राजगढ़। केंद्र सरकार मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने को लेकर विचार कर रही है. इसे लेकर राजगढ़ जिले के ग्रामीण इलाकों की महिलाएं क्या सोचती हैं. इसे लेकर ईटीवी भारत ने कुछ महिलाओं से बातचीत की. जिसमें पाया कि कम उम्र में शादी होने की वजह से महिलाओं को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से दिए भाषण में इसका संकेत दिया है. लड़कियों की शादी की सही उम्र तय करने के लिए महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्रालय ने एक कमेटी का गठन किया है. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद माना जा रहा है कि लड़कियों की शादी की उम्र तीन साल और बढ़ाई जा सकती है.
राजगढ़ मध्य प्रदेश का एक ऐसा जिला है जहां 90 फीदसी आबादी किसी ना किसी तरह ग्रामीण इलाकों से जुड़ी हुई. यहां आज भी बाल विवाह होते हैं. लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं दिया जाता है.
ईटीवी भारत ने ऐसी ही एक महिला सरिता बाई से बात की. जिनकी शादी 90 के दशक में कम उम्र में हुई थी. सरिता बाई बताती हैं कि उनका विवाह भी काफी कम उम्र में हुआ था. केंद्र सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है और सरकार को लड़कियों की उम्र बढ़ाकर 18 से 21 जरूर करना चाहिए. कम उम्र में शादी होने की वजह से पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है. कच्ची उम्र में मां बन जाती हैं. जिससे उनका शरीर रोगग्रस्त हो जाता है.
कम उम्र में शादी होने से छोड़नी पड़ी पढ़ाई
सरिता बाई का कहना है कि उनकी शादी भी काफी कम उम्र में हुई थी और वह कम उम्र में ही दो बच्चियों की मां बन गई थी. जिसके बाद घर परिवार की जिम्मेदारी सब उन पर आ गई थी. वहीं उनके पति की असमय मृत्यु हो जाने की वजह से घर के खर्च की जिम्मेदारी भी उन पर ही आ गई. उनका कहना है कि अगर वह पढ़ी-लिखी होती, तो कहीं अच्छी सी जगह पर नौकरी करते हुए अपने बच्चों का अच्छे से भरण-पोषण कर पाती. आज भी उनके ससुराल वाले उन पर तंज कसते हैं, लेकिन पढ़ाई के अभाव में उनको काफी संघर्ष करना पड़ रहा है और उनकी बच्चियों को भी संघर्ष करना पड़ता है.
बाल विवाह को लेकर जिला प्रशासन सख्त
जिले में बाल विवाह रोकने के लिए प्रशासन काफी सख्त बना हुआ है. इसे लेकर लगातार स्थानीय प्रशासन प्रयास करता आ रहा है. बाल विवाह जैसे गंभीर अपराध को रोकने के लिए पूर्व कलेक्टर निधि निवेदिता ने एक नियम भी बनाया था कि जब तक पंडित बच्चों का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देख लेते, उनके विवाह की तारीख सुनिश्चित ना करें.
वहीं अगर कोई पंडित बाल विवाह कराता है, तो वह भी दोषी होगा. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि 18 साल तक सिर्फ 12वीं तक की पढ़ाई ही पूरी हो पाती है. लेकिन 21 साल में जहां ज्यादातर व्यक्ति अपने ग्रेजुएशन पूरी कर लेते हैं, जो पढ़ाई का काफी अच्छा मानक माना जाता है. ग्रेजुएट होने के बाद इंसान में काफी समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है.
कलेक्टर निधि निवेदिता ने चलाई कई योजनाएं
पूर्व कलेक्टर निधि निवेदिता ने एक योजना चलाई थी, जिसे 'बादल पर पांव है' नाम दिया गया था. इसमें 2600 महिलाओं और युवतियों ने परीक्षाएं दी थी. इनमें से आधे से ज्यादा वह महिलाएं थी जिनकी शादी के वजह से बीच में ही पढ़ाई छूट गई थी और उनको पढ़ने का मौका नहीं मिला था. फिर से इस योजना के तहत पढ़ने का मौका मिला था. सामाजिक कार्यकर्ता बरखा दांगी कहती है कि विवाह की उम्र 21 वर्ष ही सही होती है.
18 से 21 शादी की उम्र करने पर विचार कर रही सरकार
भारत में शादी के बंधन को सबसे पवित्र बंधन माना जाता है. इसे लेकर ना सिर्फ लड़का बल्कि लड़की भी अरमान अपने दिलों में सजा कर रखती हैं. लड़कियों को अपने जीवनसाथी से काफी उम्मीदें होती हैं. लड़की के ख्वाब होते हैं कि उसका जीवन साथी उसकी हर छोटी बड़ी खुशियों का ख्याल रखें. उसकी हर जरूरत को पूरा करें.
इसी को लेकर देश में एक बार फिर एक सवाल सामने आ खड़ा हुआ है कि आखिर लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए. संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे पर दोबारा चर्चा की जाएगी. केंद्र सरकार लड़कियों की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है.
पहली बार 1929 में आया था कानून
सबसे पहले सन 1929 में शारदा कमेटी की सिफारिश पर लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल का कानून बनाया गया था. उसके बाद 1955 में हिंदू एक्ट के तहत इस कानून में कुछ बदलाव किए गए थे.
वहीं 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने फिर से बदलाव करते हुए लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाकर 18 साल और लड़कों की उम्र 21 साल तय कर दी. बाल विवाह को लेकर सरकार लगातार गंभीर बनी हुई थी. 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया और कानूनों को सख्त किया गया. वही एक बार फिर देश में इसे लेकर बहस छिड़ गई है.