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ETV भारत से बोले सुरखी के मतदाता, 'विधानसभा वही पहुंचेगा जो विकास करेगा'

प्रदेश में होने वाले उपचुनावों में सागर जिले की सुरखी विधानसभा सबसे 'HOT' सीट बन गई है. पारुल साहू की कांग्रेस में एंट्री के बाद बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही है. उपचुनाव के दोनों प्रमुख उम्मीदवार दल बदलकर वोटर्स का दिल जीतने की कवायद कर रहे हैं.

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भैय्या जी का अड्डा
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Published : Oct 19, 2020, 9:01 PM IST

Updated : Oct 20, 2020, 3:28 AM IST

सागर। मध्यप्रदेश में उपचुनावों के बीच सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहने वाली सीट सागर जिले की सुरखी विधानसभा बन गई है. पारुल साहू के अचानक बीजेपी से कांग्रेस में आने के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं. 7 साल पहले भी दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे, लेकिन तब गोविंद सिंह पंजे के साथ थे, तो पारुल साहू फूल के साथ थीं. जगह वही है, वोटर भी वही हैं और नेता भी वही, लेकिन पार्टियां बदल गई हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम सुरखी पहुंची और लोगों से बात की. बातचीत के दौरान लोग सुरखी उपचुनाव में चुनावी मुद्दों के बारे में ईटीवी भारत से अपने दिल की बात कही है.

मतदाताओं के 'दिल की बात'

पानी की समस्या अहम मुद्दा

सुरखी विधानसभा क्षेत्र में लोगों से चर्चा करते हुए ये बात साफ तौर पर सामने आई कि क्षेत्र में प्रमुख समस्याओं में एक जल संकट है. सुरखी विधानसभा क्षेत्र के बड़े क्षेत्र जैसे बिलहरा जैसीनगर में पानी एक बहुत बड़ी समस्या है. जहां लोग साल भर पानी की जद्दोजहद में जुटे रहते हैं. गर्मियों में ये स्थिति और भी विकराल हो जाती है. स्थानीय लोगों को दो से पांच रूपये प्रति केन पानी की कीमत चुकानी पड़ती है. हालांकि पिछली सरकारों में कई योजनाओं के शिलान्यास हो चुके हैं, लेकिन फिलहाल धरातल पर जल संकट बरकरार है, जोकि इस उपचुनाव में भी सबसे बड़े मुद्दों में एक रहेगा.

युवाओं को चाहिए रोजगार

क्षेत्रीय समस्याओं में रोजगार एक बड़ी समस्या है. सुरखी विधानसभा क्षेत्र में कोई भी बड़ा उपक्रम नहीं है. जो स्थानीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा सके. ग्रामीण क्षेत्र होने की वजह से युवाओं को रोजगार के लिए सागर मुख्यालय या अन्य बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है. ऐसे में युवाओं की मांग की है कि यहां रोजगार के अवसर उपलब्ध हों, ताकि उन्हें पलायन न करना पड़े.

सड़क की मांग

सुरखी विधानसभा के कई क्षेत्रों में सड़कों की हालात भी खराब है. जिससे आवागमन सुगम नहीं होने से क्षेत्र की जनता खासी परेशान रहती है. इसलिए सड़क भी उपचुनाव का अहम मुद्दा बना हुआ है.

उच्च शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग

जैसीनगर क्षेत्र में महाविद्यालय एवं उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त साधन नहीं है. स्थानीय युवा पढ़ने के लिए सागर जाने को मजबूर हैं. ऐसे में लोगों का मांग है कि यहां कॉलेज खोला जाए, जिससे स्थानीय स्तर पर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त हो सके. वहीं क्षेत्र की जनता स्वास्थ्य व्यवस्थाओं से भी संतुष्ट नहीं है. लोगों का कहना है कि क्षेत्र में अस्पताल तो बनाए गए, लेकिन उनमें डॉक्टर नहीं हैं, बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. इसलिए जनता आगामी विधायक से स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की अपेक्षा भी रखती है.

कुल वोटर्स

कुल वोटर्स2,05,388
पुरूष1,11,688
महिलाएं व अन्य93,679

पिछड़ा वर्ग के वोटर्स अहम

विधानसभा में मूल वोटरों में ठाकुर, दांगी ठाकुर, पिछड़ा वर्ग जिसमें पटेल, यादव समाज भी बहुतायत है, इसके अलावा अनुसूचित जाति, जनजाति वोटरों की संख्या अधिक है. पिछड़ा वर्ग के वोटर यहां पर डिसीजन मेकर का काम करते हैं. क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सहित किसानों से जुड़े मामले प्रमुख मुद्दा रहते हैं. सुरखी विधानसभा में सुरखी, राहतगढ़, जैसीनगर, बिलहरा, मोकलपुर इलाके के वोटर चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. इस कारण सभी प्रत्याशियों का फोकस यहां पर होता है.

सियासी इतिहास

  • सुरखी विधानसभा सीट पर 1951 से लेकर 2018 तक हुए विधानसभा चुनावों में नौ बार कांग्रेस, तीन बार बीजेपी, एक-एक बार भारतीय जनसंघ एवं जनता पार्टी और एक बार जनता दल ने जीत दर्ज की है.
  • 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए गोविंद सिंह राजपूत ने बीजेपी के सुधीर यादव को 21 हजार 418 वोट से हराया था. वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में गोविंद सिंह तब बीजेपी की प्रत्याशी रहीं पारूल साहू से चुनाव हार गए थे. लेकिन इससे पहले 2008 और 2003 के चुनावों में गोविंद सिंह ने जीत दर्ज की थी.

टक्कर का मुकाबला

अब स्थिति बदल गई है. गोविंद सिंह बीजेपी की तरफ से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पारूल साहू कांग्रेस की तरफ से. ऐसे में मुकाबला टक्कर का हो गया है. क्योंकि बतौर पार्टी क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा रहा है. जबकि प्रत्याशी के रूप में गोविंद सिंह ने चुनावी मैदान में अपना दम दिखाया है. हालांकि खबर ये भी है कि बीजेपी का एक खेमा गोविंद सिंह को टिकट मिलने से नाराज है. जिसका फायदा पारूल साहू को मिल सकता है. हालांकि बीजेपी की तरफ से इस सीट की जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह को दी गई है. जो खुद सुरखी से विधायक रह चुके हैं. ऐसे में मुकाबला टक्कर की होने संभावना है.

जनता में विकास का विश्वास ही दिलाएगा जीत

चूंकि दोनों ही प्रत्याशी दल-बदल कर आमने सामने हैं, लिहाजा यहां 'टिकाऊ और बिकाऊ' का मुद्दा उतना ज्यादा प्रभावशाली नहीं रह गया है. अब जो नेता जनता को क्षेत्र की समस्याओं को दूर कर विकास का विश्वास दिला पाने में कामयाब हो जाता है,जनता उसे ही अपना नेता चुनेगी.

सागर। मध्यप्रदेश में उपचुनावों के बीच सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहने वाली सीट सागर जिले की सुरखी विधानसभा बन गई है. पारुल साहू के अचानक बीजेपी से कांग्रेस में आने के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं. 7 साल पहले भी दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे, लेकिन तब गोविंद सिंह पंजे के साथ थे, तो पारुल साहू फूल के साथ थीं. जगह वही है, वोटर भी वही हैं और नेता भी वही, लेकिन पार्टियां बदल गई हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम सुरखी पहुंची और लोगों से बात की. बातचीत के दौरान लोग सुरखी उपचुनाव में चुनावी मुद्दों के बारे में ईटीवी भारत से अपने दिल की बात कही है.

मतदाताओं के 'दिल की बात'

पानी की समस्या अहम मुद्दा

सुरखी विधानसभा क्षेत्र में लोगों से चर्चा करते हुए ये बात साफ तौर पर सामने आई कि क्षेत्र में प्रमुख समस्याओं में एक जल संकट है. सुरखी विधानसभा क्षेत्र के बड़े क्षेत्र जैसे बिलहरा जैसीनगर में पानी एक बहुत बड़ी समस्या है. जहां लोग साल भर पानी की जद्दोजहद में जुटे रहते हैं. गर्मियों में ये स्थिति और भी विकराल हो जाती है. स्थानीय लोगों को दो से पांच रूपये प्रति केन पानी की कीमत चुकानी पड़ती है. हालांकि पिछली सरकारों में कई योजनाओं के शिलान्यास हो चुके हैं, लेकिन फिलहाल धरातल पर जल संकट बरकरार है, जोकि इस उपचुनाव में भी सबसे बड़े मुद्दों में एक रहेगा.

युवाओं को चाहिए रोजगार

क्षेत्रीय समस्याओं में रोजगार एक बड़ी समस्या है. सुरखी विधानसभा क्षेत्र में कोई भी बड़ा उपक्रम नहीं है. जो स्थानीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा सके. ग्रामीण क्षेत्र होने की वजह से युवाओं को रोजगार के लिए सागर मुख्यालय या अन्य बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है. ऐसे में युवाओं की मांग की है कि यहां रोजगार के अवसर उपलब्ध हों, ताकि उन्हें पलायन न करना पड़े.

सड़क की मांग

सुरखी विधानसभा के कई क्षेत्रों में सड़कों की हालात भी खराब है. जिससे आवागमन सुगम नहीं होने से क्षेत्र की जनता खासी परेशान रहती है. इसलिए सड़क भी उपचुनाव का अहम मुद्दा बना हुआ है.

उच्च शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग

जैसीनगर क्षेत्र में महाविद्यालय एवं उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त साधन नहीं है. स्थानीय युवा पढ़ने के लिए सागर जाने को मजबूर हैं. ऐसे में लोगों का मांग है कि यहां कॉलेज खोला जाए, जिससे स्थानीय स्तर पर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त हो सके. वहीं क्षेत्र की जनता स्वास्थ्य व्यवस्थाओं से भी संतुष्ट नहीं है. लोगों का कहना है कि क्षेत्र में अस्पताल तो बनाए गए, लेकिन उनमें डॉक्टर नहीं हैं, बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. इसलिए जनता आगामी विधायक से स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की अपेक्षा भी रखती है.

कुल वोटर्स

कुल वोटर्स2,05,388
पुरूष1,11,688
महिलाएं व अन्य93,679

पिछड़ा वर्ग के वोटर्स अहम

विधानसभा में मूल वोटरों में ठाकुर, दांगी ठाकुर, पिछड़ा वर्ग जिसमें पटेल, यादव समाज भी बहुतायत है, इसके अलावा अनुसूचित जाति, जनजाति वोटरों की संख्या अधिक है. पिछड़ा वर्ग के वोटर यहां पर डिसीजन मेकर का काम करते हैं. क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सहित किसानों से जुड़े मामले प्रमुख मुद्दा रहते हैं. सुरखी विधानसभा में सुरखी, राहतगढ़, जैसीनगर, बिलहरा, मोकलपुर इलाके के वोटर चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. इस कारण सभी प्रत्याशियों का फोकस यहां पर होता है.

सियासी इतिहास

  • सुरखी विधानसभा सीट पर 1951 से लेकर 2018 तक हुए विधानसभा चुनावों में नौ बार कांग्रेस, तीन बार बीजेपी, एक-एक बार भारतीय जनसंघ एवं जनता पार्टी और एक बार जनता दल ने जीत दर्ज की है.
  • 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए गोविंद सिंह राजपूत ने बीजेपी के सुधीर यादव को 21 हजार 418 वोट से हराया था. वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में गोविंद सिंह तब बीजेपी की प्रत्याशी रहीं पारूल साहू से चुनाव हार गए थे. लेकिन इससे पहले 2008 और 2003 के चुनावों में गोविंद सिंह ने जीत दर्ज की थी.

टक्कर का मुकाबला

अब स्थिति बदल गई है. गोविंद सिंह बीजेपी की तरफ से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पारूल साहू कांग्रेस की तरफ से. ऐसे में मुकाबला टक्कर का हो गया है. क्योंकि बतौर पार्टी क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा रहा है. जबकि प्रत्याशी के रूप में गोविंद सिंह ने चुनावी मैदान में अपना दम दिखाया है. हालांकि खबर ये भी है कि बीजेपी का एक खेमा गोविंद सिंह को टिकट मिलने से नाराज है. जिसका फायदा पारूल साहू को मिल सकता है. हालांकि बीजेपी की तरफ से इस सीट की जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह को दी गई है. जो खुद सुरखी से विधायक रह चुके हैं. ऐसे में मुकाबला टक्कर की होने संभावना है.

जनता में विकास का विश्वास ही दिलाएगा जीत

चूंकि दोनों ही प्रत्याशी दल-बदल कर आमने सामने हैं, लिहाजा यहां 'टिकाऊ और बिकाऊ' का मुद्दा उतना ज्यादा प्रभावशाली नहीं रह गया है. अब जो नेता जनता को क्षेत्र की समस्याओं को दूर कर विकास का विश्वास दिला पाने में कामयाब हो जाता है,जनता उसे ही अपना नेता चुनेगी.

Last Updated : Oct 20, 2020, 3:28 AM IST
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