शहडोल। जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. अब इस जिले में भी किसान लगातार हाईटेक होते जा रहे हैं. इसका असर भी देखने को मिलने लग गया है. कुछ दिन पहले हमने आपको बताया था कैसे एक किसान ने यूट्यूब से देखकर सेव फल के पेड़ लगाए और 42 डिग्री की तापमान में सेव फल उस पेड़ पर आये हैं. आज हम एक ऐसे आदिवासी किसान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने यूट्यूब में देखकर बतख पालन देखा, वीडियो देखने के बाद जब पसंद आया तो उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी. जो अब इनके आय का प्रमुख साधन बन गया है और दूसरे किसान भी अब इन्हें देखने पहुंच रहे हैं. आखिर इस बतख पालन में ऐसा क्या है जो आसपास के किसानों के लिए उत्सुकता का बड़ा केंद्र बन गया है. जानिये बतख पालन के बारे में सबकुछ.
आदिवासी किसान का डिजिटल ज्ञान और बतख पालन: बदलते वक्त के साथ अब लोग भी बदल रहे हैं. इसका असर भी देखने को मिलने लग गया है. शहडोल जिला पूरी तरह से आदिवासी बाहुल्य जिला है. अब यहां के आदिवासी किसान भी डिजिटल ज्ञान से पीछे नहीं है, जिले के आदिवासी किसान भी अब अपने इसी डिजिटल ज्ञान के सहारे नए-नए प्रयोग कर रहे हैं, जिसका असर भी देखने को मिलने लग गया है. एक ऐसे ही किसान हैं, शहडोल जिले के बरमनिया गांव के रहने वाले फूलचंद, जिन्होंने यूट्यूब में बतख पालन के बारे में देखा और उन्हें ये इतना पसंद आया कि उन्होंने बतख पालन की खुद ही शुरुआत कर दी. अब अच्छा खासा पैसे कमा रहे हैं और बतख पालन से खुश भी हैं. उनका कहना है कि मुर्गी पालन से ज्यादा बेहतर और सस्ता बतख पालन है. बाकी किसान भी अब इस ओर अपनी उत्सुकता दिखा रहे हैं.
ऐसे की बतख पालन की शुरुआत: शहडोल जिले के बरमनिया गांव के रहने वाले फूलचंद सिंह अपने बतख पालन के शुरुआत के बारे में उत्साहित होकर बताते हैं की हमारे एरिया में ज्यादातर लोग मुर्गी पालन करते हैं. मैं अक्सर यूट्यूब में खेती के बारे में नई नई चीजें देखता रहता हूं. इसी दौरान मैंने यूट्यूब में ही बतख पालन के बारे में देखा. जिसके बाद मुझे बड़ी उत्सुकता हुई और मैं इसके बारे में विस्तार से देखने के लिए बिलासपुर गया. वहां जाकर देखा कि बत्तख पालन करना मुर्गी पालन से ज्यादा अच्छा है, क्योंकि बतख पालन में खर्च भी कम आता है और आय भी अच्छी होती है. बतख पालन के लिये चूजे कहां से मिलेंगे, कैसा माहौल बनाना होगा, इनके रहन सहन के लिए इसे मैंने यूट्यूब से देखने के बाद बिलासपुर में प्रैक्टिकली बहुत करीब से जाकर देखा. फिर मैंने इसकी शुरुआत भी कर दी.
बतख पालन से हो रही हर दिन आय: किसान फूलचंद बताते हैं कि बतख पालन करते हुए आज मुझे 5 से 6 महीने हो चुके हैं. ये बतख कब का अंडे देना शुरू कर चुके हैं. बतख के मैंने 500 बच्चे हावड़ा से मंगवाए थे और अभी मेरे पास 250 बतख बचे हुए हैं. किसान फूलचंद आगे बताते हैं कि मेल बतख मैंने पहले ही निकाल दिए हैं, मेल बतख को बेचकर ही मैंने अपना खर्च निकाल लिया है. अब जो बचे हैं वो सिर्फ फीमेल बतख ही बचे हैं. मुझे इन फीमेल बतख से अंडे प्राप्त होते हैं. इन बतख के अंडे से लगभग ढाई सौ से ₹300 तक डेली कभी-कभी ₹500 भी में कमा लेता हूं. एक अंडा कभी ₹8 में तो कभी ₹10 के हिसाब से बिकता है.
मुर्गी पालन से बेहतर बतख पालन: बतख पालन कर रहे किसान फूलचंद अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि अगर आपके पास निजी तालाब है तो मुर्गी पालन से बहुत ही बेहतर बतख पालन करना है. तालाब में पहले मछली पालन करते हैं और बतख से जो अपशिष्ट निकलता है, वह मछलियों का भोजन बनता है. साथ में जब बतख तैरते हैं तो मछलियों में भी बढ़वार देखने को मिलती है. मछली पालन और बतख पालन दोनों एक साथ करने में हमें बहुत फायदा मिल जाता है.
कृषि वैज्ञानिक से जानिये बतख पालन के फायदे: बतख पालन को लेकर कृषि वैज्ञानिक ब्रिजकिशोर प्रजापति बताते हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र लगातार जिनके पास तालाब है. उन्हें मछली पालन के साथ बतख पालन के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. कृषि वैज्ञानिक बीके प्रजापति बताते हैं कि अब हमारे जिले में भी बतख पालन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, उसके फायदे के बारे में वो बताते हैं कि बतख पालन से फायदा यह है कि मुर्गी की तुलना में बतख ज्यादा अंडे देते हैं. प्रतिवर्ष 300 अंडे तक एक बतख देता है. इनके अंडे का जो वजन होता है, मुर्गी के अंडे की तुलना में ज्यादा बड़ा होता है. यह लगभग 65 से 75 ग्राम तक का होता है. इसमें दूसरा फायदा ये होता है कि इनका जो फीड कन्वर्जेंस रेट है, वह भी बहुत ज्यादा होता है. इसमें अंडे के लिए मुख्य रूप से जो है, खाकी कैंपवेल किस्म की जो बतख है वो बेहतर होती है. बतख पालन मुर्गी की तुलना में इसलिए सस्ता और कम खर्चीला है क्योंकि इसमें खर्च जो खाने का है, वह पूरा बचता है. इसमें बहुत कम खर्च लगता है, जो तालाब में खरपतवार होता है घास होती है छोटे कीट होते हैं जो लार्वा, छोटे स्नैल होते हैं, बतख इन सभी को खाने का कार्य करते हैं. इसके साथ ही जब बतख पानी में चलते हैं तो हवा का प्रवाह जो है तालाब में बहुत ज्यादा होता है, जिससे मछलियों में भी बहुत ज्यादा ग्रोथ होती है. इनसे जो गंदगी निकलती है वह मछलियों का आहार बनती है.
देखा जाए तो मुर्गी पालन की अपेक्षा बतख पालन ज्यादा समन्वित कृषि प्रणाली के अंतर्गत अधिक फायदेमंद होता है, इनके वजन की बात करें तो जो मादा बतख का वजन ढाई किलो के आसपास होता है. 300 अंडे के आसपास यह साल भर में देती है. अगर नर बतख है तो उसका वजन 3 से 4 केजी के आसपास होता है, 7 से 8 महीने में बहुत आसानी से बतख वजन गेन कर लेता है. बाजार में ये 300 से 400 तक प्रति केजी के हिसाब से ये बिकता है. इंडिविजुअल के तौर पर देखें तो ₹500 प्रति नग के हिसाब से बतख बिकता है.
कुछ खबरें यहां पढ़ें |
बतख के अंडों को लेकर ये भी जानिए: कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बतख पालन और उनके अंडों को लेकर आगे बताते हैं कि हमारे देश में बतख से जो अंडे प्राप्त होते हैं. उसकी मुर्गी से अगर तुलना करें तो पूरे देश में जो अंडे हमें प्राप्त होते हैं उसका 10% अंडा बतख से प्राप्त होता है. जो मुख्य रूप से पूर्वोत्तर राज्य उड़ीसा, वेस्ट बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़ और मणिपुर में भी मुख्य रूप से बतख पालन किया जाता है. अगर हम दक्षिण भारत की बात करें तो मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, केरला जो हमारे समुद्री भाग हैं, जैसे तमिलनाडु का भाग है यहां पर भी मुख्य रूप से बतख पालन किया जाता है. इससे अधिकतम आय प्राप्त की जाती है.
अलग-अलग किस्म के होते हैं बतख: बतख पालन के लिए किस्मों के बारे में कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं कि बतख पालन हमें किसलिए करना है, इसका चूनाव करना होता है. अंडे के लिए करना है या मीट के लिए करना है. बतख पालन अगर अंडे के लिए कर रहे हैं तो हमारे पीछे जो खाकी कंपेल किस्म है जो यूके यूनाइटेड किंगडम से हमारे देश में आया है, यह मुख्य रूप से 300 अंडे प्रति वर्ष देता है, इसके अलावा इंडिया रनर किस्म भी है चाइना का है, हमारे देश में ये किस्म भी सफल है.