सागर। बुंदेलखंड हमेशा से वीर सपूतों की जन्म स्थली रहा है. बुंदेलखंड के योद्धाओं की वीरगाथा इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है. ऐसे ही एक वीर योद्धा थे राजा बखत बली शाह. स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले छत्रसाल वंशज के वारिस बखत बली शाह ने 1857 में अंग्रेजों का डटकर मुकबला किया और अंतिम सांस तक लड़ते रहे. शाहगढ़ के लोग आज भी उनकी वीरता के किस्से सुनाते हैं.
पिता अर्जुन सिंह जूदेव के बाद शाहगढ़ रियासत के राजकुमार बने बखत बली शाह को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का महायोद्धा कहा जाता है. उन्होंने न सिर्फ अपने राज्य की रक्षा की, बल्कि झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 1858 में ग्वालियर जाते वक्त अंग्रेजों ने उन्हें बंधक बनाकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया. इसके बाद 19 सितंबर 1872 को उन्होंने वृंदावन में अंतिम सांस ली.
एक वक्त जिस शाहगढ़ किले की अंग्रेजों ने भी तारीफ की थी, वो आज रखरखाव के अभाव में जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो चुका है. किले में ऐसी सुरंगे हैं, जो सीधा झांसी से जुड़ी हैं. कहा जाता है कि आपातकाल के वक्त राजा-महाराजा इसी रास्ते के जरिए बाहर जाया करते थे, लेकिन धन के लालच में स्थानीय लोग किले में लगातार खुदाई करते आए हैं, जिससे इसका अस्तित्व आज खतरे में है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि देश के लिए अहम योगदान देने के बाद भी बखत बली के नाम पर सिर्फ चौराहा बना है. सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिससे आने वाली पीढ़ियां उन्हें जान और समझ सकें.
बुंदेलखंड के वीर योद्धा उन लोगों में से थे, जिन्हें अपनी मातृभूमि से बेहद प्यार था. उन्होंने अंखड भारत का सपना देखा और अंग्रेजों से लोहा लेकर खुद के अलावा दूसरे राज्यों की मदद भी की.