नरसिंहपुर। बरमान में पिछली कई पीढ़ियों से कुछ परिवार पत्थरों को अपनी आजीविका का साधन बनाए हुए हैं, लेकिन आधुनिकता की मार से यह लोग अब पलायन करने पर मजबूर कर दिया है. चट्टानों को काटकर सिलबट्टे बनाने वाले यह कारीगर इतनी मेहनत के बावजूद बमुश्किल से दो वक्त की रोटी भी नहीं कमा पा रहे हैं. इन कारीगरों की कलाकारी अब ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित रह गई है. ग्रामीण इलाकों में ही इस सेहत के खजाने और इनसे बनने वाले खाद्य के जायके की समझ रखते है.
आधुनिक संसाधनों की आमद से हमारे पारंपरिक संसाधन अपनी पहचान खोते नजर आ रहे हैं. भले ही आज रसोईघर में आधुनिक तकनीक के बने मिक्सर, ग्राइंडर जैसे आधुनिक उपकरणों ने जगह बना ली हो, लेकिन चट्टानों को तोड़कर तरासे गए पत्थरों से बने सिलबट्टे और चक्कियों की बात ही निराली है. जिसके आपकी रसोई तो स्वाद से महकती ही है, साथ ही आपकी सेहत का भी ख्याल रखती है.
पत्थर से बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है स्वाद का खजाना
रसोई से सिलबट्टे की खनक और परंपरागत संसाधनों को छोड़कर हम भले ही कितने आधुनिक हो जाएं, लेकिन जो बात प्राचीन भारतीय संसाधनों में है उनकी होड़ नहीं हो सकती है. बात जायके के मसालों की हो तो सिलबट्टे और पत्थर की चक्की की होड़ किसी भी आधुनिक यंत्रों ने नहीं हो सकती है. समय की भागमभाग में हमने आधुनिक तकनीक के सहारे संसाधान जरूर जुटा लिए हैं, लेकिन उनमें हमें वह स्वाद नहीं मिल पाता है, जो पत्थर के बने सिलबट्टे और चक्कियों में मिलता है.