शहडोल। आदिवासी अंचल के अंतर्गत आने वाले शहडोल में धान की खेती की जाती है. कई जगह सोयाबीन की फसल भी होती है, लेकिन इस साल अंचल में मक्के की खेती का एरिया बढ़ा है, सोयाबीन की खेती करने वाले अधिकतर किसानों ने इस बार फसल में बदलाव कर मक्के की खेती पर भरोसा जताया है.
दलहनी फसल लगाने में ज्यादा फायदा
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी बताते हैं कि धान की फसल के लिए जिलें में अब तक सही बारिश नहीं हुई है. धान की फसल के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है, जबकि जिले में बारिश अब तक कम ही हुई है, लेकिन मक्के और दलहनी फसलों के लिए बारिश ठीक है.
किसानों ने फसल में किया परिवर्तन
कृषि वैज्ञनिक पीएन त्रिपाठी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से सोयाबीन की फसल में किसानों को बड़ा झटका लग रहा है, क्योंकि इसमें चारकोल रॉड नामक बीमारी आ रही थी और किसान परेशान था. इसलिए इस साल फसल परिवर्तन पर ज्यादातर किसानों ने भरोसा जताया है और मक्के की फसल का एरिया बढ़ा है.
मक्के की खेती वाले रखें खास ध्यान
जो किसान मक्के की खेती कर रहे हैं, उन्हें थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है. पिछले साल मक्के में मध्यप्रदेश में विशेष रूप से देखने मिला था कि फॉल ऑफ आर्मी फौजी कीट मक्के की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया था. इस साल भी इसके हमले की आशंका है. इसलिए किसानों को सजग रहने की जरुरत है.
जानिए क्या है 'फौजी' कीट और उसके संकेत
फाल ऑफ आर्मी को फौजी कीट भी कहा जाता है. खेतों के निरीक्षण के दौरान अगर कहीं भी मक्के के खेत में पत्तियों का काटना, पत्तियों को खाना, पौधे में पोंगली बन रही हो तो ये सभी फौजी कीट के लक्षण हैं. ऐसा कुछ आपके खेत में दिख रहा है तो तुरंत कृषि वैज्ञानिकों से मिलकर फसल पर दवाई का छिड़काव करें.
मक्के की खेती का दायरा बढ़ा
कृषि वैज्ञनिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी बताते हैं कि इस बार पूरे शहडोल जिले की बात करें तो मक्के की खेती में 8 से 10 हजार हेक्टेयर की बढोत्तरी हुई है. इस बार सोयाबीन की फसल का एरिया घटा है और मक्के की फसल का दायरा बढ़ा है. पिछले साल सोयाबीन की फसल में चारकोल रॉड का बहुत ज्यादा प्रकोप था, जिससे किसान परेशान थे और वैज्ञनिक लगातार फसल बदलने की बात कह रहे थे. इस बार किसानों ने वैज्ञनिकों की बात भी मानी है और सोयबीन की अपेक्षा इस बार मक्के पर ज्यादा भरोसा जताया है.