रीवा। जिले में अनेक ऐतिहासिक धरोहर मौजूद हैं. उनमें से एक है गोविंदगढ़ किला जो रीवा रियासत के लिए महत्वपूर्ण रहा है. किले के महाराजा रघुराजा सिंह सवारियों के बहुत शौकीन थे, जिसके लिए महाराज ने एक ऐसे रथ का निर्माण करवाया था जिसे खींचने के लिए चार हाथियों का जोर लगता था. सोने चांदी से सुसज्जित दो मंजिल इमारत का एक रथ, जिसमें बकायदा शयन की भी व्यवस्था की गई.
राज दरबार का विशेष वाहन
साल 1875 में महाराज रघुराज सिंह ने इस रथ का निर्माण करवाया था और इस रथ में महाराज स्वयं अपनी सवारी करते थे. साल 1880 में महाराज रघुराज सिंह की मृत्यु हो गई. इसके बाद इस रथ की देखरेख में भी कमी आई. फिर भी वह रथ राज दरबार का विशेष वाहन ही बना रहा.
महारानी विक्टोरिया ने भी की सवारी
साल 1911 में जब दिल्ली दरबार के राजधानी बनाए जाने का शताब्दी समारोह मनाया गया. उस समय इस रथ को विशेष तरजीह दी गई और यह रथ समारोह के परेड में शामिल हुआ, हालांकि दरबार में मौजूद रानियों की हाथियों से डर की वजह से इस रथ को करतब दिखाने का मौका तो नहीं मिला मगर सहभागिता दर्ज कराई. उस दौरान समारोह में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया भी शामिल थीं. उन्होंने भी इस रथ में सवारी करने की इच्छा जाहिर की थी.
रथ को संग्राहित करने की उठी मांग
साल 1945 में अंतिम बार रीवा में आयोजित दशहरा समारोह में शामिल होने के बाद इस रथ को किले के अंदर कैद कर दिया गया और तब से यह रथ अपने वजूद के लिए लड़ाई लड़ रहा है. इस रथ को संग्रहित करने के लिए इतिहासकारों के द्वारा लगातार आवाज उठाई जा रही है. जिससे रीवा रियासत की परंपरा के बारे में लोगों को जानकारी हो सके.
रथ की विशेषताएं
रथ के निर्माण में लड़की, लोहा, तांबा, पीतल व चांदी का इस्तमाल किया गया था. रथ की ऊंचाई बारह से पन्द्रह फिट की है. रथ इतना विशाल था कि उसमें महराजा के साथ कई लोग आराम से जा सकते थे और इसको घोड़े नहीं खींच पाते थे बल्कि हाथी की मदद से इनको खींचा जाता था.
जर्जर हो चुका रथ
रीवा रियासत के राजा महाराजाओं की यह गजरथ शान बढ़ाता था, लेकिन अब प्रशासनिक देखरेख के अभाव में इस विशाल गजरथ का अस्तित्त्व ही खो गया है. सालों से गोविंदगढ के किले में खड़ा यह रथ अब जर्जर हो चुका है और इसमें लगा कीमती सामान भी चोर उड़ा ले गए. इतिहासकारों का मानना है की इस तरह का भव्य रथ एशिया यूरोप सहित पूरे विश्व में कही भी मौजूद नहीं है.