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व्हाइट टाइगर की धरती पर हमेशा आए चौंकाने वाले परिणाम, दिलचस्प है रीवा के सियासी समीकरण - रीवा लोकसभा सीट

रीवा लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी कांग्रेस में जोरदार मुकाबला होने की उम्मीद है. बीजेपी ने यहां वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा को टिकट दिया है. तो कांग्रेस ने सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा है.

रीवा लोकसभा सीट
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Published : Apr 11, 2019, 9:02 PM IST

रीवा। विंध्य की सियासत का केंद्र कहे जाने वाली रीवा लोकसभा सीट सूबे की हाइप्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है. जिसके परिणाम हर बार चौंकाने वाले रहे हैं. यह सूबे की एक मात्र ऐसी सीट है जहां किसी एक सियासी दल का सीधा दखल नहीं माना जाता है. इस सीट पर कांग्रेस, बीजेपी, बीएसपी, और निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली है.

बात अगर रीवा संसदीय सीट के सियासी इतिहास की जाए तो, रीवा के महाराजा मार्तंड सिंह सबसे ज्यादा तीन बार रीवा से सांसद चुने गए हैं. उन्होंने 1971, 1980 और 1984 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. रीवा में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 6 बार, बीजेपी को तीन बार और बीएसपी को भी तीन बार जीत मिली है. जबकि एक-एक बार निर्दलीय प्रत्याशी और भारतीय लोकदल पार्टी के उम्मीदवारों ने भी रीवा में जीत दर्ज की है.

रीवा लोकसभा सीट पर ब्राह्राणों का सीधा दखल माना जाता है. यही वजह है कि इस सीट पर सबसे ज्यादा ब्राह्यण प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की है फिर चाहे पार्टी कोई भी रही हो. बीजेपी और कांग्रेस ने इस बार भी रीवा में ब्राह्यण प्रत्याशियों पर ही दांव लगाया है. बीजेपी ने जहां वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा को फिर से मौका दिया है. तो कांग्रेस ने दिवंगत पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी को चुनावी मैदान में उतारा है. जिससे इस बार यहां मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है.

रीवा लोकसभा सीट का इतिहास।

हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को अगर लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाए, तो रीवा में बीजेपी का दबदबा नजर आता. संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली आठों विधानसभा सीट, रीवा, सिरमौर, मऊगंज, सिमरिया, गुढ़, देवतालाब, मनगवां और त्योंथर पर बीजेपी का कब्जा है. जिससे पार्टी के हौसले बुलंद है. हालांकि कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है. जबकि उसे पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के निधन से सहानुभूति मिलने की भी उम्मीद. यही वजह है कि कांग्रेस ने यहां सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ को मौका दिया है.

खास बात यह है कि रीवा के परिणाम हर बार चौंकाने वाले रहे हैं. 2009 में इस सीट पर बसपा ने जीत दर्ज कर सारे सियासी समीकरणों को पलट कर रख दिया था. तो 2014 में बीजेपी के कमजोर प्रत्याशी माने जा रहे जनार्दन मिश्रा ने सुंदरलाल तिवारी को हरा दिया था. जबकि इस बार तो रीवा में बीएसपी और एसपी गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में है. जिससे रीवा का मुकाबला त्रिकोणीय होने की उम्मीद है.

रीवा। विंध्य की सियासत का केंद्र कहे जाने वाली रीवा लोकसभा सीट सूबे की हाइप्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है. जिसके परिणाम हर बार चौंकाने वाले रहे हैं. यह सूबे की एक मात्र ऐसी सीट है जहां किसी एक सियासी दल का सीधा दखल नहीं माना जाता है. इस सीट पर कांग्रेस, बीजेपी, बीएसपी, और निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली है.

बात अगर रीवा संसदीय सीट के सियासी इतिहास की जाए तो, रीवा के महाराजा मार्तंड सिंह सबसे ज्यादा तीन बार रीवा से सांसद चुने गए हैं. उन्होंने 1971, 1980 और 1984 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. रीवा में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 6 बार, बीजेपी को तीन बार और बीएसपी को भी तीन बार जीत मिली है. जबकि एक-एक बार निर्दलीय प्रत्याशी और भारतीय लोकदल पार्टी के उम्मीदवारों ने भी रीवा में जीत दर्ज की है.

रीवा लोकसभा सीट पर ब्राह्राणों का सीधा दखल माना जाता है. यही वजह है कि इस सीट पर सबसे ज्यादा ब्राह्यण प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की है फिर चाहे पार्टी कोई भी रही हो. बीजेपी और कांग्रेस ने इस बार भी रीवा में ब्राह्यण प्रत्याशियों पर ही दांव लगाया है. बीजेपी ने जहां वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा को फिर से मौका दिया है. तो कांग्रेस ने दिवंगत पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी को चुनावी मैदान में उतारा है. जिससे इस बार यहां मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है.

रीवा लोकसभा सीट का इतिहास।

हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को अगर लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाए, तो रीवा में बीजेपी का दबदबा नजर आता. संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली आठों विधानसभा सीट, रीवा, सिरमौर, मऊगंज, सिमरिया, गुढ़, देवतालाब, मनगवां और त्योंथर पर बीजेपी का कब्जा है. जिससे पार्टी के हौसले बुलंद है. हालांकि कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है. जबकि उसे पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के निधन से सहानुभूति मिलने की भी उम्मीद. यही वजह है कि कांग्रेस ने यहां सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ को मौका दिया है.

खास बात यह है कि रीवा के परिणाम हर बार चौंकाने वाले रहे हैं. 2009 में इस सीट पर बसपा ने जीत दर्ज कर सारे सियासी समीकरणों को पलट कर रख दिया था. तो 2014 में बीजेपी के कमजोर प्रत्याशी माने जा रहे जनार्दन मिश्रा ने सुंदरलाल तिवारी को हरा दिया था. जबकि इस बार तो रीवा में बीएसपी और एसपी गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में है. जिससे रीवा का मुकाबला त्रिकोणीय होने की उम्मीद है.

Intro:विंध्य की राजनीति हमेशा से ही अपने आप में अनोखी परिणाम लाती रही है। भले ही विंध्य प्रदेश के रूप में पहली बार 1951 में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस पार्टी से राजभान सिंह सांसद बने लेकिन रीवा लोकसभा सीट का पहला चुनाव 1957 में हुआ जोकि रीवा विंध्य प्रदेश की 4 संसदीय सीटों में से एक रही। आज रीवा लोकसभा की सीट पूरे जिले को कवर करती है। रीवा हमेशा सेवा सीट रही है जिसमें कभी किसी एक पार्टी को महत्व नहीं मिला। हमेशा से ही यह सीट बदलाव का रुख अपनाती रही है। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा साथ ही समाजवादियों के गढ़ माने जाने वाली रीवा में बसपा का भी खासा असर देखने को मिलता रहा है। एक पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस ने इस लोकसभा सीट से सबसे अधिक बार चुनाव जीते हैं। यह सी सीट रही जहां कई दलों के साथ साथ निर्दलीय उम्मीदवारों को भी संसद में बैठने का मौका मिला है। रीवा लोकसभा सीट से सबसे अधिक बार सांसद महाराजा मार्तंड सिंह रहे हैं। महाराजा मार्तंड सिंह ने 1971, 1980 और 1984 तीन बार सांसद रहे हैं। जिसमें अंतिम बार उन्होंने कांग्रेस के झंडे के तले चुनाव लड़ा था। वही सबसे अधिक दूसरी बार शिव दत्त उपाध्याय ने कांग्रेस पार्टी के झंडे पहले चुनाव लड़कर 1957 और 1962 में दो बार सांसद रहे।


रीवा लोकसभा सीट से 1977 में यमुना प्रसाद शास्त्री भारतीय लोक दल पार्टी से सांसद बने थे। वही 1989 में यमुना प्रसाद शास्त्री पहली बार जनता दल से सांसद चुने गए थे। इस सीट से पहली बार बहुजन समाज पार्टी को 1991 में भीम सिंह पटेल के रूप में पहला सांसद मिला। उसके बाद 1996 में भी बहुजन समाज पार्टी ने बुद्ध सेन पटेल के रूप में अपनी सत्ता को बरकरार रखा। वहीं पहली बार 1998 में भारतीय जनता पार्टी ने चंद्रमणि त्रिपाठी के रूप में अपना खाता खोला। उसके बाद 11 साल के बाद कांग्रेस पार्टी का सूखा समाप्त हुआ 1999 में सुंदरलाल तिवारी ने कांग्रेस के झंडे तले चुनाव लड़कर जीत हासिल की सुंदरलाल तिवारी रीवा के कांग्रेस के रूप में अंतिम सांसद थे और आज 15 साल के बाद 2019 के चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर जीत का इंतजार लगा हुआ है।

रीवा लोकसभा सीट पर कांग्रेस को 6 बार बसपा को तीन बार और बीजेपी को तीन बार जीत मिली है कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सीट पर ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारी है तीन बार इस सीट पर जितने वाली बीजेपी ब्राह्मण चेहरे के दम पर ही जीती है रीवा लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें सिरमौर,मऊगंज,रीवा,सिमरिया, देवतालाब, गुढ, मनगवा, त्योंथर यह विधानसभा सीटें आती हैं। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में इन आठों सीटों पर भाजपा का दबदबा बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी इस बार 8 विधानसभा सीटों को लेकर अपने कंधे मजबूत किए हुए हैं।





Body:2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से पहली बार सांसद का चुनाव लड़ रहे जनार्दन मिश्रा कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद पर भारी पड़ गए इस चुनाव में जनार्दन मिश्रा को 3,83,320 वोट मिले थे तो ही सुंदर लाल तिवारी को 2,14,594 वोट मिले थे। जिस में बसपा के देवराज सिंह तीसरे स्थान पर थे जिनको 175576 वोट मिले थे। हालांकि 2014 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी काफी मजबूती नरेंद्र मोदी और चाय वाले मोदी के रूप में चुनाव लड़ने वाली भाजपा एक भारी बहुमत से सरकार पर काबिज हुई। हैरान कर देने वाली बात रीवा लोकसभा सीट में यह थी कि इस सीट में लोगों ने 10658 वोट नोटा को दिए।




Conclusion:2011 की जनगणना के मुताबिक रीवा लोकसभा क्रमांक 10 की जनसंख्या 23 लाख 65 हजार 106 है। यहां की 83.27 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 16.73 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। यहां पर 16.22 फीसदी लोग अनुसूचित जाति और 13.19 फीसदी अनुसूचित जनजाति के हैं। चुनाव आयोग को आंकड़े के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 15,44,719 मतदाता थे। इसमें से 7लाख 22 हजार 919 महिला और 8 लाख 21 हजार 800 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर 53.73 फीसदी मतदान हुआ था। जिसमें 8 लाख 30 हजार 2 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था। जिसमें 4 लाख 57 हजार 663 पुरुष और 3 लाख 72 हजार 339 महिलाएं शामिल थी।





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