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आदिवासी कलाकारों पर कोरोना का प्रभाव, आमदनी पर लगा ब्रेक

कोरोना काल ने हर वर्ग को नुकसान पहुंचाया है, लेकिन आदिवासी समुदाय इससे ज्यादा प्रभावित हुआ है. इनकी संस्कृति और कला मानों कहीं लुप्त हो गई है. सिर्फ इतना ही नहीं कलाकारों के आमदनी पर भी ब्रेक लग गया है. पढ़िए पूरी खबर..

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Published : Jan 27, 2021, 10:37 PM IST

Tribal artists
आदिवासी कलाकारों पर कोरोना का प्रभाव

शहडोल। शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां कोरोना काल की वजह से आदिवासी संस्कृति और कलाकारों को बेहद नुकसान हुआ है. इन कलाकारों का अद्भुत प्रदर्शन अब देखने को नहीं मिल पा रहा है.

आदिवासी लोक संस्कृति

मृदंग की थाप के साथ रियाज कर रहे बुदानी बैगा एक मंझे हुए मृदंग वादक हैं. इनकी डिमांड पूरे जिले में है. कहीं भी आदिवासी लोक संस्कृति के कार्यक्रम हों, लोग मृदंग की थाप के लिए बुदानी बैगा को ही तलाशते हैं. आम दिनों में बुदानी इतनी आसानी से खाली नहीं मिलते थे, लेकिन कोरोना काल ने इनके इस कला पर ब्रेक लगा दिया है.

कोरोना ने लगाया ब्रेक

जिले में अक्सर कार्यक्रम होते रहते थे. चाहे वो राजनीतिक कार्यक्रम हों, सामाजिक कार्यक्रम या फिर स्कूल और कॉलेज के प्रोग्राम. लोक संस्कृति और लोक कलाओं का प्रदर्शन हर जगह देखने को मिल जाता था, लेकिन इस कोरोना काल ने सब पर ब्रेक लगा दिया. जब से कोरोना काल शुरू हुआ है, तब से आदिवासी अंचल में ऐसे नजारे दिखने बंद हो गए हैं.

कोरोना संक्रमण से हुआ नुकसान

मृदंग वादक बुदानी बैगा कहते हैं कि मृदंग बजाते करीब 20 से 25 साल हो गए, लेकिन इस तरह का समय उन्होंने कभी नहीं देखा. अक्सर उनके पास काम की कमी नहीं रहती थी. कार्यक्रम होते रहते थे. वह अपना मृदंग लेकर प्रदर्शन करते रहते थे. इस बहाने उनकी थोड़ी बहुत कमाई भी हो जाती थी, लेकिन कोरोना ने सब कुछ खराब कर दिया.

बुदानी बैगा बताते हैं कि कोरोना काल शुरू होने के बाद से न तो किसी तरह के कार्यक्रम हुए और न ही लोक संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम हुए, जिसकी वजह से जो साल भर में कुछ पैसे कमा लेते थे, वह भी रुक गए.

आदिवासी कलाकारों पर कोरोना का प्रभाव
टीम को संगठित रखना हो रहा मुश्किल कलाकार लल्लू श्रीवास बताते हैं कि इस कोरोना काल की वजह से उनकी टीम को संगठित करना मुश्किल हो रहा है. लोक संगीत और लोक नृत्य के माध्यम से जो भी काम मिलता था, वह अब नहीं मिल पा रहा है.

लल्लू श्रीवास कहते हैं कि मार्च 2020 से इस पर जो ब्रेक लगा, वह अभी भी जारी है. हालात ऐसे है कि, अब तो उनके लिए उनकी टीम को संगठित रखना मुश्किल हो रहा है.

आदिवासी बाहुल्य जिला, लेकिन कोई नहीं दे रहा ध्यान

आदिवासी युवा नेता ललन सिंह मरावी कहते हैं कि इस कोरोना काल की वजह से उनकी लोक संस्कृति, लोक कला, आदिवासी संस्कृति को नुकसान तो हुआ ही है. साथ ही उनका यह भी मानना है कि भले ही शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला हों, लेकिन यहां के आदिवासी नेताओं ने अभी तक इस आदिवासी संस्कृति, आदिवासी लोक संगीत को बचाने के लिए किसी भी तरह की कोई योजना नहीं बनाई है. ना ही इसके लिए कुछ विशेष किया है.

शहडोल। शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां कोरोना काल की वजह से आदिवासी संस्कृति और कलाकारों को बेहद नुकसान हुआ है. इन कलाकारों का अद्भुत प्रदर्शन अब देखने को नहीं मिल पा रहा है.

आदिवासी लोक संस्कृति

मृदंग की थाप के साथ रियाज कर रहे बुदानी बैगा एक मंझे हुए मृदंग वादक हैं. इनकी डिमांड पूरे जिले में है. कहीं भी आदिवासी लोक संस्कृति के कार्यक्रम हों, लोग मृदंग की थाप के लिए बुदानी बैगा को ही तलाशते हैं. आम दिनों में बुदानी इतनी आसानी से खाली नहीं मिलते थे, लेकिन कोरोना काल ने इनके इस कला पर ब्रेक लगा दिया है.

कोरोना ने लगाया ब्रेक

जिले में अक्सर कार्यक्रम होते रहते थे. चाहे वो राजनीतिक कार्यक्रम हों, सामाजिक कार्यक्रम या फिर स्कूल और कॉलेज के प्रोग्राम. लोक संस्कृति और लोक कलाओं का प्रदर्शन हर जगह देखने को मिल जाता था, लेकिन इस कोरोना काल ने सब पर ब्रेक लगा दिया. जब से कोरोना काल शुरू हुआ है, तब से आदिवासी अंचल में ऐसे नजारे दिखने बंद हो गए हैं.

कोरोना संक्रमण से हुआ नुकसान

मृदंग वादक बुदानी बैगा कहते हैं कि मृदंग बजाते करीब 20 से 25 साल हो गए, लेकिन इस तरह का समय उन्होंने कभी नहीं देखा. अक्सर उनके पास काम की कमी नहीं रहती थी. कार्यक्रम होते रहते थे. वह अपना मृदंग लेकर प्रदर्शन करते रहते थे. इस बहाने उनकी थोड़ी बहुत कमाई भी हो जाती थी, लेकिन कोरोना ने सब कुछ खराब कर दिया.

बुदानी बैगा बताते हैं कि कोरोना काल शुरू होने के बाद से न तो किसी तरह के कार्यक्रम हुए और न ही लोक संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम हुए, जिसकी वजह से जो साल भर में कुछ पैसे कमा लेते थे, वह भी रुक गए.

आदिवासी कलाकारों पर कोरोना का प्रभाव
टीम को संगठित रखना हो रहा मुश्किल कलाकार लल्लू श्रीवास बताते हैं कि इस कोरोना काल की वजह से उनकी टीम को संगठित करना मुश्किल हो रहा है. लोक संगीत और लोक नृत्य के माध्यम से जो भी काम मिलता था, वह अब नहीं मिल पा रहा है.

लल्लू श्रीवास कहते हैं कि मार्च 2020 से इस पर जो ब्रेक लगा, वह अभी भी जारी है. हालात ऐसे है कि, अब तो उनके लिए उनकी टीम को संगठित रखना मुश्किल हो रहा है.

आदिवासी बाहुल्य जिला, लेकिन कोई नहीं दे रहा ध्यान

आदिवासी युवा नेता ललन सिंह मरावी कहते हैं कि इस कोरोना काल की वजह से उनकी लोक संस्कृति, लोक कला, आदिवासी संस्कृति को नुकसान तो हुआ ही है. साथ ही उनका यह भी मानना है कि भले ही शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला हों, लेकिन यहां के आदिवासी नेताओं ने अभी तक इस आदिवासी संस्कृति, आदिवासी लोक संगीत को बचाने के लिए किसी भी तरह की कोई योजना नहीं बनाई है. ना ही इसके लिए कुछ विशेष किया है.

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