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एमपी में है 200 साल पुराना बरगद का पेड़, पूर्वजों के प्रकृति प्रेम को सहेजने के लिए नहीं होती 2 एकड़ में खेती

आज जमीन के छोटे से टुकड़े के लिए खून की नदियां बह जाती हैं और लोग इंच भर जमीन भी छोड़ने तैयार नहीं रहते हैं, लेकिन प्रकृति को भगवान की तरह पूजने वाले लोग सब कुछ त्याग कर प्रकृति की सेवा में अपना जीवन गुजार देते हैं. जिले के जैसीनगर विकासखंड के पड़रई गांव में प्रकृति प्रेम का ऐसा ही नजारा सबको आकर्षित करता है. देखें रिपोर्ट...

Sagar 200 year old banyan tree
सागर 200 साल पुराना बरगद का पेड़
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Published : Mar 15, 2023, 5:17 PM IST

Updated : Mar 15, 2023, 5:49 PM IST

सागर 200 साल पुराना बरगद का पेड़

सागर। जिले के पड़रई गांव में 200 साल पुराना बरगद का पेड़ है. जिसे स्थानीय ठाकुर परिवार के बुजुर्गों ने लगाया था. बरगद के पेड़ में उनकी आस्था इतनी ज्यादा थी कि, आज भी बरगद का पेड़ बरकरार है. अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है. हालात ये हैं कि, बरगद का पेड़ 2 एकड़ से ज्यादा इलाके में फैल चुका है. जिस किसान के खेत में पेड़ लगा है. वह बरगद के पेड़ के नीचे खेती भी नहीं कर पाता है, लेकिन बुजुर्गों की याद और उनके प्रकृति प्रेम को सहेजने के लिए बरगद का पेड़ किसी ने काटा नहीं है और लगातार इसका दायरा बढ़ता जा रहा है.

2 एकड़ से ज्यादा जमीन में फैला: सागर जिले के जैसीनगर विकासखंड के पड़रई गांव में यह का विशाल पेड़ आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इसका दायरा 20-25 फीट नहीं, बल्कि 2 एकड़ से ज्यादा जमीन में फैल चुका है और बरगद का पेड़ करीब 200 साल पुराना है. गांव के किसान ऋषिरज सिंह ठाकुर के खेत में यह विशाल बरगद का पेड़ मौजूद है. योगेश सिंह ठाकुर बताते हैं कि, उनके पूर्वज प्रकृति से काफी प्रेम करते थे. पौधे लगाना उनका शौक ही नहीं, एक तरह से जीवन का लक्ष्य बन गया था. पूर्वजों का प्रकृति प्रेम बरगद के विशालकाय वृक्ष के रूप में आज भी मौजूद है.

पूर्वजों का प्रकृति प्रेम: किसान योगेश सिंह ठाकुर बनाते हैं कि पूर्वजों के लगाए इस विशाल वटवृक्ष को हमारे परिवार की तीसरी पीढ़ी संभालने की जिम्मेदारी निभा रही हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी स्पीड को सहेजने का सिलसिला चला आ रहा है. जब यह पेड़ हमारे पूर्वजों ने लगाया था. तब से लेकर आज तक पेड़ को काटने या छांटने का काम नहीं किया, बल्कि सहेजने का काम किया है. परिवार के जिस व्यक्ति के हक में यह पेड़ होता है वह पूर्वजों के आदर और प्रकृति में आस्था को लेकर इस पेड़ को सहेजने का काम करता है. पेड़ के दायरा बढ़ जाने के कारण करीब ढाई एकड़ जमीन पर खेती भी नहीं कर पाते हैं, लेकिन पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

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धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध: बरगद के इस पेड़ के नीचे ठाकुर बाबा और हनुमान जी का मंदिर भी स्थित है. आसपास के लोगों में यह आस्था का केंद्र है. स्थानीय लोग बताते हैं कि, बरगद के पेड़ के नीचे विश्वास और सच्ची आस्था के साथ कोई भी मनोकामना मांगने पर वह जरूर पूरी होती है. यहां लोग विशाल वटवृक्ष के दर्शन करने के साथ पिकनिक मनाने भी आते हैं. धीरे-धीरे आसपास के इलाकों में बरगद का पेड़ प्रसिद्ध हो रहा है. आसपास के गांव बादशाह सरखड़ी देवल चोरी और कई गांव के लोग बरगद के पेड़ का पूजन करने और दर्शन करने के लिए रोजाना पहुंचते हैं. त्यौहार और पर्व के अवसर पर बरगद के पेड़ के नीचे आकर लोग पूजा अर्चना के साथ भंडारा भी कराते हैं.

सागर 200 साल पुराना बरगद का पेड़

सागर। जिले के पड़रई गांव में 200 साल पुराना बरगद का पेड़ है. जिसे स्थानीय ठाकुर परिवार के बुजुर्गों ने लगाया था. बरगद के पेड़ में उनकी आस्था इतनी ज्यादा थी कि, आज भी बरगद का पेड़ बरकरार है. अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है. हालात ये हैं कि, बरगद का पेड़ 2 एकड़ से ज्यादा इलाके में फैल चुका है. जिस किसान के खेत में पेड़ लगा है. वह बरगद के पेड़ के नीचे खेती भी नहीं कर पाता है, लेकिन बुजुर्गों की याद और उनके प्रकृति प्रेम को सहेजने के लिए बरगद का पेड़ किसी ने काटा नहीं है और लगातार इसका दायरा बढ़ता जा रहा है.

2 एकड़ से ज्यादा जमीन में फैला: सागर जिले के जैसीनगर विकासखंड के पड़रई गांव में यह का विशाल पेड़ आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इसका दायरा 20-25 फीट नहीं, बल्कि 2 एकड़ से ज्यादा जमीन में फैल चुका है और बरगद का पेड़ करीब 200 साल पुराना है. गांव के किसान ऋषिरज सिंह ठाकुर के खेत में यह विशाल बरगद का पेड़ मौजूद है. योगेश सिंह ठाकुर बताते हैं कि, उनके पूर्वज प्रकृति से काफी प्रेम करते थे. पौधे लगाना उनका शौक ही नहीं, एक तरह से जीवन का लक्ष्य बन गया था. पूर्वजों का प्रकृति प्रेम बरगद के विशालकाय वृक्ष के रूप में आज भी मौजूद है.

पूर्वजों का प्रकृति प्रेम: किसान योगेश सिंह ठाकुर बनाते हैं कि पूर्वजों के लगाए इस विशाल वटवृक्ष को हमारे परिवार की तीसरी पीढ़ी संभालने की जिम्मेदारी निभा रही हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी स्पीड को सहेजने का सिलसिला चला आ रहा है. जब यह पेड़ हमारे पूर्वजों ने लगाया था. तब से लेकर आज तक पेड़ को काटने या छांटने का काम नहीं किया, बल्कि सहेजने का काम किया है. परिवार के जिस व्यक्ति के हक में यह पेड़ होता है वह पूर्वजों के आदर और प्रकृति में आस्था को लेकर इस पेड़ को सहेजने का काम करता है. पेड़ के दायरा बढ़ जाने के कारण करीब ढाई एकड़ जमीन पर खेती भी नहीं कर पाते हैं, लेकिन पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

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धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध: बरगद के इस पेड़ के नीचे ठाकुर बाबा और हनुमान जी का मंदिर भी स्थित है. आसपास के लोगों में यह आस्था का केंद्र है. स्थानीय लोग बताते हैं कि, बरगद के पेड़ के नीचे विश्वास और सच्ची आस्था के साथ कोई भी मनोकामना मांगने पर वह जरूर पूरी होती है. यहां लोग विशाल वटवृक्ष के दर्शन करने के साथ पिकनिक मनाने भी आते हैं. धीरे-धीरे आसपास के इलाकों में बरगद का पेड़ प्रसिद्ध हो रहा है. आसपास के गांव बादशाह सरखड़ी देवल चोरी और कई गांव के लोग बरगद के पेड़ का पूजन करने और दर्शन करने के लिए रोजाना पहुंचते हैं. त्यौहार और पर्व के अवसर पर बरगद के पेड़ के नीचे आकर लोग पूजा अर्चना के साथ भंडारा भी कराते हैं.

Last Updated : Mar 15, 2023, 5:49 PM IST
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