सागर। सागर जिले से निकलने वाले नेशनल हाइवे-44 पर जिला मुख्यालय से करीब 65 किमी और नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 75 किमी दूर देवरी नगर में ये मंदिर स्थित है. कहा जाता है कि प्राचीन काल में मणिचूल पर्वत की प्राकृतिक छठा और तपस्या के लिए अनुकूल माहौल देखकर काफी ऋषि और संत परिवार सहित बस गए थे और अपने यज्ञकर्म के साथ पूजा पाठ में तल्लीन रहते थे. इसी बीच वहां पर मणि और मल्ल नाम के दो राक्षस पहुंच गए और संतों को तरह-तरह की यातनाएं देकर प्रताड़ित करने लगे. यहां तक कि ऋषि मुनि के गले में रस्सी बांधकर उन्हें कुएं में लटका देते थे और उनके यज्ञ हवन को नष्ट करके तपस्या को बाधित करते थे. Sagar Agnikund Mela
राक्षसों को खत्म करने आए भगवान विष्णु : आखिरकार ऋषि मुनि देवराज इंद्र की शरण में पहुंचे और दोनों राक्षसों के आतंक के बारे में बताया. देवराज इंद्र उनकी पीड़ा सुनकर काफी दुखी हुए, लेकिन लाचार नजर आए. उन्होंने बताया कि ये दोनों राक्षस को ब्रह्मा से वरदान प्राप्त हैं. इसलिए मैं उनका वध नहीं कर सकता. तब देवराज इंद्र ऋषि मुनियों को लेकर विष्णु भगवान की शरण में पहुंचे और उन्हें सारा वृतांत सुनाया. तब भगवान विष्णु ने राजसी वेष धारण किया और श्री देव के रूप में दोनों के साथ युद्ध कर उनका वध किया. लेकिन दोनों राजसी वेष में प्रभु को पहचान गए और वर मांगा कि हम दोनों राक्षसों का नाम आपसे जुड़ना चाहिए. दोनों राक्षसों के वरदान की पूर्ति के लिए राजसी वस्त्र में घोडे़ पर सवार होकर गंगा पार्वती के एक स्वरूप में म्हालसा आई के रूप में विराजे और भक्तों का कल्याण करने लगे. महाराष्ट्र प्रांत में म्हालसा आई के रूप में लोग कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं. Sagar Agnikund Mela
दहकते अंगारों पर निकलने की प्रथा : देवरी में स्थित श्री देव खंडेराव मंदिर में हर साल अगहन शुक्ल में चम्पा छठ से पूर्णिमा तक मेले का आयोजन होता है. हर साल दिसंबर में ये मेला आयोजित होता है. मंदिर की प्रसिद्धि इतना ज्यादा हो चुकी है कि मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों से काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. जहां तक दहकते अंगारों के अग्निकुंड से निकलने की प्रथा का सवाल है तो इसके बारे में कहा जाता है कि ये प्रथा मंदिर निर्माण से जुडी हुई है. यहां राजा यशवंत राव का राज था और उनके युवराज अज्ञात बीमारी से ग्रसित हो गए थे और मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए थे. तब राजा यशवंत राव के उनके राजगुरु ने श्री देव खंडेराव से प्रार्थना करने को कहा. राजगुरु के निर्देश पर राजा यशवंतराव ने श्री देव खंडेराव से प्रार्थना करते हुए कहा कि मेरा इकलौता पुत्र आपका दिया है और आप इसकी रक्षा करें. Sagar Agnikund Mela
सपने में दिए दर्शन : प्रार्थना के बाद उसी रात राजा यशवंत राव को श्री देव खंडेराव ने सपने में दर्शन दिए और कि राजन मेरे मंदिर में जाकर हल्दी के उलटे हाथ लगाकर प्रार्थना करो. तब राजा ने सपने में बताई विधि के अनुसार पूजा अर्चना की और श्री देव खंडेराव से प्रार्थना की कि मेरे बेटा ठीक हो जाए. इसके साथ ही कहा कि मैं एक नाव के आकार के गड्ढे में करीब एक मन लकडी जलाकर विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद ठीक 12 बजे नंगे पैर दहकते अंगारों पर चलूंगा. श्री देव खंडेराव मंदिर में श्री देव ने उनकी प्रार्थना सुनी व राजा के पुत्र को ठीक किया. तब से ये दहकते अंगारों पर निकलने की प्रथा जारी है. Sagar Agnikund Mela
मंदिर की विशेषता : श्री देव खंडेराव मंदिर अपने आपमें अद्भुत है. मंदिर के निर्माण की विशेषता है कि दक्षिण तरफ के ताक पर सूर्य की रोशनी चंपा छठ यानि अगहन सुदी षष्टी को ठीक 12 बजे पिण्ड पर पड़ती है. जिसके दर्शन अपने आप में अलौकिक आनंद देते हैं. कहा जाता है कि मंदिर का वास्तु और निर्माण विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया था और इसमें ये खास विशेषता रखी गयी थी. जहां तक मंदिर की पूजा अर्चना और परम्परा के बारे में बात करें, तो 1850 से स्थानीय वैद्य परिवार के पास मंदिर की व्यवस्था की जिम्मेदारी है.
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मेले की परंपरा 400 साल पुरानी: मंदिर प्रबंधक नारायण मल्हार वैद्य देव प्रधान के पुजारी हैं. पुजारी का कहना है कि मेले की परंपरा 400 साल पुरानी है और लोगों की मनोकामना पूर्ण होती हैं. तब श्रद्धालु अंगारों में से निकलते हैं. इस वर्ष मेले के पहले दिन चंपा छठ को 135 श्रद्धालु अंगारों में से निकले, जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. पुजारी बताते हैं कि मनौती मांगने के लिए श्री देव मंदिर में हल्दी के उल्टे हाथ लगाकर मनोकामना कही जाती है. कार्य सिद्ध होने पर आकर हल्दी का सीधा हाथ लगाना होता है और फिर अग्निकुंड के दहकते अंगारों से निकलना होता है. Sagar Agnikund Mela