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EC की निष्पक्ष भूमिका पर सवाल, 72 साल में नहीं बन पाया सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून, अब आएगा सुप्रीम फैसला

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में केंद्रीय चुनाव आयोग हो या फिर राज्य चुनाव आयोग, इनकी निष्पक्षता और तटस्थता पर हमेशा सवाल खड़े होते रहते हैं. इनके सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी आए दिन सवालिया निशान (Questions on impartial role of EC) खड़े होते हैं. लेकिन संविधान लागू हुए 72 साल बीत जाने के बाद भी आज तक संसद ने केंद्रीय और राज्य निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया और योग्यता तक तय नहीं की है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चार जनहित याचिका पेश की गई थीं. इन चारों में याचिका को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 24 नवंबर 2022 तक सुनवाई की और अंत में फैसला सुरक्षित रखा है.

appointment of members in EC in SC
EC 72 साल में नहीं बन पाया सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून
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Published : Dec 2, 2022, 1:41 PM IST

Updated : Dec 2, 2022, 2:16 PM IST

सागर। संविधान के अनुच्छेद 324 में केंद्रीय और राज्य निर्वाचन आयोग के गठन अधिकार और सदस्यों की नियुक्ति को लेकर प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्यकाल होगा. हालांकि राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्धारित कर सकते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त की सेवा की शर्तों में उनकी नियुक्ति के बाद उनके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा. किसी अन्य चुनाव आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना पद से नहीं हटाया जा सकता है.

चुनाव आयोग को असीमित अधिकार : याचिकाकर्ता के वकील वरुण सिंह ठाकुर कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत केंद्रीय और राज्य चुनाव आयोग को असीमित अधिकार मिले हैं, लेकिन इन पर नियंत्रण का अधिकार किसी भी संस्था के पास नहीं हैं. संसद में भी इनके सदस्यों को नियंत्रित करने के लिए कोई नियम प्रक्रिया तय नहीं की है. यहां तक कि जब निर्वाचन आयोग चुनाव कराता है तो उसके पास असीमित शक्तियां होती हैं. ये लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुकाबले चुनाव के दौरान सबसे शक्तिशाली होता है और उनके अधिकारों में हस्तक्षेप भी नहीं होता है. संविधान निर्माताओं ने तमाम संस्थाओं को अधिकार देते समय उनके कर्तव्य भी निर्धारित किए और उनके अधिकारों का दुरुपयोग ना हो, इसलिए नियंत्रण की भी व्यवस्था की. संविधान में संसद को चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून बनाने कहा. लेकिन 72 साल में ऐसा नहीं हो सका और आज केंद्रीय चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और तटस्थता को लेकर सबसे ज्यादा बदनाम है.

EC 72 साल में नहीं बन पाया सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून

कोई निष्पक्ष प्रक्रिया तय नहीं की गई : याचिकाकर्ता जया ठाकुर का कहना है कि निष्पक्ष चुनाव हो सकें, इसलिए संविधान में चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की गई थी. संविधान सभा ने संसद पर जिम्मेदारी छोड़ दी थी कि चुनाव आयोग की नियुक्ति के नियम और प्रक्रिया के लिए कानून बनाएं. लेकिन संविधान के अंगीकार होने से 2022 तक कोई निष्पक्ष प्रक्रिया तय नहीं की गई है. आप पिछले कुछ चुनावों से देख रहे होंगे कि जब भी चुनाव आते हैं तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर समस्या खड़ी हो जाती है और चुनाव आयोग गंभीर आरोपों में घिर जाता है. चाहे वह ईडी को लेकर हो या किसी अन्य कारण से हो. इससे साफ है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर रहे हैं. इसके लिए जरूरी है कि इनकी नियुक्तियों को लेकर नियम बनाए जाएं. इसी बात को लेकर मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि चुनाव आयोग की नियुक्ति के नियम प्रक्रिया और योग्यता तय की जाए. तब चुनाव आयोग का एक पद खाली भी था. जैसे ही मैंने याचिका दायर की तो संविधान पीठ ने उसे गंभीरता से लिया. वहीं चुनाव आयोग के रिक्त पद को लेकर आनन-फानन में सरकार ने पद भर दिया. पिछले हफ्ते याचिका पर सुनवाई के बाद संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित कर लिया है. हमें आशा है कि इस मामले में कोर्ट के आदेश से आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के नियम बनेंगे.

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EC 72 साल में नहीं बन पाया सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून

ये की गई है व्यवस्था : याचिकाकर्ता के वकील वरुण ठाकुर कहते हैं कि देश जब आजाद हुआ तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार किया गया. जनता का, जनता के लिए जनता द्वारा शासन व्यवस्था के तहत दिया गया. जब संविधान सभा संविधान का निर्माण कर रही थी, तो परिकल्पना की थी कि निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग के गठन और नियुक्ति के लिए अलग प्रक्रिया अपनाई जाए. संविधान में केंद्रीय चुनाव और राज्य चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था अनुच्छेद 324 के तहत की गई और कहा गया है कि जब भी चुनाव होंगे, तो सारी शक्तियां केंद्रीय चुनाव आयोग में महत्व होंगी. चुनावी प्रक्रिया में केंद्रीय चुनाव आयोग के अलावा सुप्रीम कोर्ट भी दखल नहीं दे सकेगा. इन सारी शक्तियों को देते हुए संविधान में ये भी कहा गया था कि आयोग की नियुक्ति और योग्यता के लिए संसद में कानून बनाया जाए. इन सब बातों को लेकर डॉ जया ठाकुर ने जनहित याचिका दायर की है.

EC ने शुरू की चुनावों की तैयारियां, मतदाता सूची में त्रुटि सुधार शुरू

आनन-फानन में की सदस्य की नियुक्ति : याचिका पर जब सुनवाई चल रही थी, तभी चुनाव आयोग के एक सदस्य की नियुक्ति की गई. जो पद मई 2022 से खाली था. जैसे ही सुनवाई शुरू हुई तो ये नियुक्ति आनन-फानन में कर दी गई. जब सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचा गया, तो सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से नियुक्ति की फाइल तलब कर ली. इसमें सामने आया कि एक ही दिन में कानून मंत्रालय ने प्रस्ताव बनाया और एक ही दिन में पीएमओ ने स्वीकृति दे दी. यहां तक कि सीनियर आईएएस जो सचिव पद पर कार्यरत थे, उनका भी वीआरएस एक ही दिन में स्वीकृत हो गया, जो काफी चौंकने वाला था. संवैधानिक पीठ के पांच न्यायाधीश केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी,अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश राय और सी टी रवि कुमार ने 24 नवंबर 2022 तक सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है.

सागर। संविधान के अनुच्छेद 324 में केंद्रीय और राज्य निर्वाचन आयोग के गठन अधिकार और सदस्यों की नियुक्ति को लेकर प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्यकाल होगा. हालांकि राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्धारित कर सकते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त की सेवा की शर्तों में उनकी नियुक्ति के बाद उनके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा. किसी अन्य चुनाव आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना पद से नहीं हटाया जा सकता है.

चुनाव आयोग को असीमित अधिकार : याचिकाकर्ता के वकील वरुण सिंह ठाकुर कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत केंद्रीय और राज्य चुनाव आयोग को असीमित अधिकार मिले हैं, लेकिन इन पर नियंत्रण का अधिकार किसी भी संस्था के पास नहीं हैं. संसद में भी इनके सदस्यों को नियंत्रित करने के लिए कोई नियम प्रक्रिया तय नहीं की है. यहां तक कि जब निर्वाचन आयोग चुनाव कराता है तो उसके पास असीमित शक्तियां होती हैं. ये लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुकाबले चुनाव के दौरान सबसे शक्तिशाली होता है और उनके अधिकारों में हस्तक्षेप भी नहीं होता है. संविधान निर्माताओं ने तमाम संस्थाओं को अधिकार देते समय उनके कर्तव्य भी निर्धारित किए और उनके अधिकारों का दुरुपयोग ना हो, इसलिए नियंत्रण की भी व्यवस्था की. संविधान में संसद को चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून बनाने कहा. लेकिन 72 साल में ऐसा नहीं हो सका और आज केंद्रीय चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और तटस्थता को लेकर सबसे ज्यादा बदनाम है.

EC 72 साल में नहीं बन पाया सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून

कोई निष्पक्ष प्रक्रिया तय नहीं की गई : याचिकाकर्ता जया ठाकुर का कहना है कि निष्पक्ष चुनाव हो सकें, इसलिए संविधान में चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था की गई थी. संविधान सभा ने संसद पर जिम्मेदारी छोड़ दी थी कि चुनाव आयोग की नियुक्ति के नियम और प्रक्रिया के लिए कानून बनाएं. लेकिन संविधान के अंगीकार होने से 2022 तक कोई निष्पक्ष प्रक्रिया तय नहीं की गई है. आप पिछले कुछ चुनावों से देख रहे होंगे कि जब भी चुनाव आते हैं तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर समस्या खड़ी हो जाती है और चुनाव आयोग गंभीर आरोपों में घिर जाता है. चाहे वह ईडी को लेकर हो या किसी अन्य कारण से हो. इससे साफ है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर रहे हैं. इसके लिए जरूरी है कि इनकी नियुक्तियों को लेकर नियम बनाए जाएं. इसी बात को लेकर मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि चुनाव आयोग की नियुक्ति के नियम प्रक्रिया और योग्यता तय की जाए. तब चुनाव आयोग का एक पद खाली भी था. जैसे ही मैंने याचिका दायर की तो संविधान पीठ ने उसे गंभीरता से लिया. वहीं चुनाव आयोग के रिक्त पद को लेकर आनन-फानन में सरकार ने पद भर दिया. पिछले हफ्ते याचिका पर सुनवाई के बाद संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित कर लिया है. हमें आशा है कि इस मामले में कोर्ट के आदेश से आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के नियम बनेंगे.

appointment of members in EC in SC
EC 72 साल में नहीं बन पाया सदस्यों की नियुक्ति के लिए कानून

ये की गई है व्यवस्था : याचिकाकर्ता के वकील वरुण ठाकुर कहते हैं कि देश जब आजाद हुआ तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार किया गया. जनता का, जनता के लिए जनता द्वारा शासन व्यवस्था के तहत दिया गया. जब संविधान सभा संविधान का निर्माण कर रही थी, तो परिकल्पना की थी कि निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग के गठन और नियुक्ति के लिए अलग प्रक्रिया अपनाई जाए. संविधान में केंद्रीय चुनाव और राज्य चुनाव आयोग के गठन की व्यवस्था अनुच्छेद 324 के तहत की गई और कहा गया है कि जब भी चुनाव होंगे, तो सारी शक्तियां केंद्रीय चुनाव आयोग में महत्व होंगी. चुनावी प्रक्रिया में केंद्रीय चुनाव आयोग के अलावा सुप्रीम कोर्ट भी दखल नहीं दे सकेगा. इन सारी शक्तियों को देते हुए संविधान में ये भी कहा गया था कि आयोग की नियुक्ति और योग्यता के लिए संसद में कानून बनाया जाए. इन सब बातों को लेकर डॉ जया ठाकुर ने जनहित याचिका दायर की है.

EC ने शुरू की चुनावों की तैयारियां, मतदाता सूची में त्रुटि सुधार शुरू

आनन-फानन में की सदस्य की नियुक्ति : याचिका पर जब सुनवाई चल रही थी, तभी चुनाव आयोग के एक सदस्य की नियुक्ति की गई. जो पद मई 2022 से खाली था. जैसे ही सुनवाई शुरू हुई तो ये नियुक्ति आनन-फानन में कर दी गई. जब सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचा गया, तो सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से नियुक्ति की फाइल तलब कर ली. इसमें सामने आया कि एक ही दिन में कानून मंत्रालय ने प्रस्ताव बनाया और एक ही दिन में पीएमओ ने स्वीकृति दे दी. यहां तक कि सीनियर आईएएस जो सचिव पद पर कार्यरत थे, उनका भी वीआरएस एक ही दिन में स्वीकृत हो गया, जो काफी चौंकने वाला था. संवैधानिक पीठ के पांच न्यायाधीश केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी,अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश राय और सी टी रवि कुमार ने 24 नवंबर 2022 तक सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है.

Last Updated : Dec 2, 2022, 2:16 PM IST
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