सीहोर। बुधनी विधानसभा पर बीजेपी लगातार चैंपियन है. न केवल शिवराज सिंह चौहान के आने के बाद, बल्कि उसके पहले भी कांग्रेस को जनसंघ ने मात दी है. लेकिन इस बार खुद दिग्विजय सिंह जमावट कर रहे हैं. इस सीट पर सीएम शिवराज की पकड़ मजबूत है. इस बार के चुनाव में भी बुधनी से सीएम शिवराज प्रत्याशी हैं. जबकि उनके सामने कांग्रेस ने अभिनेता विक्रम मस्ताल को चुनावी मैदान में उतारा है. शिवराज सिंह चौहान का यहां मुकाबला सिर्फ विक्रम मस्ताल से नहीं बल्कि कई और प्रत्याशियों से है. यहां सपा से मिर्ची बाबा और इसके अलावा सबसे बुजुर्ग प्रत्याशी अब्दुल रशीद भी निर्दलीय मैदान में थे. जिसका फैसला 3 दिसंबर को आने वाला है.
सीएम शिवराज की सीट पर दिग्विजय की राजनीतिक बिसात: बुधनी विधानसभा को लेकर कहा जाता शिवराज सिंह चौहान, यहां चुनाव प्रचार के लिए एक दिन भी नहीं आते और जीत जाते हैं. वो पूरे पांच साल जनता का ध्यान रखते हैं. इनको जीत दिलाने के लिए इनका परिवार, पत्नी और बेटों के साथ नवरत्न जिम्मेदारी संभालते हैं. इस बार मामला थोड़ा अलग है. इस बार कमान कांग्रेस के दिग्गज नेता ने अपने हाथ में संभाली है. कमलनाथ उनकाे पूरा सहयोग दे रहे हैं. शिवराज को हराने के लिए सामान्य और आदिवासी गठजोड़ तैयार किया जा रहा हैय इसकी तैयारी महीनों पहले कर ली गई. दो युवाओं के जरिए यह पूरा गेम प्लान बनाया गया है. पहला नाम ब्रजेंद्र उइके और दूसरा विक्रम मस्ताल शर्मा. विक्रम मस्ताल को कमलनाथ ने कांग्रेस कई महीने पहले ज्वाइन करवा दी थी और उन्हें नर्मदा सेना का प्रभारी बनाकर पूरे नर्मदांचल में प्रचार करवाया जा रहा है.
दरअसल, विक्रम एक निजी चैनल में प्रसारित होने वाले रामायण सीरियल में बजरंगबली का किरदार निभा कर चर्चा में आए थे. वे मूल रूप से बुधनी विधानसभा के प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल सलकनपुर के पास इटारसी गांव के रहने वाले हैं. उनके छोटे भाई अर्जुन उर्फ निक्की शर्मा भी बुधनी विधानसभा से कांग्रेस के युवा नेता हैं. कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. दूसरा आदिवासी चेहरा बृजेंद्र है. यह दिग्विजय सिंह की खोज है, जिसे राहुल गांधी की भारत जोड़ाे यात्रा के दौरान ही तैयार कर लिया गया था. बृजेंद्र ने पूरी भारत यात्रा राहुल गांधी के साथ पैदल की थी. विक्रम मस्ताल और बृजेंद्र मिलकर पूरी विधानसभा में अपने अपने वर्ग के लोगों से मिल रहे हैं.
ताकि, आदिवासी के साथ सामान्य वर्ग के वोट भी कांग्रेस पार्टी को मिल सके. अब बात करें शिवराज की तो वे इन वोट बैंक के साथ अपने सबसे बड़े वोट बैंक पिछड़ा वर्ग पर फोकस कर रहे हैं. वहीं उनके बड़े बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान ने यूथ में पैठ बनाने के लिए सालों पहले काम शुरू कर दिया था. कार्तिकेय सिंह अपने दादा प्रेम सिंह चौहान के नाम पर हर साल बड़ी खेल प्रतियोगिताएं करवाते हैं. इनकी भव्यता का इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत दूसरे बड़े नेता शिरकत करते रहे हैं.
बुधनी विधानसभा का जातिगत समीकरण: कांग्रेस के जनरल प्लस आदिवासी प्लान को तोड़ने के लिए शिवराज सिंह और उनकी नवरत्न टीम ने जातिगत गेम प्लान बनाया है. शिवराज सिंह ने OBC वोटर पर खास फोकस कर दिया है. इसीलिए, उन्होंने जो सामाजिक बोर्ड बनाए हैं, उनमें दो बड़ी जातियों के अध्यक्ष इसी विधानसभा से जुड़े लोगों को बनाया है. इनमें पहले स्वर्णकार बोर्ड के अध्यक्ष हैं, जो कि बुधनी विधानसभा के रहटी के रहने वाले हैं. दूसरा नाम मीणा समाज के लालाराम मीणा हैं, जो कि रिटायर्ड मजिस्ट्रेट हैं और इन्हें मप्र जय मीनेष कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनाया है. दोनों को ही कैबीनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया है. इन दोनों समाज के यहां करीब 28 हजार मतदाता हैं. इसके अलावा शिवराज जिस किरार समाज से हैं, उसे भी खुद के पक्ष में पहले से ही कर रखा है. वहीं राजपूत समाज और ब्राम्हण समाज के लोगों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है. जबकि, कलार समाज के व्यक्ति को जिला अध्यक्ष बनाया हुआ है.
कैसा रहेगा वोटों का समीकरण: साल 2018 में शिवराज सिंह चौहान को 1 लाख 23 हजार 492 वोट मिले. वही कांग्रेस के ओबीसी नेता अरुण सुभाष चंद्र यादव को 64 हजार 493 वोट मिले. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी को 8152, बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को 1683 और निर्दलीय प्रत्याशी हेमराज पठारी को 1386 वोट मिले. इनके अलावा 10 प्रत्याशी और मैदान में थे, जो हजार के नीचे ही रहे. अब कुल मतदाताओं में सामाजिक वोटर्स की बात करें तो सबसे अधिक आदिवासी वोट 50 हजार से अधिक हैं. इनमें बारेला, गौंड कोरकू, भील शामिल है.
इसके अलावा किरार, ब्राम्हण, राजपूत, पवार, अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम, मीणा, यादव, कीर, खंडेलवाल आदि जातियों के वोट 5 से 20 हजार प्रति जाति के अनुपात में है. गौरतलब है कि पिछली विधानसभा चुनाव के अनुसार बुधनी विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 244580 है. इनमें पुरुष मतदाता 127847 और महिला मतदाता 116724 है. जबकि अन्य मतदाताओं की संख्या 9 है.
बुधनी विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास: बुधनी विधानसभा में पहला चुनाव साल 1957 में हुआ, तब इस सीट का नंबर 77 था. पहले चुनाव में कांग्रेस कर राजकुमारी सूरजकला जीतीं और इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी मथुरा प्रसाद को 705 वोट से हराया था. इस पहले चुनाव में इनके अलावा शिवनारायण, मिश्रीलाल दुबे और नारायण प्रसाद भी मैदान में उतरे थे. तब इन तीनों को ढाई से तीन हजार तक वोट मिले थे, जिसे अच्छा माना गया था.
साल 1962 के चुनाव में बुधनी का विधानसभा क्रमांक 77 से बदलकर 217 हो गया और इस बार कुल पांच कैंडीडेट मैदान में थे. इनमें कांग्रेस के बंशीधर, हिंदु महासभा के मथुरा प्रसाद, कांग्रेस की राजकुमारी सूरजकला, सीपीआई के मिश्रीलाल, निर्दलीय मोतीलाल अलिहास मजूमदार शामिल थे. लेकिन, जीत मिली निर्दलीय प्रत्याशी बंशीधर को. इन्हें तब कुल 8744 वोट मिले और इन्होंने हिंदु महासभा के मथुरा प्रसाद को 3082 वोट से हराया. यह स्थिति तब थी, जबकि कांग्रेस उस समय बेहद पॉवर में थी. इसके बाद भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गई.
साल 1967 के इलेक्शन में भारतीय जनसंघ ने यह सीट अपने कब्जे में ले ली. जनसंघ के नेता एम. शिशिर ने कांग्रेस के एस. राम को 3018 वोट से हराया. उन्हें 27606 वोट में से 12539 वोट मिले. साल 1972 के एमपी इलेक्शन में बुधनी विधानसभा क्षेत्र में कुल 71184 मतदाता थे और 38192 ने वोटिंग की. इस बार उम्मीद के विपरीत निर्दलीय उम्मीदवार शालिगराम वकील जीते और उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार बंशीधर कालूराम को 2653 वोटों से हराया. 1977 के बुधनी विधानसभा चुनाव में 39638 मतदाताओं ने वोटिंग की. इस बार शालिगराम वकील जनता पार्टी के टिकट से लड़े और जीते. उन्होंने कुल 23071 वोट लेकर कांग्रेस के उम्मीदवार सैयद ऐजाज़ अली सरफराज अली (पुतान) को 13145 वोटों से हराया. 1980 के इलेक्शन में कांग्रेस ने बाजी पलट दी. इस बार कांग्रेस (आई) के उम्मीदवार केएन प्रधान जीते और उन्हें कुल 22922 वोट मिले. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रमेश श्रीवास्तव (वकील) को 7662 वोटों से हराया. दोनों ही नेता कायस्थ समाज के थे.
जीत का यह क्रम 1985 में भी कांग्रेस ने जारी रखा. इस बार किरार समाज के नेता चौहान सिंह को उम्मीदवार बनाया. उन्हें कुल 50151 वोट में से 30427 वोट मिले और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता शालिगराम वकील को 13600 वोटों से हराया. इस चुनाव तक किरार समाज ने अपना वर्चस्व कायम कर लिया था. इसीलिए भाजपा ने भी साल 1990 के चुनाव में किरार समाज के युवा नेता शिवराज सिंह चौहान को पहली बार टिकट देकर मैदान में उतारा. जबकि, कांग्रेस ने मीणा समाज के नेता हरि सिंह को मैदान में उतारा. लेकिन बीजेपी का निर्णय सही साबित हुआ. पहली बार में शिवराज ने जीत दिलाई. उन्हें कुल 73520 वोट में से 43948 वोट मिले और इस तरह उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार हरि सिंह मीणा को कुल 22810 वोटों से हराया. यह वोट के लिहाज से भाजपा की अब तक की सबसे बड़ी जीत थी.
अगले चुनाव तक शिवराज सांसद बनकर दिल्ली चले गए थे. वर्ष 1993 के इलेक्शन में उनकी जगह बीजेपी ने ब्राम्हण नेता गुरूप्रसाद शर्मा को तो कांग्रेस ने किरार नेता राजकुमार पटेल को टिकट दिया. इस बार कांग्रेस का पैंतरा सही बैठा और राजकुमार पटेल गुरूप्रसाद शर्मा से 1745 वोटों से जीत गए. कांग्रेस ने साल 1998 में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से किरार समाज के देव कुमार पटेल को उम्मीदवार बनाया और वह भी जीत गए. इस बार भी बीजेपी ने ब्राम्हण नेता गुरु प्रसाद शर्मा पर भरोसा जताया, लेकिन वे पटेल से 1774 वोटों से हार गए. साल 2003 के चुनाव में बीजेपी ने प्रत्याशी बदला और इस बार राजपूत समाज के नेता राजेंद्र सिंह को टिकट दिया. जबकि, कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक राजकुमार पटेल पर भरोसा जताया. लेकिन जीत बीजेपी के राजेंद्र सिंह जीते को मिली और वे विधायक बन गए. उन्होंने कांग्रेस के राजकुमार पटेल को 10436 वोटों से हराया.
2008 में बुधनी विधान सभा क्षेत्र में शिवराज सिंह ने बीजेपी की सीट से विधायक का चुनाव लड़ा और सामने थे महेश सिंह राजपूत. शिवराज ने फिर रिकार्ड बनाया. कुल 122007 वोट में से उन्होंने 75828 वोट लिए और कांग्रेस उम्मीदवार महेश सिंह राजपूत को 41525 वोटों के बड़े अंतर से हराया. इसके बाद से तो शिवराज अजेय योद्धा हो गए. 2013 में बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. महेंद्र सिंह चौहान को 84805 वोटों से हराया. जबकि, 2018 में फिर से बीजेपी उम्मीदवार शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस उम्मीदवार अरुण सुभाषचंद्र यादव को 58999 वोटों से हराया.