नरसिंहपुर। सरदार पटेल कहा करते थे, देशभक्ति लब्जों में नहीं बल्कि जहन में बसनी चाहिए. तभी मात्रभूमि की सेवा की जा सकती है. भले ही संसाधन न हो पर संकल्प की सार्थकता का निश्चय मन में होना चाहिए. एक ऐसे ही देशभक्त श्याम स्वरूप खरे जिन्होंने 18 साल पहले गणतंत्र दिवस पर तिरंगे के सामने संकल्प लेकर बच्चों को, संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में सेवा देने का संकल्प लिया. भले ही केंद्र बन्द हो गया पर वो आज भी उसी स्कूल में संस्कृत के ज्ञान का प्रकाश निशुल्क देते चले आ रहे हैं. गरीबी में जीवन यापन करते हुए भी कभी उन्होंने शिकायत नहीं की. यहां तक कि उन्होंने वो एक झोपड़ी में जीवन बिता रहे हैं, लेकिन अपने संकल्प को लेकर आज भी वो दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं.
नरसिंहपुर के छोटे से गांव संगाई के 66 साल के श्याम स्वरुप खरे ने संस्कृत पुस्तकालय केंद्र में प्रेरक के रूप में सेवाएं दी थीं और अब एक संस्कृत शिक्षक के रूप में वो अपना किरदार निभा रहे हैं. संगाई प्राथमिक शाला के शिक्षक बताते हैं कि राष्ट्र प्रेम और संकल्प के प्रति श्याम स्वरूप का समर्पण अनुकरणीय है. 1995 से वो लगातार निशुल्क बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बेहद गरीब परिस्थिति में जीवन यापन करने वाले श्याम स्वरूप जैसी महान शख्सियत कम ही देखने को मिलती है. जिन्होंने 26 जनवरी को लिए एक संकल्प की खातिर अपना सर्वत्र उसे पूरा करने में लगा दिया. वो हमारे लिए भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं.
भले ही एक शख्स ने अपने जीवन के अमूल्य लम्हों को राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया, लेकिन जीवन के इस पड़ाव में आकर भी उनकी कभी प्रशासन ने कोई सुध नहीं ली, ना आज तक उन्हें वृद्ध पेंशन, आवास और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिला. ना ही किसी तरह की सरकारी मदद मिली.
आज 26 जनवरी के समारोह में लोगों को पुरस्कार से नवाजा जाता है, लेकिन इनके सच्चे हकदार को चंद मूलभूत सुविधाएं भी ना दे पाना, शायद यही सिस्टम का बेरहम सितम है. बरहाल इन सब की फिक्र से दूर श्याम स्वरूप आज भी स्कूली बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश बदस्तूर लगातार भरते जा रहे हैं.