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सरकारी योजनाओं से कोसों दूर है ये आदिवासी गांव, बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं मौजूद - Manjha village Panna

पन्ना जिले के मांझा गांव की हालात खस्ता है. यहां सड़क, बिजली, आवास, स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं.

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आदिवासी गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी
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Published : Jul 17, 2020, 9:05 PM IST

पन्ना। एक तरफ सरकारें आदिवासियों के विकास के लिए तमाम योजनाओं लागू करने का दावा करती हैं. लेकिन इन योजनाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिला मुख्यालय से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव मांझा की बदहाल हालात इन तमाम दावों की पोल खोल देतीं हैं. मांझा एक छोटा सा गांव है. जहां करीब 40 आदिवासी परिवार रहते हैं. लेकिन इनकी जिंदगी नरक से कम नहीं हैं. न तो रहने को घर है और न ही इनके पास रोजगार. आस-पास के इलाकों से लकड़ियां इकट्ठा करके उन्हें बेचकर इनका गुजारा चलता है.

आदिवासी गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी

ये परिवार सरकार की प्रधानमंत्री आवाज योजना, प्रधानमंत्री सड़क योजना, उज्जवला जैसी तमाम योजनाओं से कोसों दूर हैं. मिन्नतों के बाद जैसे-तैसे पीएम आवास और गैस सिलेंडर की व्यवस्था हुई तो सिर्फ दो परिवारों को आवास और तीन परिवारों को उज्जवला योजना का लाभ मिल पाया है. बाकि झुग्गी झोपड़ियों में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.

कुछ परिवारों की स्थिति इतनी दयनीय है कि महज एक ही झोपड़ी है. जिसमें परिवार के सदस्य, पालतू पशु और बच्चे साथ-साथ सोते हैं. ऐसा नहीं है कि जिले में जनप्रतिनिधियों व आला अधिकारियों को इन आदिवासी परिवारों की स्तिथि के बारे में कुछ जानकारी नहीं है.

ग्रामीणों ने कई बार जिम्मेदारों को ज्ञापन और आवेदन सौपें हैं. लेकिन किसी को जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर पर बसे इस गांव की चिंता नहीं हैं.वहीं जब इस बारे में जिला पंचायत अध्यक्ष रविराज यादव से बात की गई तो कहा कि वे शासन-प्रशासन के संज्ञान में इस मामले को लाएंगे और गांव में जरूरी सुविधाएं मुहैया कराईं जाएंगी.

पन्ना। एक तरफ सरकारें आदिवासियों के विकास के लिए तमाम योजनाओं लागू करने का दावा करती हैं. लेकिन इन योजनाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिला मुख्यालय से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव मांझा की बदहाल हालात इन तमाम दावों की पोल खोल देतीं हैं. मांझा एक छोटा सा गांव है. जहां करीब 40 आदिवासी परिवार रहते हैं. लेकिन इनकी जिंदगी नरक से कम नहीं हैं. न तो रहने को घर है और न ही इनके पास रोजगार. आस-पास के इलाकों से लकड़ियां इकट्ठा करके उन्हें बेचकर इनका गुजारा चलता है.

आदिवासी गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी

ये परिवार सरकार की प्रधानमंत्री आवाज योजना, प्रधानमंत्री सड़क योजना, उज्जवला जैसी तमाम योजनाओं से कोसों दूर हैं. मिन्नतों के बाद जैसे-तैसे पीएम आवास और गैस सिलेंडर की व्यवस्था हुई तो सिर्फ दो परिवारों को आवास और तीन परिवारों को उज्जवला योजना का लाभ मिल पाया है. बाकि झुग्गी झोपड़ियों में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.

कुछ परिवारों की स्थिति इतनी दयनीय है कि महज एक ही झोपड़ी है. जिसमें परिवार के सदस्य, पालतू पशु और बच्चे साथ-साथ सोते हैं. ऐसा नहीं है कि जिले में जनप्रतिनिधियों व आला अधिकारियों को इन आदिवासी परिवारों की स्तिथि के बारे में कुछ जानकारी नहीं है.

ग्रामीणों ने कई बार जिम्मेदारों को ज्ञापन और आवेदन सौपें हैं. लेकिन किसी को जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर पर बसे इस गांव की चिंता नहीं हैं.वहीं जब इस बारे में जिला पंचायत अध्यक्ष रविराज यादव से बात की गई तो कहा कि वे शासन-प्रशासन के संज्ञान में इस मामले को लाएंगे और गांव में जरूरी सुविधाएं मुहैया कराईं जाएंगी.

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