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गांव की जमीन उगल रही रंग-बिरंगे पत्थर, 200 साल पुराने बताए जा रहे पत्थर, कीमत 100 से 10 हजार रुपए तक

सागर के ईश्वर पुर गांव की जमीन रंग-बिरंगे पत्तर उगल रही है. इसके पीछे आखिर क्या कारण है, यह जानने के लिए ईटीवी भारत की रिपोर्ट पढ़ें.

colorful stones
रंग-बिरंगे पत्थर
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Published : Jul 23, 2021, 6:11 PM IST

सागर। जिले के देवरी विकासखंड के ग्राम ईश्वर पुर में एक खेत की जमीन खूबसूरत बहुरंगी पत्थर उगल रही है. इन रंग बिरंगे पत्थरों की कीमत 100 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए तक बताई जा रही है. इन परिस्थितियों में गांव के लोग काम-धंधा छोड़कर दिनभर पत्थरों की तलाश में जुटे रहते हैं. जानकारी के बाद पुरातत्व विभाग की टीम ने गांव और आसपास के इलाके का दौरा किया. जिसमें यह बात सामने आई है कि ये पत्थर करीब 400 साल पुराने हैं, जिन्हें गोंड राजाओं के शासनकाल में बंजारे बनाया करते थे. इस खास रिपोर्ट में जानें, रंग-बिरंगे पत्थरों का इतिहास...

200 साल पुराने रंग-बिरंगे पत्थर

कहां मिल रहे है रंग-बिरंगे पत्थर

सागर जिले के देवरी विकासखंड के ग्राम ईश्वरपुर में करीब 14 एकड़ पट्टे की जमीन से रंग-बिरंगे बहुमूल्य गोलाकार पत्थर निकल रहे हैं. इन पत्थरों को हासिल करने के लिए लोग सुबह से शाम तक कामकाज छोड़कर खुदाई में जुटे रहते हैं. ईश्वरपुर गांव से लगे रतन सिंह ठाकुर के खेत में पिछले कुछ महीनों से पत्थरों के निकलने का सिलसिला जारी है.

जिन लोगों को ये पत्थर हासिल हुए हैं, उन्होंने जबलपुर में जाकर जेम्स और ज्वेलर्स का काम करने वालों को दिखाया. तो उन्होंने पत्थरों के आधार पर कीमत तय की. उसी के बाद से जैसे-जैसे गांव के आसपास के लोगों को पता चला तो उन्होंने भी इलाके की खुदाई करना शुरू कर दिया.

100 से लेकर 10 हजार रुपए तक कीमत

ग्रामीणों ने बताया कि जबलपुर के ज्वेलर्स छोटे गोल पत्थर को 100 रुपए में खरीद लेते हैं, तो वहीं बड़े आकार के पत्थर 2 से 10 हजार रुपए तक में बिक जाते हैं. अब तो कुछ व्यापारी गांव में आकर ही रंग-बिरंगे पत्थर लोगों से खरीद रहे हैं. जब से गांव में व्यापारियों का आना शुरू हुआ है, तब से लोग सब काम धंधा छोड़कर जमीन की खुदाई कर पत्थर तलाश रहे हैं.

पुरातत्व विभाग की जांच रिपोर्ट में खुलासा

सागर के ईश्वर पुर गांव के सरकारी पट्टे की जमीन से खुदाई में बहुरंगी चमकीले पत्थर निकल रहे हैं. जिनकी तलाश में हर रोज ग्रामीण अपना काम धंधा छोड़ जुट जाते हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग सागर की टीम ने जांच के बाद इन पत्थरों का इतिहास बताया. जांच में पाया गया कि ये बहुरंगी पत्थर करीब 400 साल पुराने हैं, जो जमीन की ऊपरी सतह में थोड़ी सी खुदाई करने पर ही मिल जाते हैं.

सावन माह में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक नहीं कर पाएंगे भक्त, मंदिर प्रबंधन समिति ने लिया निर्णय

टीम के प्रमुख राहुल तिवारी ने बताया, '1700 में इस इलाके में गोंड वंश के राजाओं का साम्राज्य रहा है, यहां लगातार बंजारे, नट और अस्थायी रूप से एक जगह पर गुजारा करने वाले लोग आते रहे हैं. इन बंजारा लोगों द्वारा ही गोलाकार आकृति के रंग बिरंगे पत्थरों का निर्माण किया गया है. यहां की मिट्टी में रंग-बिरंगे कच्चे पत्थर भी मिलते हैं, जो बहुमूल्य नहीं कहे जा सकते हैं. वह पत्थरों से माला और जेवरात बनाकर पहनते थे. ग्राम ईश्वर पुर, मढ़खेरा, बारहा, रानीताल का प्राचीन इतिहास रहा है. यहां मुगलकाल में भी कई मंदिरों को तोड़ा गया था. सन् 1700 के आसपास भी गोंड वंश के शासनकाल में बंजारे यहां रहा करते थे'.

सागर। जिले के देवरी विकासखंड के ग्राम ईश्वर पुर में एक खेत की जमीन खूबसूरत बहुरंगी पत्थर उगल रही है. इन रंग बिरंगे पत्थरों की कीमत 100 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए तक बताई जा रही है. इन परिस्थितियों में गांव के लोग काम-धंधा छोड़कर दिनभर पत्थरों की तलाश में जुटे रहते हैं. जानकारी के बाद पुरातत्व विभाग की टीम ने गांव और आसपास के इलाके का दौरा किया. जिसमें यह बात सामने आई है कि ये पत्थर करीब 400 साल पुराने हैं, जिन्हें गोंड राजाओं के शासनकाल में बंजारे बनाया करते थे. इस खास रिपोर्ट में जानें, रंग-बिरंगे पत्थरों का इतिहास...

200 साल पुराने रंग-बिरंगे पत्थर

कहां मिल रहे है रंग-बिरंगे पत्थर

सागर जिले के देवरी विकासखंड के ग्राम ईश्वरपुर में करीब 14 एकड़ पट्टे की जमीन से रंग-बिरंगे बहुमूल्य गोलाकार पत्थर निकल रहे हैं. इन पत्थरों को हासिल करने के लिए लोग सुबह से शाम तक कामकाज छोड़कर खुदाई में जुटे रहते हैं. ईश्वरपुर गांव से लगे रतन सिंह ठाकुर के खेत में पिछले कुछ महीनों से पत्थरों के निकलने का सिलसिला जारी है.

जिन लोगों को ये पत्थर हासिल हुए हैं, उन्होंने जबलपुर में जाकर जेम्स और ज्वेलर्स का काम करने वालों को दिखाया. तो उन्होंने पत्थरों के आधार पर कीमत तय की. उसी के बाद से जैसे-जैसे गांव के आसपास के लोगों को पता चला तो उन्होंने भी इलाके की खुदाई करना शुरू कर दिया.

100 से लेकर 10 हजार रुपए तक कीमत

ग्रामीणों ने बताया कि जबलपुर के ज्वेलर्स छोटे गोल पत्थर को 100 रुपए में खरीद लेते हैं, तो वहीं बड़े आकार के पत्थर 2 से 10 हजार रुपए तक में बिक जाते हैं. अब तो कुछ व्यापारी गांव में आकर ही रंग-बिरंगे पत्थर लोगों से खरीद रहे हैं. जब से गांव में व्यापारियों का आना शुरू हुआ है, तब से लोग सब काम धंधा छोड़कर जमीन की खुदाई कर पत्थर तलाश रहे हैं.

पुरातत्व विभाग की जांच रिपोर्ट में खुलासा

सागर के ईश्वर पुर गांव के सरकारी पट्टे की जमीन से खुदाई में बहुरंगी चमकीले पत्थर निकल रहे हैं. जिनकी तलाश में हर रोज ग्रामीण अपना काम धंधा छोड़ जुट जाते हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग सागर की टीम ने जांच के बाद इन पत्थरों का इतिहास बताया. जांच में पाया गया कि ये बहुरंगी पत्थर करीब 400 साल पुराने हैं, जो जमीन की ऊपरी सतह में थोड़ी सी खुदाई करने पर ही मिल जाते हैं.

सावन माह में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक नहीं कर पाएंगे भक्त, मंदिर प्रबंधन समिति ने लिया निर्णय

टीम के प्रमुख राहुल तिवारी ने बताया, '1700 में इस इलाके में गोंड वंश के राजाओं का साम्राज्य रहा है, यहां लगातार बंजारे, नट और अस्थायी रूप से एक जगह पर गुजारा करने वाले लोग आते रहे हैं. इन बंजारा लोगों द्वारा ही गोलाकार आकृति के रंग बिरंगे पत्थरों का निर्माण किया गया है. यहां की मिट्टी में रंग-बिरंगे कच्चे पत्थर भी मिलते हैं, जो बहुमूल्य नहीं कहे जा सकते हैं. वह पत्थरों से माला और जेवरात बनाकर पहनते थे. ग्राम ईश्वर पुर, मढ़खेरा, बारहा, रानीताल का प्राचीन इतिहास रहा है. यहां मुगलकाल में भी कई मंदिरों को तोड़ा गया था. सन् 1700 के आसपास भी गोंड वंश के शासनकाल में बंजारे यहां रहा करते थे'.

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