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बादाम से भी ज्यादा कारगर है अलसी, कैंसर की कोशिकाएं पर भी करता है काबू, जानें फायदे

तिलहन फसल अलसी एक ऐसी फसल है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. चाहे दिल से जुड़ी बीमारी हो या फिर हड्डियों से जुड़ी बीमारी या तेज रफ्तार से बढ़ रही कैंसर की कोशिकाएं, इन सब को काबू करने में अलसी काफी कारगर है.

flaxseed farming
अलसी की खेती
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Published : Oct 28, 2021, 3:34 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 3:43 PM IST

सागर। रबी सीजन की तिलहन फसल अलसी (Flaxseed Farming) एक ऐसी फसल है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. चाहे दिल से जुड़ी बीमारी हो या फिर हड्डियों से जुड़ी बीमारी या तेज रफ्तार से बढ़ रही कैंसर की कोशिकाएं, इन सब को काबू करने में अलसी काफी कारगर है. शरीर की ऊर्जा बनाए रखने के लिए अलसी बादाम से भी ज्यादा कारगर है. अलसी की खेती में किसान काफी कम रुचि ले रहे हैं. इसका बड़ा कारण अलसी की कटाई, सफाई और गहाई में ज्यादा मजदूरों और ज्यादा समय की आवश्यकता है.

flaxseed
अलसी के बीज.

अलसी की नौ उन्नत किस्म हुईं विकसित
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) की देखरेख में सागर क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र में पिछले 34 सालों से अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है. यह मध्य प्रदेश के किसानों सहित देश के किसानों के लिए अलसी की उन्नत किस्मों पर अनुसंधान कर रहे हैं. सागर का अनुसंधान केंद्र अब तक अलसी की 9 उन्नत किस्मों को विकसित कर चुका है.

कैंसर में भी मददगार है अलसी.

1987 से चल रही है अलसी की उन्नत किस्मों पर रिसर्च
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सागर कृषि अनुसंधान केंद्र में 1987 से अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है. अनुसंधान केंद्र ने अभी तक अलसी की 9 प्रजातियां विकसित की हैं, जो कि मध्य प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य प्रदेशों में भी काफी लोकप्रिय हुई हैं. पूरे देश में इन प्रजातियों की काफी मांग है.

flaxseed farming
ऐसे होती है अलसी की खेती.

सिंचित और असिंचित जमीन के लिए तैयार की गई हैं किस्में
सागर स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक और अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना के प्रभारी डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि रवि सीजन की तिलहनी फसलों की बात करें, तो अलसी का प्रमुख स्थान है. वर्तमान में सिंचित जमीन के लिए जेएलएस-27, जेएलएस-79 प्रजातियां विकसित की गई हैं. पवारखेड़ा अनुसंधान केंद्र द्वारा सिंचित जमीन के लिए जेएलएस-41 प्रजाति विकसित की गई हैं. इसके अलावा असिंचित जमीन के लिए भी जेएलएस-66 काफी लोकप्रिय प्रजाति है. इसके अलावा जेएलएस-73 और जेएलएस-95 और जेएलएस-93 प्रजातियां वर्तमान परिवेश में अच्छा उत्पादन दे रही हैं.

flaxseed tree
अलसी का पेड़.

यंत्रीकरण और आदानों का प्रयोग कर पा सकते हैं अच्छा उत्पादन
डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि अलसी की खेती में किसान आमतौर पर खराब भूमि और आदानों का कम प्रयोग करते हैं. उचित प्रबंधन के माध्यम से खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्व नियंत्रण का प्रबंधन कर अलसी का अच्छा उत्पादन किया जा सकता है. उत्पादन की बात करें तो प्रति एकड़ में 6 क्विंटल तक फसल पाई जा सकती है. यंत्रीकरण के अभाव में कटाई सफाई और गहाई में किसानों के लिए श्रमिकों की ज्यादा आवश्यकता पढ़ती है और समय भी ज्यादा लगता है. इन परिस्थितियों को देखते हुए हमने यंत्रीकरण पर भी काम किया है.

कंबाइंड हार्वेस्टर, रीपर और ट्रैक्टर के माध्यम से जुताई की जा सकती है. पोषक तत्व के प्रबंधन के लिए 80:40:20:20 में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर का प्रयोग किया जा सकता है. 10 किलो प्रति एकड़ के मान से सल्फर का प्रयोग अलसी की खेती में जरूर किया जाना चाहिए. इसके अलावा 40-45 किलो डीएपी, एनपीके उर्वरक का उपयोग भी कर सकते हैं. खरपतवार नियंत्रण के लिए गेहूं में उपयोग होने वाले खरपतवार नाशक का उपयोग किया जा सकता है. खरपतवार नाशक का जो उपयोग एक हेक्टेयर गेहूं की फसल के लिए होता है. उसका अलसी के लिए तीन एकड़ में प्रयोग किया जा सकता है.

बादाम से भी ज्यादा गुणकारी है अलसी
अलसी के गुणों पर चर्चा करते हुए डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि अलसी में मुख्य रूप से ओमेगा-3 पाया जाता है. ओमेगा-3 अलसी तेल और बादाम में पाया जाता है, लेकिन इसकी मात्रा अलसी में सबसे ज्यादा होती है. हमारी दिनचर्या और खानपान में बदलाव के कारण ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का अनुपात अव्यवस्थित हो गया है. जिसके कारण मोटापे की समस्या काफी तेजी से बढ़ रही है. अलसी का सेवन कर अनुपात को व्यवस्थित कर मोटापे को रोका जा सकता है.

ऊर्जावान रहने के लिए करें तलसी का प्रयोग
शरीर की रोजाना की ऊर्जा की आवश्यकता को देखते हुए कम से कम 30 ग्राम भुनी हुई अलसी का सेवन जरूर करना चाहिए. घर में उपलब्ध खाद्य तेल के साथ अलसी को रोस्टेड कर सकते हैं या फिर उसे आटे में मिलाकर या अलसी के लड्डू बनाकर खाया जा सकता है. सलाद और अंकुरित अनाज के माध्यम से अलसी का उपयोग कर रोजाना के भोजन में शामिल करने से ऊर्जा का स्तर काफी अच्छा बना रहता है.

MP में 50 फीसदी अलसी की खेती, फिर भी समर्थन मूल्य तय नहीं

हड्डी, दिल के रोग और कैंसर से लड़ने में है कारगर
डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि उम्र के साथ-साथ हड्डी जनित रोग बढ़ जाते हैं. खासकर जोड़ों में सिरेमिक फ्लूइड की कमी के चलते लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन परिस्थितियों में अलसी का सेवन कारगर होता है, क्योंकि हड्डी से जुड़े लोगों के लिए ओमेगा-3 काफी महत्वपूर्ण है. इसके अलावा कैंसर और हाई ब्लड प्रेशर से लड़ने में भी अलसी काफी अहम रोल अदा करती है. इससे संबंधित कई रिसर्च देश और दुनिया में की गई हैं. कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के लिए अलसी का लगातार सेवन करना चाहिए.

सागर। रबी सीजन की तिलहन फसल अलसी (Flaxseed Farming) एक ऐसी फसल है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. चाहे दिल से जुड़ी बीमारी हो या फिर हड्डियों से जुड़ी बीमारी या तेज रफ्तार से बढ़ रही कैंसर की कोशिकाएं, इन सब को काबू करने में अलसी काफी कारगर है. शरीर की ऊर्जा बनाए रखने के लिए अलसी बादाम से भी ज्यादा कारगर है. अलसी की खेती में किसान काफी कम रुचि ले रहे हैं. इसका बड़ा कारण अलसी की कटाई, सफाई और गहाई में ज्यादा मजदूरों और ज्यादा समय की आवश्यकता है.

flaxseed
अलसी के बीज.

अलसी की नौ उन्नत किस्म हुईं विकसित
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) की देखरेख में सागर क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र में पिछले 34 सालों से अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है. यह मध्य प्रदेश के किसानों सहित देश के किसानों के लिए अलसी की उन्नत किस्मों पर अनुसंधान कर रहे हैं. सागर का अनुसंधान केंद्र अब तक अलसी की 9 उन्नत किस्मों को विकसित कर चुका है.

कैंसर में भी मददगार है अलसी.

1987 से चल रही है अलसी की उन्नत किस्मों पर रिसर्च
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सागर कृषि अनुसंधान केंद्र में 1987 से अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है. अनुसंधान केंद्र ने अभी तक अलसी की 9 प्रजातियां विकसित की हैं, जो कि मध्य प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य प्रदेशों में भी काफी लोकप्रिय हुई हैं. पूरे देश में इन प्रजातियों की काफी मांग है.

flaxseed farming
ऐसे होती है अलसी की खेती.

सिंचित और असिंचित जमीन के लिए तैयार की गई हैं किस्में
सागर स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक और अखिल भारतीय समन्वित अलसी अनुसंधान परियोजना के प्रभारी डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि रवि सीजन की तिलहनी फसलों की बात करें, तो अलसी का प्रमुख स्थान है. वर्तमान में सिंचित जमीन के लिए जेएलएस-27, जेएलएस-79 प्रजातियां विकसित की गई हैं. पवारखेड़ा अनुसंधान केंद्र द्वारा सिंचित जमीन के लिए जेएलएस-41 प्रजाति विकसित की गई हैं. इसके अलावा असिंचित जमीन के लिए भी जेएलएस-66 काफी लोकप्रिय प्रजाति है. इसके अलावा जेएलएस-73 और जेएलएस-95 और जेएलएस-93 प्रजातियां वर्तमान परिवेश में अच्छा उत्पादन दे रही हैं.

flaxseed tree
अलसी का पेड़.

यंत्रीकरण और आदानों का प्रयोग कर पा सकते हैं अच्छा उत्पादन
डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि अलसी की खेती में किसान आमतौर पर खराब भूमि और आदानों का कम प्रयोग करते हैं. उचित प्रबंधन के माध्यम से खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्व नियंत्रण का प्रबंधन कर अलसी का अच्छा उत्पादन किया जा सकता है. उत्पादन की बात करें तो प्रति एकड़ में 6 क्विंटल तक फसल पाई जा सकती है. यंत्रीकरण के अभाव में कटाई सफाई और गहाई में किसानों के लिए श्रमिकों की ज्यादा आवश्यकता पढ़ती है और समय भी ज्यादा लगता है. इन परिस्थितियों को देखते हुए हमने यंत्रीकरण पर भी काम किया है.

कंबाइंड हार्वेस्टर, रीपर और ट्रैक्टर के माध्यम से जुताई की जा सकती है. पोषक तत्व के प्रबंधन के लिए 80:40:20:20 में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर का प्रयोग किया जा सकता है. 10 किलो प्रति एकड़ के मान से सल्फर का प्रयोग अलसी की खेती में जरूर किया जाना चाहिए. इसके अलावा 40-45 किलो डीएपी, एनपीके उर्वरक का उपयोग भी कर सकते हैं. खरपतवार नियंत्रण के लिए गेहूं में उपयोग होने वाले खरपतवार नाशक का उपयोग किया जा सकता है. खरपतवार नाशक का जो उपयोग एक हेक्टेयर गेहूं की फसल के लिए होता है. उसका अलसी के लिए तीन एकड़ में प्रयोग किया जा सकता है.

बादाम से भी ज्यादा गुणकारी है अलसी
अलसी के गुणों पर चर्चा करते हुए डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि अलसी में मुख्य रूप से ओमेगा-3 पाया जाता है. ओमेगा-3 अलसी तेल और बादाम में पाया जाता है, लेकिन इसकी मात्रा अलसी में सबसे ज्यादा होती है. हमारी दिनचर्या और खानपान में बदलाव के कारण ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का अनुपात अव्यवस्थित हो गया है. जिसके कारण मोटापे की समस्या काफी तेजी से बढ़ रही है. अलसी का सेवन कर अनुपात को व्यवस्थित कर मोटापे को रोका जा सकता है.

ऊर्जावान रहने के लिए करें तलसी का प्रयोग
शरीर की रोजाना की ऊर्जा की आवश्यकता को देखते हुए कम से कम 30 ग्राम भुनी हुई अलसी का सेवन जरूर करना चाहिए. घर में उपलब्ध खाद्य तेल के साथ अलसी को रोस्टेड कर सकते हैं या फिर उसे आटे में मिलाकर या अलसी के लड्डू बनाकर खाया जा सकता है. सलाद और अंकुरित अनाज के माध्यम से अलसी का उपयोग कर रोजाना के भोजन में शामिल करने से ऊर्जा का स्तर काफी अच्छा बना रहता है.

MP में 50 फीसदी अलसी की खेती, फिर भी समर्थन मूल्य तय नहीं

हड्डी, दिल के रोग और कैंसर से लड़ने में है कारगर
डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि उम्र के साथ-साथ हड्डी जनित रोग बढ़ जाते हैं. खासकर जोड़ों में सिरेमिक फ्लूइड की कमी के चलते लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन परिस्थितियों में अलसी का सेवन कारगर होता है, क्योंकि हड्डी से जुड़े लोगों के लिए ओमेगा-3 काफी महत्वपूर्ण है. इसके अलावा कैंसर और हाई ब्लड प्रेशर से लड़ने में भी अलसी काफी अहम रोल अदा करती है. इससे संबंधित कई रिसर्च देश और दुनिया में की गई हैं. कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के लिए अलसी का लगातार सेवन करना चाहिए.

Last Updated : Oct 28, 2021, 3:43 PM IST
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