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ये शख्स पिछले कई सालों से बच्चों को निशुल्क दे रहे संस्कृत की शिक्षा

देशभक्त श्याम स्वरूप खरे जिन्होंने 18 साल पहले गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने संकल्प लेकर बच्चों को, संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में सेवा देने का संकल्प लिया. भले ही केंद्र बन्द हो गया पर वो आज भी उसी स्कूल में संस्कृत के ज्ञान का प्रकाश निशुल्क देते चले आ रहे हैं.

Shyam Swaroop Khare
देशभक्त श्याम स्वरूप खरे
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Published : Jan 26, 2020, 5:22 PM IST

नरसिंहपुर। सरदार पटेल कहा करते थे, देशभक्ति लब्जों में नहीं बल्कि जहन में बसनी चाहिए. तभी मात्रभूमि की सेवा की जा सकती है. भले ही संसाधन न हो पर संकल्प की सार्थकता का निश्चय मन में होना चाहिए. एक ऐसे ही देशभक्त श्याम स्वरूप खरे जिन्होंने 18 साल पहले गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने संकल्प लेकर बच्चों को, संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में सेवा देने का संकल्प लिया. भले ही केंद्र बन्द हो गया पर वो आज भी उसी स्कूल में संस्कृत के ज्ञान का प्रकाश निशुल्क देते चले आ रहे हैं. गरीबी में जीवन यापन करते हुए भी कभी उन्होंने शिकायत नहीं की. यहां तक कि उन्होंने वो एक झोपड़ी में जीवन बिता रहे हैं, लेकिन अपने संकल्प को लेकर आज भी वो दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं.

देशभक्त श्याम स्वरूप खरे

नरसिंहपुर के छोटे से गांव संगाई के 66 साल के श्याम स्वरुप खरे ने संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में प्रेरक के रूप में सेवाएं दी थीं और अब एक संस्कृत शिक्षक के रूप में वो अपना किरदार निभा रहे हैं. संगाई प्राथमिक शाला के शिक्षक बताते हैं कि राष्ट्र प्रेम और संकल्प के प्रति श्याम स्वरूप का समर्पण अनुकरणीय है. 1995 से वो लगातार निशुल्क बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बेहद गरीब परिस्थिति में जीवन यापन करने वाले श्याम स्वरूप जैसी महान शख्सियत कम ही देखने को मिलती है. जिन्होंने 26 जनवरी को लिए एक संकल्प की खातिर अपना सर्वत्र उसे पूरा करने में लगा दिया. वो हमारे लिए भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं.

भले ही एक शख्स ने अपने जीवन के अमूल्य लम्हों को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया, लेकिन जीवन के इस पड़ाव में आकर भी उनकी कभी प्रशासन ने कोई सुध नहीं ली, ना आज तक उन्हें वृद्ध पेंशन, आवास और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिला. ना ही किसी तरह की सरकारी मदद मिली.

आज 26 जनवरी के समारोह में लोगों को पुरस्कार से नवाजा जाता है, लेकिन इनके सच्चे हकदार को चंद मूलभूत सुविधाएं भी ना दे पाना, शायद यही सिस्टम का बेरहम सितम है. बरहाल इन सब की फिक्र से दूर श्याम स्वरूप आज भी स्कूली बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश बदस्तूर लगातार भरते जा रहे हैं.

नरसिंहपुर। सरदार पटेल कहा करते थे, देशभक्ति लब्जों में नहीं बल्कि जहन में बसनी चाहिए. तभी मात्रभूमि की सेवा की जा सकती है. भले ही संसाधन न हो पर संकल्प की सार्थकता का निश्चय मन में होना चाहिए. एक ऐसे ही देशभक्त श्याम स्वरूप खरे जिन्होंने 18 साल पहले गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने संकल्प लेकर बच्चों को, संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में सेवा देने का संकल्प लिया. भले ही केंद्र बन्द हो गया पर वो आज भी उसी स्कूल में संस्कृत के ज्ञान का प्रकाश निशुल्क देते चले आ रहे हैं. गरीबी में जीवन यापन करते हुए भी कभी उन्होंने शिकायत नहीं की. यहां तक कि उन्होंने वो एक झोपड़ी में जीवन बिता रहे हैं, लेकिन अपने संकल्प को लेकर आज भी वो दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं.

देशभक्त श्याम स्वरूप खरे

नरसिंहपुर के छोटे से गांव संगाई के 66 साल के श्याम स्वरुप खरे ने संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में प्रेरक के रूप में सेवाएं दी थीं और अब एक संस्कृत शिक्षक के रूप में वो अपना किरदार निभा रहे हैं. संगाई प्राथमिक शाला के शिक्षक बताते हैं कि राष्ट्र प्रेम और संकल्प के प्रति श्याम स्वरूप का समर्पण अनुकरणीय है. 1995 से वो लगातार निशुल्क बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बेहद गरीब परिस्थिति में जीवन यापन करने वाले श्याम स्वरूप जैसी महान शख्सियत कम ही देखने को मिलती है. जिन्होंने 26 जनवरी को लिए एक संकल्प की खातिर अपना सर्वत्र उसे पूरा करने में लगा दिया. वो हमारे लिए भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं.

भले ही एक शख्स ने अपने जीवन के अमूल्य लम्हों को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया, लेकिन जीवन के इस पड़ाव में आकर भी उनकी कभी प्रशासन ने कोई सुध नहीं ली, ना आज तक उन्हें वृद्ध पेंशन, आवास और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिला. ना ही किसी तरह की सरकारी मदद मिली.

आज 26 जनवरी के समारोह में लोगों को पुरस्कार से नवाजा जाता है, लेकिन इनके सच्चे हकदार को चंद मूलभूत सुविधाएं भी ना दे पाना, शायद यही सिस्टम का बेरहम सितम है. बरहाल इन सब की फिक्र से दूर श्याम स्वरूप आज भी स्कूली बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश बदस्तूर लगातार भरते जा रहे हैं.

Intro:सरदार पटेल कहा करते थे देशभक्ति लब्जो में नहीं बल्कि जहन में बसनी चाहिए तभी मात्रभूमि की सेवा की जा सकती है भले ही संसाधन न हो पर संकल्प की सार्थकता का निश्चय मन में होना चाहिए और आज हम आपको ऐसे ही देश के सच्चे सपूत से मिलाते हैं जिसने 18 साल पहले गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने संकल्प लेकर बच्चों को संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में सेवा देने का संकल्प लिया भले ही केंद्र बन्द हो गया पर आज भी उसी स्कूल में संस्कृत के ज्ञान का प्रकाश निशुल्क देते चले आ रहे है गरीबी में जीवन यापन करते हुए भी कभी उन्होंने शिकायत नहीं की यहां तक कि 4 बाई 8 के टूटे झोपड़े में जीवन बिता रहे हैं मगर अपने संकल्प को लेकर आज भी वह दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं देखिए खास खबर .... तिरंगे का संकल्प
Body: - सरदार पटेल कहा करते थे देशभक्ति लब्जो में नहीं बल्कि जहन में बसनी चाहिए तभी मात्रभूमि की सेवा की जा सकती है भले ही संसाधन न हो पर संकल्प की सार्थकता का निश्चय मन में होना चाहिए और आज हम आपको ऐसे ही देश के सच्चे सपूत से मिलाते हैं जिसने 18 साल पहले गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने संकल्प लेकर बच्चों को संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में सेवा देने का संकल्प लिया भले ही केंद्र बन्द हो गया पर आज भी उसी स्कूल में संस्कृत के ज्ञान का प्रकाश निशुल्क देते चले आ रहे है गरीबी में जीवन यापन करते हुए भी कभी उन्होंने शिकायत नहीं की यहां तक कि 4 बाई 8 के टूटे झोपड़े में जीवन बिता रहे हैं मगर अपने संकल्प को लेकर आज भी वह दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं देखिए खास खबर .... तिरंगे का संकल्प


- चंद सिक्कों की खातिर जहां बड़े बड़ों का ईमान डोल जाता है वही नरसिंहपुर के छोटी से गांव संगाई के 66 साल के वृद्ध ने 18 साल पहले तिरंगे की कसम उठाने वाले श्याम स्वरूप ने अपना सारा जीवन ही सेवा के लिए अर्पण कर दिया और सेवा भी ऐसी जो ज्ञान का प्रकाश बनकर नौनिहालों का भविष्य तो बना ही रही है साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति को भी धरोहर के रूप में उन्हें देने का काम कर रही है यहां तक कि उन्होंने अपना विवाह भी नहीं किया और कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए यहां तक कि गरीबी और पेट की आप की खातिर अपने घर में रखें कांसे के पुराने बर्तन बेच बेच कर अपना खर्चा चलाथा रहा है और इस फूटी झोपड़ी में किसी तरह दिन गुजारते हुए खुद को अपने संकल्प के लिए समर्पण भाव से सेवा देते चले आ रहे हैं उनकी नित्य दिनचर्या स्कूल से शुरू होती है और संस्कृत की शिक्षण बच्चों को देकर ही खत्म होती है मगर अफसोस आज तक प्रशासन ने कभी उसकी सुध नहीं ली यहां तक कि ना कोशिश किसी शासकीय योजना का लाभ मिला ना वृद्ध पेंशन और ना ही रहने को पक्की छत पर इसके बावजूद भी उन्होंने कभी किसी से शिकायत भी नहीं की




- संस्कृत से एम ए किय श्याम स्वरुरप ने बतौर संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में प्रेरक के रूप में सेवाएं दी थी और अब एक संस्कृत शिक्षक के रूप में अपना किरदार निभा रहे हैं देशभक्ति की ऐसी मिसाल कम ही देखने को मिलती है जब एक संकल्प मात्र के लिए उन्होंने अपना जीवन सर्वत्र बच्चों को पढ़ाने में निछावर कर दिया आज से 18 साल पहले इसी गणतंत्र दिवस पर उन्होंने जो संकल्प लिया था उसे आज भी बखूबी निभा रहे हैं ऐसा कम ही देखने को मिलता है स्कूल के छात्र-छात्राएं भी बताते हैं कि उनके शिक्षण का तरीका बेहद ही सरल और स्पष्ट है और कई सालों से वह इसी तरह पढ़ा रहे हैं वह वह भी निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं

बाइट -01 शिवम् छात्र



- संगाई प्राथमिक शाला की शिक्षक बताते हैं कि राष्ट्रप्रेम और संकल्प के प्रति स्वरूप जी का समर्पण अनुकरणीय है 1995 से वह लगातार निशुल्क बच्चों को पढ़ा रहे हैं बेहद गरीबी परिस्थिति में जीवन यापन करने वाले श्याम स्वरूप खरे जैसे महान शख्सियत कम ही देखने को मिलती है जिन्होंने 26 जनवरी को लिए एक संकल्प की खातिर अपना सर्वत्र उसे पूरा करने में वार दिया वह हमारे लिए भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए है
बाइट -02 दशरथ जाटव शिक्षक प्राथमिक शाला संगाई
बाइट - 03 राजेश शाह , एसडीएम गाडरवारा


- भले ही एक शख्स ने अपने जीवन के अमूल्य लम्हों को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया लेकिन जीवन के इस पड़ाव में आकर भी उनकी कभी प्रशासन ने कोई सुध नहीं ली ना आज तक उन्हें वृद्ध पेंशन आवास और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिला और ना ही किसी तरह की सरकारी मदद प्रशासन की अपनी डफली अपना राग ही रहता है हां मीडिया के सवालों पर जवाब देने की जवाबदेही जब बनती है तो नियमों की आड़ का ताना बुन लेते है

बाइट -04 श्याम स्वरूप खरे , देशभक्त प्रेरक



- आज 26 जनवरी को समारोह में लोगों को पुरस्कार से नवाज ते हैं लेकिन इनके सच्चे हकदार ओं को चंद मूलभूत सुविधाएं भी ना दे पाना शायद यही सिस्टम का बेरहम सितम है बरहाल हाल इन सब की फ़िक्र से दूर श्याम स्वरूप आज भी स्कूली बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश बदस्तूर लगातार भरते जा रहे हैं.........Conclusion:आज 26 जनवरी को समारोह में लोगों को पुरस्कार से नवाज ते हैं लेकिन इनके सच्चे हकदार ओं को चंद मूलभूत सुविधाएं भी ना दे पाना शायद यही सिस्टम का बेरहम सितम है बरहाल हाल इन सब की फ़िक्र से दूर श्याम स्वरूप आज भी स्कूली बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश बदस्तूर लगातार भरते जा रहे हैं.........
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