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जिन पत्थरों से महकती थी रसोई, आधुनिकता ने उन्हें गुमनाम कर दिया

नरसिंहपुर जिले के बरमान में पत्थरों को तरासकर सिलबट्टे, चक्कियां बनाने वाले कारीगरों के सामने बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो गई है. यह लोग अब पलायन को मजबूर हो गए हैं.

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Published : Jan 24, 2020, 11:34 AM IST

Updated : Jan 24, 2020, 12:18 PM IST

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पहचान खोते सिलबट्टे

नरसिंहपुर। बरमान में पिछली कई पीढ़ियों से कुछ परिवार पत्थरों को अपनी आजीविका का साधन बनाए हुए हैं, लेकिन आधुनिकता की मार से यह लोग अब पलायन करने पर मजबूर कर दिया है. चट्टानों को काटकर सिलबट्टे बनाने वाले यह कारीगर इतनी मेहनत के बावजूद बमुश्किल से दो वक्त की रोटी भी नहीं कमा पा रहे हैं. इन कारीगरों की कलाकारी अब ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित रह गई है. ग्रामीण इलाकों में ही इस सेहत के खजाने और इनसे बनने वाले खाद्य के जायके की समझ रखते है.

पहचान खोते सिलबट्टे

आधुनिक संसाधनों की आमद से हमारे पारंपरिक संसाधन अपनी पहचान खोते नजर आ रहे हैं. भले ही आज रसोईघर में आधुनिक तकनीक के बने मिक्सर, ग्राइंडर जैसे आधुनिक उपकरणों ने जगह बना ली हो, लेकिन चट्टानों को तोड़कर तरासे गए पत्थरों से बने सिलबट्टे और चक्कियों की बात ही निराली है. जिसके आपकी रसोई तो स्वाद से महकती ही है, साथ ही आपकी सेहत का भी ख्याल रखती है.

पहचान खोते सिलबट्टे

पत्थर से बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है स्वाद का खजाना

रसोई से सिलबट्टे की खनक और परंपरागत संसाधनों को छोड़कर हम भले ही कितने आधुनिक हो जाएं, लेकिन जो बात प्राचीन भारतीय संसाधनों में है उनकी होड़ नहीं हो सकती है. बात जायके के मसालों की हो तो सिलबट्टे और पत्थर की चक्की की होड़ किसी भी आधुनिक यंत्रों ने नहीं हो सकती है. समय की भागमभाग में हमने आधुनिक तकनीक के सहारे संसाधान जरूर जुटा लिए हैं, लेकिन उनमें हमें वह स्वाद नहीं मिल पाता है, जो पत्थर के बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है.

नरसिंहपुर। बरमान में पिछली कई पीढ़ियों से कुछ परिवार पत्थरों को अपनी आजीविका का साधन बनाए हुए हैं, लेकिन आधुनिकता की मार से यह लोग अब पलायन करने पर मजबूर कर दिया है. चट्टानों को काटकर सिलबट्टे बनाने वाले यह कारीगर इतनी मेहनत के बावजूद बमुश्किल से दो वक्त की रोटी भी नहीं कमा पा रहे हैं. इन कारीगरों की कलाकारी अब ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित रह गई है. ग्रामीण इलाकों में ही इस सेहत के खजाने और इनसे बनने वाले खाद्य के जायके की समझ रखते है.

पहचान खोते सिलबट्टे

आधुनिक संसाधनों की आमद से हमारे पारंपरिक संसाधन अपनी पहचान खोते नजर आ रहे हैं. भले ही आज रसोईघर में आधुनिक तकनीक के बने मिक्सर, ग्राइंडर जैसे आधुनिक उपकरणों ने जगह बना ली हो, लेकिन चट्टानों को तोड़कर तरासे गए पत्थरों से बने सिलबट्टे और चक्कियों की बात ही निराली है. जिसके आपकी रसोई तो स्वाद से महकती ही है, साथ ही आपकी सेहत का भी ख्याल रखती है.

पहचान खोते सिलबट्टे

पत्थर से बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है स्वाद का खजाना

रसोई से सिलबट्टे की खनक और परंपरागत संसाधनों को छोड़कर हम भले ही कितने आधुनिक हो जाएं, लेकिन जो बात प्राचीन भारतीय संसाधनों में है उनकी होड़ नहीं हो सकती है. बात जायके के मसालों की हो तो सिलबट्टे और पत्थर की चक्की की होड़ किसी भी आधुनिक यंत्रों ने नहीं हो सकती है. समय की भागमभाग में हमने आधुनिक तकनीक के सहारे संसाधान जरूर जुटा लिए हैं, लेकिन उनमें हमें वह स्वाद नहीं मिल पाता है, जो पत्थर के बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है.

Intro:- भले ही आज हमारी रसोई ने परम्परागत संसाधनों को छोड़ आधुनिक तकनीक के बने मिक्सर ग्राइंडर इत्यादि आधुनिक उपकरणों ने जगह ले ली है और न उनसे जायके ही बन पाता है और न ही स्वास्थ लेकिन चट्टानों को खोदकर तरासे गए पत्थरो से बने सिलबट्टे और चक्कियों की बात ही निराली है जिसके आपकी रसोई तो स्वाद से महकती ही साथ से आपको पोषक तत्वों के साथ सेहत से भरपूर रखती है देखिए यह खास रिपोर्ट ...... तरासे गए पत्थरो की करामात

Body: -हम रसोई से सिलबट्टे की खनक को गायब कर और हम परंपरागत संसाधनों को छोड़कर भले हो हम कितना भी आधुनिकता की दौड़ में भाग ले पर जो बात प्राचीन भारतीय संसाधनों की है उनकी होड़ आज भी नहीं है कहते है दिमाग का रास्ता पेट से होकर गुजरता है और पेट अगर जायकेदार स्वादिष्ठ भोजन से भरे तो तन से लेकर मन भी स्वास्थ हो उठता है बात अगर जायके के मासलो की हो तो सिलबट्टे और पत्थर की चक्की की आज भी कोई तोड़ नहीं है समय की भागम भाग में हमने आधुनिक तकनीक के सहारे जरूर संसाधन जुटा लिए है पर उनमें वह स्वाद नहीं न ही सेहत का खजाना हमें मिल पाता है जो पत्थर के बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है और इन्हीं पत्थरो की तराशे गए संसार में आज हम आपको लेकर चलते है जो इन दिनों नरसिंहपुर बरमान में बसा हुआ है जहां पिछली कई पीढ़ियों से कुछ परिवार इस बेजान पत्थरों को अपनी आजीविका का साधन बनाए हुए है लेकिन समय की दुहारी से अब पलायन की कगार पर पहुंच गए है और इस मेहनतकश काम के बावजूद बमुश्किल दो वक्त की रोटी कमा पाते है और इसकी आजीविका के खरीददार भी अब ग्रामीण इलाकों के लोग भर रह गए है जो इस पारम्परिक कशीदगी से जुड़े सेहत के खजाने और इनसे बनने वाले खाद्य के जायके की समझ रखते है और दूर दूर से इन्हें खरीदने आते है

बाइट - 01सुरभि यादव , खरीददार

बाइट - 02प्रमोद रजक , खरीदकर

- आज के मिक्सर ग्राइंडर हो या अन्य कोई उपकरण वह आपको त्वरित खाद्य की आपूर्ति तो कर सकते है पर न स्वाद दे सकते है न सेहत पर पत्थर के बने सिलबट्टे और चक्की से रसाई में बने पकवान हो या पिसा हुआ मसाला जो सुगन्धित महक के साथ आपके खाने को भी जायकेदार बना देते है पर तराशने वाले अब बेगारी की कगार पर पहुंच गए है उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है इनके करीगर बताते है कि मिक्सी के चलन से न केवल उनके पुस्तैनी रोजगार पर फर्क पड़ा है बल्कि अब वह पलायन को मजबूर है

बाइट - 03पार्वती देवी , निर्माता

बाइट -04 संतोष , निर्माता

Conclusion: - कभी आप जब अपनी रसोई के लिए आधुनिक उपकरण खरीदने का मन बनाए तो एक बार जरूर सोचे की क्या आप अपने जायके और सेहत से साथ तो सौदा नहीं कर रहे है और आपका यह फैसला कही किसी का रोजगार और दो वक्त की रोजीरोटी तो नहीं छीन रहा है बदलते दौर के साथ जिस तरह से खानपान में अंतर आया है और रसोई में पहुंचकर मिलावटी मसाला आपकी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है उस दौर में ये समझना जरूरी है कि किचिन के ये सिलबट्टे हमारी सेहत के लिए भी बेहद अहम हैं । ..............
Last Updated : Jan 24, 2020, 12:18 PM IST
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