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MP Election 2023: इस विधानसभा सीट पर BJP को लगा वंशवाद का रोग, 4 दशक से एक ही परिवार को मौका, 10वीं बार टिकट

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Published : Aug 18, 2023, 2:14 PM IST

मुरैना जिले में बीजेपी वंशवाद से नहीं उबर पा रही है. पार्टी की स्थापना के बाद 4 दशक गुजरने पर भी सबलगढ़ विधानसभा सीट पर लगातार एक ही परिवार को मौका दिया जा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी सरला रावत चुनाव हार चुकी हैं, लेकिन फिर से पार्टी ने उन्हीं पर विश्वास जताया है. इससे बीजेपी में विरोध के स्वर उठने लगे हैं.

MP Election 2023
सबलगढ़ विधानसभा सीट पर 4 दशक से वंशवाद को बढ़ा रही BJP

मुरैना। एक ओर बीजेपी कहती है कि हमारे पास लाखों कार्यकर्ता हैं और हम जमीन से उठे व्यक्ति को मौका देते हैं. लेकिन मुरैना जिले की सबलगढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी चार दशक बाद भी कोई दूसरा विकल्प नहीं खोज पाई है. अब एक बार फिर लोगों के बीच वंशवाद को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. यदि भारतीय जनता पार्टी के पास कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है तो वर्तमान में सिंधिया समर्थक कई हैं, जो सबलगढ़ विधानसभा सीट पर परचम फहराने की क्षमता रखते हैं. सबलगढ़ में वर्तमान में कांग्रेस के बैजनाथ कुशवाह काबिज हैं. वर्ष 2018 में भाजपा को करारी शिकस्त देकर कांग्रेस ने यह सीट अपने खाते में की थी.

बीते चुनाव में हारी बीजेपी : गत चुनाव में शर्मनाक हार के बाद इस क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाने की जुगत में लगी भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. भाजपा सबलगढ़ में खोई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. मतदाताओं को रिझाने में कोई कोर कसर न छोड़ते हुए विकास यात्रा, लाड़ली बहना योजना का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. दूसरी ओर, कांग्रेस प्रदेश सरकार एवं स्थानीय सांसद पर सबलगढ़ के साथ सौतेले व्यवहार का आरोप मढ़कर पुनः जनसमर्थन मांग रही है.

पार्टी के स्थापना वर्ष से परिवारवाद : विदित है कि भाजपा ने सबलगढ़ में अपनी स्थापना वर्ष 1980 से 2018 तक एक ही जाति एवं परिवार को ही सदैव अपना प्रत्याशी बनाया. वर्ष 1990 (रथ यात्रा लहर), 2003 (राम मंदिर लहर) एवं 2013 ( मोदी लहर) को छोड़कर हर बार भाजपा को यहां हार का सामना करना पड़ा. भाजपा के टिकट पर एक ही जाति एवं परिवार की बादशाहत को कांग्रेस, भाजपा के वंशवाद, परिवारवाद से जोड़कर सदैव राजनैतिक लाभ लेने में सफल रही है.

सिंधिया समर्थक थे दावेदार : कांग्रेस ने वर्ष 1985, 1993, 2018 में तो बसपा 1998 ने यहां से जीत दर्ज की. साल 2018 में अबकी बार सिंधिया सरकार के नारों के साथ ऐड़ी चोटी का जोर लगाकर ग्वालियर चम्बल संभाग के बहुमत को कांग्रेस के खाते में डालने कांग्रेस के जमीनी पकड़ रखने वाले नेताओं के दलबदल के बाद भजपा की स्थानीय राजनीति में मजबूती हुई है. पुनः यहां संगठनात्मक नेता राजेन्द्र मरैया, नगरीय के साथ ग्रामीण क्षेत्र में सघन जनसम्पर्क और मजबूत पकड़ के लिए पहचाने जाने वाले संजय फक्कड़, पूर्व विधायक पुत्र दीपक चौधरी को बीजेपी साधती तो लाभ हो सकता है.

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कौन हैं सरला रावत : सबलगढ़ से स्व.मेहरबान सिंह रावत की पुत्रवधू को एक बार फिर से अपना उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद काफी लंबे समय से चुनाव लड़ने का मन बनाकर बैठे सिंधिया समर्थकों में मायूसी छा गई है. सरला रावत का टिकट फाइनल किए जाने के बाद अब सबलगढ़ में विरोध के स्वर दिखाई देने लगे हैं. बता दें कि सरला रावत हाईस्कूल पास हैं और 2013 में सरपंच रहीं. उसके बाद जनपद सदस्य और जनपद अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. भाजपा में दो बार जिला मंत्री के पद पर रहने के बाद अभी प्रदेश कार्यकारणी सदस्य हैं.

मुरैना। एक ओर बीजेपी कहती है कि हमारे पास लाखों कार्यकर्ता हैं और हम जमीन से उठे व्यक्ति को मौका देते हैं. लेकिन मुरैना जिले की सबलगढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी चार दशक बाद भी कोई दूसरा विकल्प नहीं खोज पाई है. अब एक बार फिर लोगों के बीच वंशवाद को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. यदि भारतीय जनता पार्टी के पास कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है तो वर्तमान में सिंधिया समर्थक कई हैं, जो सबलगढ़ विधानसभा सीट पर परचम फहराने की क्षमता रखते हैं. सबलगढ़ में वर्तमान में कांग्रेस के बैजनाथ कुशवाह काबिज हैं. वर्ष 2018 में भाजपा को करारी शिकस्त देकर कांग्रेस ने यह सीट अपने खाते में की थी.

बीते चुनाव में हारी बीजेपी : गत चुनाव में शर्मनाक हार के बाद इस क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाने की जुगत में लगी भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. भाजपा सबलगढ़ में खोई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. मतदाताओं को रिझाने में कोई कोर कसर न छोड़ते हुए विकास यात्रा, लाड़ली बहना योजना का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. दूसरी ओर, कांग्रेस प्रदेश सरकार एवं स्थानीय सांसद पर सबलगढ़ के साथ सौतेले व्यवहार का आरोप मढ़कर पुनः जनसमर्थन मांग रही है.

पार्टी के स्थापना वर्ष से परिवारवाद : विदित है कि भाजपा ने सबलगढ़ में अपनी स्थापना वर्ष 1980 से 2018 तक एक ही जाति एवं परिवार को ही सदैव अपना प्रत्याशी बनाया. वर्ष 1990 (रथ यात्रा लहर), 2003 (राम मंदिर लहर) एवं 2013 ( मोदी लहर) को छोड़कर हर बार भाजपा को यहां हार का सामना करना पड़ा. भाजपा के टिकट पर एक ही जाति एवं परिवार की बादशाहत को कांग्रेस, भाजपा के वंशवाद, परिवारवाद से जोड़कर सदैव राजनैतिक लाभ लेने में सफल रही है.

सिंधिया समर्थक थे दावेदार : कांग्रेस ने वर्ष 1985, 1993, 2018 में तो बसपा 1998 ने यहां से जीत दर्ज की. साल 2018 में अबकी बार सिंधिया सरकार के नारों के साथ ऐड़ी चोटी का जोर लगाकर ग्वालियर चम्बल संभाग के बहुमत को कांग्रेस के खाते में डालने कांग्रेस के जमीनी पकड़ रखने वाले नेताओं के दलबदल के बाद भजपा की स्थानीय राजनीति में मजबूती हुई है. पुनः यहां संगठनात्मक नेता राजेन्द्र मरैया, नगरीय के साथ ग्रामीण क्षेत्र में सघन जनसम्पर्क और मजबूत पकड़ के लिए पहचाने जाने वाले संजय फक्कड़, पूर्व विधायक पुत्र दीपक चौधरी को बीजेपी साधती तो लाभ हो सकता है.

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कौन हैं सरला रावत : सबलगढ़ से स्व.मेहरबान सिंह रावत की पुत्रवधू को एक बार फिर से अपना उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद काफी लंबे समय से चुनाव लड़ने का मन बनाकर बैठे सिंधिया समर्थकों में मायूसी छा गई है. सरला रावत का टिकट फाइनल किए जाने के बाद अब सबलगढ़ में विरोध के स्वर दिखाई देने लगे हैं. बता दें कि सरला रावत हाईस्कूल पास हैं और 2013 में सरपंच रहीं. उसके बाद जनपद सदस्य और जनपद अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. भाजपा में दो बार जिला मंत्री के पद पर रहने के बाद अभी प्रदेश कार्यकारणी सदस्य हैं.

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