सागर। सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक अधिकारियों की नियुक्ति न होने के कारण प्रभारी अधिकारी एक-दूसरे को उपकृत करने का काम कर रहे हैं. एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि सागर विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव और उप कुलसचिव ने नियमों को ताक पर रखकर एक दूसरे को पीएचडी करने की अनुमति दे दी है. जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा पीएचडी के जो नियम तय किए गए हैं,उसके अनुसार इन अशैक्षणिक अधिकारियों को पीएचडी की अनुमति मिलना इतना आसान नहीं है. अब इस मामले की शिकायत राष्ट्रपति को दर्ज कराई गई है.
क्या है मामला
केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर में आरटीआई के जरिए हुए खुलासे में पाया गया है कि संयुक्त कुलसचिव संतोष सहगौरा को पीएचडी करने की अनुमति उप कुलसचिव सतीश कुमार ने 20 अक्टूबर 2020 में जारी की है. वहीं उप कुलसचिव सतीश कुमार को प्रभारी कुलसचिव संतोष सहगोरा ने 18 दिसंबर 2020 को पीएचडी की अनुमति प्रदान कर दी है. विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों द्वारा एक दूसरे को उपकृत करने का यह अनोखा मामला है. आरटीआई के जरिए हुए खुलासे में सामने आया है कि जिन नियमों के अनुसार अनुमति दी गई है,वो नियम यूजीसी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा तय किए गए पीएचडी के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं.
किस तरह उड़ाई गई नियमों की धज्जियां
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 2009 में पीएचडी के लिए नए सिरे से नियम बनाए गए थे. इन नियमों के अलावा सेवाकाल में रहते हुए पीएचडी करने के लिए भी नियम बनाए गए हैं. ऐसी स्थिति में सेवा में रहते हुए प्रशासनिक अधिकारियों को पीएसजी करने के लिए अध्ययन अवकाश प्राप्त करने का कोई प्रावधान नहीं है. यह व्यवस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा शैक्षणिक संकाय को ही मिलती है. उसके लिए भी विश्वविद्यालय कार्यपरिषद की अनुमति लेना पड़ता है.
राजपत्र के गजट नोटिफिकेशन 18 जुलाई 2018 में प्रकाशित नियमों का भी इस मामले में उल्लंघन किया गया है. प्रभारी कुलसचिव या प्रभारी कुलपति को ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह एक दूसरे को पीएचडी करने की अनुमति प्रदान कर दें.
प्रभारी कुल सचिव संतोष सहगोरा को उप कुलसचिव सतीश कुमार द्वारा शोध कार्य के लिए दी गई. अनुमति में कहा गया है कि पीएचडी के लिए अलग से अवकाश की पात्रता नहीं होगी. जबकि नियम अनुसार पीएचडी एक पूर्णकालिक शोध कार्य है. बगैर अवकाश के नए नियमों के तहत इसको पूरा करना संभव नहीं है. 2009 में बनाए गए नियमों के अनुसार पीएचडी के दौरान 6 महीने के कोर्स वर्क शोधार्थी के लिए पूर्णकालिक उपस्थिति के साथ करना होता है.
इस अनुमति में यह जरूर कहा गया है कि शोध कार्य के चलते विश्वविद्यालय के प्रशासनिक दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. तो अनुमति निरस्त करने पर विचार किया जा सकता है.
नियमित कर्मचारी के लिए लेना होता है अवकाश
सागर विश्वविद्यालय के मीडिया ऑफिसर दिवाकर सिंह राजपूत का कहना है कि पीएचडी के लिए जहां तक कोर्स वर्क की बात है, तो वह रेगुलर मोड पर ही होता है. लेकिन कोविड-19 में क्या व्यवस्था हो रही है,यह वही विश्वविद्यालय बता सकता है. जिस विश्वविद्यालय के अंतर्गत पीएचडी किया जाना है. पीएचडी आपको रेगुलर मोड पर करना होगी. प्राइवेट मोड पर नहीं हो सकती है. कोर्स वर्क भी रेगुलर मोड पर करना होता है. अगर कोई नियमित कर्मचारी पीएचडी करता है, तो उसे अवकाश लेना होगा जब पीएचडी कर पाएगा.