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रीवा रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुली को सरकार से ये है आस

नियमित होने की लालसा लिए हुए आज भी बहुत से लोग रीवा रेलवे स्टेशन पर कुली काम कर रहे हैं. कुली का काम करने वाले इन लोगों को सरकार से उम्मीद है लेकिन सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, ऐसे में उनका परिवार भूखों मरने के लिए मजबूर है.

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Published : Jul 11, 2019, 12:10 AM IST

कुली को सरकार से ये है आस

रीवा। रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहे लोग सरकार की ओर नियमित किए जाने की आशा भरी नजरों से देख रहे हैं. पिछले 25 सालों से काम कर रहे लोगों की ओर किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. इनके लिए किसी तरह के रोजगार की व्यवस्था की गई और न ही नियमित किया गया, जिसकी वजह से अब वो भूखों मरने को मजबूर हो रहे हैं.

कुली को सरकार से ये है आस


साल 1993 में जब पहली बार रीवा से भोपाल के लिए रेल सुविधा शुरू की गई, तब रीवा के लोगों की बहुत सी आशाएं थी. रीवा से रेल लाइन की शुरूआत हुई तब अपने खुद के विकास की चिंता करते हुए कुछ लोगों ने यहां पर कुली का काम करना शुरू कर दिया. कुली का काम कर रबहे लोगों को उम्मीद थी कि सरकार उनका ध्यान रखते हुए नियमित कर देगी लेकिन किसी ने उनके विकास की ओर ध्यान नहीं दिया.

कुली का काम करने वाले लोगों से बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा. उन्होंने बड़ी आशा भरी निगाहों से सरकार के तरफ एक बार फिर उम्मीद का दामन फैलाया है. उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से इस पेशे पर लगे हुए हैं. हर बार चुनाव में उम्मीद की जाती है कि उनके भी लिए कोई सरकार आएगी जो उनके परिवार वालों के लिए चिंता करेगी, लेकिन हालात अब तक वैसे ही हैं. लोगों ने कहा कि कुली के काम में इतनी भी कमाई नहीं होती कि वो अपने परिवार को दो वक्त की रोटी भी खिला सके.

रीवा। रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहे लोग सरकार की ओर नियमित किए जाने की आशा भरी नजरों से देख रहे हैं. पिछले 25 सालों से काम कर रहे लोगों की ओर किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. इनके लिए किसी तरह के रोजगार की व्यवस्था की गई और न ही नियमित किया गया, जिसकी वजह से अब वो भूखों मरने को मजबूर हो रहे हैं.

कुली को सरकार से ये है आस


साल 1993 में जब पहली बार रीवा से भोपाल के लिए रेल सुविधा शुरू की गई, तब रीवा के लोगों की बहुत सी आशाएं थी. रीवा से रेल लाइन की शुरूआत हुई तब अपने खुद के विकास की चिंता करते हुए कुछ लोगों ने यहां पर कुली का काम करना शुरू कर दिया. कुली का काम कर रबहे लोगों को उम्मीद थी कि सरकार उनका ध्यान रखते हुए नियमित कर देगी लेकिन किसी ने उनके विकास की ओर ध्यान नहीं दिया.

कुली का काम करने वाले लोगों से बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा. उन्होंने बड़ी आशा भरी निगाहों से सरकार के तरफ एक बार फिर उम्मीद का दामन फैलाया है. उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से इस पेशे पर लगे हुए हैं. हर बार चुनाव में उम्मीद की जाती है कि उनके भी लिए कोई सरकार आएगी जो उनके परिवार वालों के लिए चिंता करेगी, लेकिन हालात अब तक वैसे ही हैं. लोगों ने कहा कि कुली के काम में इतनी भी कमाई नहीं होती कि वो अपने परिवार को दो वक्त की रोटी भी खिला सके.

Intro:रीवा रेलवे स्टेशन पर बरसों से कुली का काम कर रहे लोग अब सरकार की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं कि कब उनकी नियुक्ति भी रेगुलर हो जाएगी मगर सरकार पिछले 25 वर्षों से काम कर रहे लोगों की तरफ उदासीन बना बैठा है तथा उनके लिए किसी भी प्रकार के रोजगार की व्यवस्था नहीं कर रही है जिसके कारण अब वह भूखों मरने के लिए मजबूर हो रहे हैं।


Body:वर्ष 1993 में जब पहली बार रीवा से भोपाल के लिए रेल सुविधा शुरू की गई तब रीवा के लोगों की बहुत सी आशाएं जागृत तथा लोगों ने रेलवे के विकास के साथ-साथ अपने विकास की भी कल्पना करनी शुरू कर दी मगर धीरे-धीरे जैसे ही रेलवे का विकास होता गया और रीवा के ही लोगों को उससे उपेक्षित रखा गया तब उनकी आशाएं धराशाई हो गई तथा वह खुद को लुटा हुआ महसूस करने लगे।

दरअसल जब रीवा से रेल लाइन की शुरूआत हुई तब अपने खुद के विकास की चिंता करते हुए कुछ लोगों ने यहां पर कुली का काम करना शुरू कर दिया और अपने मन में आशाएं रखने लगे कि उन्हें भी सरकार द्वारा किसी भी प्रकार से ध्यान दिया जाएगा और कुली के रूप में ही सही लेकिन उनकी उचित नियुक्ति की जाएगी तथा वह भी अपने परिवार का पेट पालने के काबिल हो जाएंगे मगर जैसे-जैसे दिन बीता गया उनकी आशाएं भी धराशाई दिखाई देने लगी तथा ना तो उन्हें आने-जाने वाले यात्रियों से कोई सुविधा मिल सके और ना ही सरकारी खजाने से।

कुलियों को लगा कि शायद उनके परिवार का पेट पालने के लिए सरकार को योजना चलाएगी और उन्हें भी स्थाई करेगी परंतु अब तक सरकार को उनकी कोई चिंता नहीं हुई।

इन कुलियों का दर्द जानने के लिए जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बड़ी आशा भरी निगाहों से सरकार के तरफ एक बार फिर उम्मीद का दामन फैलाया है उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से इस पेशे पर लगे हुए हैं हर बार चुनाव में उम्मीद की जाती है कि उनके भी लिए कोई सरकार आएगी जो उनके और उनके परिवार वालों के लिए चिंता करेगी लेकिन हालात अब तक वही बने हुए हैं। लोगों ने कहा कि इसमें इतनी भी कमाई नहीं होती कि हम अपने परिवार को दो टाइम की रोटी भी खिला सके लेकिन फिर भी इस काम को करने के लिए मजबूर है।


Conclusion:आपको बता दें कि नियमित होने की लालसा लिए हुए आज भी बहुत से लोग कुली के रूप में लगातार रीवा रेलवे स्टेशन पर काम कर रहे हैं हालांकि अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि उनकी काम करने का कोई मतलब नहीं रह पाया है क्योंकि सरकार की ओर से उनका कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है और उनका परिवार भूखों मरने के लिए मजबूर है।

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