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रेनगन स्प्रिंकलर तकनीक से बढ़ी खेती की क्षमता, जल संचयन के लिए बनाया वॉटर बैंक

रतलाम जिले के करमदी गांव के किसान खेती में सिंचाई की नई तकनीक अपनाकर पानी तो बचा ही रहे हैं साथ ही आधुनिक तकनीक अपनाकर ज्यादा उत्पादन भी प्राप्त कर रहे हैं. करमदी गांव के प्रगतिशील किसान रामबाबू पाटीदार और राजेश पुरोहित जल संरक्षण के लिये प्लास्टिक तालाब, ड्रिप और रेनगन स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई की नई तकनीकों का इस्तेमाल कर अपने खेतों की सिंचाई कर रहे हैं.

Rengan sprinkler technology increases farming capacity
रेनगन स्प्रिंकलर तकनीक से बढ़ी खेती की क्षमता
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Published : Sep 13, 2020, 10:08 PM IST

रतलाम। जिले के करमदी गांव के किसान खेती में सिंचाई की नई तकनीक अपनाकर पानी तो बचा ही रहे हैं साथ ही आधुनिक तकनीक अपनाकर ज्यादा उत्पादन भी प्राप्त कर रहे हैं. करमदी गांव के प्रगतिशील किसान रामबाबू पाटीदार और राजेश पुरोहित जल संरक्षण के लिये प्लास्टिक तालाब, ड्रिप और रेनगन स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई की नई तकनीकों का इस्तेमाल कर अपने खेतों की सिंचाई कर रहे हैं. इस खेती में खासबात यह है कि कृषि और उद्यानिकी विभाग की प्रोत्साहन योजनाओं की मदद लिए बगैर इन किसानों ने अपनी सफलता की कहानी खुद लिखी है. यही नहीं इन किसानों ने पूरे सालभर फसल में उपयोग किए जाने वाले सिंचाई के पानी की गणना कर उसे प्लास्टिक तालाब में संचय कर एक वॉटर बैंक बनाया है. जिसका उपयोग किसान गर्मी के दिनों में पानी की कमी आने पर कर सकेंगे.

रेनगन स्प्रिंकलर तकनीक से बढ़ी खेती की क्षमता

किसान रामबाबू पाटीदार ने बताया कि पहले पानी की कमी के कारण खेती नहीं कर पाते थे. पानी की किल्लत के कारण कुछ ही क्षेत्र में खेती करना संभव था. लेकिन किसान ने पर्याप्त खेती के लिए खेत में ही पानी का स्टोरेज डैम बनाया है. ताकि बिना पानी की समस्या का सामना करते हुए ज्यादा से ज्यादा खेती कर सके. किसान ने कहा कि पानी की कमी के चलते वह एक हेक्टेयर में ही खेती कर पाते थे लेकिन अब वह 7 हेक्टेयर में खेती करते हैं. जल संरक्षण की विधि बताते हुए किसान ने कहा कि जब बारिश में ट्यबेल बंद रहते हैं. तब जल को संरक्षित कर लेते हैं और जब किसान को खेती के लिए पानी की जरुरत होती है तो वह संरक्षित पानी का प्रयोग खेती के लिए कर लेते हैं.

Rengan Sprinkler Technology
रेनगन स्प्रिंकलर तकनीक

किसान राजेश पुरोहित ने बताया कि मालवा क्षेत्र में कुछ समय से पानी की समस्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है. जबकि मालवा क्षेत्र में 60% पानी ही है. इसके साथ ही खेत में काम करने वाले मजदूर भी काम की तलाश में शहर की ओर निकल गए हैं. जिससे खेती के लिए मजदूर मिलना मुश्किल हो गया है. किसान ने कहा कि रेनगन स्प्रिंकलर की मदद से खेत के दोनों तरफ सात सात फीट कवर करता है. किसान ने आधुनिक तकनीक के फायदे बताते हुए कहा कि यदि एक साल का औसत निकाले तो जहां खेती के लिए 100 % पानी लग रहा था. वहीं इन रेनगन स्प्रिंकलर लगाने से 60 % पानी से ही किसान की फसल पक जाती है. किसान ने कहा कि इससे किसानों को कई फायदे हुए है. जिनमें समय की बचत हो जाती है साथ ही मजदूरों की भी जरुरत नहीं रहती है और जो फसल तैयार होती है उसमें 10 से 20% की वृद्धि हो जाती है.

water bank
वॉटर बैंक

बहरहाल जल संरक्षण और आधुनिक सिंचाई उपकरणों के लिए कृषि और उद्यानिकी विभाग के माध्यम से कई प्रोत्साहन योजनाएं भी चलाई जा रही है. जिनकी मदद से किसान खेती में आधुनिक सिंचाई पद्धति को अपना सकते हैं. हालांकि करमदी गांव के इन प्रगतिशील किसानों ने शासन की योजनाओं और अनुदान का लाभ लिए बगैर ही जल संरक्षण की आधुनिक तकनीक को अपनाकर सफलता हासिल की है.

नई तकनीक से लदे कम खेती के दिन

कहा जाता है कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है और यह कथन करमदी गांव के प्रगतिशील किसानों पर सटीक बैठता है. पानी की कमी से जूझ रहे इस गांव के किसानों ने पहले ड्रिप, स्प्रिंकलर, माइक्रो स्प्रिंकलर और रेंगन स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई की नई तकनीकों को आजमाया. जिसके बाद अब बारिश के समय में नलकूप और कुएं में उपयोग नहीं आ रहे पानी को प्लास्टिक तालाब बनाकर संचय किया जा रहा है. वर्षा काल के दौरान बनाए गए इस वॉटर बैंक के पानी का इस्तेमाल किसान शीत ऋतु और ग्रीष्म काल में अपनी फसलों की सिंचाई के लिए करते हैं.

प्लास्टिक तालाब से बढ़ी जल संचय की क्षमता

प्लास्टिक तालाब बनाकर जल संचय करने वाले करमदी गांव के किसान कहते हैं कि पहले 1 या 2 हेक्टेयर में ही नलकूप और कुआं के पानी से सिंचाई हो पाती थी. लेकिन अब प्लास्टिक तालाब में संचय किए जाने से करीब एक करोड़ लीटर पानी की वजह से 7 हेक्टेयर में उद्यानिकी फसलों की ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई की जा रही है. वहीं सिंचाई की पूरी व्यवस्था का संचालन भी कंप्यूटरीकृत किया गया है. कम खर्च में माइक्रो इरिगेशन की नई तकनीक अपनाने वाले किसान राजेश पुरोहित सिंचाई की नई तकनीक अपनाने से उनका सिंचित रकबा बढ़ गया है. नलकूप और कुएं में उपलब्ध 60% पानी में ही रबी के सीजन की फसलों की सिंचाई कर पाना संभव हो पाया है. किसान के मुताबिक रेनगन स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई करने पर फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि होती है. वहीं किट और रोगों की समस्या में भी कमी आती है.

रतलाम। जिले के करमदी गांव के किसान खेती में सिंचाई की नई तकनीक अपनाकर पानी तो बचा ही रहे हैं साथ ही आधुनिक तकनीक अपनाकर ज्यादा उत्पादन भी प्राप्त कर रहे हैं. करमदी गांव के प्रगतिशील किसान रामबाबू पाटीदार और राजेश पुरोहित जल संरक्षण के लिये प्लास्टिक तालाब, ड्रिप और रेनगन स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई की नई तकनीकों का इस्तेमाल कर अपने खेतों की सिंचाई कर रहे हैं. इस खेती में खासबात यह है कि कृषि और उद्यानिकी विभाग की प्रोत्साहन योजनाओं की मदद लिए बगैर इन किसानों ने अपनी सफलता की कहानी खुद लिखी है. यही नहीं इन किसानों ने पूरे सालभर फसल में उपयोग किए जाने वाले सिंचाई के पानी की गणना कर उसे प्लास्टिक तालाब में संचय कर एक वॉटर बैंक बनाया है. जिसका उपयोग किसान गर्मी के दिनों में पानी की कमी आने पर कर सकेंगे.

रेनगन स्प्रिंकलर तकनीक से बढ़ी खेती की क्षमता

किसान रामबाबू पाटीदार ने बताया कि पहले पानी की कमी के कारण खेती नहीं कर पाते थे. पानी की किल्लत के कारण कुछ ही क्षेत्र में खेती करना संभव था. लेकिन किसान ने पर्याप्त खेती के लिए खेत में ही पानी का स्टोरेज डैम बनाया है. ताकि बिना पानी की समस्या का सामना करते हुए ज्यादा से ज्यादा खेती कर सके. किसान ने कहा कि पानी की कमी के चलते वह एक हेक्टेयर में ही खेती कर पाते थे लेकिन अब वह 7 हेक्टेयर में खेती करते हैं. जल संरक्षण की विधि बताते हुए किसान ने कहा कि जब बारिश में ट्यबेल बंद रहते हैं. तब जल को संरक्षित कर लेते हैं और जब किसान को खेती के लिए पानी की जरुरत होती है तो वह संरक्षित पानी का प्रयोग खेती के लिए कर लेते हैं.

Rengan Sprinkler Technology
रेनगन स्प्रिंकलर तकनीक

किसान राजेश पुरोहित ने बताया कि मालवा क्षेत्र में कुछ समय से पानी की समस्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है. जबकि मालवा क्षेत्र में 60% पानी ही है. इसके साथ ही खेत में काम करने वाले मजदूर भी काम की तलाश में शहर की ओर निकल गए हैं. जिससे खेती के लिए मजदूर मिलना मुश्किल हो गया है. किसान ने कहा कि रेनगन स्प्रिंकलर की मदद से खेत के दोनों तरफ सात सात फीट कवर करता है. किसान ने आधुनिक तकनीक के फायदे बताते हुए कहा कि यदि एक साल का औसत निकाले तो जहां खेती के लिए 100 % पानी लग रहा था. वहीं इन रेनगन स्प्रिंकलर लगाने से 60 % पानी से ही किसान की फसल पक जाती है. किसान ने कहा कि इससे किसानों को कई फायदे हुए है. जिनमें समय की बचत हो जाती है साथ ही मजदूरों की भी जरुरत नहीं रहती है और जो फसल तैयार होती है उसमें 10 से 20% की वृद्धि हो जाती है.

water bank
वॉटर बैंक

बहरहाल जल संरक्षण और आधुनिक सिंचाई उपकरणों के लिए कृषि और उद्यानिकी विभाग के माध्यम से कई प्रोत्साहन योजनाएं भी चलाई जा रही है. जिनकी मदद से किसान खेती में आधुनिक सिंचाई पद्धति को अपना सकते हैं. हालांकि करमदी गांव के इन प्रगतिशील किसानों ने शासन की योजनाओं और अनुदान का लाभ लिए बगैर ही जल संरक्षण की आधुनिक तकनीक को अपनाकर सफलता हासिल की है.

नई तकनीक से लदे कम खेती के दिन

कहा जाता है कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है और यह कथन करमदी गांव के प्रगतिशील किसानों पर सटीक बैठता है. पानी की कमी से जूझ रहे इस गांव के किसानों ने पहले ड्रिप, स्प्रिंकलर, माइक्रो स्प्रिंकलर और रेंगन स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई की नई तकनीकों को आजमाया. जिसके बाद अब बारिश के समय में नलकूप और कुएं में उपयोग नहीं आ रहे पानी को प्लास्टिक तालाब बनाकर संचय किया जा रहा है. वर्षा काल के दौरान बनाए गए इस वॉटर बैंक के पानी का इस्तेमाल किसान शीत ऋतु और ग्रीष्म काल में अपनी फसलों की सिंचाई के लिए करते हैं.

प्लास्टिक तालाब से बढ़ी जल संचय की क्षमता

प्लास्टिक तालाब बनाकर जल संचय करने वाले करमदी गांव के किसान कहते हैं कि पहले 1 या 2 हेक्टेयर में ही नलकूप और कुआं के पानी से सिंचाई हो पाती थी. लेकिन अब प्लास्टिक तालाब में संचय किए जाने से करीब एक करोड़ लीटर पानी की वजह से 7 हेक्टेयर में उद्यानिकी फसलों की ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई की जा रही है. वहीं सिंचाई की पूरी व्यवस्था का संचालन भी कंप्यूटरीकृत किया गया है. कम खर्च में माइक्रो इरिगेशन की नई तकनीक अपनाने वाले किसान राजेश पुरोहित सिंचाई की नई तकनीक अपनाने से उनका सिंचित रकबा बढ़ गया है. नलकूप और कुएं में उपलब्ध 60% पानी में ही रबी के सीजन की फसलों की सिंचाई कर पाना संभव हो पाया है. किसान के मुताबिक रेनगन स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई करने पर फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि होती है. वहीं किट और रोगों की समस्या में भी कमी आती है.

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