे कि कैसे उन्होंने उसे लाकर लगाया था और आज वो कितना साल पुराना हो गया है. ग्रामीण शंभूनाथ गुप्ता बताते हैं कि जब वो नौकरी किया करते थे तब इसे अपने घर में लगाया था और आज वो रिटायर हो चुके हैं. करीब ये 35 साल पुराना गिलोय हो चुका है. शंभूनाथ गुप्ता कहते हैं कि जितना पुराना गिलोय का पेड़ उतना गुणकारी माना जाता है.
![Drug Giloy](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/mp-sha-01-special-gurich-aayurved-aushdhi-pkg-7203529_13022021125454_1302f_1613201094_396.jpg)
नीम के पेड़ के साथ ज्यादा असरदार
ग्रामीण शंभूनाथ गुप्ता कहते हैं कि इस गिलोय के पौधे को वह नीम के पेड़ के साथ लगाए थे. उसकी वजह है कि उन्होंने सुना था कि नीम के पेड़ के साथ अगर गिलोय रहता है तो वह काफी औषधीय महत्व का हो जाता है और काफी गुणकारी होता है. उसका इस्तेमाल करने पर काफी फायदेमंद होता है. वह छोटे-मोटे मर्जो के लिए इसका इस्तेमाल करते रहते हैं और लोग भी उनके घरों से इसे लेकर जाते हैं.
![Drug Giloy](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/mp-sha-01-special-gurich-aayurved-aushdhi-pkg-7203529_13022021125454_1302f_1613201094_328.jpg)
काफी काम का है गिलोय, जानिए औषधीय महत्व
गिलोय काफी काम का है और इसका औषधीय महत्व भी बहुत ज्यादा है आखिर किस तरह से इसका औषधीय है. यह जानने के लिए हम पहुंचे आयुर्वेद और पंचकर्म विशेषज्ञ डॉक्टर तरुण सिंह कहते हैं कि हमारे यहां गिलोय को 'गुरिच' के नाम से जाना जाता है. वैसे हिंदी में इसका जो प्रचलित नाम है उसे अमृता भी कहते हैं. गिलोय एक तरह का बहुत ही महत्वपूर्ण औषधीय वनस्पति है और लगभग लगभग हर बीमारी में इसका इस्तेमाल होता है. यह बहुत ही अच्छा एंटीऑक्सीडेंट है यह बहुत ही अच्छा एंटीइंफ्लामेट्री, ऐंटीपायरेटिक प्रॉपर्टी के साथ आता है. ज्वर में विषम ज्वर में इसका बहुत ही अच्छा प्रयोग होता है. इसके साथ में जहां-जहां भी इंफ्लामेटरी कंडीशन होती है. मतलब शोध होता है सूजन होती है इस तरह की बीमारियों में इसका बहुत ही अच्छा प्रयोग होता है.
मधुमेह में इसका बहुत अच्छा प्रयोग है अस्थि ज्वर में इसका बहुत अच्छा प्रयोग है कहीं पर भी भग्न होता है फ्रैक्चर होता है तो वहां पर इसका बहुत अच्छा प्रयोग है. स्त्री रोग में इसका बहुत अच्छा प्रयोग है. बच्चों की ज्वर में इसका बहुत अच्छा प्रयोग है अगर देखा जाए तो त्वक रोगों में त्वचा के जो रोग हैं. उसमें भी इसका बहुत अच्छा प्रयोग है ओस्टियोआर्थराइटिस और जितने भी लगभग लगभग सारे रोग जितने भी हैं.
गिलोय के अनेकों रुप
सब में कहीं ना कहीं गिलोय का प्रयोग होता है. हां स्वरूप बदल जाते हैं कहीं क्वाथ के रूप में होता है कहीं स्वरस के रूप में होता है. कहीं सत के रूप में होता है, कहीं चूर्ण के रूप में होता है, इस तरह से अलग-अलग स्वरूपों में गिलोय का प्रयोग होता है. वैसे तो पूरे भारत में पाया गिलोय आसानी से पाया जाता है, लेकिन अपने शहडोल में बहुतायत में पाया जाता है यहां तो इतना गिलोय होता है कि लोग अपने घरों से निकाल भी देते हैं, फिर भी गिलोय अपने से होता रहता है और लोग जितने भी जागरूक हैं वो लोग उसका नित्य इस्तेमाल भी करते हैं. सुबह उठते हैं तो कई लोग उसे कुछ कर उसके स्वरस का भी सेवन करते हैं. ये उनके लिए इम्यूनिटी बूस्टर भी होता है कोरोना काल के लिए बहुत अच्छा रहा है. इन सारी चीजों के लिए गिलोय बहुत अच्छा और बहुतायत मात्रा में अपने क्षेत्र में उपलब्ध है.
घर में ऐसे कर सकते हैं उपयोग
आयुर्वेद और पंचकर्म विशेषज्ञ डॉक्टर तरुण सिंह गिलोय के घर में इस्तेमाल को लेकर बताते हैं कि घर में अगर नॉर्मल तरीके से इस्तेमाल करना चाहे तो किसी के यहां अगर ताजा गिलोय घर में लगाया हुआ है, तो सबसे अच्छा उपयोग उसका होता है. ताजा रस जिसको आयुर्वेद में स्वरस कहते हैं, इसकी जो मात्रा होती लगभग 4 से 6 चम्मच तक स्वरस का उपयोग करना चाहिए. मतलब कूच के उसका रस जो है निकाल लेते हैं. यह कैडल डोज़ है, बच्चों में जो इसका उपयोग होता है वह एक से दो चम्मच 5 साल से नीचे और 5 साल के ऊपर 1 से 3 चम्मच और 10 साल से ऊपर जो 15 साल तक के बच्चे होते हैं. वहां चार चम्मच इसका उपयोग कर सकते हैं, ये बहुत अच्छा इम्यूनिटी बूस्टर भी होता है.
![Drug Giloy](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/mp-sha-01-special-gurich-aayurved-aushdhi-pkg-7203529_13022021125454_1302f_1613201094_56.jpg)
इसे ऐसे आसानी से लगाएं, इसके लिए यहां उपयुक्त वातावरण
वहीं कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि हमारे लोकल भाषा में इसे गुरिच बोलते हैं, इसे गिलोय भी बोलते है, इसका जो वैज्ञानिक नाम है बोटैनिकल नेम है. टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है. इसको अमृता इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें अमृत के समान औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसके अनेक औषधीय महत्व हैं, जहां तक अपने क्षेत्र की बात है तो शहडोल जिले में 40% जंगल ही है और यह प्रचुर मात्रा में मिलता है. इसके औषधीय गुण के बारे में जो यहां रहने वाले लोग हैं. वह पहले से ही परिचित हैं हल्की फुल्की बीमारियों में यह तो उपयोग में प्रचलन में ही है और ये यहां प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. एक तरह से ये यहां एडॉप्ट हो चुका है. यहां की जलवायु यहां का पानी यहां की मिट्टी इसके लिए एकदम उपयुक्त है.
गुणकारी है 'गिलोय'
देखिए जहां तक इसे लगाने की बात है तो ये सीड से भी हो जाता है. इसका जो सीड कोड है. उसे छीलकर उतार देते हैं और इसे शोइंग कर देते हैं तो वह निकल आता है इसका सबसे अच्छा लगाने का तरीका है कि इसकी कटिंग लगाएं. इसके कटिंग को जमीन में गड़ा दीजिए. बरसात में लगा दीजिए या अभी जो फरवरी का मौसम है तब भी लगा सकते हैं और उसकी दो गांठ जमीन के नीचे चली जाए तो यह भी आसानी से हो जाता है. सामान्य रूप से यह बेल प्रजाति का माना जाता है, तो नीम के पेड़ में चढ़ा हुआ जो गिलोय होता है, वह बहुत ही औषधीय महत्व का माना जाता है.
गुणकारी माना जाता है, इसे नीम का पौधा या आम के पौधे के आसपास लगा देते हैं, इसे सहारे की जरूरत होती है तो वहां लगा देने से यह पूरे पेड़ पर फैल जाता है. गौरतलब है कि शहडोल जिला जंगलों से घिरा हुआ जिला है और यहां पर तरह-तरह की जड़ी बूटियां पाई जाती है. जिनमें से यहां आदिवासी बाहुल्य इस जिले में कई जड़ी बूटियां तो प्रचलन में भी है जिनमें गिलोय भी शामिल है लेकिन जरूरत है तो इस क्षेत्र में इन जड़ी-बूटियों को संजोने की संभालने की और संरक्षित करने की.