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शहीदों के नाम से पहचाना जाता है ये गांव, दो सगे भाइयों ने कारगिल युद्ध में दी थी कुर्बानी - kargil vijay diwas

मध्यप्रदेश के सतना जिले में मौजूद एक ऐसा ही गांव है जिसे शहीदों के गांव के नाम से जाना जाता है. इस गांव के दो सगे भाई शहीद कन्हैया लाल सिंह और शहीद बाबूलाल सिंह ने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दी.

Martyr brothers
शहीद भाइयों की वीरगाथा
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Published : Jul 19, 2020, 3:04 PM IST

Updated : Jul 20, 2020, 6:37 AM IST

सतना। हम जिएंगे और मरेंगे, ऐ वतन तेरे लिए, दिल दिया है, जान भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए... मध्यप्रदेश के सतना जिले में मौजूद एक ऐसा ही गांव है जिसे शहीदों के गांव के नाम से जाना जाता है. यहां का हर बाशिंदा देश के लिए मर मिटने को तैयार है, जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर स्थित चूंद गांव के लोगों की सेना में भर्ती होने की परंपरा रीवा स्टेट के जमाने से शुरू हुई थी, और आज भी इस गांव के बच्चा-बच्चा में बचपन से ही सेना में जाने के लिए जज्बा दिखाई देता है. इस गांव के दो सगे भाई शहीद कन्हैया लाल सिंह औ शहीद बाबूलाल सिंह ने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दी.

कारगिल युद्ध में हुए शहीद

सैनिकों के नाम से मशहूर गांव

करीब तीन हजार की आबादी वाले इस गांव को सैनिकों का गांव माना जाता है, चूंद ने देश को सिपाही से लेकर ब्रिगेडियर और मरीन कमांडो तक दिए हैं, यहां ऐसे कई परिवार भी हैं जिनके चार पुष्पों से लोग सरहद निगहबानी कर रहे हैं. होश संभालते ही गांव का हर युवा सबसे पहले फौज में जाने के सपने संजोता है, दसवीं कक्षा पास करने के बाद लड़के दौड़ना और व्यायाम करना शुरू कर देते हैं.

Martyr brothers
शहीद भाइयों की वीरगाथा

ऑपरेशन रक्षक में हुए शहीद

साल 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल हील्स पर कब्जा कर भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था तो अलग-अलग सेक्टरों के चूंद के जाबाजों ने भी मोर्चा संभाल रखा था, उस दौरान दोनों जांबाज बाबूल लाल सिहं और कन्हैया लाल सिंह जम्मू-कश्मीर के पुंछ राजौरी सेक्टर में ऑपरेशन रक्षक के दौरान दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. वहीं ग्रामीणों ने इनके जज्बे को सलाम करते हुए इनकी याद में शहीद स्मारक बनाया हुआ है.

शहीद कन्हैया लाल का सफर

कन्हैयालाल और बाबूलाल दोनों ने ही अपनी शिक्षा बिरसिंहपुर शासकीय हाई सेकेंडरी स्कूल से पूरी की थी. दसवीं पास आउट के बाद दोनों ने ही आर्मी ज्वाइन की थी, कन्हैया लाल का जन्म 10 अगस्त 1965 को हुआ था, और सन 1983 में सेना में भर्ती हुए थे, और 11 मई 1998 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. जब कन्हैया लाल शहीद हुए थे उस वक्त इनके दोनों बच्चे बहुत छोटे थे, पिता के शहीद होने के बाद मां ने दोनों बच्चों की परवरिश की और आज छोटा बेटा विनय भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहा हैं. विनय ने साल 2012 में आर्मी ज्वाइन की,और आज 9 आरआर श्री नगर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

देश की सेवा में पूरा परिवार

कन्हैया लाल सिंह और बाबूलाल सिंह यह चार भाई थे, इनमें से सबसे बड़े कन्हैया लाल सिंह, दूसरे बाबूलाल सिंह, तीसरे बृजेश सिंह, चौथे चंद्र राज सिंह जो कि वर्तमान में मेरठ 14 राजरिफ में सूबेदार पद में पदस्थ है.वहीं परिवार के लोग शहीद कन्हैया लाल पर बहुत गर्व करते हैं , उनका कहना है कि वो अपने शब्दों से उनकी वीरगाथा को बयां नहीं कर सकते, वहीं अब घर के दूसरे बच्चे भी देश की सेवा करना चाहते है.

शहीद बाबूलाल का सफर

छोटे भाई बाबूलाल सिंह का जन्म 26 जनवरी 1967 को हुआ था, और 23 जनवरी 1987 को बाबूलाल सिंह सेना में भर्ती हुए थे, और 31 अक्टूबर 2000 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे, बाबूलाल सिंह के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी राज दुलारी सिंह ने पूरे परिवार को संभाला, इनके दो बेटे और एक बेटी थी, बच्चों की पूरी शिक्षा दीक्षा का भार उनकी पत्नी ने अपने कंधों पर ले ली, जांबाज बाबूलाल सिंह की पहली पोस्टिंग गंगानगर, इसके बाद झांसी, राजस्थान और राजौरी सेक्टर के पुंछ में यह शहीद हुए थे, बाबूलाल सिंह के बेटे को अपने पिता पर बहुत गर्व है उनका कहना है कि हमारे पिता के गुजर जाने के बाद हमारी माता ने होश संभाला और हमारी शिक्षा दीक्षा और पालन-पोषण पूरी जिम्मेदारी उन्होंने ही पूरी की.इन दो सगे भाईयों की वीरगाथा को ईटीवी भारत सलाम करता है.

सतना। हम जिएंगे और मरेंगे, ऐ वतन तेरे लिए, दिल दिया है, जान भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए... मध्यप्रदेश के सतना जिले में मौजूद एक ऐसा ही गांव है जिसे शहीदों के गांव के नाम से जाना जाता है. यहां का हर बाशिंदा देश के लिए मर मिटने को तैयार है, जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर स्थित चूंद गांव के लोगों की सेना में भर्ती होने की परंपरा रीवा स्टेट के जमाने से शुरू हुई थी, और आज भी इस गांव के बच्चा-बच्चा में बचपन से ही सेना में जाने के लिए जज्बा दिखाई देता है. इस गांव के दो सगे भाई शहीद कन्हैया लाल सिंह औ शहीद बाबूलाल सिंह ने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दी.

कारगिल युद्ध में हुए शहीद

सैनिकों के नाम से मशहूर गांव

करीब तीन हजार की आबादी वाले इस गांव को सैनिकों का गांव माना जाता है, चूंद ने देश को सिपाही से लेकर ब्रिगेडियर और मरीन कमांडो तक दिए हैं, यहां ऐसे कई परिवार भी हैं जिनके चार पुष्पों से लोग सरहद निगहबानी कर रहे हैं. होश संभालते ही गांव का हर युवा सबसे पहले फौज में जाने के सपने संजोता है, दसवीं कक्षा पास करने के बाद लड़के दौड़ना और व्यायाम करना शुरू कर देते हैं.

Martyr brothers
शहीद भाइयों की वीरगाथा

ऑपरेशन रक्षक में हुए शहीद

साल 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल हील्स पर कब्जा कर भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था तो अलग-अलग सेक्टरों के चूंद के जाबाजों ने भी मोर्चा संभाल रखा था, उस दौरान दोनों जांबाज बाबूल लाल सिहं और कन्हैया लाल सिंह जम्मू-कश्मीर के पुंछ राजौरी सेक्टर में ऑपरेशन रक्षक के दौरान दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. वहीं ग्रामीणों ने इनके जज्बे को सलाम करते हुए इनकी याद में शहीद स्मारक बनाया हुआ है.

शहीद कन्हैया लाल का सफर

कन्हैयालाल और बाबूलाल दोनों ने ही अपनी शिक्षा बिरसिंहपुर शासकीय हाई सेकेंडरी स्कूल से पूरी की थी. दसवीं पास आउट के बाद दोनों ने ही आर्मी ज्वाइन की थी, कन्हैया लाल का जन्म 10 अगस्त 1965 को हुआ था, और सन 1983 में सेना में भर्ती हुए थे, और 11 मई 1998 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. जब कन्हैया लाल शहीद हुए थे उस वक्त इनके दोनों बच्चे बहुत छोटे थे, पिता के शहीद होने के बाद मां ने दोनों बच्चों की परवरिश की और आज छोटा बेटा विनय भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहा हैं. विनय ने साल 2012 में आर्मी ज्वाइन की,और आज 9 आरआर श्री नगर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

देश की सेवा में पूरा परिवार

कन्हैया लाल सिंह और बाबूलाल सिंह यह चार भाई थे, इनमें से सबसे बड़े कन्हैया लाल सिंह, दूसरे बाबूलाल सिंह, तीसरे बृजेश सिंह, चौथे चंद्र राज सिंह जो कि वर्तमान में मेरठ 14 राजरिफ में सूबेदार पद में पदस्थ है.वहीं परिवार के लोग शहीद कन्हैया लाल पर बहुत गर्व करते हैं , उनका कहना है कि वो अपने शब्दों से उनकी वीरगाथा को बयां नहीं कर सकते, वहीं अब घर के दूसरे बच्चे भी देश की सेवा करना चाहते है.

शहीद बाबूलाल का सफर

छोटे भाई बाबूलाल सिंह का जन्म 26 जनवरी 1967 को हुआ था, और 23 जनवरी 1987 को बाबूलाल सिंह सेना में भर्ती हुए थे, और 31 अक्टूबर 2000 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे, बाबूलाल सिंह के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी राज दुलारी सिंह ने पूरे परिवार को संभाला, इनके दो बेटे और एक बेटी थी, बच्चों की पूरी शिक्षा दीक्षा का भार उनकी पत्नी ने अपने कंधों पर ले ली, जांबाज बाबूलाल सिंह की पहली पोस्टिंग गंगानगर, इसके बाद झांसी, राजस्थान और राजौरी सेक्टर के पुंछ में यह शहीद हुए थे, बाबूलाल सिंह के बेटे को अपने पिता पर बहुत गर्व है उनका कहना है कि हमारे पिता के गुजर जाने के बाद हमारी माता ने होश संभाला और हमारी शिक्षा दीक्षा और पालन-पोषण पूरी जिम्मेदारी उन्होंने ही पूरी की.इन दो सगे भाईयों की वीरगाथा को ईटीवी भारत सलाम करता है.

Last Updated : Jul 20, 2020, 6:37 AM IST
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