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इष्ट देव के रूप में रावण और कुंभकरण की पूजा, मनोकामनाएं करते हैं पूरी - bhopal news

विजयदशमी के दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है, और आज का दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है, लेकिन राजगढ़ में रावण की पूजा की जाती है. जिले में लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुरानी रावण और कुंभकरण की मूर्तियां मौजूद हैं. जिनकी पूजा गांव के लोग अपने इष्ट देव के रूप में करते हैं. यहां पर मान्यता है कि इनकी पूजा करने से गांव पर कभी भी विपत्ति नहीं आती है और हमेशा गांव में खुशहाली बनी रहती है.

Ravana is worshiped
रावण की पूजा
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Published : Oct 25, 2020, 10:41 AM IST

राजगढ़। भारत को परंपराओं और संस्कृति का देश कहा जाता है. यहां कदम कदम पर बोली और रहन सहन बदल जाती है. हमारे देश में एक ही त्योहार कई तरह से मनाया जाता है. नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए रावण के पुतले को जलाया जाता है और राम नाम के जयकारे लगाए जाते हैं. लेकिन राजगढ़ में एक ऐसा गांव है, जहां रावण का पुतला दहन करने की बजाए रावण को भगवान के रूप में पूजा जाता है.

रावण की पूजा

जिले के भाटखेड़ी गांव में लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी रावण और कुंभकरण की मूर्तियां मौजूद हैं. जिनकी पूजा गांव के लोग अपने इष्ट देव के रूप में करते हैं. यहां पर मान्यता है कि इनकी पूजा करने से गांव पर कभी भी विपत्ति नहीं आती है और हमेशा गांव में खुशहाली बनी रहती है.

दशहरे पर रावण और कुंभकर्ण का नहीं होता दहन

पूरे देश में दशहरे के दिन रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाथ का दहन किया जाता है, लेकिन भाटखेड़ी गांव में रावण और कुंभकरण की पूजा की जाती है. भाटखेड़ी गांव के नेशनल हाईवे आगरा मुंबई के नजदीक एक खेत में रावण और कुंभकरण की मूर्तियां स्थापित हैं. और यहां के लोग बताते हैं कि यह मूर्तियां लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुरानी हैं, और उनके पूर्वजों के द्वारा यह स्थापित की गई थी. रहवासी जगदीश यादव बताते हैं कि जब भी गांव पर कोई मुसीबत आती थी, तो वह अपनी मुसीबत लेकर देवता रावण के समक्ष आते थे और उनकी मुसीबत का हल निकल आता था.

नवरात्रि में होती है पूजा

वहीं ग्रामीणों का कहना है कि हम रावण और कुंभकरण को राक्षस नहीं मानते हैं, बल्कि वह हमारे लिए इष्ट देवता हैं, वे बताते हैं कि यहां पर लोग दूर दूर से अपनी मुरादों को लेकर आते हैं और उनकी मुराद भी पूरी होती है. वहीं जब भी गांव में विपदा होती है, या बारिश के मौसम में सूखे जैसी स्थिति दिखाई देती है, तो गांव के व्यक्ति यहां पर इकट्ठा होते हैं और देवता रावण से प्रार्थना करते हैं कि उनके गांव में जल्द से जल्द बारिश हो. जिस दिन पूजा की जाती है उसी दिन बारिश भी शुरू हो जाती है. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि इंदौर के रहने वाले एक व्यक्ति के घर में संतान नहीं हो रही थी. उन्होंने यहां आकर मन्नत मांगी और उनकी मनोकामना पूरी हो गई. जिसके बाद वह हर साल नवरात्रि में इन दोनों मूर्तियों की पूजा करने के लिए आते हैं.

मंदसौर में भी नहीं होता रावण का दहन

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में यहां रावण को लेकर मान्यता है कि या मंदोदरी का मायका था.जिसके वजह से उस जिले के कई जगहों पर रावण का दहन नहीं किया जाता है, लेकिन राजगढ़ जिले में भाटखेड़ी गांव में रावण को देवता के रूप में पूजा जाता है. जिसके वजह से यहां पर भी रावण का दहन नहीं किया जाता है.

राजगढ़। भारत को परंपराओं और संस्कृति का देश कहा जाता है. यहां कदम कदम पर बोली और रहन सहन बदल जाती है. हमारे देश में एक ही त्योहार कई तरह से मनाया जाता है. नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए रावण के पुतले को जलाया जाता है और राम नाम के जयकारे लगाए जाते हैं. लेकिन राजगढ़ में एक ऐसा गांव है, जहां रावण का पुतला दहन करने की बजाए रावण को भगवान के रूप में पूजा जाता है.

रावण की पूजा

जिले के भाटखेड़ी गांव में लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी रावण और कुंभकरण की मूर्तियां मौजूद हैं. जिनकी पूजा गांव के लोग अपने इष्ट देव के रूप में करते हैं. यहां पर मान्यता है कि इनकी पूजा करने से गांव पर कभी भी विपत्ति नहीं आती है और हमेशा गांव में खुशहाली बनी रहती है.

दशहरे पर रावण और कुंभकर्ण का नहीं होता दहन

पूरे देश में दशहरे के दिन रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाथ का दहन किया जाता है, लेकिन भाटखेड़ी गांव में रावण और कुंभकरण की पूजा की जाती है. भाटखेड़ी गांव के नेशनल हाईवे आगरा मुंबई के नजदीक एक खेत में रावण और कुंभकरण की मूर्तियां स्थापित हैं. और यहां के लोग बताते हैं कि यह मूर्तियां लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुरानी हैं, और उनके पूर्वजों के द्वारा यह स्थापित की गई थी. रहवासी जगदीश यादव बताते हैं कि जब भी गांव पर कोई मुसीबत आती थी, तो वह अपनी मुसीबत लेकर देवता रावण के समक्ष आते थे और उनकी मुसीबत का हल निकल आता था.

नवरात्रि में होती है पूजा

वहीं ग्रामीणों का कहना है कि हम रावण और कुंभकरण को राक्षस नहीं मानते हैं, बल्कि वह हमारे लिए इष्ट देवता हैं, वे बताते हैं कि यहां पर लोग दूर दूर से अपनी मुरादों को लेकर आते हैं और उनकी मुराद भी पूरी होती है. वहीं जब भी गांव में विपदा होती है, या बारिश के मौसम में सूखे जैसी स्थिति दिखाई देती है, तो गांव के व्यक्ति यहां पर इकट्ठा होते हैं और देवता रावण से प्रार्थना करते हैं कि उनके गांव में जल्द से जल्द बारिश हो. जिस दिन पूजा की जाती है उसी दिन बारिश भी शुरू हो जाती है. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि इंदौर के रहने वाले एक व्यक्ति के घर में संतान नहीं हो रही थी. उन्होंने यहां आकर मन्नत मांगी और उनकी मनोकामना पूरी हो गई. जिसके बाद वह हर साल नवरात्रि में इन दोनों मूर्तियों की पूजा करने के लिए आते हैं.

मंदसौर में भी नहीं होता रावण का दहन

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में यहां रावण को लेकर मान्यता है कि या मंदोदरी का मायका था.जिसके वजह से उस जिले के कई जगहों पर रावण का दहन नहीं किया जाता है, लेकिन राजगढ़ जिले में भाटखेड़ी गांव में रावण को देवता के रूप में पूजा जाता है. जिसके वजह से यहां पर भी रावण का दहन नहीं किया जाता है.

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