ETV Bharat / state

बुंदेलखंड की गौरवगाथा का बखान करता राहतगढ़ का किला, आज भी पर्यटकों के लिए है आकर्षण का केंद्र

सागर से महज 40 किलोमीटर दूर राहतगढ़ तहसील पर स्थित राहतगढ़ का किला ऐसा ऐतिहासिक किला है, जो आज भी बुंदेलखंड का शौर्यगान करता है.

rahatgarh fort
राहतगढ़ का किला
author img

By

Published : Jul 16, 2020, 2:54 PM IST

सागर। बुंदेलखंड अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए हमेशा से प्रसिद्ध रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ इसकी समृद्धि का बखान करने वाले महल और किले धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये हो गया है कि, कुछ किले और महल तो खंडहर में तब्दील हो गए हैं, जबकि कुछ का अस्तित्व अब भी अपने अतीत का शौर्यगान करता नजर आता है. कुछ ऐसा ही सागर जिले के राहतगढ़ का किला है, जो अपनी भव्यता और समृद्ध इतिहास का साक्षी है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर राहतगढ़ तहसील में स्थित कस्बे के बीचों-बीच यह ऐतिहासिक किला मौजूद है. यह किला कितना प्राचीन है और इसका निर्माण किसने करवाया था, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन 11वीं शताब्दी के मौजूद शिलालेखों में भी इस किले का उल्लेख मिलता है, जिससे यह कहा जा सकता है कि, किला 11वीं शताब्दी से भी पुराना है.

rahatgarh fort
बीना नदी के किनारे पहाड़ी पर बसा महल

गोंड राजाओं के शासन का भी है उल्लेख
गोंड राजाओं के शासन का भी यहां उल्लेख मिलता है. जानकारी के मुताबिक 1742 में दीवान बिजल राम ने इस पर कब्जा कर लिया था. वहीं 1799 में एक पिंडारी मुखिया द्वारा राहतगढ़ के किले को लूटने की कहानी भी बताई जाती है. इस लूट का उल्लेख मेमोयर ऑफ सेंट्रल इंडिया नाम की एक प्रसिद्ध पुस्तक में बड़े ही रोचक ढंग से किया गया है. इसके बाद किले और शहर का 1807 में सिंधिया राज में विलय हो गया. 1826 में नगर का प्रबंध अंग्रेजों के अधीन हो गया था.

rahatgarh fort
भव्यता और समृद्ध इतिहास का साक्षी

सन 1857 की क्रांति में राहतढ़ के सैनिकों ने भी लड़ी जंग
कहते हैं कि, सन 1857 के विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश अधिकारी सेना लेकर झांसी की ओर बढ़ रहे थे, तब उसका सामना बुंदेलखंड के योद्धाओं से हुआ था, तब शाहगढ़-भानपुर के जवानों ने अंग्रेज सैनिकों को कड़ी टक्कर दी थी. अंग्रेज अधिकारी ह्यूरोज, हैमिल्टन और पेंडर गोस्ट सैनिक टुकड़ियों के साथ जबलपुर से गढ़ाकोटा आया. यहां दो दिन रुक कर सैनिकों को राहतगढ़ की ओर बढ़ा दिया और फिर अंग्रेजों ने रातों-रात इस किले को घेर लिया. कहते हैं कि, युद्ध काफी लंबा चला. संयुक्त सेनाओं का युद्ध इतना लंबा चला कि अंत में गोलियों का स्थान भाले ने ले लिया, लेकिन अंत में दुर्ग पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट दीनदयाल बिलगइयां बताते हैं कि, सन 1857 की क्रांति में सहयोग के लिए भी राहतगढ़ के किले से बहुत से सैनिक झांसी गए थे.

rahatgarh fort
राहतगढ़ का किला

विशाल किले के हैं कई उल्लेख
बीना नदी के किनारे पहाड़ी पर बने विशाल और भव्य किले के विषय में यह भी उल्लेख मिलता है कि, महाराजा संग्राम शाह के पहले यहां चंदेल और परमार शासकों ने लंबे समय तक शासन किया. वहीं महारानी दुर्गावती और वीरनारायण के उपरांत उनके उत्तराधिकारी राजा चंद्र शाह को गोंडवाना साम्राज्य के राजा बनाने के लिए अकबर को 10गज देने पड़े थे, उनमें से एक राहतगढ़ भी था.

कई द्वारों से गुजरकर करना होता है प्रवेश

बुंदेलखंड का शौर्यगान करता राहतगढ़ का किला
राहतगढ़ किले की बनावट सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. किले में दरवाजे सुरक्षा चेकपोस्ट की तरह बनाए गए हैं. किले में प्रवेश करने के लिए कई दरवाजों से होकर गुजरना पड़ता है. किले की बाहरी दीवारों के साथ सुरक्षा चौकियों के अवशेष भी यहां मौजूद हैं. यहां की पहाड़ी बहुत ऊंची है और किले की बनावट ऐसी है कि, आक्रमणकारियों पर दूर से ही निशाना लगाया जा सकता है. किला चारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसमें सुरक्षा चौकियां बनी हैं. किले का दक्षिणी किनारा नदी की भयावह खाई से लगा हुआ है. इस खाई से होकर किले में प्रवेश कर पाना असंभव है. खाई के किनारे भी सुरक्षा चौकियां बनी हैं, जिसे देख ऐसा प्रतीत होता है कि, राहतगढ़ किले पर विजय पाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा होगा. किले के अंदर बहुत सुंदर इमारतें बनी हुई हैं, जिनमें से शायद बाद की कुछ इमारतें ईंट से बनाई गई हैं, जबकि ज्यादातर इमारतों का निर्माण पत्थरों से किया गया है. बुंदेलखंड की ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण का काम पुरातत्व विभाग के पास है. हाल ही में यहां केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल ने भी दौरा किया. जिस स्तर पर इस किले को फिर से बनाया जाना चाहिए, उस तरीके का काम नहीं हो पाया है. ASI को इस किले के संरक्षण के लिए तीन करोड़ 91 लाख रुपए का प्रपोजल बनाया है. विभाग ऐसे ही सभी धरोहरों के लिए लगातार संरक्षण का प्रयास कर रहा है. किसी भी राज्य या क्षेत्र में स्थित इस तरह के ऐतिहासिक धरोहर, जहां एक ओर उस क्षेत्र की ऐतिहासिक भव्यता का बखान करती हैं. वहीं ऐसी इमारतों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार से पर्यटन की संभावना भी बढ़ जाती है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार और राजस्व में वृद्धि हो सकती है.

सागर। बुंदेलखंड अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए हमेशा से प्रसिद्ध रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ इसकी समृद्धि का बखान करने वाले महल और किले धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये हो गया है कि, कुछ किले और महल तो खंडहर में तब्दील हो गए हैं, जबकि कुछ का अस्तित्व अब भी अपने अतीत का शौर्यगान करता नजर आता है. कुछ ऐसा ही सागर जिले के राहतगढ़ का किला है, जो अपनी भव्यता और समृद्ध इतिहास का साक्षी है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर राहतगढ़ तहसील में स्थित कस्बे के बीचों-बीच यह ऐतिहासिक किला मौजूद है. यह किला कितना प्राचीन है और इसका निर्माण किसने करवाया था, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन 11वीं शताब्दी के मौजूद शिलालेखों में भी इस किले का उल्लेख मिलता है, जिससे यह कहा जा सकता है कि, किला 11वीं शताब्दी से भी पुराना है.

rahatgarh fort
बीना नदी के किनारे पहाड़ी पर बसा महल

गोंड राजाओं के शासन का भी है उल्लेख
गोंड राजाओं के शासन का भी यहां उल्लेख मिलता है. जानकारी के मुताबिक 1742 में दीवान बिजल राम ने इस पर कब्जा कर लिया था. वहीं 1799 में एक पिंडारी मुखिया द्वारा राहतगढ़ के किले को लूटने की कहानी भी बताई जाती है. इस लूट का उल्लेख मेमोयर ऑफ सेंट्रल इंडिया नाम की एक प्रसिद्ध पुस्तक में बड़े ही रोचक ढंग से किया गया है. इसके बाद किले और शहर का 1807 में सिंधिया राज में विलय हो गया. 1826 में नगर का प्रबंध अंग्रेजों के अधीन हो गया था.

rahatgarh fort
भव्यता और समृद्ध इतिहास का साक्षी

सन 1857 की क्रांति में राहतढ़ के सैनिकों ने भी लड़ी जंग
कहते हैं कि, सन 1857 के विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश अधिकारी सेना लेकर झांसी की ओर बढ़ रहे थे, तब उसका सामना बुंदेलखंड के योद्धाओं से हुआ था, तब शाहगढ़-भानपुर के जवानों ने अंग्रेज सैनिकों को कड़ी टक्कर दी थी. अंग्रेज अधिकारी ह्यूरोज, हैमिल्टन और पेंडर गोस्ट सैनिक टुकड़ियों के साथ जबलपुर से गढ़ाकोटा आया. यहां दो दिन रुक कर सैनिकों को राहतगढ़ की ओर बढ़ा दिया और फिर अंग्रेजों ने रातों-रात इस किले को घेर लिया. कहते हैं कि, युद्ध काफी लंबा चला. संयुक्त सेनाओं का युद्ध इतना लंबा चला कि अंत में गोलियों का स्थान भाले ने ले लिया, लेकिन अंत में दुर्ग पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट दीनदयाल बिलगइयां बताते हैं कि, सन 1857 की क्रांति में सहयोग के लिए भी राहतगढ़ के किले से बहुत से सैनिक झांसी गए थे.

rahatgarh fort
राहतगढ़ का किला

विशाल किले के हैं कई उल्लेख
बीना नदी के किनारे पहाड़ी पर बने विशाल और भव्य किले के विषय में यह भी उल्लेख मिलता है कि, महाराजा संग्राम शाह के पहले यहां चंदेल और परमार शासकों ने लंबे समय तक शासन किया. वहीं महारानी दुर्गावती और वीरनारायण के उपरांत उनके उत्तराधिकारी राजा चंद्र शाह को गोंडवाना साम्राज्य के राजा बनाने के लिए अकबर को 10गज देने पड़े थे, उनमें से एक राहतगढ़ भी था.

कई द्वारों से गुजरकर करना होता है प्रवेश

बुंदेलखंड का शौर्यगान करता राहतगढ़ का किला
राहतगढ़ किले की बनावट सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. किले में दरवाजे सुरक्षा चेकपोस्ट की तरह बनाए गए हैं. किले में प्रवेश करने के लिए कई दरवाजों से होकर गुजरना पड़ता है. किले की बाहरी दीवारों के साथ सुरक्षा चौकियों के अवशेष भी यहां मौजूद हैं. यहां की पहाड़ी बहुत ऊंची है और किले की बनावट ऐसी है कि, आक्रमणकारियों पर दूर से ही निशाना लगाया जा सकता है. किला चारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसमें सुरक्षा चौकियां बनी हैं. किले का दक्षिणी किनारा नदी की भयावह खाई से लगा हुआ है. इस खाई से होकर किले में प्रवेश कर पाना असंभव है. खाई के किनारे भी सुरक्षा चौकियां बनी हैं, जिसे देख ऐसा प्रतीत होता है कि, राहतगढ़ किले पर विजय पाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा होगा. किले के अंदर बहुत सुंदर इमारतें बनी हुई हैं, जिनमें से शायद बाद की कुछ इमारतें ईंट से बनाई गई हैं, जबकि ज्यादातर इमारतों का निर्माण पत्थरों से किया गया है. बुंदेलखंड की ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण का काम पुरातत्व विभाग के पास है. हाल ही में यहां केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल ने भी दौरा किया. जिस स्तर पर इस किले को फिर से बनाया जाना चाहिए, उस तरीके का काम नहीं हो पाया है. ASI को इस किले के संरक्षण के लिए तीन करोड़ 91 लाख रुपए का प्रपोजल बनाया है. विभाग ऐसे ही सभी धरोहरों के लिए लगातार संरक्षण का प्रयास कर रहा है. किसी भी राज्य या क्षेत्र में स्थित इस तरह के ऐतिहासिक धरोहर, जहां एक ओर उस क्षेत्र की ऐतिहासिक भव्यता का बखान करती हैं. वहीं ऐसी इमारतों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार से पर्यटन की संभावना भी बढ़ जाती है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार और राजस्व में वृद्धि हो सकती है.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.