सिवनी। शिवराज सरकार भले ही अपने आप को आदिवासियों का मसीहा बता कर वन भूमि पर काबिज होने के बाद भी वनवासियों को अपने हक के लिए मालिकाना हक देने की बात करती हो, पर सच इससे उलट है और आज भी आदिवासी अपने हक के लिए जंगल में रहने को मजबूर हैं. ऐसा ही एक मामला लखनादौन विकासखंड के ग्राम पंचायत मोहगांव नागन का है. जहां आज भी आदिवासी बांस बल्ली की छोटी-छोटी झोपड़ी बना कर रहने को मजबूर हैं.
इस क्षेत्र में वन विभाग का पूरा अमला आदिवासियों को समझाइश देते हुए देखा जा सकता है, हल्का पटवारी द्वारा भी आदिवासियों को वन भूमि में किसी प्रकार के कोई प्रमाण न होने की बात कर रहे हैं. वहीं आदिवासी भी अपनी जिद पर अड़े हैं. आदिवासियों का कहना है कि हमारे पास रहने को घर जमीन नहीं है, हमारे पूर्वज इस जगह पर काफी लंबे समय से काबिज थे.
आपको बता दें कि सरकार ने वर्ष 2005 से पहले से काबिज आदिवासियों को वन अधिकार पत्र देने को कहा है, इससे बड़ी संख्या में वंचित आदिवासियों को भूमि का हक मिलेगा. लखनादौन विधानसभा के ही अनेक आदिवासियों को इस व्यवस्था के तहत लाभ मिलेगा. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वीडियो कॉन्फेंसिंग में अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वन अधिकार से वंचित वन भूमि पर काबिज आदिवासी को पट्टे दिए जाएं.
मुख्यमंत्री ने 8 दिन में अधिकारियों को अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है, ताकि इस प्रक्रिया को पूरा किया जा सके. जिले के लखनादौन और घंसौर विकासखंड में सबसे ज्यादा आदिवासी हैं, इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वंचित आदिवासियों को पट्टे देने के कलेक्टर को निर्देश दिए हैं.
आपको बता दें कि कोई भी वनवासी जो 31 दिसंबर 2005 या उससे पहले से भूमि पर काबिज है, उन्हें अनिवार्य रूप से भूमि के पट्टा मिलेगा. वन अधिकार के दावे जिन लोगों के निरस्त हो चुके हैं, उनकी सुनवाई होगी, लेकिन इसके बाद भी आज बहुत ज्यादा संख्या में आदिवासी जमीन के लिए आंदोलित हैं.