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बिबड़ोद मेले में बैलगाड़ी पर सवार होकर पहुंचे लोग, लकड़ी के झूले भी बने आकर्षण का केंद्र

रतलाम के प्रचीन जैन तीर्थ बिबड़ोद में मेले का आयोजन किया गया. मेले में बैलगाड़ी और लकड़ी के झूले आकर्षण का केंद्र बने रहे. मेले में दूर-दूर से लोग पहुंचे थे.

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Published : Dec 26, 2019, 10:20 PM IST

People reached fair by riding in bullock cart
बैलगाड़ी में सवार होकर मेले पहुंचे लोग

रतलाम। शहर के प्राचीन जैन तीर्थ बिबड़ोद में हर साल की तरह इस साल भी मेले का आयोजन किया गया. मेले का खास आकर्षण बैलगाड़ी और लकड़ी के झूले रहे, जो सालों से यहां की परम्परा है. आधुनिक युग में जहां मेले और बैलगाड़ी अपना अस्तित्व खो रहे हैं, वहीं शहर की युवा पीढ़ी बैलगाड़ी में सफर कर बिबड़ोद मेले में पहुंच कर परंपरागत झूलो का आनंद ले रही हैं. हर साल पौष मास की अमावस्या के दिन इस मेले का आयोजन किया जाता है, जहां शहर के लोग बैल गाड़ियों में सवार होकर मेले में पहुंचते हैं.

बैलगाड़ी में सवार होकर मेले पहुंचे लोग
दरसअल बिबड़ोद में भगवान ऋषभदेव का प्राचीन मंदिर है. जहां हर साल मेले का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि भगवान ऋषभदेव का चिन्ह बैल है, इसीलिए लोग बैलगाड़ी की सवारी कर यहां पहुंचते हैं.जैन समाज के ही नही बल्कि रतलाम शहर के अन्य लोग भी इस परंपरागत प्रचीन मेले में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. इस खास मेले में बैलगाड़ी की सवारी और लकड़ी के झूलों में झूलने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं. इस बार भी मुंबई, पुणे और बेंगलुरु के लोग इस मेले में पहुंचे हैं.

ग्रामीण क्षेत्र से भी विलुप्त हो रहे बैल और बैलगाड़ी के दर्शन इस दिन रतलाम में हो जाते हैं. बैलगाड़ी की सवारी के लिए युवाओं में खास उत्साह देखने को मिला.आधुनिक युग में इस तरह के आयोजन पुरानी परम्परा को जीवित रखने में सहायक साबित हो रहे हैं.

रतलाम। शहर के प्राचीन जैन तीर्थ बिबड़ोद में हर साल की तरह इस साल भी मेले का आयोजन किया गया. मेले का खास आकर्षण बैलगाड़ी और लकड़ी के झूले रहे, जो सालों से यहां की परम्परा है. आधुनिक युग में जहां मेले और बैलगाड़ी अपना अस्तित्व खो रहे हैं, वहीं शहर की युवा पीढ़ी बैलगाड़ी में सफर कर बिबड़ोद मेले में पहुंच कर परंपरागत झूलो का आनंद ले रही हैं. हर साल पौष मास की अमावस्या के दिन इस मेले का आयोजन किया जाता है, जहां शहर के लोग बैल गाड़ियों में सवार होकर मेले में पहुंचते हैं.

बैलगाड़ी में सवार होकर मेले पहुंचे लोग
दरसअल बिबड़ोद में भगवान ऋषभदेव का प्राचीन मंदिर है. जहां हर साल मेले का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि भगवान ऋषभदेव का चिन्ह बैल है, इसीलिए लोग बैलगाड़ी की सवारी कर यहां पहुंचते हैं.जैन समाज के ही नही बल्कि रतलाम शहर के अन्य लोग भी इस परंपरागत प्रचीन मेले में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. इस खास मेले में बैलगाड़ी की सवारी और लकड़ी के झूलों में झूलने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं. इस बार भी मुंबई, पुणे और बेंगलुरु के लोग इस मेले में पहुंचे हैं.

ग्रामीण क्षेत्र से भी विलुप्त हो रहे बैल और बैलगाड़ी के दर्शन इस दिन रतलाम में हो जाते हैं. बैलगाड़ी की सवारी के लिए युवाओं में खास उत्साह देखने को मिला.आधुनिक युग में इस तरह के आयोजन पुरानी परम्परा को जीवित रखने में सहायक साबित हो रहे हैं.

Intro:रतलाम के प्राचीन जैन तीर्थ बिबड़ोद में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मेले का आयोजन किया गया.मेले का खास आकर्षण बैलगाड़ी और लकड़ी के झूले रहे जो वर्षो से यहाँ की परम्परा है.आधुनिक युग मे जहाँ मेले और बैलगाड़ी अपना अस्तित्व खो रहे है वही रतलाम शहर की युवा पीढ़ी बैलगाड़ी में सफर कर बिबड़ोद मेले में पहुँच कर परंपरागत झूलो का आनंद लेते है. हर वर्ष पौष मास की अमावस्या के दिन इस मेले का आयोजन किया जाता है जहां शहर के लोग बैल गाड़ियों में सवार होकर मेले में पहुंचते हैं।








Body:दरसअल बिबड़ोद में भगवान ऋषभदेव का प्राचीन मंदिर है जहाँ हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है.मान्यता है कि भगवान ऋषभदेव का चिन्ह बेल है इसी लिए लोग बैलगाड़ी की सवारी कर यहाँ पहुंचते है. जैन समाज ही नही बल्कि रतलाम शहर के अन्य लोग भी इस परम्परागत प्रचीन मेले में बड़ी संख्या में पहुंचते है. इस खास मेले में बैलगाड़ी की सवारी और लकड़ी के झूलों में झूलने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। इस बार भी मुंबई पुणे और बेंगलुरु के लोग भी यहां इस मेले में पहुंचे हैं।


Conclusion:ग्रामीण क्षेत्र से भी विलुप्त हो रहे बैल और बैलगाड़ी के दर्शन इस दिन रतलाम में हो जाते है.बैलगाड़ी की सवारी के लिए युवाओ में खास उत्साह देखने को मिला.आधुनिक युग मे इस तरह के आयोजन पुरानी परम्परा को जीवित रखने में सहायक साबित हो रहे है--

बाइट 01- कीर्ति बड़जात्या ( मेले में बैलगाड़ी से जाने वाले श्रद्धालु)
बाइट 02- जैन ( श्रद्धालु)
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