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अनलॉक में भी नहीं खुला कुलियों के रोजगार का ताला, सता रही परिवार चलाने की चिंता - रतलाम रेलवे स्टेशन

कुली जो कभी सामान उठाए दौड़-भाग करते नजर आते थे, वे एक किनारे राहगीरों की आस में बैठे नजर आते हैं. कोरोना काल ने पूरे देश के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है, जिसकी चपेट में आने से समाज का कोई भी वर्ग बचा नहीं है. स्टेशन पर यात्रियों का बोझ उठाने वाले कुली इन दिनों कंगाली की कगार पर हैं, उन्हें परिवार का पेट पालने की चिंता सताने लगी है.

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कंगाली की कगार पर कुली
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Published : Jun 30, 2020, 2:27 PM IST

रतलाम। दिन-रात लोगों के शोरगुल और ट्रेनों की आवाज से गूंजने वाला रेलवे स्टेशन इन दिनों महज चंद लोगों की आवाज से गूंज रहा है. प्लेटफॉर्म पर जहां कभी दुकानों और स्टॉलों पर भीड़ लगी रहती थी, वहीं दुकानदार अब ग्राहक की राह तकते दिखते हैं और कुली जो कभी सामान उठाए दौड़-भाग करते नजर आते थे, वे एक किनारे राहगीरों की आस में बैठे नजर आते हैं. कोरोना काल ने पूरे देश के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है, जिसकी चपेट में आने से समाज का कोई भी वर्ग बचा नहीं है. स्टेशन पर यात्रियों का बोझ उठाने वाले कुली इन दिनों कंगाली की कगार पर हैं, उन्हें परिवार का पेट पालने की चिंता सताने लगी है.

कंगाली की कगार पर कुली

अनलॉक में भी कुली बेरोजगार

अनलॉक 1.0 होते ही रतलाम रेलवे जंक्शन पर ट्रेनों और यात्रियों की आवाजाही शुरू हो गई है, लेकिन कुलियों के सामने रोजगार का संकट जस का तस बना हुआ है. कुली बताते हैं कि ट्रेनों में सीमित संख्या में ही यात्री सफर कर रहे हैं. वहीं कोरोना संक्रमण फैलने के डर से वे अपना सामान खुद ही उठाना पसंद कर रहे हैं. यात्रियों के पास जाने पर वे कुलियों को सामान उठाने के लिए मना कर देते हैं.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में वापस लौटे श्रमिकों ने किया मजदूरी से तौबा, स्वरोजगार के लिए मांगा लोन

पांच जोड़ी ट्रेनों का है स्टॉपेज

रतलाम रेलवे जंक्शन पर पांच जोड़ी ट्रेनों का स्टॉपेज बनाया गया है, लेकिन इन ट्रेनों में यात्रियों की संख्या बहुत सीमित है. जिस कारण कुलियों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है. एक कुली ने बताया कि उसका परिवार पूरी तरह से उन पर आश्रित है. कोरोना काल में कभी 50 तो कभी 100 रुपए लेकर वो घर जाता है, जबकि कई बार तो खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है. आलम ये है कि दुकानदार राशन देने को भी राजी नहीं है क्योंकि उनके पास पैसे नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन का दंश: किराया नहीं देने पर मकान मालिक ने गरीब दंपति को निकाला, इस तरह बिता रहे जीवन

200 परिवार हैं आश्रित

रतलाम स्टेशन पर यात्रियों का बोझ उठाकर करीब 200 कुली अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं, कुछ तो पूरी उम्र इसी काम में गुजार दिए, अब जो उम्रदराज हो गए हैं, उनके सामने तो कुछ और करने का भी विकल्प नहीं है. ऐसे में ये कुली अब रेलवे की ओर आस भरी नजरों से देख रहे हैं कि कब रेलवे इनकी सुध ले और दूसरों का बोझ उठाने वाले कुलियों की जिंदगी का बोझ हल्का करे.

रतलाम। दिन-रात लोगों के शोरगुल और ट्रेनों की आवाज से गूंजने वाला रेलवे स्टेशन इन दिनों महज चंद लोगों की आवाज से गूंज रहा है. प्लेटफॉर्म पर जहां कभी दुकानों और स्टॉलों पर भीड़ लगी रहती थी, वहीं दुकानदार अब ग्राहक की राह तकते दिखते हैं और कुली जो कभी सामान उठाए दौड़-भाग करते नजर आते थे, वे एक किनारे राहगीरों की आस में बैठे नजर आते हैं. कोरोना काल ने पूरे देश के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है, जिसकी चपेट में आने से समाज का कोई भी वर्ग बचा नहीं है. स्टेशन पर यात्रियों का बोझ उठाने वाले कुली इन दिनों कंगाली की कगार पर हैं, उन्हें परिवार का पेट पालने की चिंता सताने लगी है.

कंगाली की कगार पर कुली

अनलॉक में भी कुली बेरोजगार

अनलॉक 1.0 होते ही रतलाम रेलवे जंक्शन पर ट्रेनों और यात्रियों की आवाजाही शुरू हो गई है, लेकिन कुलियों के सामने रोजगार का संकट जस का तस बना हुआ है. कुली बताते हैं कि ट्रेनों में सीमित संख्या में ही यात्री सफर कर रहे हैं. वहीं कोरोना संक्रमण फैलने के डर से वे अपना सामान खुद ही उठाना पसंद कर रहे हैं. यात्रियों के पास जाने पर वे कुलियों को सामान उठाने के लिए मना कर देते हैं.

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पांच जोड़ी ट्रेनों का है स्टॉपेज

रतलाम रेलवे जंक्शन पर पांच जोड़ी ट्रेनों का स्टॉपेज बनाया गया है, लेकिन इन ट्रेनों में यात्रियों की संख्या बहुत सीमित है. जिस कारण कुलियों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है. एक कुली ने बताया कि उसका परिवार पूरी तरह से उन पर आश्रित है. कोरोना काल में कभी 50 तो कभी 100 रुपए लेकर वो घर जाता है, जबकि कई बार तो खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है. आलम ये है कि दुकानदार राशन देने को भी राजी नहीं है क्योंकि उनके पास पैसे नहीं हैं.

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200 परिवार हैं आश्रित

रतलाम स्टेशन पर यात्रियों का बोझ उठाकर करीब 200 कुली अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं, कुछ तो पूरी उम्र इसी काम में गुजार दिए, अब जो उम्रदराज हो गए हैं, उनके सामने तो कुछ और करने का भी विकल्प नहीं है. ऐसे में ये कुली अब रेलवे की ओर आस भरी नजरों से देख रहे हैं कि कब रेलवे इनकी सुध ले और दूसरों का बोझ उठाने वाले कुलियों की जिंदगी का बोझ हल्का करे.

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