नरसिंहपुर। जिले में एक बार फिर सिस्टम का बेरहम सितम सामने आया है, जहां एक मां-बेटी कलेक्ट्रेट की चौखट पर जाकर लगातार गुहार लगाने को मजबूर है, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. उनकी मांग है कि उनके पिता शिक्षक थे, जिनकी कोविड सेंटर में ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी. इस पर उन्हें कोरोना योद्धा मानकर परिवार को आर्थिक मदद दी जाए, लेकिन प्रशासन की बेरुखी ने मायूस कर दिया है.
कोविड केयर सेंटर में ड्यूटी के दौरान हुई मौत
नरसिंहपुर के गाडरवारा में एक शिक्षक परिवार को ईमानदारी से कर्तव्य निभाने की जो सजा भुगतनी पड़ रही है, उससे कोरोना के संकट काल में ड्यूटी करने वाले सभी अधिकारी कर्मचारियों का हौसला टूट रहा है. गाडरवारा के कोविड केयर सेंटर में शिक्षक संतोष साहू की ड्यूटी ऐसे समय में लगाई गई जब वह हाई ब्लड प्रेसर और शुगर से पीड़ित थे.
इसके लिए पीड़ित शिक्षक ने बकायदा प्रशासन को सूचित भी किया था, इसके बावजूद उनकी कोरोना संक्रमित व्यक्तियों के बीच कोवेड केयर सेंटर में ड्यूटी लगाई गई थी. ड्यूटी के दौरान देर रात उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया.
परिवार लगा रहा न्याय की गुहार
इस हादसे से पूरा परिवार सदमे में है और परिवार की मांग है कि उनके पिता को कोरोना योद्धा मानकर आर्थिक मदद दी जाए. पीड़ित परिवार का आरोप है कि वह स्थानीय स्तर से लेकर नरसिंहपुर कलेक्टर और यहां तक कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह से भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें किसी भी तरह की कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है. प्रशासन की निरंकुशता से केवल संतोष साहू के परिवार का ही हौसला नहीं बल्कि उन सभी कोरोना वॉरियर्स के रूप में विषम परिस्थितियों के बाद भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं उनका भी हौसला टूटने लगा है.
कलेक्टर ने फिर सुनाया रटा रटाया जुमला
संतोष की पत्नी और उनकी बेटी बीते 2 महीने में दो से तीन बार कलेक्ट्रेट की चौखट में न्याय की फरियाद लगा चुकी हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ आवेदन लेकर जांच की बात कर रहे हैं. गुरुवार को भी मां बेटी दोनों नरसिंहपुर कलेक्टर से मिलने पहुंची, जहां उन्हें मायूसी हाथ लगी. वहीं प्रशासन ने रटा रटाया जुमला एक बार फिर पीड़ित परिवार को सुना दिया कि हम देखते हैं.
कलेक्टर ने कुछ भी कहने से किया इनकार
इस मामले में जब मीडिया ने कलेक्टर से बात करनी चाही, तो उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. कलेक्टर के इस रवैये से साफ नजर आता है कि प्रशासन अपने ही अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति कितना संवेदनशील है. जो इस संकटकाल में सेवाएं देते हुए मौत को गले लगा रहे हैं. उन्हें प्रशासन की बेरुखी से दो चार होना पड़ रहा है.