रीवा। देशभर में दशहरें की धूम है. लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मना रहे हैं. तो नवरात्री के अंतिम दिन भक्त माता रानी को अपने-अपने तरीके से खुश करते है और मनाते हैं. भक्त कुछ इस तरीके की भी रस्में निभाते है जिसे देख कर आप चौक जाएं. ऐसे ही रीवा के महसांव गांव के लोग, जो भगवान को मनाने के लिए एक खतरनाक रस्म पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं.
यदि इंसान के शरीर में कहीं एक कांटा भी चुभ जाये तो दर्द की लहर पूरे शरीर मे दौड़ जाती है, पर श्रद्धा और विश्वास कि ताकत का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता हैं यहां के लोग एक मोटी रॉड गाल में डाल लेते हैं. फिर भी भक्तों को कोई तकलीफ नहीं होती. यह सब इस बात को सोचने के लिए मजबूर करते है कि कहीं ना कहीं कोई शक्ति विद्यमान है जिसका ये भक्त आभास करते है और उसी के चलते यह सब कुछ कर जाते है.
यहां भक्ती मे लीन नौजवानों के गाल को आठ से दस फीत लम्बे बाने से छेदा जाता है, लेकिन भगवती की शक्ति और आस्था इन पर ऐसी जुडी हुई है कि इन्हे इसका दर्द भी महसूस नही होता है. विंध्य क्षेत्र में शरीर पर बाना छेदने, अंगारो और नुकीले किलों पर चलने, ज्वारा और काली खप्पड़ खेलने की परम्परा कई वर्षो से चली आ रही है. माना जाता है कि लोग खुशहाली की मान मांगते है और पूरी होने पर घर का मुखिया नवरात्रि में भगवती को खुश करने के लिए व्रत रखता है
आमतौर पर ये परंपरायें आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में ज्यादा होती है. लेकिन यह रीवा में कई शिक्षित समुदाय के लोग भी ऐसे हैरत अंगेज़ कारनामें दिखाते है. मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर महसांव में चैरसिया परिवार के हर घर का एक सदस्य नवरात्रि में बाना छेद कर अपनी भगवती के प्रति आस्था प्रकट करता है. इस परम्परा में आसपास के करीब 20 गांव के लोग आते है. वाकई में कोई तो शक्ती है जो इन लोगों को हिम्मत और साहस देती हैं.