रायसेन। सांची बौद्ध विश्वविद्यालय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ पर सांची बौद्ध के भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के बारला अकादमिक परिसर में विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया. इस मौके पर गांधीवादी विचारक और साहित्यकार गोविंद मिश्र ने गांधी जी के व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला.
गोविंद मिश्र ने ''भारत के चिरंतन मूल्य और महात्मा गांधी'' विषय पर बोलते हुए गांधी जी के व्यक्तित्व के आलोचनात्मक पहलुओं पर बात की. उन्होंने कहा कि गांधी जी स्वयं के सबसे बड़े आलोचक थे, वे कभी भी अपने को बड़ा विचारक नहीं मानते थे. उनके इन गुणों के कारण उनके विरोधियों के लिए भी गांधीजी अपरिहार्य थे. यही वजह है कि पूरा विश्व उन्हें आज भी प्रासंगिक मान रहा है.
उन्होंने कहा कि बीते 23 सितंबर को न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र ''क्लाइमेट एक्शन समिट'' और अमेरिकी कांग्रेस में जब 16 साल की लड़की ग्रेटा थनबर्ग ने जलवायु परिवर्तन पर ललकारा और दुनिया के लोगों से पूछा कि उन्हें क्या अधिकार है कि वे पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर उसकी उम्र के बच्चों के भविष्य को खतरे में डाले, तब उन्हें गांधी जी याद आए. गांधी जी ने 1905 में लिखी अपनी पुस्तक ''हिंद स्वराज'' में गांधी जी ने प्रकृति, ग्राम, शहरीकरण का विरोध, पश्चिमीकरण का विरोध इत्यादि पर ज़ोर दिया था. जिसकी अहमियत आज हमें समझ आ रही है, जब हमारे शहर रहने लायक नहीं बचे हैं.
सांची विश्वविद्यालय में आयोजित इस व्याख्यान में अंग्रेजी विभाग के प्रो. ओपी बुधोलिया ने महत्मा गांधी के सहिष्णुता के सिद्धांत का ज़िक्र किया. वहीं व्याख्यान और परिचर्चा के बाद गोविंद मिश्र ने छात्र-छात्राओं से भेंट की और अपना कहानी संग्रह ''प्रतिनिधि कहानियां'' उन्हें भेंट की.