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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 'महायोद्धा' थे बखत बली शाह, लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों से लिया था लोहा

स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले छत्रसाल वंशज के वारिस बखत बली शाह ने 1857 में अंग्रेजों का डटकर मुकबला किया.

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Published : Aug 14, 2019, 4:47 PM IST

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 'महायोद्धा' थे बखत बली शाह

सागर। बुंदेलखंड हमेशा से वीर सपूतों की जन्म स्थली रहा है. बुंदेलखंड के योद्धाओं की वीरगाथा इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है. ऐसे ही एक वीर योद्धा थे राजा बखत बली शाह. स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले छत्रसाल वंशज के वारिस बखत बली शाह ने 1857 में अंग्रेजों का डटकर मुकबला किया और अंतिम सांस तक लड़ते रहे. शाहगढ़ के लोग आज भी उनकी वीरता के किस्से सुनाते हैं.

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 'महायोद्धा' थे बखत बली शाह


पिता अर्जुन सिंह जूदेव के बाद शाहगढ़ रियासत के राजकुमार बने बखत बली शाह को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का महायोद्धा कहा जाता है. उन्होंने न सिर्फ अपने राज्य की रक्षा की, बल्कि झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 1858 में ग्वालियर जाते वक्त अंग्रेजों ने उन्हें बंधक बनाकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया. इसके बाद 19 सितंबर 1872 को उन्होंने वृंदावन में अंतिम सांस ली.

एक वक्त जिस शाहगढ़ किले की अंग्रेजों ने भी तारीफ की थी, वो आज रखरखाव के अभाव में जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो चुका है. किले में ऐसी सुरंगे हैं, जो सीधा झांसी से जुड़ी हैं. कहा जाता है कि आपातकाल के वक्त राजा-महाराजा इसी रास्ते के जरिए बाहर जाया करते थे, लेकिन धन के लालच में स्थानीय लोग किले में लगातार खुदाई करते आए हैं, जिससे इसका अस्तित्व आज खतरे में है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि देश के लिए अहम योगदान देने के बाद भी बखत बली के नाम पर सिर्फ चौराहा बना है. सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिससे आने वाली पीढ़ियां उन्हें जान और समझ सकें.

बुंदेलखंड के वीर योद्धा उन लोगों में से थे, जिन्हें अपनी मातृभूमि से बेहद प्यार था. उन्होंने अंखड भारत का सपना देखा और अंग्रेजों से लोहा लेकर खुद के अलावा दूसरे राज्यों की मदद भी की.

सागर। बुंदेलखंड हमेशा से वीर सपूतों की जन्म स्थली रहा है. बुंदेलखंड के योद्धाओं की वीरगाथा इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है. ऐसे ही एक वीर योद्धा थे राजा बखत बली शाह. स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले छत्रसाल वंशज के वारिस बखत बली शाह ने 1857 में अंग्रेजों का डटकर मुकबला किया और अंतिम सांस तक लड़ते रहे. शाहगढ़ के लोग आज भी उनकी वीरता के किस्से सुनाते हैं.

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 'महायोद्धा' थे बखत बली शाह


पिता अर्जुन सिंह जूदेव के बाद शाहगढ़ रियासत के राजकुमार बने बखत बली शाह को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का महायोद्धा कहा जाता है. उन्होंने न सिर्फ अपने राज्य की रक्षा की, बल्कि झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 1858 में ग्वालियर जाते वक्त अंग्रेजों ने उन्हें बंधक बनाकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया. इसके बाद 19 सितंबर 1872 को उन्होंने वृंदावन में अंतिम सांस ली.

एक वक्त जिस शाहगढ़ किले की अंग्रेजों ने भी तारीफ की थी, वो आज रखरखाव के अभाव में जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो चुका है. किले में ऐसी सुरंगे हैं, जो सीधा झांसी से जुड़ी हैं. कहा जाता है कि आपातकाल के वक्त राजा-महाराजा इसी रास्ते के जरिए बाहर जाया करते थे, लेकिन धन के लालच में स्थानीय लोग किले में लगातार खुदाई करते आए हैं, जिससे इसका अस्तित्व आज खतरे में है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि देश के लिए अहम योगदान देने के बाद भी बखत बली के नाम पर सिर्फ चौराहा बना है. सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिससे आने वाली पीढ़ियां उन्हें जान और समझ सकें.

बुंदेलखंड के वीर योद्धा उन लोगों में से थे, जिन्हें अपनी मातृभूमि से बेहद प्यार था. उन्होंने अंखड भारत का सपना देखा और अंग्रेजों से लोहा लेकर खुद के अलावा दूसरे राज्यों की मदद भी की.

Intro:बुंदेलखंड के वीर योद्धा थे बखत बली शाह


प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बखत बली शाह की रही थी अहम भूमिका

महारानी लक्ष्मी बाई के साथ अंग्रेजों को बखत बली ने दी थी कड़ी चुनौती

बखत बली शाह ने भी देखा था अखंड भारत का सपना



सागर। बुंदेलखंड हमेशा से वीर सपूतों की जन्म स्थली रही है जहां के योद्धाओं की वीर गाथा इतिहास में अमर है ऐसे ही एक वीर योद्धा थे सागर जिले की शाहगढ़ तहसील के राजा बखत बली शाह शाहगढ़ का बुंदेलखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है और यह कई बुंदेला शासकों की कर्म स्थली रहा है सागर जिले के उत्तर-पूर्व में सागर कानपुर मार्ग पर करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह कस्बा कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है वैसे तो शाहगढ़ का इतिहास काफी पुराना है 15वीं शताब्दी यह गौड़ शासकों के अधीन था तब यह गढ़ करीब 750 गांव का हुआ करता था गोल शासकों के बाद यह छत्रसाल बुंदेला राजा के अधिकार में आया जिसने यह एक किलेदार तैनात किया छत्रसाल इसे अपने पुत्र हिरदेशाह के नाम वसीयत कर दिया था हृदेशशाह की 1743 में मृत्यु हो गई हैदर शाह की मौत के बाद उसके कनिष्ठ पुत्र पृथ्वीराज ने बाजीराव पेशवा की सहायता से इसे अपने अधिकार में ले लिया कहा जाता है कि सन 1759 में जब अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया था तो आक्रांता ओं के विरुद्ध मराठा ने कड़ा संघर्ष किया उनके इस संघर्ष में सहायता के लिए शाहगढ़ से 5000 सैनिकों की एक सेना भेजी गई थी सन 1835 में यहां अंग्रेज स्लीमैन आया था जिसने अपनी पुस्तक रैंबल्स एंड डिक्लेक्शन मैं शाहगढ़ और उसके शासकों के बारे में विस्तार से लिखा है





Body:लेकिन आज शाहगढ़ की पहचान बखत बली शाह के तौर पर है स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले बखत बली शाह अर्जुन सिंह के भतीजे थे जिनके पास 150 घुड़सवार और करीब 800 पैदल सैनिकों की सेना थी वह सन 18 सो 57 की क्रांति में शामिल हुए और इस युद्ध में अहम भूमिका निभाते हुए महारानी लक्ष्मीबाई का सहयोग किया उन्होंने चरखारी पर आक्रमण के समय तात्या टोपे की सहायता की थी बाद में नाना साहेब द्वारा ग्वालियर में स्थापित शासन में उन्हें भी सम्मिलित होने को आमंत्रित किया गया था सितंबर 1858 मैं बखत बली को ग्वालियर जाते वक्त अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया उन्हें राज बंदी के रूप में लाहौर भेज दिया गया जहां उन्हें मारी दरवाजा में हाकिम राय की हवेली नामक स्थान पर रखा गया भगत बली के राज्य को अंग्रेजों ने जप्त कर लिया वह राज्य कितना विशाल था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके कई भाग अब सागर के अलावा दमोह जिले और झांसी जिलों में शामिल है 19 सितंबर 18 सो 73 को राजा बखत बली की मृत्यु वृंदावन में हो गई अंग्रेजों ने शाहगढ़ को इसी नाम के पकने का मुख्यालय बनाया था जिसमें करीब 500 वर्ग किलोमीटर में करीब सवा सौ गांव थे शाहगढ़ में कुछ ऐतिहासिक अवशेष अभी भी है हालांकि इतिहास के स्वर्णिम बनने की साक्षी रहे शाहगढ़ के किले की देखरेख नहीं होने से यह जर्जर और नेस्तनाबूद होने के कगार पर है यह खजाने की तलाश में लोगों ने खुदाई कर इसे काफी नुकसान पहुंचाया है वह इसके आसपास बड़े स्तर पर अतिक्रमण ने इसके अस्तित्व पर खतरा बना दिया है

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