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गांधी जी के उपदेशों से प्रभावित हुए थे चंबल के डकैत, एकसाथ 672 डकैतों ने किया था आत्मसमर्पण - 672 डकैतों ने किया था आत्मसमर्पण

2 अक्टूबर 1973 को महात्मा गांधी के उपदेशों से प्रभावित होकर एकसाथ 672 डकैतों ने सरेंडर कर दिया था. जानें इससे जुड़ी रोचक बातें, सिर्फ इटीवी भारत पर.

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Published : Oct 3, 2021, 9:20 PM IST

मुरैना। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसी बात बताने जा रहा है. जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे. चंबल अंचल के वीरान बीहड़ों में डकैतों की गोली की गूंज सुनाई देती थी. आज भी लोग इन बीहड़ों में जाने के कंपकपाते हैं. आपको ये जानकारी हैरानी होगी कि महात्मा गांधी के उपदेशों से प्रभावित होकर एकसाथ 672 डकैतों ने सरेंडर कर दिया. यह 2 अक्टूबर 1973 की बात है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण और विधायक रामचरण लाल मिश्रा के सहयोग से इतने सारे डकैतों ने लाल आतंक का साथ छोड़ दिया था. उस वक्त वर्तमान में एकता परिषद के संरक्षक एसएन सुब्बाराव ने भी काफी अहम भूमिका निभाई थी. रिपोर्ट पढ़ें.

672 डकैतों ने किया था आत्मसमर्पण

गांधीवादी विचारधारा के अनुयाई और वर्तमान में एकता परिषद के संरक्षक एसएन सुब्बाराव और तत्कालीन जौरा विधायक राम चरण लाल मिश्रा के संयुक्त प्रयास से चंबल को डकैत मुक्त और शांति स्थापित करने की पहल की गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण मिश्र ने भी इसमें सहयोग किया था. इस दौरान यह मेहनत रंग भी लाई गई. जौरा में 2 अक्टूबर 1973 को चंबल अंचल के 672 डकैतों ने एसएन सुब्बाराव और जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में गांधी की तस्वीर के सामने अपनी बंदूक रखकर आत्मसमर्पण किया. इस दौरान डकैतों ने बंदूक छोड़कर सदैव गांधी के बताए शांति और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ाने का संकल्प लिया था.

महात्मा गांधी सेवा आश्रम
महात्मा गांधी सेवा आश्रम

आत्मसमर्पण करने वाले डकैतों का सहयोग

चंबल अंचल के जब 672 डकैतों ने आत्मसमर्पण किया, तो उसके बाद सरकार ने उनकी काफी मदद की. सरकार ने सभी 672 डकैतों के परिवार के भरण पोषण और जीवन यापन के लिए उन्हें जमीन मुहैया कराई. साथ ही उनके अपराध की जो सजा थी, उसमें भी उन्हें रियायत देने की पहल की. आगे चलकर ऐसे ही डकैतों ने जौरा में एसएन सुब्बाराव के मार्गदर्शन में गांधी आश्रम की स्थापना की.

जिसमें स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए आज भी काम किया जाता है. यहां डकैतों के परिवार के लोग और कुछ पूर्व डकैत भी रहकर सूट और चरखा का इस्तेमाल कर खादी का काम करते हैं. साथ ही स्वदेशी को बढ़ाने के लिए कच्ची घानी का सरसो तेल, मधुमक्खी पालन और वर्मी कंपोज्ट खाद के साथ-साथ खादी पुण्य का काम करते हैं. जौरा की खादी और अन्य उत्पाद पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं.

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आत्मसमर्पण के बाद बदली जिंदगी

गांधी सेवा आश्रम में रह रहे डकैत गिरोह के सदस्य बहादुर सिंह ने कहा कि उन्होंने एसएन सुब्बाराव भाई जी से प्रेरणा लेकर और राम चरण लाल मिश्रा के प्रयासों से शांति के रास्ते को चुना. वह आज गांधी आश्रम में रहकर शांति से अपना जीवन यापन कर रहे हैं. सरकार ने भी उनकी सजा को कम कराने में सहयोग किया. जिससे वह आजीवन सजा को समय से पहले पूरा कर आए. फिलहाल बहादुर सिंह गांधी आश्रम में रहकर वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं. साथ ही उनके परिवार के लोग सरकार से मिली जमीन पर खेती-किसानी कर अपना भरण-पोषण करते हैं.

डकैतों के परिजन को मिला रोजगार
डकैतों के परिजन को मिला रोजगार

डकैतों के परिजन को गांधी आश्रम में मिलता है रोजगार

जिन 672 डकैतों का आत्मसमर्पण कराया गया, उनके परिवार के रोजगार की जवाबदारी एसएन सुब्बाराव ने ली थी. डकैतों के परिवार के भरण-पोषण के लिए गांधी आश्रम की स्थापना की गई. जिसमें चरखा चलाकर सूट काटना और खादी बुनना मुख्य धंधा था. लेकिन धीरे-धीरे उसे और विकसित किया गया. अब यहां मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन किया जाता है. इसके अलावा कच्ची घानी का 100% शुद्ध सरसों तेल का भी उत्पादन यहां होता है. पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और प्रकृति को रासायनिक और वर्गों से बचाने के लिए वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने का काम भी यहां बड़े स्तर पर होता है. जिससे यहां 1 सैकड़ा से अधिक लोगों को स्थाई रूप से रोजगार मिलता है.

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क्या है गांधी आश्रम के विकास की कहानी ?

मुरैना जिले के जौरा तहसील में 70 के दशक में गांधीवादी विचारों से ओतप्रोत पंडित राम चरण लाल मिश्रा विधायक हुआ करते थे. वह गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बाराव के बहुत नजदीकी थे. चंबल की तत्कालीन दुर्दशा को लेकर दोनों बहुत चिंतित थे. उन्होंने चंबल को विकास के रास्ते पर लाने के लिए भयमुक्त बनाने की योजना बनाई. इसके लिए दोनों ने डकैत समस्या को समाप्त करने का निर्णय लिया. इसी दौरान उन्होंने गांधीजी के अहिंसावादी तरीके से डकैतों को धीरे-धीरे अपराध के दुष्परिणाम से अवगत कराते हुए शांति के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया गया.

शासन और प्रशासन ने उन्हें पूरा सहयोग दिलाने का भरोसा भी दिया. इसी कड़ी में एसएन सुब्बाराव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण से भी बात की. धीरे-धीरे कर सभी डकैतों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संपर्क स्थापित कर उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया. उसके बाद 2 अक्टूबर 1973 को चंबल अंचल के 672 डकैतों ने आत्मसमर्पण कर दिया.

शांति स्मारक
शांति स्मारक

जिस मंच पर किया आत्मसमर्पण वह बना शांति स्मारक

जौरा से सटे ग्राम छडेह में 1973 को 672 डकैतों ने आत्मसमर्पण किया. उस समय वहां एक मंच सजाया गया था. इस दौरान प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण, वर्तमान एकता परिषद के संरक्षक एसएन सुब्बाराव और तत्कालीन कांग्रेस विधायक राम चरण लाल मिश्रा मुख्य अतिथि के तौर में शामिल हुए थे. इसके बाद मंच को ग्राम पंचायत द्वारा शांति स्मारक घोषित कर दिया गया था. बाद में वहां एक चबूतरा बनवाया गया, जो आज भी मौजूद है. इसी स्थान पर गांधी सेवा आश्रम की स्थापना भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे गांधी सेवा आश्रम की विकास योजनाएं बनाते गए और उनकी जरूरत के अनुसार उन्हें एक नए परिसर की आवश्यकता हुई. बताया जाता है कि मूल शांति स्मारक आज भी बना हुआ है.

मुरैना। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसी बात बताने जा रहा है. जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे. चंबल अंचल के वीरान बीहड़ों में डकैतों की गोली की गूंज सुनाई देती थी. आज भी लोग इन बीहड़ों में जाने के कंपकपाते हैं. आपको ये जानकारी हैरानी होगी कि महात्मा गांधी के उपदेशों से प्रभावित होकर एकसाथ 672 डकैतों ने सरेंडर कर दिया. यह 2 अक्टूबर 1973 की बात है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण और विधायक रामचरण लाल मिश्रा के सहयोग से इतने सारे डकैतों ने लाल आतंक का साथ छोड़ दिया था. उस वक्त वर्तमान में एकता परिषद के संरक्षक एसएन सुब्बाराव ने भी काफी अहम भूमिका निभाई थी. रिपोर्ट पढ़ें.

672 डकैतों ने किया था आत्मसमर्पण

गांधीवादी विचारधारा के अनुयाई और वर्तमान में एकता परिषद के संरक्षक एसएन सुब्बाराव और तत्कालीन जौरा विधायक राम चरण लाल मिश्रा के संयुक्त प्रयास से चंबल को डकैत मुक्त और शांति स्थापित करने की पहल की गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण मिश्र ने भी इसमें सहयोग किया था. इस दौरान यह मेहनत रंग भी लाई गई. जौरा में 2 अक्टूबर 1973 को चंबल अंचल के 672 डकैतों ने एसएन सुब्बाराव और जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में गांधी की तस्वीर के सामने अपनी बंदूक रखकर आत्मसमर्पण किया. इस दौरान डकैतों ने बंदूक छोड़कर सदैव गांधी के बताए शांति और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ाने का संकल्प लिया था.

महात्मा गांधी सेवा आश्रम
महात्मा गांधी सेवा आश्रम

आत्मसमर्पण करने वाले डकैतों का सहयोग

चंबल अंचल के जब 672 डकैतों ने आत्मसमर्पण किया, तो उसके बाद सरकार ने उनकी काफी मदद की. सरकार ने सभी 672 डकैतों के परिवार के भरण पोषण और जीवन यापन के लिए उन्हें जमीन मुहैया कराई. साथ ही उनके अपराध की जो सजा थी, उसमें भी उन्हें रियायत देने की पहल की. आगे चलकर ऐसे ही डकैतों ने जौरा में एसएन सुब्बाराव के मार्गदर्शन में गांधी आश्रम की स्थापना की.

जिसमें स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए आज भी काम किया जाता है. यहां डकैतों के परिवार के लोग और कुछ पूर्व डकैत भी रहकर सूट और चरखा का इस्तेमाल कर खादी का काम करते हैं. साथ ही स्वदेशी को बढ़ाने के लिए कच्ची घानी का सरसो तेल, मधुमक्खी पालन और वर्मी कंपोज्ट खाद के साथ-साथ खादी पुण्य का काम करते हैं. जौरा की खादी और अन्य उत्पाद पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं.

'बापू' को कृषि मंत्री ने दी श्रद्धांजलि, कांग्रेस पर भी साधा निशाना, बोले- कांग्रेस ने 60 साल से गांव का विकास नहीं किया

आत्मसमर्पण के बाद बदली जिंदगी

गांधी सेवा आश्रम में रह रहे डकैत गिरोह के सदस्य बहादुर सिंह ने कहा कि उन्होंने एसएन सुब्बाराव भाई जी से प्रेरणा लेकर और राम चरण लाल मिश्रा के प्रयासों से शांति के रास्ते को चुना. वह आज गांधी आश्रम में रहकर शांति से अपना जीवन यापन कर रहे हैं. सरकार ने भी उनकी सजा को कम कराने में सहयोग किया. जिससे वह आजीवन सजा को समय से पहले पूरा कर आए. फिलहाल बहादुर सिंह गांधी आश्रम में रहकर वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं. साथ ही उनके परिवार के लोग सरकार से मिली जमीन पर खेती-किसानी कर अपना भरण-पोषण करते हैं.

डकैतों के परिजन को मिला रोजगार
डकैतों के परिजन को मिला रोजगार

डकैतों के परिजन को गांधी आश्रम में मिलता है रोजगार

जिन 672 डकैतों का आत्मसमर्पण कराया गया, उनके परिवार के रोजगार की जवाबदारी एसएन सुब्बाराव ने ली थी. डकैतों के परिवार के भरण-पोषण के लिए गांधी आश्रम की स्थापना की गई. जिसमें चरखा चलाकर सूट काटना और खादी बुनना मुख्य धंधा था. लेकिन धीरे-धीरे उसे और विकसित किया गया. अब यहां मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन किया जाता है. इसके अलावा कच्ची घानी का 100% शुद्ध सरसों तेल का भी उत्पादन यहां होता है. पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और प्रकृति को रासायनिक और वर्गों से बचाने के लिए वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने का काम भी यहां बड़े स्तर पर होता है. जिससे यहां 1 सैकड़ा से अधिक लोगों को स्थाई रूप से रोजगार मिलता है.

गांधी जयंती पर अनोखी पहल, नर्मदा में एक लाख मछलियां छोड़ीं, नदी की सफाई के लिए सराहनीय कार्य

क्या है गांधी आश्रम के विकास की कहानी ?

मुरैना जिले के जौरा तहसील में 70 के दशक में गांधीवादी विचारों से ओतप्रोत पंडित राम चरण लाल मिश्रा विधायक हुआ करते थे. वह गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बाराव के बहुत नजदीकी थे. चंबल की तत्कालीन दुर्दशा को लेकर दोनों बहुत चिंतित थे. उन्होंने चंबल को विकास के रास्ते पर लाने के लिए भयमुक्त बनाने की योजना बनाई. इसके लिए दोनों ने डकैत समस्या को समाप्त करने का निर्णय लिया. इसी दौरान उन्होंने गांधीजी के अहिंसावादी तरीके से डकैतों को धीरे-धीरे अपराध के दुष्परिणाम से अवगत कराते हुए शांति के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया गया.

शासन और प्रशासन ने उन्हें पूरा सहयोग दिलाने का भरोसा भी दिया. इसी कड़ी में एसएन सुब्बाराव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण से भी बात की. धीरे-धीरे कर सभी डकैतों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संपर्क स्थापित कर उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया. उसके बाद 2 अक्टूबर 1973 को चंबल अंचल के 672 डकैतों ने आत्मसमर्पण कर दिया.

शांति स्मारक
शांति स्मारक

जिस मंच पर किया आत्मसमर्पण वह बना शांति स्मारक

जौरा से सटे ग्राम छडेह में 1973 को 672 डकैतों ने आत्मसमर्पण किया. उस समय वहां एक मंच सजाया गया था. इस दौरान प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जयप्रकाश नारायण, वर्तमान एकता परिषद के संरक्षक एसएन सुब्बाराव और तत्कालीन कांग्रेस विधायक राम चरण लाल मिश्रा मुख्य अतिथि के तौर में शामिल हुए थे. इसके बाद मंच को ग्राम पंचायत द्वारा शांति स्मारक घोषित कर दिया गया था. बाद में वहां एक चबूतरा बनवाया गया, जो आज भी मौजूद है. इसी स्थान पर गांधी सेवा आश्रम की स्थापना भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे गांधी सेवा आश्रम की विकास योजनाएं बनाते गए और उनकी जरूरत के अनुसार उन्हें एक नए परिसर की आवश्यकता हुई. बताया जाता है कि मूल शांति स्मारक आज भी बना हुआ है.

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