सागर। भारतीय इतिहास (Indian History) में ग्वालियर राजघराने का अपना एक नाम है. चाहे आजादी के पहले ग्वालियर राजघराने की वैभव की बात करें या फिर आजादी के बाद. राजनीति में सिंधिया परिवार (Scindia Family) की दखल की बात करें, तो सिंधिया परिवार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अपने राजसी वैभव के बाद जब देश में लोकतंत्र का आगाज हुआ, तो सिंधिया घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया (Vijaya Raje Scindia) लोक माता के रूप में भी मशहूर हुईं. राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 को मध्य प्रदेश के सागर शहर में हुआ था. अपने ननिहाल में जन्मी राजमाता सिंधिया का बचपन का नाम लेखा देवेश्वरी देवी (Lekha Deveshwari Devi) था. उनके पिता ब्रिटिश सरकार में डिप्टी कलेक्टर (Deputy Collector in British Rule) थे. लेखा देवेश्वरी देवी काफी खूबसूरत थीं और ग्वालियर राजघराने के महाराज जीवाजी राव सिंधिया (Jiwaji Rao Scindia) ने जब उन्हें मुंबई के ताज होटल (Mumbai Taj Hotel) में पहली बार देखा, तो पहली ही नजर में उनको पसंद आ गईं. यहीं से लेखा देवेश्वरी देवी का विजयाराजे सिंधिया के रूप में सफर शुरू हुआ, जो राजमाता से लोक माता के रूप में भी जाना जाता है.
ननिहाल में हुआ था जन्म, नाम मिला लेखा देवेश्वरी देवी
देश के राजतंत्र और लोकतंत्र के इतिहास में ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का अहम स्थान है. सिंधिया राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बात करें तो राजतंत्र में उन्हें राजमाता का दर्जा हासिल हुआ. वहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी वह राजमाता के नाम से ही जानी गईं. विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 को मध्य प्रदेश के सागर में हुआ था. दरअसल, नेपाली सेना की पृष्ठभूमि से जुड़े प्रिंस खडग शमशेर जंग बहादुर राणा (Shamsher Jung Bahadur Rana) नेपाल से आकर सागर में बसे थे. जोगी सिसोदिया राजपूत थे और राणा के रूप में उन्हें नेपाल में उपाधि मिली थी. उनकी 5 पुत्रियां और 3 पुत्र थे. उनकी पहली बेटी की शादी उरई के जादौन परिवार में महेंद्र सिंह से हुई थी. महेंद्र सिंह ब्रिटिश काल में जालौन (उप्र) के डिप्टी कलेक्टर थे. डिप्टी कलेक्टर महेंद्र सिंह की दूसरी पत्नी की पहली संतान थी. शादी के बाद प्रसव काल के समय अपने मायके आई थीं. जहां उन्होंने बेटी का जन्म दिया था, जिसका नाम लेखा देवेश्वरी देवी रखा गया. हालांकि बेटी के जन्म के 13 दिन बाद उनका निधन हो गया था. मां के निधन के बाद ही लेखा देवेश्वरी देवी का बचपन और शिक्षा दीक्षा अपने ननिहाल सागर में ही हुई.
लेखा देवेश्वरी देवी से कैसे बनीं विजयाराजे सिंधिया
मां के निधन के बाद लेखा देवेश्वरी देवी ननिहाल में ही पली-बढ़ीं सागर के कन्या विद्यालय में उनकी पढ़ाई हुई. लेखा देवेश्वरी देवी काफी खूबसूरत थीं. 1942 में मुंबई के ताज होटल में लेखा देवेश्वरी देवी की ग्वालियर राजघराने के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से मुलाकात हुई. जीवाजी राव सिंधिया को पहली ही नजर में पसंद आ गईं. उन्होंने शादी का फैसला किया. एक तरफ ग्वालियर राजघराने के महाराज और दूसरी तरफ नेपाली पृष्ठभूमि वाली लेखा देवेश्वरी देवी की शादी का काफी विरोध भी हुआ. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि नेपाल की शाही सेना के कमांडर राणा जंग बहादुर शमशेर सिंह की थीं, जो वहां के सेनापति थे. अलग-अलग पृष्ठभूमि को लेकर शादी को लेकर काफी विरोध था, लेकिन जीवाजीराव ने सभी विरोधियों को ताक पर रखकर लेखा देवेश्वरी देवी से शादी की और विजयाराजे सिंधिया नाम दिया. 21 फरवरी 1941 को ग्वालियर के आखिरी शासक जीवाजी राव सिंधिया की पत्नी के रूप में विजयाराजे सिंधिया कहलाईं. तमाम विरोध के बाद विजयाराजे सिंधिया ने अपने व्यवहार और सेवा भाव से सभी का दिल जीत लिया.
राजशाही हुई खत्म तो राजनीति में रखा कदम
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और राजशाही खत्म हो गई. राजशाही खत्म होने के बाद विजयाराजे सिंधिया, जो कि ग्वालियर रियासत में राजमाता के रूप में मशहूर हो चुकी थीं, उन्होंने राजनीति में कदम रखा. पहली बार 1957 में गुना क्षेत्र से कांग्रेस की सांसद बनीं. 1964 में जीवाजी राव सिंधिया का निधन हो गया था. कांग्रेस में करीब 10 साल बिताने के बाद उनका मोहभंग हो गया और 1967 में उन्होंने जनसंघ की सदस्यता ले ली. 1971 में इंदिरा लहर होने के बावजूद जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र में बड़ी जीत हासिल की थी. ग्वालियर अंचल की तीनों सीट जनसंघ के खाते में गई थीं. उनके पुत्र माधवराव सिंधिया जनसंघ से गुना से सांसद चुने गए थे और राजमाता विजयाराजे सिंधिया भिंड से सांसद बनीं. अटल बिहारी बाजपेई ग्वालियर से सांसद बने थे.
राजमाता की राजनीतिक विरासत
राजमाता विजयराजे सिंधिया की राजनीतिक विरासत उनकी सभी संतानों के लिए हासिल हुई. जीवाजी राव सिंधिया की चार पुत्रियां और एक पुत्र थे. सबसे बड़ी पुत्री का नाम पद्मावती राजे था, जिनका विवाह त्रिपुरा के अंतिम शासक महाराजा किरीट बिक्रम किशोर देव बर्मन से हुआ था. जिनका निधन 1964 में हो गया था. राजमाता की दूसरी बेटी का नाम उषा राजे राणा है. जिन्होंने अपने दूर के चचेरे भाई पशुपति शमशेर जंग बहादुर राणा से विवाह किया था, जो नेपाली राजनेता थे. तीसरी संतान माधवराव सिंधिया थे, जिन्होंने राजनीति की शुरुआत मां की देखरेख में जनसंघ से की थी, लेकिन बाद में कांग्रेस से जुड़ गए थे. मां-बेटे के तल्ख रिश्ते चर्चाओं का विषय रहे हैं.
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वसुंधरा राजे सिंधिया राजमाता की चौथी संतान और तीसरी बेटी थी, जो राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. जिनका विवाह धौलपुर के महाराज राणा हेमंत सिंह से हुआ था. राजमाता की चौथी बेटी यशोधरा राजे सिंधिया हैं, जिनकी शादी अमेरिका के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ भंसाली से हुई थी. हालांकि 1994 में यशोधरा राजे भारत आ गईं और उन्होंने मां की इच्छा के मुताबिक बीजेपी की सदस्यता लेकर 1998 में पहली बार चुनाव लड़ा, वर्तमान में मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता के नक्शे कदम पर कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन उनका अपनी दादी की तरह कांग्रेस से मोह भंग हो गया और 2020 में भाजपा में शामिल हो गए, फिलहाल मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं.