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Sawan 2023: सावन का पहला सोमवार, भोजेश्वर मंदिर में भक्तों ने किया भोलेनाथ का अभिषेक - भोजपुर का भोजेश्वर मंदिर

सावन के पहले सोमवार को विश्व प्रसिद्ध विशाल शिवलिंग मन्दिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. लाखों की संख्या में भक्तों ने भगवान शिव का अभिषेक किया.

bhojpur shivling temple
भोजेश्वर मंदिर में भक्तों का तांता
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Published : Jul 10, 2023, 4:17 PM IST

Updated : Jul 10, 2023, 5:09 PM IST

भोजेश्वर मंदिर में भक्तों ने किया भोलेनाथ का अभिषेक

रायसेन। रायसेन जिले के भोजपुर का भोजेश्वर मंदिर वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है. इस मंदिर की वास्तुकला 11वीं से 13वीं सदी की है. मंदिर पूर्णरूप से निर्मित होता तो पुराने भारत का अपनी तरह का एक आश्चर्य होता है. मंदिर का नक्काशीदार गुम्बद और पत्थर की संरचनाएं, जटिल नक्काशी से तैयार किये गए प्रवेश द्वार और उनके दोनों तरफ उत्कृष्टता से गढ़ी गई आकृतियां देखने वालों का स्वागत करती हैं. मंदिर की बालकनी को विशाल कोष्ठक और खंभों का सहारा दिया गया है. मंदिर की बाहरी दीवारों और ढांचे को कभी बनाया ही नहीं गया. मंदिर को गुंबद के स्तर तक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया मिट्टी का रैम्प अभी तक दिखाई पड़ता है, जो हमें इमारत निर्माण कला (चुनाई) में पुरातन बुद्धिमत्ता का स्वाद चखाता है.

भोजपुर मंदिर की खासियत: भोजपुर, बलुआ पत्थर की रिज जो मध्य भारत की विशेषता है 11 वीं सदी का एक शहर है. यह मध्य प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. बेतवा नदी इस प्राचीन शहर के पास बहती है जो भोजपुर पर्यटन में पुरानी दुनिया के आकर्षण का समावेश करती है. यह शहर, मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 28 किलोमीटर की मामूली सी दूरी पर स्थित है. यहां ग्यारहवी शताब्दी की पर्याप्त बुद्धिमत्ता से निर्मित दो बांधों वाली विस्मयकारी संरचना है, जो बेतवा नदी का रुख मोड़ने और पानी को रोकने के लिए भारी पत्थरों से बनाई गई थी, जिनसे एक झील का निर्माण हुआ था. भोजपुर का यह नाम परमार राजवंश के सबसे शानदार शासक राजा ‘भोज’ के नाम पर रखा गया था.

धार्मिक प्रचीन धरोहर: भोजपुर और उसके आसपास के पर्यटक स्थल भोजेश्वर मंदिर को पूर्व के सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है. जो भारत की उन अद्भुत संरचनाओं वाली इमारतों में से एक है जिसे एक बार जरुर देखा जाना चाहिए. इस प्राचीन शहर के दैत्य जैसे बांधों के अवशेष आपको आश्चर्य में डाल देंगे. ‘अधूरा’ होने का तथ्य ही इस प्राचीन शहर को अनूठी गुणवत्ता प्रदान करता है. उन चट्टानी खदानों में जाना बहुत ही रोमांचकारी होता है. जहां आप हाथ से तराशे गए पत्थर के मूर्ति शिल्प को देख सकते हैं जो कभी एक पूरे मंदिर या महल का रूप नहीं ले पाए. हर दूसरे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल पर आप प्राचीन शहर के खंडहरों का निरीक्षण कर सकते हैं. यह वास्तव में वो शहर है जो कभी पूरा ही नहीं किया गया. यहां भक्तों की कतार सुबह से लगी हुई है. मंदिर में देश दुनिया से भक्त आतें हैं और यहां आकर शिव भक्ति में लीन हो जातें है. यह एक धार्मिक प्रचीन धरोहर है.

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भोजपुर शिवलिंग में श्रद्धालुओं की लंबी लाइन: छत्तीसगढ़ के कपल श्रद्धालु ने कहा कि" भोजपुर के शिवलिंग मंदिर आकर बहुत अच्छा लग रहा है. सावन का पहला सोमवार है. यहां के लोग बहुत अच्छे हैं और शिव के जयकारे भी लगाए हैं". वहीं भोजपुर मंदिर के महंत शैलेंद्र गिरी गोस्वामी ने कहा कि" भोले बाबा के सावन का पहला सोमवार है. इस साल सावन के दो महीने हैं. जिसमें सावन के 8 सोमवार पड़ेंगे. सावन का महीने भोलेनाथ के लिए विशेष पर्व होता है. माता पार्वती ने इसी महीने तप कर बाबा भोले नाथ को प्राप्त किया था. यह महीना भोलेनाथ को अतिप्रिय है. सुबह से देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आए हुए हैं. सुबह 5 बजे से श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी है."

भोजेश्वर मंदिर में भक्तों ने किया भोलेनाथ का अभिषेक

रायसेन। रायसेन जिले के भोजपुर का भोजेश्वर मंदिर वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है. इस मंदिर की वास्तुकला 11वीं से 13वीं सदी की है. मंदिर पूर्णरूप से निर्मित होता तो पुराने भारत का अपनी तरह का एक आश्चर्य होता है. मंदिर का नक्काशीदार गुम्बद और पत्थर की संरचनाएं, जटिल नक्काशी से तैयार किये गए प्रवेश द्वार और उनके दोनों तरफ उत्कृष्टता से गढ़ी गई आकृतियां देखने वालों का स्वागत करती हैं. मंदिर की बालकनी को विशाल कोष्ठक और खंभों का सहारा दिया गया है. मंदिर की बाहरी दीवारों और ढांचे को कभी बनाया ही नहीं गया. मंदिर को गुंबद के स्तर तक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया मिट्टी का रैम्प अभी तक दिखाई पड़ता है, जो हमें इमारत निर्माण कला (चुनाई) में पुरातन बुद्धिमत्ता का स्वाद चखाता है.

भोजपुर मंदिर की खासियत: भोजपुर, बलुआ पत्थर की रिज जो मध्य भारत की विशेषता है 11 वीं सदी का एक शहर है. यह मध्य प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. बेतवा नदी इस प्राचीन शहर के पास बहती है जो भोजपुर पर्यटन में पुरानी दुनिया के आकर्षण का समावेश करती है. यह शहर, मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 28 किलोमीटर की मामूली सी दूरी पर स्थित है. यहां ग्यारहवी शताब्दी की पर्याप्त बुद्धिमत्ता से निर्मित दो बांधों वाली विस्मयकारी संरचना है, जो बेतवा नदी का रुख मोड़ने और पानी को रोकने के लिए भारी पत्थरों से बनाई गई थी, जिनसे एक झील का निर्माण हुआ था. भोजपुर का यह नाम परमार राजवंश के सबसे शानदार शासक राजा ‘भोज’ के नाम पर रखा गया था.

धार्मिक प्रचीन धरोहर: भोजपुर और उसके आसपास के पर्यटक स्थल भोजेश्वर मंदिर को पूर्व के सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है. जो भारत की उन अद्भुत संरचनाओं वाली इमारतों में से एक है जिसे एक बार जरुर देखा जाना चाहिए. इस प्राचीन शहर के दैत्य जैसे बांधों के अवशेष आपको आश्चर्य में डाल देंगे. ‘अधूरा’ होने का तथ्य ही इस प्राचीन शहर को अनूठी गुणवत्ता प्रदान करता है. उन चट्टानी खदानों में जाना बहुत ही रोमांचकारी होता है. जहां आप हाथ से तराशे गए पत्थर के मूर्ति शिल्प को देख सकते हैं जो कभी एक पूरे मंदिर या महल का रूप नहीं ले पाए. हर दूसरे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल पर आप प्राचीन शहर के खंडहरों का निरीक्षण कर सकते हैं. यह वास्तव में वो शहर है जो कभी पूरा ही नहीं किया गया. यहां भक्तों की कतार सुबह से लगी हुई है. मंदिर में देश दुनिया से भक्त आतें हैं और यहां आकर शिव भक्ति में लीन हो जातें है. यह एक धार्मिक प्रचीन धरोहर है.

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भोजपुर शिवलिंग में श्रद्धालुओं की लंबी लाइन: छत्तीसगढ़ के कपल श्रद्धालु ने कहा कि" भोजपुर के शिवलिंग मंदिर आकर बहुत अच्छा लग रहा है. सावन का पहला सोमवार है. यहां के लोग बहुत अच्छे हैं और शिव के जयकारे भी लगाए हैं". वहीं भोजपुर मंदिर के महंत शैलेंद्र गिरी गोस्वामी ने कहा कि" भोले बाबा के सावन का पहला सोमवार है. इस साल सावन के दो महीने हैं. जिसमें सावन के 8 सोमवार पड़ेंगे. सावन का महीने भोलेनाथ के लिए विशेष पर्व होता है. माता पार्वती ने इसी महीने तप कर बाबा भोले नाथ को प्राप्त किया था. यह महीना भोलेनाथ को अतिप्रिय है. सुबह से देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आए हुए हैं. सुबह 5 बजे से श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी है."

Last Updated : Jul 10, 2023, 5:09 PM IST
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