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साढ़े चार सौ साल पहले हुई थी इस मेले की शुरूआत, जाने क्या है इसकी अनोखी परंपरा ?

सागर जिले के देवरी विधानसभा क्षेत्र का श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर का भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें श्रद्धालू यहां अपनी मनोकामनाएं को पूरा करने के लिए अंगारों में नंगे पैर चलने की परंपरा को निभाते हैं.

A grand fair of Shri Dev Khanderao Ji Temple is organized
श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर का मेले का किया जाता है भव्य मेले का आयोजन
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Published : Dec 15, 2019, 9:11 AM IST

सागर। बुंदेलखंड अपनी अनूठी परंपराओं के लिए देश दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है, चाहे यहां की बोली, लोक गीत या फिर परंपराओं को दर्शाते मेले हों. सभी में यहां की संस्कृति रची बसी है. देवरी विधानसभा क्षेत्र का श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर का भव्य मेला इन्हीं में से एक है, जहां बुंदेलखंड के तमाम रंग एक साथ नजर आते हैं.


स्थानीय लोगों के अनुसार इस मेले की शुरुआत करीब साढ़े चार सौ साल पहले हुई थी, इस मेले में लोग यहां स्थित श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर में अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और अपनी मन्नत पूरी करने के लिए श्रद्धालू यहां अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं.

साढ़े चार सौ साल पहले हुई थी इस मेले की शुरूआत

अंगारों पर नंगे पैर चलने की परंपरा

दरअसल इस परंपरा के पीछे की कहानी कुछ यूं है कि, साढ़े चार सौ साल पहले यहां के स्थानीय शासक के बेटे की तबीयत अचानक बहुत ख़राब हो गई, इलाके के तमाम वैद्य उसका ईलाज करने में नाकाम रहे, तभी राजा के सपने में देवता श्रीदेवखंडेराव जी आए और उन्होंने राजा से मंदिर के पास नाव के आकार का गड्ढा बनाकर उसमें अंगारे भरकर उस पर नंगे पैर पार करने को कहा और राजा ने ऐसा ही किया, जिससे उनके बेटे की तबीयत ठीक हो गई.


इस घटना के बाद से ही मंदिर प्रांगण में जश्न मनाया गया और तभी से इस मेले की शुरुआत हुई, जहां लोग आज भी अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहां दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं. 11 दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर दराज से हज़ारों लोग अपनी मन्नत लेकर मेले का लुत्फ़ उठाने आते हैं.

सागर। बुंदेलखंड अपनी अनूठी परंपराओं के लिए देश दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है, चाहे यहां की बोली, लोक गीत या फिर परंपराओं को दर्शाते मेले हों. सभी में यहां की संस्कृति रची बसी है. देवरी विधानसभा क्षेत्र का श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर का भव्य मेला इन्हीं में से एक है, जहां बुंदेलखंड के तमाम रंग एक साथ नजर आते हैं.


स्थानीय लोगों के अनुसार इस मेले की शुरुआत करीब साढ़े चार सौ साल पहले हुई थी, इस मेले में लोग यहां स्थित श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर में अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और अपनी मन्नत पूरी करने के लिए श्रद्धालू यहां अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं.

साढ़े चार सौ साल पहले हुई थी इस मेले की शुरूआत

अंगारों पर नंगे पैर चलने की परंपरा

दरअसल इस परंपरा के पीछे की कहानी कुछ यूं है कि, साढ़े चार सौ साल पहले यहां के स्थानीय शासक के बेटे की तबीयत अचानक बहुत ख़राब हो गई, इलाके के तमाम वैद्य उसका ईलाज करने में नाकाम रहे, तभी राजा के सपने में देवता श्रीदेवखंडेराव जी आए और उन्होंने राजा से मंदिर के पास नाव के आकार का गड्ढा बनाकर उसमें अंगारे भरकर उस पर नंगे पैर पार करने को कहा और राजा ने ऐसा ही किया, जिससे उनके बेटे की तबीयत ठीक हो गई.


इस घटना के बाद से ही मंदिर प्रांगण में जश्न मनाया गया और तभी से इस मेले की शुरुआत हुई, जहां लोग आज भी अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहां दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं. 11 दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर दराज से हज़ारों लोग अपनी मन्नत लेकर मेले का लुत्फ़ उठाने आते हैं.

Intro:सागर। बुंदेलखंड क्षेत्र अपनी अनूठी परंपराओं के लिए देश दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है, चाहे यहां की बोली हो, लोक गीत हो या यहाँ की परंपराओं को दर्शाते मेले। कुछ ऐसे ही अनूठी परंपरा को दर्शाता है सागर के देवरी विधानसभा क्षेत्र का श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर का भव्य मेला। स्थानिय लोगों के अनुसार इस मेले की शुरुवात करीब साढ़े चार सौ सालों पहले हुई थी, इस मेले की खासियत है कि इस मेले में लोग यहां स्थित श्रीदेवखंडेराव जी मंदिर में अपनी मनोकामनां लेकर आते हैं और अपनी मन्नत पूरी करने के लिए श्रृद्धालू यहां अंगारों पर से गुज़रते हैं,Body:दरअसल इस परंपरा के पीछे की कहानी कुछ यूँ है कि साढ़े चार सौ सालों पहले यहाँ के स्थानिय शासक के बेटे की तबियत अचानक बहुत ख़राब हो गई, इलाके के तमाम वैद्य उसका ईलाज करने में नाकाम रहे, तभी राजा के सपने में स्थानिय देवता श्रीदेवखंडेराव जी आए और उन्होने राजा से मंदिर के पास नाव के आकार का गड्ढा कर उसमें अंगारे भरकर उसे नंगे पैरों से पार करने को कहा और राजा ने देव स्वप्नानुसार ऐसा ही किया जिससे उसके बेटे की तबियत ठीक हो गई।Conclusion:इस घटना के बाद से ही मंदिर प्रांगण में जश्न मनाया गया और तभी से इस मेले की शुरुवात हुई, जहां लोग आज भी अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहाँ दहकते अंगारों से गुज़रते हैं। जहाँ 11 दिनों तक चलने वाले इस मेले में दूर दराज से हज़ारों लोग अपनी मन्नत लेकर और मेले का लुत्फ़ उठाने यहाँ आते हैं।
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