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राजगढ़ के इस गांव में बोली जाती है देव भाषा, लोग कहते हैं संस्कृत गांव

मध्यप्रदेश का झिरी गांव संस्कृत गांव के नाम से जाना जाता है. यहां के सभी रहवासी संस्कृत अच्छी तरह बोल और समझ सकते हैं.

संस्कृत गांव
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Published : Feb 10, 2019, 2:37 PM IST

राजगढ़। सभी भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत को बचाने के लिए राजगढ़ का यह गांव भरपूर प्रयास कर रहा है. यहां पर अधिकांश लोग संस्कृत में ही बात करते हैं. जहां हमारे देश में इस भाषा को अब कोई ज्यादा महत्व नहीं देता वहीं जिले के खुजनेर तहसील के झिरी गांव के लोगों ने संस्कृत को ही अपनी भाषा मान लिया है.

संस्कृत गांव
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कहा जाता है कि हमारे देश की सारी भाषाओं का उद्गम संस्कृत भाषा से ही हुआ है. पूर्वजों की मानें तो संस्कृत देवताओं की भाषा थी इसलिये इसे देववाणी का नाम दिया गया है. वहीं आज बहुत से वैज्ञानिक भी मानते हैं कि किसी भी कंप्यूटर प्रोग्राम को लिखने के लिए यह भाषा सबसे सर्वोत्तम है. हमारे सारे ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं चाहे वह रामायण हो या चाहे वह गीता. इन सब बातों के बीच में आज हमारे देश में संस्कृत भाषा सिर्फ कक्षा दसवीं तक पढ़ाई जाने वाली भाषा बन कर रह गई है.


वहीं झिरी के संस्कृत गांव बनने की शुरुआत 2004 में हो गई थी. 2004 इस गांव के बुजुर्गों ने पंचायत बुलाकर यह निर्णय लिया कि हम कुछ अनोखा करना चाहते हैं. तब उन लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पदाधिकारियों की मदद से इस गांव में संस्कृत सीखने का प्रयास शुरू किया गया. जिसके अंतर्गत संस्कृत भारती संस्था को संस्कृत सीखने के लिए यहां भेज गया. विमला पन्ना नाम की युवती ने यहां के लोगों को संस्कृत का ज्ञान देना शुरू किया और इस गांव की संस्कृति ही बदल कर रख दी.

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यहां पर संस्कृत की कक्षा लगायी जाती थी, जिसमे बुजुर्ग से लेकर बच्चे सभी लोग संस्कृत सीखने लगे और धीरे-धीरे संस्कृत में बात करने लगे और अपनी दिनचर्या की भाषा में भी इसको शामिल किया. 2006 तक इसकी 70% आबादी संस्कृत में पारंगत हो गयी और बिना झिझक के संस्कृत भाषा में बात करने लगे.

राजगढ़। सभी भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत को बचाने के लिए राजगढ़ का यह गांव भरपूर प्रयास कर रहा है. यहां पर अधिकांश लोग संस्कृत में ही बात करते हैं. जहां हमारे देश में इस भाषा को अब कोई ज्यादा महत्व नहीं देता वहीं जिले के खुजनेर तहसील के झिरी गांव के लोगों ने संस्कृत को ही अपनी भाषा मान लिया है.

संस्कृत गांव
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कहा जाता है कि हमारे देश की सारी भाषाओं का उद्गम संस्कृत भाषा से ही हुआ है. पूर्वजों की मानें तो संस्कृत देवताओं की भाषा थी इसलिये इसे देववाणी का नाम दिया गया है. वहीं आज बहुत से वैज्ञानिक भी मानते हैं कि किसी भी कंप्यूटर प्रोग्राम को लिखने के लिए यह भाषा सबसे सर्वोत्तम है. हमारे सारे ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं चाहे वह रामायण हो या चाहे वह गीता. इन सब बातों के बीच में आज हमारे देश में संस्कृत भाषा सिर्फ कक्षा दसवीं तक पढ़ाई जाने वाली भाषा बन कर रह गई है.


वहीं झिरी के संस्कृत गांव बनने की शुरुआत 2004 में हो गई थी. 2004 इस गांव के बुजुर्गों ने पंचायत बुलाकर यह निर्णय लिया कि हम कुछ अनोखा करना चाहते हैं. तब उन लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पदाधिकारियों की मदद से इस गांव में संस्कृत सीखने का प्रयास शुरू किया गया. जिसके अंतर्गत संस्कृत भारती संस्था को संस्कृत सीखने के लिए यहां भेज गया. विमला पन्ना नाम की युवती ने यहां के लोगों को संस्कृत का ज्ञान देना शुरू किया और इस गांव की संस्कृति ही बदल कर रख दी.

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यहां पर संस्कृत की कक्षा लगायी जाती थी, जिसमे बुजुर्ग से लेकर बच्चे सभी लोग संस्कृत सीखने लगे और धीरे-धीरे संस्कृत में बात करने लगे और अपनी दिनचर्या की भाषा में भी इसको शामिल किया. 2006 तक इसकी 70% आबादी संस्कृत में पारंगत हो गयी और बिना झिझक के संस्कृत भाषा में बात करने लगे.

Intro:मध्य प्रदेश का एक ऐसा गांव जो जाना जाता है संस्कृत गांव के नाम से , राजगढ़ जिले के खुजनेर तहसील के अंतर्गत आने वाले जिले गांव जहां पर अधिकांश लोग बात करते हैं संस्कृत में


Body:दरअसल बात ऐसी है कि जहां संस्कृत हमारी संस्कृति की जननी कही जाती है ।कहा जाता है कि हमारे देश की सारी भाषाओं का उद्गम संस्कृत भाषा सही माना जाता है जहां हमारे पूर्वज कहते हैं की संस्कृत देवताओं की भाषा थी और इसे देववाणी का नाम दिया गया है वही आज बहुत से वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यह भाषा सबसे सर्वोत्तम है किसी भी कंप्यूटर प्रोग्राम को लिखने के लिए वहीं जहां हमारे सारे ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं चाहे वह रामायण हो या चाहे वह गीता हो । इन सब बातों के बीच में आज हमारे देश में संस्कृत भाषा सिर्फ कक्षा दसवीं तक पढ़ाई जाने वाली भाषा बन कर रह गई है और जिसे अधिकांश बच्चे बाद में फिर कभी पढ़ना पसंद नहीं करते हैं जहां हमारे देश में इस भाषा अब कोई ज्यादा महत्व नही देता इसको सिर्फ यज्ञ या श्लोक में प्रयोग किया जाता है।वही इन सब के बीच मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की खुजनेर तहसील में 'झिरी' एक गांव ऐसा है जहां पर अधिकतर लोग संस्कृत भाषा का उपयोग करते है वे लोग अपनी दिनचर्या में आपस मे संवाद करने के लिए भी इस भाषा का प्रयोग करते है ।
इस गाँव को लोग 'संस्कृत गाँव' के नाम से जानते है ।वही इस गाँव मे यह खासियत है कि अगर उस घर के लोग संस्कृत में बात करते है तो उस घर को संस्कृत ग्रहम की उपाधि दी जाती है।
वही वहां के लोगों ने बताया कि इस गाँव के संस्कृत गाँव बनने की शुरुआत 2004 में हुई थी ।पहले यहां गाँव भी अन्य गांवों की तरह हिंदी भाषा का प्रयोग किया करता था वही 2004 इस गाँव के बुजुर्गों ने पंचायत बुलाकर यह निर्णय लिया कि हम कुछ अनोखा करना चाहते है तब उन लोग ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पदाधिकारियों की मदद से इस गाँव में संस्कृत सीखने का प्रयास शुरू किया गया जिसके अंतर्गत संस्कृत भारती संस्था को संस्कृत सीखने के लिए यहां भेज गया जिसमें अनेक लोग यहां के लोग संस्कृत सीखने आये परन्तु यहां सपना पूरा किया एक युवती ने विमला पन्ना जिन्होंने यहां के लोगो को संस्कृत का ज्ञान देना शुरू किया और इस गाँव की संस्कृति ही बदल कर रख दी ।

यहां पर संस्कृत की कक्षा लगायी जाती थी जिसमे बुजुर्ग से लेकर बच्चे सभी लोग संस्कृत सीखने लगे और धीरे धीरे संस्कृत में बात करने लगे और अपनी दिनचर्या की भाषा मे भी इसको शामिल करने लगे।2006 तक इसकी 70% आबादी संस्कृत में पारंगत हो गयी वो बिना झिझक के संस्कृत भाषा मे बात करते थे।

वही संस्कृत भाषा इस गाँव के लिए वरदान स्वरूप साबित हुई जिसकी मदद से यह के अनेक बच्चे और युवा को रोजगार प्राप्त हुआ इनमे से कुछ युवा संस्कृत के शिक्षक बन गए और इस भाषा का प्रचार प्रसार करने लग गए ।वही यह के बच्चे इस विषय मे हमेशा अच्छे अंको से पास होते है चाहे वो बोर्ड परीक्षा हो या कोई प्रतियोगी परीक्षा।
वही जब इस गांव की ख्याति देश विदेश में फैली तो यहां पर अनेक विदेशी संस्कृत सीखने को आए जिसमें कुछ लोग ऑस्ट्रेलिया से तो कुछ साउथ अफ्रीका से यहां पर संस्कृत भाषा का ज्ञान लेने को आए थे।


Conclusion:कहा जाता है कि कोई वस्तु अगर अपने उत्तम पर पहुंच जाती है तो वहां फिर से नीचे की और आना शुरू हो जाती है ऐसा ही कुछ इस गांव के साथ भी होना शुरू हुआ है जहां 14 साल संस्कृत सीखने और संस्कृत गांव बनने के बाद गुजर चुके हैं वहीं इस गांव के लोग अब संस्कृत भाषा को धीरे धीरे भूलते जा रहे हैं जहां यहां पर संस्कृत भाषा का प्रयोग करने वाले एक समय 90% थे वही आज यह लोग सिर्फ 50% बचे है वहीं इसमे सरकार की भी गलती है अगर सरकार इस और ध्यान दिया होता तो यह संख्या 100% में बदल सकती थी और अन्य लोगों को भी इस गांव से अनेक फायदे होते और भारत की सबसे प्राचीनतम भाषा के प्रति लोगों का रुझान और बढ़ता और विदेश में भी इसका प्रचार-प्रसार बढ़ाया जा सकता था।
परंतु कहा जाता है कि अगर कोई चीज नीचे आती है तो उसको संभालने के लिए कोई ना कोई आगे आता है इसी प्रकार इस गांव के युवा पर संस्कृत भाषा को संभाले हुए हैं और वह अपने आने वाली पीढ़ी को संस्कृत भाषा सिखा रहे हैं वे आपस मे तो इसका प्रयोग करते है और बच्चों को भी इसका ज्ञान और उपयोग करने की सलाह देते है जिससे इस गांव की खोती जा रही संस्कृति वापस से पाई जा सके और वापस से यहां के लोग संस्कृत से कर यह प्रतिशत 90 से ऊपर ले जा सके।

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