नीमच। एक औरत की हिफाजत करने में नाकामयाब इंसान खुद को मर्द कैसे कह सकता है. (अक्षय कुमार की पैडमैन मूवी का डॉयलॉग) रील लाइफ के इस डॉयलॉग ने रीयल लाइफ में एक इंसान को इतना प्रेरित कर दिया कि उसने महिलाओं को उनका सम्मान दिलाने की ठान ली. ये कहानी है नीमच जिले के छोटे से गांव खोर में रहने वाले भूपेंद्र खोईवाल की.
भूपेंद्र अक्षय कुमार की मूवी पैडमैन से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने क्षेत्र की महिलाओं को लिए भी कुछ वैसा ही करने की ठानी जैसा अक्षय कुमार ने पैडमैन में किया था. भूपेंद्र खोईवाल ने अपने दम पर महिलाओं के पैड बनाने की यूनिट ही स्थापित कर डाली, इससे क्षेत्र की महिलाओं को सस्ते पैड और रोजगार मिलने लगा.
भूपेंद्र केवल पैड बनाने का काम नहीं रहे हैं, बल्कि महिलाओं को जागरूक भी कर रहे हैं. पैड बनाने की उनकी इस मुहिम में पहले केवल 15 महिलाएं थीं, लेकिन धीरे-धीरे महिलाओं में जागरूकता आई, तो उनकी संख्या बढ़ने लगी. भूपेंद्र बताते है कि उनकी पैड बनाने की शुरुआत भी कुछ अरुणाचलम मुरुगुनाथ जैसी ही रही. जब उन्होंने पैड बनाने की यूनिट लगाने के बारे में अपने घरवालों को बताया तो उनका जमकर विरोध हुआ.
लेकिन कहते है न कि हौसला मजबूत हो और इरादे नेक, तो हर राह आसान हो जाती है. आखिरकार घर वाले भी भूपेंद्र का साथ देने को राजी हो गए और उनकी यह नेक मुहिम रंग लाई. ऐश्वर्या इंटरप्राइजेस के नाम से पैड बनाने की कंपनी चला रहे भूपेंद्र लगभग 75 हजार पैड बनाकर राजधानी भोपाल सहित पूरे प्रदेश में भेजते हैं. उनके यह पैड किसी जनरल स्टोर या मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलते, बल्कि उनकी यूनिट की महिलाएं इन्हें घर-घर जाकर बेचती हैं और महिलाओं को जागरूक भी करती हैं.
भूपेंद्र की कंपनी काफी सस्ते पैड बनाती है. एक पैड की कीमत कीमत मात्र 2 रुपए है. जिसे बनाने की लागत 1 रुपए 80 पैसे है. यानि एक पैड पर केवल वे 20 पैसे का मुनाफा ले रहे हैं. भूपेंद्र की इस पहल से महिलाएं भी बेहद खुश हैं. भूपेंद्र की यह नेक सोच बेहद सार्थक है, जिसने नीमच जैसे पिछड़े जिले की महिलाओं को न सिर्फ रोजगार दिलाया, बल्कि गंभीर बीमारियों से निजात दिलाने की मुहिम भी छेड़ रखी है.
भूपेंद्र चाहते तो अपना कोई और बिजनेस शुरू कर सकते थे, लेकिन महिलाओं को गंदे कपड़े से आजादी दिलाने के लिए उन्होंने इस काम को एक मिशन का रूप दे दिया है. ईटीवी भारत भी भूपेंद्र के इस काम के लिए उन्हें सलाम करता है, क्योंकि जो इंसान खुद से पहले महिलाओं के सम्मान के लिए खड़ा होता है वही असली इंसान होता है.