राजगढ़। सभी भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत को बचाने के लिए राजगढ़ का यह गांव भरपूर प्रयास कर रहा है. यहां पर अधिकांश लोग संस्कृत में ही बात करते हैं. जहां हमारे देश में इस भाषा को अब कोई ज्यादा महत्व नहीं देता वहीं जिले के खुजनेर तहसील के झिरी गांव के लोगों ने संस्कृत को ही अपनी भाषा मान लिया है.
कहा जाता है कि हमारे देश की सारी भाषाओं का उद्गम संस्कृत भाषा से ही हुआ है. पूर्वजों की मानें तो संस्कृत देवताओं की भाषा थी इसलिये इसे देववाणी का नाम दिया गया है. वहीं आज बहुत से वैज्ञानिक भी मानते हैं कि किसी भी कंप्यूटर प्रोग्राम को लिखने के लिए यह भाषा सबसे सर्वोत्तम है. हमारे सारे ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं चाहे वह रामायण हो या चाहे वह गीता. इन सब बातों के बीच में आज हमारे देश में संस्कृत भाषा सिर्फ कक्षा दसवीं तक पढ़ाई जाने वाली भाषा बन कर रह गई है.
वहीं झिरी के संस्कृत गांव बनने की शुरुआत 2004 में हो गई थी. 2004 इस गांव के बुजुर्गों ने पंचायत बुलाकर यह निर्णय लिया कि हम कुछ अनोखा करना चाहते हैं. तब उन लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पदाधिकारियों की मदद से इस गांव में संस्कृत सीखने का प्रयास शुरू किया गया. जिसके अंतर्गत संस्कृत भारती संस्था को संस्कृत सीखने के लिए यहां भेज गया. विमला पन्ना नाम की युवती ने यहां के लोगों को संस्कृत का ज्ञान देना शुरू किया और इस गांव की संस्कृति ही बदल कर रख दी.
यहां पर संस्कृत की कक्षा लगायी जाती थी, जिसमे बुजुर्ग से लेकर बच्चे सभी लोग संस्कृत सीखने लगे और धीरे-धीरे संस्कृत में बात करने लगे और अपनी दिनचर्या की भाषा में भी इसको शामिल किया. 2006 तक इसकी 70% आबादी संस्कृत में पारंगत हो गयी और बिना झिझक के संस्कृत भाषा में बात करने लगे.